आतंकियों के भेष में पाकिस्तानी सेना

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प्रमोद भार्गव

download (1)पाकिस्तान के नापाक चेहरे से जैसे – जैसे नकाब खिसक रहा है, वैसे-वैसे यह विभाजित रेखा खींचना मुश्किल हो रहा है कि भारत-पाक सीमा पर सेना की वर्दी में आतंकवादी हैं अथवा पाक सेना ही आतंकवादियों की भूमिका में तैनात है। पाक के पूर्व लेफिटनेंट जनरल एवं पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व अधिकारी शाहिद अजीज ने जिस रहस्य से परदा उठाया है, उससे यही लगता है। अजीज का कहना है कि कारगिल युद्ध में पाक आतंकवादी नहीं बल्कि उनकी वर्दी में पाकिस्तान सेना के नियमित सैनिक लड़ रहे थे और उनका मकसद सियाचीन पर कब्जा करना था। चूंकि यह लड़ाई बिना किसी योजना और अंतरराष्‍ट्रीय हालातों का अंदाजा लगाए बिना लड़ी गई थी, इसलिए तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने पूरे मामले को रफा-दफा कर दिया था, क्योंकि यदि इस छद्म युद्ध की हकीकत सामने आ जाती तो मुशर्रफ को ही संघर्ष के लिए जिम्मेवार ठहराया जाता। इस रहस्योद्घाटन से साफ होता है कि पाक मजहब के नाम पर मासूम लोगों को जिहाद में धकेलने का काम निरंतर करता चला आ रहा है, साथ ही यह भी स्पष्‍ट होता है कि पाकिस्तानी फौज इस्लामाबाद के नियंत्रण में नहीं है। हाल ही में पाक सैनिकों ने पूंछ इलाके के मेंढर क्षेत्र में घुसकर जिस निर्ममता से भारतीय सैनिक का सिर कलम करने की घटना को अंजाम दिया, वह इसी छद्म की तस्दीक है।

पाकिस्तानी अखबार ‘द नेशन डेली’ में लिखे लेख में शाहिद अजीज ने लिखा है, कारगिल की तरह हमने जो भी निरर्थक लड़ाई लड़ी, उससे हमने कोई सबक नहीं सीखा है। हम सबक सीखने से इनकार करते चले आ रहे हैं। सच्चाई यह है कि हमारे गलत कामों की कीमत हमारे बच्चे अपने खून से चुका रहे हैं। पाकिस्तान जिस तरह से आंतरिक और बाहरी विपदाओं से जूझ रहा है, उससे उसकी आर्थिक बदहाली लगातार बढ़ रही है। पाक में कठिन होते जा रहे हालातों का एक कारण यह भी है कि वहां के राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेना नायक पद पर रहते हुए धर्म के नाम पर लोगों को भड़काने व आतंकवाद को प्रोत्साहित करने का काम करते हैं, किंतु जब पदच्यूत हो जाते हैं तो देश छोड़ जाते हैं। राष्‍ट्रपति और सेनाध्यक्ष रहे परवेज मुशर्रफ भी फिलहाल विदेशी शरण में हैं। हालात यदि इसी तरह बेकाबू रहे और पाक के आला नेता देश से पलायन करते रहे तो देश की जनता सड़कों पर संघर्ष करती नजर आएगी और सेना मनमानी पर उतर आएगी। ऐसे में पाक के भीतर अथवा सीमा पर घटने वाली बढ़ी घटना घटती है तो यह तय करना कठिन हो जाएगा कि इस घटना को सेना ने अंजाम दिया है या आतंकवादियों ने ? जैसा कि कारबिल और मेंढ़र की घटनाओं में हुआ है

पाक सैनिकों ने पूंछ इलाके में जिस क्रूर घटना को अंजाम दिया है वैसी ही घटना को अंजाम कारगिल युद्ध के समय हिंसक बर्बरता पाक सैनिकों ने कप्तान सौरभ कालिया के साथ बरती थी। यही नहीं सौरभ का शरीर क्षत-विक्षत करने के बाद षव बमुष्किल लौटाया था। युद्ध के समय भी अंतरराष्‍ट्रीय कानून के मुताबिक ऐसी विभत्सा बरतने की इजाजत नहीं है। ये वारदातें युद्ध अपराध की श्रेणी में आती हैं। लेकिन भारत सरकार इस दिषा में कोई पहल ही नहीं करती और युद्ध अपराधी, निरपराधी ही बने रहते हैं। अब शाहिद अजीज के ताजा बयान से तो यह भी पता लगाना मुष्किल है कि भारतीय सेना पाक सेना से लड़ रही है अथवा पाक आतंकवादियों से ? इस स्थिति को स्पश्ट करने के लिए भारत पाक पर अंतरराष्‍ट्रीय दबाव भी नहीं बना पा रहा है। भारत की यह सहिष्‍णुता विकृत मानसिकता के पाक सैनिकों की क्रूर सोच को प्रोत्साहित करती है। यहां एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह भी है कि ऐसी जघन्य हालत में पाक के साथ भारतीय सेना नायक क्या बर्ताव करें, इस परिप्रेक्ष्य में भारत के नीति-नियंताओं के पास कोई स्पष्‍ट नीति ही नहीं है। यही वजह है कि बड़ी से बड़ी घटना भी आष्वासन और आष्वस्ति के छद्म बयानों तक सिमटकर रह जाती है। भारत इन घटनाओं को अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर उठाने का भी साहस नहीं दिखा पाता। नतीजतन संबंध सुधार के द्विपक्षीय प्रयास इकतरफा रह जाते हैं।

अजीज के बयान के संदर्भ में गौरतलब है कि जम्मू-कश्‍मीर में नियंत्रण रेखा पर एक दशक से जारी युद्धविराम भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने की दिश में सबसे पुख्ता शर्त न होकर एक छद्म समझौता है जिसकी हकीकत पर ही परदा पड़ा है। युद्ध विराम की शर्त 26 नवंबर 2003 को लागू हुई थी। वरना इस रेखा पर कमोबेश अघोषित हमले जैसी स्थिति बनी ही रहती है और सुरक्षा के लिए तैनात सिपाही शहीद होते रहते है। हमले की जद में आने वाले ग्रामों के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी भी बेहाल है। युद्धविराम से इन क्षेत्रों में स्थिरता और आपसी सौह्यार्द बढ़ाने का इकतरफा प्रयास अबतक भारत ने ही किया है। भारत-पाक रिश्‍तों को मधुर बनाने के लिए क्रिकेट-कूटनीति अपनाई गई। हाल ही दिसंबर-जनवरी में टी-20 और तीन एक दिवसीय क्रिकेट खेल श्रृंखला संपन्न हुई। इस श्रृंखला की सफलता के तारतम्य में ही दोनों देषों के बीच मार्च में हॉकी खेली जाना प्रस्तावित है। खेल, पर्यटन और तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए दोनों देशों के नागरिकों को वीजा नीति उदार बनाने पर सहमति हुई। दोनों देशों के बीच कारोबार तीन अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। इसे और बढ़ाने की दृष्टि से ही 2012 में दोनों देशों ने उद्योगपतियों को एक-दूसरे के देश में पूंजी निवेश की मंजूरी दी। जिससे दोनों देशों के व्यापारिक घरानों को नए बाजार व उपभोक्ता मिलें और रोजगार के अवसर भी बढ़ें। सुधरते संबंधों के चलते ही पाकिस्तान ने पहली बार भारत को महत्वपूर्ण सहयोगी देश का दर्जा दिया। लेकिन पाक के लगातार नापाक इरादे ही सामने आ रहे हैं, जिन्हें शाहिद अजीज का लेख तसदीक कर रहा है।

पाकिस्तान के जो निर्वाचित प्रतिनिधि हैं इस्लामाबाद की सत्ता पर सिंहासनारुढ़ हैं, उनका अपने ही देश की सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चंगुल में है। हुकूमत पर आईएसआई का इतना जबरदस्त प्रभाव है कि वह भारत के खिलाफ सत्ता को उकसाने का भी काम करती है। यही वजह है कि सेना की अमर्यादित दबंगई ठंड और कोहरे का बेजा लाभ उठाकर भाड़े के तालिबानियों को भारत में घुसपैठ कराकर कारगिल जैसी आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की भूमिका रचती है। पाक सेना की दंबगई बढ़ाने का काम परोक्ष रुप से अमेरिका भी कर रहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक इमदाद बहाल कर दी है। अब यह राशि तीन अरब डॉलर सालाना होगी। इसके पहले अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को इतनी विपुल धन राशि कभी उपलब्ध नहीं कराई गई। ऐसा अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेना बाहर निकालने की रणनीति के चलते कर रहा है। चूंकि यह मदद पाक कूटनीति का पर्याय होने की बजाए, सेना और आईएसआई की कोशिशों का नतीजा है, इसलिए इस धन राशि का उपयोग भारत के खिलाफ भी होना तय है। यहां आग में घी डालने का काम पाकिस्तानी सेना के जनरल कयानी भी कर रहे हैं। वे इसी साल सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। ऐसे में माहौल गरमा कर वे सेवा विस्तार की नापाक मंशा पाले हुए हैं।

पाक इरादे भारत के प्रति नेक नहीं हैं, इसी नजरिए से वह आर्थिक मोर्चे पर भारत से छद्म युद्ध भी लड़ रहा है। देश में नकली मुद्रा की आमद साढ़े तीन गुना बढ़ गई है। वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) के मुताबिक भारत में करीब 160 अरब मूल्य की जाली मुद्रा चलन में ला दी गई है। इन नोटों की तष्करी कश्‍मीर, राजस्थान, नेपाल की सीमा और दुबई तथा समुद्री जहाजों से हो रही है। जाली मुद्रा के लेन-देन में अब तक हजारों लोग पकड़े जा चुकने के बाद जमानत पर छूटकर इसी कारोबार को अंजाम देने में लगे हैं। कानून सख्त न होने के कारण यह व्यवसाय उनके कैरियर का हिस्सा बन गया है। भारत की बढ़ती विकास दर और प्रति व्यक्ति आय बढ़ोत्तरी में इस जाली मुद्रा की भी अहम् भूमिका है, इसलिए केंद्र सरकार इसे गंभीरता से नहीं लेती। केंन्द्र सरकार क्या इन्हीं नापाक इरादों के लिए वीजा प्रावधान शिथिल बना रही हैं ? सीमा पर ढील, आतंकवादियों के भेष में सेना द्वारा लड़ा गया युद्ध और सैनिकों की हत्या राष्‍ट्र के संप्रभुता से जुड़े बड़े सवाल हैं, इन्हें उदार आचरण से नहीं सुलझाया जा सकता है। इसलिए जरुरी है पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए और उससे सभी तरह के संबंध खत्म कर लिए जाएं। वरना भारत मुंह की खाता रहेगा।

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  1. हम अपनी ही जमीन पर अपना युद्ध लड़ते हैं, सिर्फ और सिर्फ राजनेताओं की मूर्खता के कारण। दुष्टों को दण्डित करना अभी हमने सीखा ही नहीं है। कभी हमें पाकिस्तान कभी चीन कभी बांग्लादेश सरीखे देश भी आँखें दिखाने लगते लगते हैं।

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