वेदों का उपदेश यही

क्या आज कोई जगाएगा सचमुच मेरे मन का फाग।
और देगा मुझे वो परिवेश जिसे कहूं मैं निज सौभाग्य।।
सचमुच मैं रूष्ट हूं, असंतुष्ट हूं पर थका नही हूं।
चरेवैति-चरेवैति कहता हूं पर अभी रूका नही हूं।।
मंजिलें मेरी मोहताज हैं मैं मंजिलों का मोहताज नही,
मैं सच कहता हूं ऐ दोस्तो जो कल था वो आज नही।
कौन सुलझाएगा आज मेरे मन की इस उलझन को,
मैं लाज में जला और जिससे जला उसमें कोई लाज नही।।
‘राकेश’ तेरी प्रार्थना में परमार्थ हो स्वार्थ नही,
परहित चिंतन हो है भारत का पुरूषार्थ यही।
होली का पावन पर्व देता है हमें संदेश यही,
यज्ञशेष हो भोग हमारा वेदों का उपदेश यही।।
राकेश कुमार आर्यbooks
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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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