राजनाथ बने भाजपा के भाग्यनाथ

rajnathनितिन गडकरी बहुत असफल अध्यक्ष नही थे लेकिन राजनीति में कभी कभी बना

बनाया महल भी पल भर में ढह जाता है। यही उनके साथ हुआ है। भाजपा उन्हें

अपना अध्यक्ष मान चुकी थी और उनके नाम पर मुहर लगना ही शेष रह गया था। पर

भाग्य ने अंतिम क्षणों में पलटा खाया और उनके स्थान पर राजनाथ सिंह भाजपा

के ‘भाग्यनाथ’ बन गये।

राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित भाजपा के राष्ट्रीय

अध्यक्ष के रूप में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वाह कर चुके हैं।

उनकी छवि अच्छी है और वह नपी तुली भाषा में सटीक बात कहने के लिए जाने

जाते हैं। भाजपा में उनके लिए सम्मानजनक संबोधन ‘माननीय जी’ का है। नेपाल

के प्रधानमंत्री को एक प्रकरण में फोन पर कड़े शब्दों में फटकारते हुए

उन्हें मैंने सुना है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित जो भी

जिम्मेदारी उन्हें मिली उन्होंने उसे अपना कत्र्तव्य मानकर निभाया। यही

कारण है कि भाजपा में उनका सम्मान बरकरार रहा। अरूण जेटली और सुषमा

स्वराज ने राजनाथ को भाजपा का भाग्यनाथ बनाने में अच्छी भूमिका निभाई और

कांग्रेस के उन लोगों को अच्छा संदेश दिया जो ये कह रहे थे कि भाजपाई

कुत्तों की तरह लड़ते हैं। इन दोनों बड़े नेताओं की सूझबूझ ने अपने

आलोचकों को बता दिया कि भाजपाई देवताओं की तरह अपने मामले शांति से निपटा

लेते हैं। अब भाजपा अगला आम चुनाव राजनाथ सिंह के नेतृत्व में लड़ेगी।

उनके लिए अच्छी बात रही है कि उत्तर प्रदेश में उन्हें दो दिन पहले ही

भाजपा का एक रूठा और बिछुड़ा हुआ महारथी कल्याण सिंह के रूप में मिल गया

है। कल्याण सिंह का भाजपा के कार्यकर्ताओं में सम्मान है और वह एक कुशल

राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने भाजपा में जिस प्रकार नम आंखों के साथ पुन:

प्रवेश किया है उससे पता चलता है कि अब वे अंतिम समय तक अपने परिवार से

बिछुड़ेंगे नही। आंखों की नमी बीती बातों को भुलाने और अतीत पर

प्रायश्चित करने की प्रतीक तो थी ही साथ ही नई इबारत लिखने की खुशी को भी

बयां कर रही थी।

भाजपा के नये अध्यक्ष के साथ मोदी का उत्थान उनके लिए बहुत ही अच्छा है।

मोदी का कद जितना ही ऊंचा होगा भाजपाध्यक्ष के वर्चस्व में उतनी ही

वृद्घि होगी राजनाथ सिंह निश्चित रूप से भाजपा के सारथि हैं, लेकिन उनका

अर्जुन तो नरेन्द्र मोदी ही हैं। नरेन्द्र मोदी के द्वारा ही आने वाला

‘महाभारत-2014’ जीतना है। राजनाथ सिंह को अपनी ओर से एक अच्छी पहल करनी

चाहिए कि वह महाभारत के पश्चात ‘हस्तिनापुर’ अर्जुन को देकर स्वयं

द्वारिका (संगठन संचालन) चले जाएंगे। इस घोषणा के लिए उनकी पार्टी के

कार्यकर्ता ही नही अपितु इस देश के कोटि कोटि लोग भी प्रतीक्षारत हैं।

शत्रु केा रणक्षेत्र में पराजित करने के लिए रणनीति का इससे अचूक उपाय और

कोई नही हो सकता। यह अदभुत संयोग है कि देश की दो बड़ी राजनीतिक

पार्टियों ने 2014 के लिए अपने अपने चेहरों में परिवर्तन किया है।

कांग्रेस इस बार मनमोहन सिंह को चुनाव जीतने पर भी पीएम नही बनाएगी। वह

चुनाव बाद की परिस्थितियों के लिए इस प्रश्न को टालकर चल रही है।

कांग्रेस का यह भाव उसकी पराजित मानसिकता का प्रतीक है। लेकिन भाजपा को

अपने ‘पीएम इन वेटिंग’ की सूची में खड़े लोगों को अब बता देना चाहिए कि

तुम्हारे दिन अब लड़ चुके हैं। हम आपका सम्मान करते हैं और आपको अपना

मार्गदर्शक भी स्वीकार करते हैं, लेकिन कृपया देश के जनमत का सम्मान करते

हुए ‘पीएम इन वेटिंग’ से अपने आपको हटाईए और मोदी के सिर पर आशीर्वाद का

हाथ रखिए। कांग्रेस की ऊहापोह की अवस्था का लाभ भाजपा को उठाना चाहिए।

राजनाथ सिंह पार्टी को अपने मूल मुद्दों पर लायें। भाजपा देश में ‘पार्टी

विद डिफरेंस’ का नारा देकर चली थी। अपने जन्म से लेकर अब तक उसने कई बार

के उतार चढ़ाव देते हैं। अटल जी के नेतृत्व में उसने देश पर छह वर्ष तक

शासन भी किया है। अटल जी का नेतृत्व पार्टी की विश्वसनीयता को बढ़ाने

वाला था उनका व्यक्तित्व भी सर्वग्राही था। लेकिन अब अटल जी का नेतृत्व

पार्टी के पास नही है, हां उनका आशीर्वाद पार्टी के लिए अवश्य है। ऐसी

स्थिति में नये अध्यक्ष के लिए आवश्यक है कि वह भाजपा की विश्वसनीयता को

जनता में फिर से बढ़ाएं। इसके लिए वह देश का दौरा नरेन्द्र मोदी को साथ

लेकर करें। देश की जनता को समझाया जाए कि छद्मवादी राजनीति को भाजपा पसंद

नही करती है। तुष्टिकरण संविधान की आत्मा के विरूद्घ किया गया ‘राष्ट्रीय

पाप’ है। भाजपा यदि सत्ता में आयी तो वह देश में समान नगारिक संहिता को

लागू करेगी, धारा 370 जैसी राष्ट्रघाती धारा को संविधान से निरस्त कराएगी

और राम मंदिर का निर्माण आयोध्या में अवश्य कराएगी। देश की जनता अपने

संशयों का उत्तर चाहती है उसे उसके संशयों का उत्तर दिया जाए। जहां तक

जनता द्वारा नेता के चुनाव की बात है तो वह अपना नेता मोदी को मान चुकी

है। जनता के मत की उपेक्षा करना भाजपा को महंगा पड़ेगा। जिन लोगों को

हमारी बात में संदेह है वो ‘नरेन्द्र मोदी बनाम विपक्ष का कोई नेता’…के

नाम पर जनमत करा लें, अपने आप पता चल जाएगा कि सच क्या है? 1984 तक इस

देश में पार्टी के साथ साथ नेता के नाम पर वोट दिये गये। नेहरू, इंदिरा

और राजीव कांग्रेस के घोषित पीएम रहते थे। कांग्रेस को पता होती थी कि

जनता इन नेताओं के साथ है इसलिए उन्हें पीएम घोषित करके चुनाव लड़ा जाता

था। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी तो उसकी सहानुभूति की लहर

चली, लेकिन किसके पक्ष में? कांग्रेस के पक्ष में नही, बल्कि राजीव गांधी

के पक्ष में। जनता ने वोट देने से पहले मन बना लिया कि देश का नेता

इंदिरा का बेटा राजीव होगा। 1977 में जनता पार्टी को वोट नही मिले थे,

बल्कि इंदिरा शासन के खिलाफ बने एक गठबंधन को वोट मिले थे। लोग इंदिरा

शासन के आपातकाल से परेशान थे इसलिए बिना ये सोचे कि इस गठबंधन (जनता

पार्टी) का नेता कौन होगा? उसने जनता पार्टी के पक्ष में आनन फानन में

अपना मत दे दिया। बाद में जब जनता पार्टी के नेताओं ने ‘जूतों में दाल’

बांटनी शुरू कर दी तो जनता को अपनी गलती का अहसास हुआ और आपातकाल के

अत्याचारों की सारी बातें भुलाकर पुन: अपना भाग्य इंदिरा को सौंप दिया।

जनता का यह निर्णय जनता पार्टी को जहां बहुत बड़ी सजा थी वहीं कांग्रेस

को बहुत बड़ा पुरस्कार भी था। हमारे राजनीतिज्ञों ने इस निर्णय की

समीक्षा कभी नही की। इसका अर्थान्वेषण होना चाहिए था और पता करना चाहिए

था कि जनता ने ऐसा निर्णय क्यों दिया? निश्चित रूप से जनता अपने लिए

पार्टी नही बल्कि नेता खोजती है। जनता पार्टी में उसे कोई नेता नही मिला

इसलिए जनता पुन: वहीं चली गयी जहां उसके पास एक नेता था। देश की जनता की

इस असाधारण मनोभावना और प्रबंधन शक्ति को हमारे नेताओं ने नकारना आरंभ कर

दिया और देश में प्रधानमंत्री का पद बहुत सस्ता बना दिया। अपनी अपनी

महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए संतरे का आवरण ओढ़कर भीतर ही भीतर अपना

अपना अस्तित्व संतरे की फाड़ी की भांति अलग बनाये रखना उन्होंने स्वीकार

किया। यह मूर्खतापूर्ण परीक्षण देश में 1989 के चुनाव के बाद से निरंतर

हो रहा है। जनता दिग्भ्रमित नही है-बल्कि उसे दिग्भ्रमित किया जा रहा है।

परिपक्व लोकतंत्र को देश में अपरिपक्व बनाने का यह ओच्छा हथकंडा अपनाया

जा रहा है।

भाजपा को चाहिए कि वह देश की जनता के सामने अपना नेता परोसे और उसी के

नाम पर अगले चुनाव के लिए वोट मांगे। देश की जनता के विषय में यह धारणा

स्वयं ही निर्मूल सिद्घ हो जाएगी कि जनता ने खंडित जनादेश दिया है या

जनता खंडित जनादेश देने की आदी हो चुकी है। हमें ज्ञात होना चाहिए कि

जनता के सामने खंडित नेता जब तक परोसे जाते रहेंगे तब तक जनता यह खंडित

जनादेश देती रहेगी। जनता के निर्णय को अखंडित बनाने के लिए अखंडित नेता

(ऐसा नेता जिसकी पूरे देश में साख हो और जिसकी नीतियों में जनता स्वभावत:

आस्था रख रही हो) देने की आवश्यकता है। समय अब बता रहा है कि नरेन्द्र

मोदी की छवि राष्ट्रव्यापी हो चुकी है। उनके हाथ से अब गुजरात छूटना

चाहिए और भारत आना चाहिए। उनके गांडीव की टंकार के बिना राजनाथ सिंह का

रथ अभी सूना है। क्योंकि शत्रुपक्ष अभी भी राजनाथ सिंह के रथ में किसी

महारथी के न होने पर भाजपा पर अट्टहास ही कर रहा है। विपक्ष को गंभीर

बनाने के लिए तथा उसे राष्ट्र के मूल्यों और संस्कृति के प्रति निष्ठावान

बनाने के लिए आपके पास अर्जुन का होना आवश्यक है। आप शिखंडी से भीष्म

पितामह को नही मरवा सकते। इसलिए भाजपा के नये अध्यक्ष पार्टी को ‘पार्टी

विद डिफरेंस’ बनवाने के लिए तथा पुन: सत्ताशीर्ष पर पहुंचाने के लिए नयी

बयार के नये झोकों के साथ नया नेतृत्व संभालें। राज उनके हाथ होगा वह राज

के नाथ होंगे। भाजपा उनके साथ होगी वह भाजपा के भाग्यनाथ होंगे। अभी राज

उनके हाथ नही है, इसलिए देश स्वयं को अनाथ अनुभव कर रहा है-उनके लिए बहुत

बड़ी अग्निपरीक्षा होने वाली है कि वो अनाथों के नाथ बन जाऐं। देश की

संस्कृति देश का इतिहास, देश धर्म सभी अनाथ है, उनके साथ गंभीर छल और

षडयंत्र किये गये हैं? अब पापों के प्रक्षालन का समय आ गया लगता है-इसलिए

उन लोगों को और उन पापियों को मुंह धो-धोकर जवाब दिया जाए जिन्होंने

राष्ट्र के साथ गंभीर छल किये और षडयंत्रों में फंसाकर देश के मूल्यों के

अर्थ बदलने का अपघात किया। हम उम्मीद करते हैं कि राजनाथ सिंह एक

क्षत्रिय की भांति अपना धर्मनिर्वाह करेंगे और अपने लिए पेश चुनौतियों से

सफल और विजयी योद्घा की भांति निकल कर बाहर आएंगे। उनके सिर पर रखे गये

‘ताज’ के सफल परिणामों को देखने के लिए देश उत्सुक है। हमारी शुभकामनाएं

उनके साथ हैं।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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