अमरीकी फासीवाद का बर्बर चेहरा

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

अमरीका के राष्ट्रपति ने 20 सितंबर 2001 को कांग्रेस के सामने अपने भाषण में ये शब्द कहे : ‘हम अपने पास उपलब्ध हर संसाधन का प्रयोग करेंगे। ‘

‘अमरीकियों को केवल एक लड़ाई की उम्मीद नहीं होनी चाहिए, यह अभूतपूर्व तथा लंबा अभियान होगा। ‘ ‘प्रत्येक क्षेत्र में प्रत्येक राष्ट्र को फैसला करना होगा कि आप हमारे साथ हैं या आतंकवादियों के साथ हैं। ‘ ‘मेरा अपनी सेना के लिए भी एक संदेश है : तैयार रहो। मैंने सशस्त्र सेनाओं को सतर्क कर दिया है और इसका एक कारण है। वह घड़ी आ गई है जब अमरीका को कार्रवाई करनी होगी और हम आप पर गर्व करेंगे। ‘ ‘यह सभ्यता की लड़ाई है। ”मानव स्वतंत्रता की प्रगति, हमारे समय की महानतम उपलब्धि और हर समय की सबसे बड़ी आशा अब हम पर निर्भर है। ‘ ‘यह संघर्ष क्या दिशा लेगा, मालूम नहीं। लेकिन परिणाम निश्चित है…और हम जानते हैं कि ईश्वर तटस्थ नहीं है। ‘

वेस्ट प्वाइंट सैन्य एकेडेमी की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर दिए गए अपने भाषण में अमरीका के राष्ट्रपति ने अन्य बातों के अलावा यह कहा :’हम जिस दुनिया में प्रवेश कर गए हैं उसमें सुरक्षा का केवल एक ही रास्ता है और वह है कार्रवाई। हमारा राष्ट्र कार्रवाई करेगा। ‘ ‘अपनी सुरक्षा के लिए हमें आपके नेतृत्व वाली सेना का रूप बदलना होगाउसे ऐसी सेना बनाना होगा जो एक क्षण की सूचना पर दुनिया के किसी भी अंधेरे कोने पर हमला कर सके। हमारी सुरक्षा के लिए यह भी जरूरी होगा कि प्रत्येक अमरीकी आशावादी और संकल्पी हो तथा हमारी स्वतंत्रता और हमारे जीवन की रक्षा के लिए जब भी जरूरी हो हम रोकथाम की कार्रवाई कर सकें। ‘ ‘हमें 60 या उससे अधिक देशों में आतंक के ठिकानों का पर्दाफाश करना चाहिए। ‘

‘हम जहां जरूरत है वहां अपने राजदूत भेजेंगे और जहां तुम्हारी, हमारे सिपाहियों की जरूरत है, वहां हम तुम्हें भेजेंगे। ‘ ‘हम अच्छाई और बुराई के संघर्ष में डूबे हैं। हम समस्या पैदा नहीं करते, समस्या उजागर करते हैं। इसका विरोध करने में हम दुनिया का नेतृत्व करेंगे। ‘

तत्कालीन राष्ट्रपति के उपरोक्त बयान के बाद इराक और अफगानिस्तान में बहुत कुछ ऐसा घटा है जिसकी हमें खबर तक नहीं है। बुश के बोलने के साथ ही बहुराष्ट्रीय मीडिया ने कु-सूचनाओं और झूठ की चौतरफा बमबारी आरंभ कर दी। नाइन इलेवन की घटना के पहले (1991-92 के पहले तक) इराक में यदि सद्दाम की पुलिस किसी एक व्यक्ति को भी सताती थी तो विश्व मीडिया उसे अपनी सुर्खियां बनाता था। सद्दाम और उसके साथियों की हत्या के साथ इराक पर अमेरिकी सेना जो कब्जा किया है और जुल्म ढ़ाए हैं उन्हें देखकर हिटलर भी शर्मिंदगी महसूस कर रहा होगा।

बहुराष्ट्रीय मीडिया खोज-खोजकर हिटलर के जुल्मों की दास्तानों का सिलसिला अभी तक बनाए हुए है और कई चैनल तो नियमित हिटलर के अत्याचारों के बारे में नियमित कार्यक्रम दे रहे हैं, सवाल उठता है क्या वे चैनल कभी इराक और अफगानिस्तान में अमरीका और नाटो की सेनाओं के द्वारा जो जुल्म ढ़ाए जा रहे हैं उनका वर्णन करेंगे? क्या इराक और अफगानिस्तान में नाइन इलेवन की घटना से कम तबाही हुई है? इराक में सद्दाम के तथाकथित जुल्मो-सितम की नकली कहानियों को प्रचारित करके जो मीडिया यथार्थ रचा गया क्या उसका कभी पर्दाफाश होगा?

इराक और अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो की सेनाओं ने जो जुल्म ढ़ाए हैं उनका और बहुराष्ट्रीय मीडिया की उपेक्षा और झूठ का हमें व्यापक रूप में पर्दाफाश करना चाहिए।

अमेरिका ने इराक में जो युद्ध लड़ा है उसमें सन् 2003 से 2008 तक पांच साल में चार हजार अमेरिकी सैनिक मारे गए। तीस हजार घायल हुए। कई हजार सैनिक अमेरिका में वापस लौटे हैं जो मानसिक बीमारियों के शिकार हैं या पूरी तरह दिमागी संतुलन खो चुके हैं। सद्दाम हुसैन ने अपने शासन के दौरान इतने लोगों को मानसिक तौर पर विक्षिप्त नहीं किया था जितने अमेरिकी सैनिक हत्यारी मुहिम को अंजाम देकर इराक से विक्षिप्त होकर लौटे हैं। इराक में अमेरिका के डेढ़ लाख से ज्यादा सैनिक हैं और सबसे शानदान और प्रभावशाली अस्त्र-शस्त्र हैं। जिनके बलबूते पर अमेरिका ने इराक पर हमला किया है। इसके बाबजूद इराक के अधिकांश इलाके अमेरिकी सेना के दखल के बाहर हैं। कहने को इराक पर अमेरिका का कब्जा है। लेकिन अमेरिकी सेना सुरक्षित नहीं है। इराकी प्रतिवादियों ने अमेरिका और मित्र देशों की सेनाओं की नींद उड़ा रखी है। वे चैन से सो नहीं सकते। जाग नहीं सकते। अहर्निश असुरक्षा और हमले का खतरा उनकी नींद उडाए रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बर्बर जुल्मोसितम के बाबजूद इराकी जनता ने समर्पण नहीं किया है। बहुराष्ट्रीय मीडिया ने झूठा प्रचार किया था कि इराक की जनता चाहती है कि सद्दाम हुसैन को हटाओ। यह भी प्रचारित किया गया कि इराक की जनता ने अमेरिका और मित्र देशों की सेना और हमले का स्वागत किया है। इराकी जनता पहले दिन से अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ थी। उसे साम्राज्यवाद का विरोध करने के कारण ही इतनी भयानक बर्बरता का सामना करना पड़ा है।

इराक में आज भी विभिन्न तरीकों से जनता का प्रतिवाद जारी है ,इस प्रतिवाद को कुचलने के लिए अमेरिका और मित्र देशों की सेनाओं ने सारे इराक को बारूद के ढ़ेर में तब्दील कर दिया है। अमरीका के सैनिक अहर्निश हमले कर रहे हैं और पहरेदारी कर रहे हैं और इससे उन्हें एक ही अवस्था में रिहाई मिलती है जब हवाई जहाजों से बमबारी की जाती है। प्रति सप्ताह औसतन चार-पांच दिन बमबारी की जा रही है।

इस बमबारी में एक बार में 500 से 2000 पॉण्ड बम गिराए जाते थे। इस बमबारी के कारण बस्तियां बर्बाद हो गयीं, पीने के पानी की व्यवस्था नष्ट हो गयी। अस्पताल से लेकर बिजली उत्पादन के केन्द्रों तक किसी को भी नहीं छोडा गया। समस्त जनसुविधाएं नष्ट कर दी गयीं हैं। दस लाख से ज्यादा इराकी मौत के घाट उतार जा चुके हैं। पचास लाख से ज्यादा इराकी देश के बाहर शरणार्थी की तरह नारकीय जीवन जी रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने सद्दाम हुसैन ने चंद इराकियों को देश से निकाला था या वे अपनी इच्छा से या राजनीतिक कारणों से देश छोड़कर गए थे, लेकिन आज तो पचास लाख से ज्यादा इराकी शरणार्थी की जिंदगी जी रहे हैं। उनकी कोई खबर मीडिया में नहीं है। सद्दाम के जमाने में कुर्दों के खिलाफ सद्दाम हुसैन और बाथ पार्टी ने जो तथाकथित अत्याचार किए थे उन्हें बहाना बनाकर सद्दाम को फासिस्ट घोषित किया गया। जरा गंभीरता के साथ विचार करें सद्दाम हुसैन के खिलाफ इराक की जनता थी और बतर्ज बहुराष्ट्रीय अमेरिकी मीडिया अमेरिकी सेनाओं का उसने जमकर स्वागत किया था तो सवाल उठता है अमेरिका का स्वागत करने वाली जनता को बर्बर हमलों का शिकार क्यों बनाया गया? इराक की जो जनता स्वागत कर रही थी अथवा जो फंडामेंटलिस्ट या लोकतांत्रिक लोग स्वागत कर रहे थे, उन्हें अमेरिकी सेना ने

गोला-बारूद से स्नान क्यों कराया? मानव इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि स्वागत करने वाली जनता पर हमलावर राष्ट्र बर्बर हमले करे। इराक की जनता का कसूर क्या था जिसके कारण उस पर हमले किए गए? पूरे देश की अर्थव्यवस्था नष्ट कर दी गयी।

इराक पर हमले के लिए पहले बहाना बनाया कि उसके पास जनसंहारक अस्त्र हैं। बाद में जब अमेरिका और मित्र राष्ट्रों की सेना ने इराक पर कब्जा कर लिया और सारा देश छान मारा तो उन्हें एक भी जनसंहारक अस्त्र नहीं मिला। बाद में इराकी जनता पर हमला करने के लिए बहाना बनाया गया कि वहां अलकायदा घुसा है और सद्दाम की बाथ पार्टी से एलायंस करके वे हमले कर रहे हैं। देश में छिपे हुए हैं। उन्हें निकाल बाहर करना है और इसके लिए विभिन्न बस्तियों पर हमले किए ,वायुयानों से बम हरसाए गए। लेकिन न तो कोई अलकायदा वाला मिला और नहीं कोई बाथ पार्टी का बंदा ही हाथ आया। हां.चंद नेता जरूर हाथ लगे थे। लेकिन बाद में बाथ पार्टी और इराक सेना के सैंकड़ों पूर्व सैनिकों ने अमेरिकी सेना के नियंत्रण में तैयार की गई इराकी पुलिस और सेना में नौकरियां ले लीं। वे हिंसा और लूट का हिस्सा बन गए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिए आंकडों के अनुसार हिंसा में मार्च 2003 से जनवरी 2008 के बीच में 151,000 इराकी मारे गए। सन् 2006 में यह संख्या बढ़कर 104,000 से 223,000 के बीच हो गयी।

जबकि अमेरिकी सेना के हमलों के कारण साढ़े छह लाख से ज्यादा लोग मारे गए हैं। ये वे लोग हैं जो किसी पंगे में शामिल नहीं थे और मारे गए। ये आंकड़े लेनसेट नामक संस्था ने घर-घर जाकर राष्ट्रीय सर्वे करके इकट्ठे किये हैं।

सबसे बड़ी त्रासदी की बात यह है कि इराक में अमेरिका और मित्र देशों की सेना के हिंसाचार में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि हुई है। सन् 2007 और 2008 को सबसे भयानक हिंसाचार देखने में आया है। दूसरी तरफ प्रतिवाद भी बढ़ा है और आत्मघाती हमले भी बढ़े हैं। तकरीबन 1,100 आत्मघाती हमले हो चुके हैं। आत्मघाती हमलों के कारण 13,000 लोग मारे गए हैं। इससे भी ज्यादा संख्या में इराकी घायल हुए हैं। प्रतिमाह तकरीबन साठ हजार इराकियों को जबरिया घर छोड़कर जाने के लिए बाध्य किया गया है ,इसके कारण पचास लाख से ज्यादा इराकी शरणार्थी अपने घरों से हाथ धो बैठे हैं। इनमें तकरीबन 22 लाख इराक में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्शी आयुक्त ने बताया है।

सवाल यह है नाइन इलेवन में जो क्षति हुई और लोग मारे गए। सद्दाम हुसैन ने जितने लोगों को मारा या सताया उसकी तुलना में क्या इराक की इतनी व्यापक बर्बादी का कोई मूल्य है? हमारा मानना है इराक में किए गए युद्धापराधों के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बुश और उनकी हत्यारी मंडली, ब्रिटेन टोनी ब्लेयर और उनकी हत्यारी मंडली को विश्व अदालत में इराकी जनता के मानवाधिकारों का हनन करने, संप्रभु राष्ट्र के रूप में इराक को बर्बाद करने और लाखों निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारने के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इसके अलावा इराक में जो जन-धन और मानव संपदा की हानि हुई है उसके लिए इराकी जनता को अमेरिकी और ब्रिटिश खजाने से मुआवजा दिलवाने के लिए जनमत तैयार करना चाहिए।

6 COMMENTS

  1. सचाई छुप नहीं सकती ,किसी के व्यर्थ हो हल्ला मचाने से .
    तिमिर घनघोर न इतराओ ,मिट जाओगे प्रभात आने से .
    पुरोहित जी आपने चतुर्वेदी जी का आलेख गौर से नहीं पढ़ा ;आपने दो बार टिप्पणी की है किन्तु तत्संबंधी विषयवस्तु को छुआ भी नहीं और दीगर अनर्गल प्रलाप करने को उद्द्यत हो गए ;यह आप जैसे देशभक्त बौद्धिक चिंतकों को शोभा नहीं देता ..फासीवाद की जो भी परिभाषा आज तक होती आ रही है उसके अधुनातन स्वरूप पर न केवल चतुर्वेदीजी या पुरोहित जी या किसी अन्य के द्वारा ध्यानाकर्षण किया जाना स्तुत्य है .

  2. यह एक विशेष कालखंड की साम्राजवादी युद्धोन्मादी विभीषिका का इतिवृत्तात्मक सटीक निष्पक्ष वर्णन है आदरणीय जगदीश्वरजी चतुर्वेदी की इस वैचारिक एवं स्पष्ट समझदारी की प्रस्तुती पर -.जिन्हें राजनीती का ककहरा भी नहीं मालुम वे टिप्पणी करके अपनी खोखली और घटिया विचारधारा को ही बजबजा रहे हैं .वे इसमें भी वामपंथ और दीगर साम्यवादी मुल्कों को वेवजह घसीट कर गोल्वल्कारी भाषा वापर रहे हैं . इन महामुर्खों को शायद ये भी ज्ञात नहीं की अपने अतीत में हमारा देश इन तथाकथित महान सपूतों की ओछी हरकतों से हजारों वर्ष गुलाम रहा .हम ज्ञात इतिहास में सिर्फ एक वार ही भारत राष्ट्र के रूप में विजयी रहे और उसकी शिल्पकार थी भारत की श्रीमती इंदिरा गाँधी जिन्होंने भारत के साम्वादियों के दवाव में ततकालीन महान कम्मुनिस्ट देश सोवियत संघ से मित्रता कायम की और १९७१ के उस भयानक युद्ध में पापी पाकिस्तान के दो टुकड़े भी कर दिए थे .उस समय अमेरिका ने हमारे खिलाफ क्या किया था ?इन कपूरों और पुरोहितों को कुछ भी नहीं मालूम .जिस वामपंथ को ये कोष रहे हैं उसी वामपंथी रूस ने एक ही दिन में तीन बार वीटो पावर भारत के पक्ष में इस्तेमाल कर हमें उस युद्ध में विजय दिलवाई थी .जिसका जिक्र हर देशभक्त ने अपने संस्मरण में किया है .जिस पर अटल महाराज की भी शानदार टिप्पणी है .रही बात चीन की तो उसे तो कोई बेबकूफ ही कम्मुनिस्ट मानता होगा .जैसे की माओवादी .नक्सलवादी या कपूर्वादी पुरोहितवादी .
    चीन ने तो कभी रूस को भी नहीं बक्सा और आप उससे इतने भयभीत क्यों हैं .भारत को चीन से फ़िलहाल कोई खतरा नहीं .भारत कोउसके अपने घर में ही कई खतरे विद्यमान हैं .जो सबको मालुम है

    • आप का बहुत धन्यवाद कि आप जैसे महान विचारक ने मेरे जैसे छोटे आदमी को इतना महत्व दिया,और सचमुच मै एस सम्मान के योग्य नही था.आप तो उम्र मे बहुत ही बडे है पुरा का पुरा राजनिति शास्त्र,विग्यान,भुगोल और इतिहास आपको कण्ठस्थ है,मुझे अभी कुछ भी पता ही नही है हा कपुर सहाब को तो जरुर पता होगा,मेरे लिये लिखा तो बडी बात नही पर सहाब कपुर सहाब भी मेरे जैसे अल्पग्यानी है ये आपने कैसे जान लिया???ये विध्या तो हमे भी बताईये ना??महान रुस और महानतम चीन पर अगुण्गली उठाने की गुस्ताखी माफ़,सहाब हमारे चतुर्वेदी जी तो “सर्वग्य ” है,और अमेरिका तो मुर्ख देश है और फ़ासिवादि है,जो अपने को सुरक्षित रखता है कितनी बडि गलती है ये???भला उसको भी अपने देश मे नक्स्ल्वाद और इस्लाम वाद और कमुयुनिस्म को फ़ैलने देने का मौका देना चाहिये,वाम पंथ तो अत्यंत पवित्र है,कार्ल मार्क्स तो भगवान{माफ़ करना मै नास्तिक जो नही हुं} से भि बडा है एक मात्र विचारक है,दुनिया मे दो लोग ही होते है एक मालिक बाकि मजदुर{मै तो एक व्याख्याता हुं किसमे आता हुं?},मज्दुर को चाहिये कि मालिक कि सम्पत्ति लुट ले और धर्म,विवाह और ईशवर तो साजिश है मालिको की मजदुरो को मुर्ख बनाने कि,जो भी है इस जगह ही है……………………..अभी तो खुश????

  3. चतुर्वेदी जी का धन्यवाद की उन्हों ने अमेरिका के दानवी चेहरे को उद्घाटित किया है. ज़रा गहरी से देखेंगे त५ओ समझ पायेंगे आज संसार के लिए सबसे बड़ा ख़तरा अमेरिका है जिस पर उसने बड़ी चालाकी से पर्दा डाला हुआ है. यदि अमेरिका के असलियत जाननी हो तो conspiracy planet.com को गूगल सर्च में ढूंढ़ कर देखें.फिर कोई भी मुझ से सहमत हो जाएगा.
    – अभिषेक पुरोहित जी का आभार की उन्हों ने वामपंथियों की असलियत को चाँद शब्दों में उजागर कर दिया है. अमेरिका के बाद विश्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा साम्राज्यवादी चीन है. इसपर तो ये वामपंथी आवाज़ तक नहें निकालेंगे. उलटा चीन को आक्रामक तक मानने से इनकार करते हैं. अब क्या और प्रमाण चाहिए की इनकी निष्ठाएं भारत के साथ नहीं , भारत के शत्रुओं के साथ हैं. जब भे चीन और भारत के हितों का टकराव होगा तो ये देश के साथ वफादारी निभाएंगे या गद्दारे करेंगे, इसका फैसला विवेकशील लोग स्वयं करें. चतुर्वेदी जी ने तो जो ऐनक लगाई हुई है, उसमें से तो उन्हें ये सब नज़र आना नहीं है. स्पष्ट है की उनका ये लेख देश हित से नहीं, वाम्पंठे सोच के अमेरिका विरोध से प्रेरित है ; पर बातें सब सच हैं.

  4. मुझे एक चिज पता है जिनकि भुजाओ मे बल होता है वो खुद निर्माण करते है देश कि तकदिर का.९/११ के बाद अब तक अमेरिका सुरक्षैत है ये अमेरिकि सत्ता की उपलब्धि है,जिस पर आपने अभि तक प्रकाश क्यों नही डाला???आज भारत जिन दो आंतग्वादि ताकतो से झुझ रहा है वो एक है इस्लाम व दुसरा है कम्युनिस्ट.एस पर प्रकाश क्यों नही डाला???इस्लाम और कम्युनिस्ट दोनो कि पुछ अगर किसिने मरोडि है तो वो है अमेरिका,और एक कम्युनिस्ट होने के नाते आप यह नहि देख पा रहे है कि कैसे मार्क्स के चेले करोडो लोगो को मौत के घाट उतार कर अब भरत भु को खुन के रंग मे रंगने की तैयारि कर रहे है तो ये बहुत दुर्भाग्य पुर्ण बात है.अमेरिका लाख बुरा सहि पर वहा अमेरिकि मानव की इज्जत है,पर भारत मे ये देगेंगे कि वो अपना वोट बैंक है या नही.
    अपनी निष्टा तय किजिये कि वो भारत की उन्नति चाहति है या रुस-चिन कि??भारत कि उन्नति सम्मान्न के साथ समान धरातल पर अमेरिका से जुडनेसे है ना कि अंध विरोध मे.हा जहां राष्ट्र का प्रशन होगा वहा अमेरिका क्या भगवान से भी भिड जायेंगे,लोकतंत्र को समर्थन अमेरिका ही करता है बर्बर इस्लाम या क्रुर रुस-चीन नहीं……………………………………………………

    • जब भी कोई क्रांतीकारी देशभक्त बुद्धिजीवी फासीवाद ,.नाज़ीवाद .,हिटलर ,तानाशाही या पूंजीवाद और साम्राज्वाद के विरोध में अपनी समष्टिगत वेदना के सरोकारों को अभिव्यक्त करता है तोइन नापाक विचारों की जूठन चाटने वाले देशी श्वान कुकरहाव करने लगते हैं ..चतुर्वेदी जी जैसे विश्व बंधू विचारक का प्रत्येक शब्द वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरा है; फिर भी कुछ नादानों को उससे प्रेरणा लेने की वनस्पत अनर्गल प्रलाप की खुजली सताती है .जैसे की इस आलेख की कतिपय निकृष्ट टिप्पणियों में देखा जा सकता है .

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