आज दादाजी फिर कहानी सुनाने बैठ गये| गरमी का समय था,बढ़िया कूलर की हवा का आनंद लेते हुये सब बच्चे उन्हें घेर कर बैठे थे|कहानी फिर धरमपुरा रियासत और वहां के दीवान लाला पीतांबर से शुरु हुई|
टुन्नेलाल ने पूँछा ” नाम के बाद यह लाल लगाने का रिवाज़ कितना पुराना है दादाजी?क्यों लगाते हैं यह लाल नामों के पीछे|”
‘लाल अपने पुत्रों को कहते हैं|तुमने सुना होगा कि मातायें अपने बच्चों को प्रेम से लाल ही तो कहती हैं|मेरा लाल आ गया या ये मेरा लल्ला है|भगवान कृष्ण की माता यशोदा तो अपने लाल को लल्ला ही कहतीं थीं|लाला पीतांबर लाल के वंशजों के नाम भी ऐसे ही थे जैसे पुत्र चोखेलाल ,उनके पुत्र बाबूलाल ,बनवारी लाल उनके पुत्र …. |
“दादाजी कहीं कहीं उर्फ लगाने का भी रिवाज़ है,ये उर्फ क्या होता है?”
“अरे भाई कभी कभी एक ही व्यक्ति के कई नाम हो जाते हैं, बचपन में कुछ और नाम होता है और स्कूल में दूसरा नाम लिखा जाता है|जैसे बाबूलाल का दूसरा नाम रामसहाय था,तो वह बाबूलाल उर्फ रामसहाय कहलाये|अब मेरा ही नाम ले लो बचपन में मुन्ना कहते थे|सही नाम तो आपको मालूम ही है|पुराने लोग मुझे मुन्ना ही कहकर बुलाते हैं,बड़ा अच्छा लगता है सुनकर अपनेपन का अहसास होता है|अब कोई मिस्टर प्रभुदयाल कहे या प्रभुदयाल सर कहे तो कुछ अज़ीब सा लगता है जैसे रबर की गेंद पर किसी ने प्लास्टिक चढ़ा दिया हो|बाबूलाल को बब्बू और बनवारीलाल को बन्नी कहने अलग ही आनंद रहता होगा|”
“मुझे तो दादाजी जब कोई मलऊ कहकर बुलाता है तो बहुत मज़ा आता है’मल्लूलाल खुश होकर बोले|
“और मुझे भी मज़ा आता है दादाजी जब लोग मुझे गुबरू कहते हैं|”
गोवर्धनलाल ने हुँकार भरी|
‘खैर अब कहानी सुनो ,दीवान पीतांबर लाल के करिश्मों की| धरमपुरा की खुशहाली के चर्चे दूर दूर तक पहुंचे थे|आजकल जो ये सरकारें डिंडोरा पीटती हैं न कि सबको सरकार रोटी देगी,अरे भईया रोटी तो पहले भी राजा लोग सबको खिलाते रहे हैं |अच्छे राज्यों में कोई भूखा नहीं सो सकता था|नगरों में कई जगह लंगर चलते थे|गांव में राजा की तरफ से प्रतिनिधि नियुक्त होते थे जो हर भूखे को रोटी देने की व्यवस्था
करते थे|मज़ाल कोई भूखा रह जाये|गोपालपुर में भी ऐसी ही व्यवस्था थी|होरीलाल नामक व्यक्ति हर दिन राज भंडार से ही खाना ले जाता था या राजप्रतिनिधि मोहनलाल उसके घर या खेत में ही खाना दे आता था|मोहनलाल ने एक दिन पूछा “होरीलाल तुम्हारे पास रहने को घर है खेती है तो थोड़ा बहुत धन भी होगा फिर क्यों राज दरवार का खाना रोज़ लेते हो?”
“मुझे अपनी बेटी का विवाह करना है यदि घर के धन से भोजन करूंगा तो धन कैसे जोड़ पाऊंगा|”होरी ने जबाब दिया
“मुझे यह बात राजा को बताना पड़ेगी सरकारी भोजन तो गरीब लाचारों के लिये है|”
“नहीं ऐसा नहीं करना, मैं मर जाऊंगा, राजा साहब तो बहुत कड़ा दंड देंगे, ही मेरी बदनामी भी होगी|मैं चाहता हूं कि जो भी धन मेरे पास है वह आप धरोहर के रूप में अपने पास रख लें और जब बेटी का ब्याह होगा मैं आपसे ले लूंगा|”
“ठीक है मैं तैयार हूं अपना धन मुझे दे दो|”मोहनलाल यह बात सुनकर प्रसन्न हो गया|
“यहाँ उचित नहीं होगा लोग देखेंगे तो उन्हें शक होगा,कल सुबह मैं अपनी सारी सम्पत्ति अपने खेत में ले जाऊंगा,आप हमारा भोजन वहीं ले आयेंगे और वहीं से मैं आपको अपना धन दे दूंगा|”
दूसरे दिन होरीलाल अपनी गाढ़ी कमाई को एक गठरी में बाँध कर खेत पर ले गया|
“पर दादाजी वह घर पर भी तो यह काम कर सकता था” टुन्नेलाल ने बीच में ही पूँछ लिया|
“उत्तम प्रश्न है,लगता है कि कहानी सब लोग ध्यान से सुन रहे हो|होरीलाल बहुत गरीब बनकर रहता था|यदि घर पर धन देता तो उसकी पोल खुल जाती|”दादाजी ने कहा|
“मगर दादाजी आजकल भी तो कई बड़े लोग बी. पी. एल.का कार्ड बनवाकर इसी तरह से सरकार को चूना लगा रहे हैं|”
“ये बी.पी.एल. क्या होता है?”मलऊ ने बीच में टोका|
“बिलो पावरटी लेबिल,मतलब गरीबी रेखा के नीचे|जब से यह संसार बना है अच्छाई के साथ बुराई भी आ गई|साधु आये तो शैतान भी आ गये|
“हाँ तो दादाजी फिर क्या हुआ क्या होरीलाल ने सारा धन राज प्रतिनिधि मोहनलाल को दिया?”गुबरू ने पूँछा|
“हां किंतु इतना सारा धन देखकर उसको लालच आ गया |उसने धन हाथ में आने के बाद होरीलाल की गर्दन दबोच दी और वहीं दलदल में उसे पटककर भाग आया|”
“परंतु दादाजी क्या होरीलाल मर चुका था?”मलऊ ने पूछा|
“मोहनलाल तो यही समझा कि गर्दन दबोचने से वह मर गया होगा,परंतु वह तो जीवित था|दूसरे दिन वह राज दरवार में शिकायत लेकर पहुँचा और सारी कहानी राजा साहब के सामने ब्यान कर दी|
मरता क्या न करता मोहनलाल साफ पलट गया बोला” ह्ज़ूर यह होरीलाल गरीब नहीं है फिर भी राजा के रोटी खाने रोटी ले रहा था|जब मैंने इसकी शिकायत आप तक पहुँचाने की बात की तो हज़ूर यह मेरी झूठी शिकायत कर रहा है|”दादाजी ने कहानी को आगे बढ़ाते हुये सस्पेंस क्रियेट करना चालू कर दिया|
“राजा आग बबूला हो गया,’तुम्हारे पास इतना धन था तो तुम सरकारी भोजन क्यों ले रहे थे तुम्हें क्यों न फाँसी पर टांगा जाये?”
राजा का आदेश सुनकर होरीलाल रोने लगा “हुज़ूर मेरी बेटी स्यानी होती जा रही है और उसके विवाह के लिये मैंने अपना पेट काटकर धन इक्ट्ठा किया था|मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं और सरकार, मेरे धन में से वह राशि दंड सहित काट ली जाये जितने का मैंने सरकारी भोजन किया है|”होरी गिडगिड़ाने लगा|
राजा उसकी सच्चाई पर पसीज़ गये और मोहनलाल को उसका सारा धन वापस करने का आदेश दे दिया|किंतु वह इस बात को नकार रहा था कि उसने होरीलाल से कोई धन लिया है |वह कह रहा था कि उसने होरीलाल का खेत देखा तक नहीँ है|राजा साहब जो कि पसोपेश में थे कि कौन झूठा है और कौन सच्चा ने लाला पीतांबर लाल को दो दिन के भीतर सचाई जानने का हुकुम दिया|
लाला साहब तो चतुर खिलाड़ी थे ही|उन्होंने होरीलाल से पूछा ‘तुमने किसके सामने धन दिया था,और कहां दिया था?”
‘सरकार वहां उस समय कोई भी नहीं था |मेरे खेत के पीछे एक दलदल है,उसी दलदल के किनारे मैंने धन दिया था |वहीं इस बेईमान आदमी ने धन मिलते ही मेरी गर्दन दबोच ली और मुझे दलदल में धक्का दे दिया||मैं सांस रुकने से बेहोश हो गया था|यह तो गनीमत रही कि मुझे होश आ गया और मैं दलदल से बाहर निकलकर आपके सामने जीवित खड़ा हूं|दीवानजी ने समझ लिया कि यह मोहनलाल ही झूठ बोल रहा है| तीसरे दिन राजा साहब ने पीतांबरलालजी से असली गुनहगार की जानकारी चाही|
“राजा साहब यह मामला बड़ा पेंचीदा है , दोनों कह रहे हैं कि मामले का कोई आंखों देखा गवाह नहीं| एक कह रहा है कि धन दिया है दूसरा कहता है नहीं दिया|परंतु मुझे आज ही एक गवाह मिल गया है हज़ूर उसी को बुलवाया है आता ही होगा|”
“आपको ऐसा कौन सा गवाह मिल गया?”राजा ने पूछा|
“‘दलदल’ वही गवाही देगा कि होरीलाल ने धन दिया कि नहीं”
“दीवानजी आप पागल हो गये हैं क्या, कहीं दलदल भी गवाही देते है?”राजा ने चकित होकर प्रश्न किया|
‘बिल्कुल देगा, ‘दलदल’ आने ही वाला है गवाही देने, आधा घंटा और, बस |वैसे बहुत देर हो गई है दो घंटे पहले मैंने अपना आदमी भेजा है अभी तक तो आ जाना चाहिये था,उन्होंने घड़ी देखते हुये कहा|
“आधा घंटे में दलदल कैसे आ पायेगा यहां से बहुत दूर है वह जगह, कम से कम से कम छ:सात घंटे तो लगेंगे ही|”मोहनलाल ने आशंका व्यक्त की|
“तुम्हें कैसे मालूम कि वह जगह बहुत दूर है?लालाजी ने उसकी गर्दन पकड़ ली|अब तो मोहनलाल डर के मारे काँपने लगा|चोर की डाढ़ी मे तिनका|गुनाहगार को पकड़ लिया गया था| मोहनलाल ने अपना गुनाह कबूल कर लिया|धन के लालच में बहुत बड़ा पाप कर बैठा था|कहते हैं कि गुनाह स्वयं सिर चढ़कर बोलता है|सारी दुनियाँ जानती है कि निर्जीव वस्तुयें चलकर नहीं आतीं न ही बोलतीं हैं|किंतु मोहनलाल ने गुनाह किया था इसलिये हड़बड़ाहट में वह ऐसी बात कह गया कि गुनाह अपने आप सिद्ध हो गया|
सभा में दीवान पीतांबरलाल की जय जय कार हो रही थी| “परंतु दादाजी इन दोनों गुनाहगारों को क्या सजा दी राजा साहब ने?”मलऊ ने पूछा|”होरीलाल को दो साल का सश्रम कारावास और मॊहनलाल को दो साल की फाँसी|”दादाजी ने कहा|
“दोसाल की फांसी कैसे दी होगी दादाजी?” गुबरू ने आश्चर्य से पूछा|
“उसे रोज़ फांसी के फंदे पर लटकाया जाता था|बस फँदा खीचते नहीं थे|यह सजा तो फाँसी से भी बड़ी सजा है|इससे गुनाहगारों को अपनी गलती, दंड और भविष्य में सुधार ,तीनों का समावेश रहता है|”
रात बहुत हो गई थी इसलिये दादाजी नॆ सब बच्चों शुभ रात्रि कहकर बिदाई ली और बच्चे भी सोने चले गये|