आतंकवादियों के साथ कौन खड़ा है ?

ishratडा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

इशरत जहाँ के मामले को लेकर पिछले दिनों चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं । 15 जून 2004 में इशरत जहाँ अहमदाबाद में अर्ध रात्रि को हुई एक पुलिस मुठभेड़ में मारी गई थी । उसके तीन और साथी इस मुठभेड़ में मारे गए थे । उनमें एक जावेद शेख़ भी था । दूसरे दो अमजद अली राणा और जीशाद था । जावेद शेख़ का पहला नाम प्रणेश पिल्लै था , वह बाद में मुसलमान बना था । मरने वालों में पाकिस्तानी नागरिक भी था । लश्करे तोयबा की ओर से भेजा यह ग्रुप गुजरात में कोई बड़ी वारदात की तैयारी में था । इसकी सूचना केन्द्र सरकार के इंटैलीजैंस व्यूरो ने भी दी थी । लेकिन इस मुठभेड़ के तुरन्त बाद सोनिया कांग्रेस समेत कुछ दूसरे राजनैतिक दलों ने शोर मचाना शुरु कर दिया कि मुठभेड़ तो नक़ली थी ही इशरत जहाँ जैसी मासूम और ज़हीन कालिज छात्रा को गुजरात सरकार ने केवल मुसलमान होने के कारण मार दिया । इशरत जहाँ मुम्बई की रहने वाली थी । इसलिए कई राजनैतिक नेता तुरन्त उसके घर पहुँचे । उसके परिवार को आर्थिक सहायता देने का कुछ नेताओं ने वायदा किया और कुछ ने तुरन्त देकर पुण्य कमाया । लेकिन कुछ दिन बाद लश्करे तोयबा ने ही अपनी साईट पर भारत से लड़ते हुए शहीद होने वाली अपनी इशरत को श्रद्धांजलि अर्पित की । लेकिन तब तक हिन्दोस्तान में इशरत जहाँ की मासूमियत को चैनल पूरे मनोयोग से दिखाना शुरु कर चुके थे और इस आतंकवादी समूह को मारने वाले गुजरात के पुलिस अधिकारियों के सिरों की माँग होने लगी थी । भारत में आतंकवाद के माध्यम से लड़ाई लड़ते लश्करे तोयबा इतना समझदार हो ही गया है कि जब भारत में ही इशरत जहाँ को उसकी शहादत पर अश्रु सुमन अर्पित करने वाले बैठे हैं तो उन्हें अपनी साईट पर यह सब कुछ करने की जरुरत नहीं है । जो लोग इशरत जहाँ पर अपनी वोटों की गिनती कर रहे थे , उन्होंने यक़ीनन लश्करे तोयबा को नाज़ुक वक़्त पर की गई इस सहायता के लिये शुक्रगुज़ार कहा होगा । लेकिन भारत सरकार न्यायालय में शपथ पत्र लेकर कह चुकी थी कि इशरत जहाँ आतंकवादी थी । वह शपथ पत्र इस पूरी राजनैतिक लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा वन चुका था ।
इस मरहले पर सोनिया कांग्रेस सक्रिय हुई । उनकी सरकार ने न्यायालय में नया शपथ पत्र दाख़िल करने की रणनीति तैयार कर ली । एक ऐसा शपथ पत्र जिसमें स्पष्ट बता दिया जाए कि इशरत जहाँ का लश्करे तोयबा या आतंकवाद से कोई ताल्लुक़ नहीं था । वह निर्दोष थी और गुजरात में मोदी सरकार की मुस्लिम विरोधी नीति का शिकार हो गई । लेकिन केन्द्र सरकार यह भी जानती थी कि यदि वह इस रास्ते पर चल पड़ेगी तो उन पुलिस अधिकारियों और विजिलैंस व्यूरो के लोगों के लिए संकट खड़ा हो जायेगा जो प्राणों की बाज़ी लगा कर पाकिस्तान की ओर से लड़ी जा रही इस लडाई में जूझ रहे हैं । आतंकवाद से लड़ रहे सशस्त्र बलों का मनोबल गिरेगा । लेकिन सोनिया कांग्रेस के लिए राजनैतिक स्वार्थ ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए और देश की सुरक्षा दोयम दर्जे पर पहुँच गई । सतीश वर्मा उस विशेष जांच टीम के मुखिया थे जो इशरत जहाँ केस की जाँच के लिए बनाई गई थी । लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि यातना के जो तरीक़े छटे हुए आतंकवादियों से सच उगलवाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं , अब पुलिस उन तरीक़ों का उपयोग गृहमंत्रालय के अधिकारियों पर नया शपथ पत्र तैयार करवानके लिए कर रही थी । उप सचिव आर वी एस मनी को तो जलती सिगरेट तक से दागा गया । उस समय गृह सचिव रह चुके आर के सिंह और जी के पिल्लै , दोनों बार बार कह रहे हैं कि नया शपथ पत्र तथ्यों को आधार पर नहीं बल्कि राजनैतिक स्तर पर तैयार किया गया था । उस काल खंड में गृह मंत्री सुशील शिन्दे तो यहाँ तक कह रहे हैं कि जाँच कर रही राष्ट्रीय जाँच एजेंसी उनको रिपोर्ट करती ही नहीं थी । तो क्या वह सीधे सोनिया गान्धी को रिपोर्ट करती थी ? या फिर सीधे लश्करे तोयबा को ही । लेकिन सबसे ज़्यादा शक के घेरे में तो बाद में बने गृह मंत्री पी चिदम्बरम आ गए हैं । कहा जाता है कि शपथ पत्र उनके कहने पर बदला ही नहीं गया , शायद तैयार भी उन्हीं के दफ़्तर में किया गया था ।
अब जब डेविड हेडली ने न्यायालय में दिए गए अपने बयान में स्पष्ट बता ही दिया है कि इशरत जहाँ लश्करे तोयबा के ग्रुप की ही थी तो सोनिया कांग्रेस संकट में फँसीं दिखाई देती है । यह अलग बात है कि हेडली ने 2010 में ही भारत सरकार की जाँच टीम को इशरत की यह सच्चाई बता दी थी लेकिन उसको उस समय सरकार ने छुपा कर रखने का निर्णय कर लिया था । अन्यथा इशरत को शहीद बता कर मोदी को फँसाने की उसकी सारी रणनीति बेकार हो जाती । इस बार हेडली ने बयान न्यायालय में दिया है और सरकार की उसको छिपाने की मंशा भी नहीं थी । लेकिन अब सोनिया कांग्रेस ने नया पैंतरा चला है । उसके समर्थक कह रहे है कि इशरत जहाँ आतंकवादी तो थी लेकिन उसकी मुठभेड़ नक़ली थी । वे किसी भी आतंकवादी को पकड़ने और सज़ा दिलवाने का का तरीक़ा देशवासियों को बहुत मेहनत से समझा रहे हैं । उनका कहना है कि ख़तरनाक हथियारों से लैस आतंकवादी को किसी भी तरह ज़िन्दा पकड़ना चाहिए । हो सकता है इस ज़िन्दा पकड़ने की प्रक्रिया में दो तीन सैनिक मारे भी जाएँ । लेकिन इससे कोई फ़र्क़ नहीं पडता । आख़िर सशस्त्र बलों की संख्या लाखों में हैं और आतंकवादी हज़ारों में ही । पुलिस को किसी भी तरह आतंकवादी को ज़िन्दा ही पकड़ना है । उसके बाद उसे हवालात में बन्द करना चाहिए , फिर न्यायालय में केस चलाना चाहिए । केस जीतने के लिए पुलिस को वे गवाह तलाशने चाहिएँ जो बिना किसी डर के न्यायालय में इन छँटे हुए दुर्दान्त आतंकियों के ख़िलाफ़ गवाही दे सकें । बस इस पूरे वैज्ञानिक तरीक़े में सोनिया कांग्रेस के लोग एक प्रश्न पर चुप रहते हैं कि जम्मू कश्मीर में पिछले तीस साल से कितने आतंकवादियों को सज़ा मिली है ? लेकिन आतंकी को पकड़ने का यह वैज्ञानिक तरीक़ा बताने वाले सोनिया कांग्रेस के सिपाहसलार केवल इतना नहीं जानते कि पुलिस जब किसी आतंकवादी को घेरती है तो उस समय सारा फ़ैसला इस बात पर निर्भर होता है कि पहली गोली कौन चलाता है । जो पहली गोली चलाता है वह बचता है , जो नहीं चलाया वह मरता है । इसके साथ यह ध्यान रखना चाहिए कि आतंकवादी , जो घर से मरने के लिए ही निकला है , उसे मौक़ा मिलने पर पहली गोली चलाने में एक क्षण की भी देर नहीं लगती ।

लेकिन इस सबके बावजूद सोनिया कांग्रेस की नज़र में लश्करे तैयबा की इशरत जहाँ , इस देश में तथाकथित तानाशाही के ख़िलाफ़ लड़ने वाली सबसे बड़ी वीरांगनाओं में से है । सोनिया कांग्रेस पिछले कुछ अरसे से सीधे सीधे आतंकवादियों के समर्थन में ,उनकी रक्षा करने और उनको जन नायक बनाने में अपनी पूरी शक्ति लगा रही है । मुम्बई पर पाकिस्तानी आतंकवादी हमले के बाद सोनिया कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने यह सिद्ध करने के लिए सारा ज़ोर लगा दिया की यह आक्रमण पाकिस्तानी आतंकवादियों ने नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने करवाया था । मुम्बई विस्फोटों के अपराधी जाने माने आतंकी याकूब मेनन को फाँसी दिए जाने की एनवरसिरी मनाने के लिए हैदराबाद विश्वविद्यालय में कुछ लोगों ने कार्यक्रम आयोजित किया । लेकिन राहुल गान्धी उसे छात्रों की अभिव्यक्ति की आज़ादी बता रहे हैं और उनके पक्ष में लड़ने की तैयारियाँ कर रहे हैं । अब दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में , संसद पर हुए आक्रमण के मास्टरमाईंड अफ़ज़ल गुरु की स्मृति में कार्यक्रम हुआ और भारत विरोधी नारे लगे । दूसरे दिन उनका समर्थन करने में राहुल गान्धी फिर वहाँ पहुँच गए । इतना ही नहीं , यह सिद्ध करने के लिए कि अफ़ज़ल गुरु की क़ानून की सहायता से हत्या की गई , सोनिया कांग्रेस ने एक बार फिर राहुल गान्धी की सहायता के लिए चिदम्बरम को मैदान में उतारा गया । चिदम्बरम ने मातमी धुनों में गाना शुरु कर दिया कि अफ़ज़ल गुरु को फाँसी देने में शायद ग़लती हो गई । सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि सोनिया परिवार इससे पहले राजीव गान्धी के आतंकी हत्यारों को मुआफ़ी दिलवाने के लिए भी छिपे तौर पर प्रयास करता रहा । आख़िर सोनिया कांग्रेस का सब प्रकार के आतंकियों को बचाने के पीछे उद्देष्य क्या हो सकता है ? यह पूरा प्रश्न ही स्वतंत्र जाँच की माँग करता है । केवल रिकार्ड के लिए , राहुल गान्धी अरसा पहले कह चुके हैं कि भारत को लश्करे तोयबा से नहीं , आर एस एस से है ।

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