प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने देश के लोगों को बुलेट ट्रेन कासपना दिखाया। युवा पीढ़ी के लिए यह खुशी की बात रही। चुनाव प्रचार के दौराननरेन्द्र मोदी के मन में यह कसक दिखाई दे रही थी कि वह जैसे हीप्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर आसीन होंगे, वैसे ही देश की सड़ी-गलीव्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन दिखने लगेगा। यह सपना सच भी हो सकता है, या फिर केवल सपना ही बनकर रह सकता है। इसके लिए अभी कुछ वक्त का इंतजार है।नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दस माह का समय धीरे-धीरे गुजरगया। उन्होंने अपनी पहली सरकार का आम बजट और रेल बजट भी संसद में पेश करदिया। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के दौरान नरेन्द्र मोदी ने अपनी कैबिनेटमें सदानंद गौड़ा को रेल मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी सौंपी थी, पर कुछमहीने के बाद ही उन्होंने सदानंद गौड़ा से रेल मंत्रालय वापस लेकर अपनेभरोसेमंद साथी सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बना दिया। प्रधानमंत्री ने सुरेशप्रभु की खूब तारीफ भी की थी। ऐसा लगा था कि सुरेश प्रभु कुछ ऐसा करेंगे किरेलवे की पुरानी व्यवस्थाओं में व्यावहारिक बदलाव होगा और सामयिक परिवर्तनहो सकेगा।
रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती रेलगाड़ियों को दुर्घटना से बचानाहै। दूसरी चुनौती रेल में यात्रा कर रहे यात्रियों को सुरक्षित उनकेगन्तव्य तक पहुंचाना है। पर इन दोनों चुनौतियों का सामना कर पाने में सुरेशप्रभु कहीं न कहीं फेल साबित हो रहे हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी को भी अगर जिम्मेदार ठहराया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए। 26 मई 2016 को नरेन्द्र मोदी जिस दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उसी दिन उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में दिल्ली गोरखपुर एक्सप्रेसट्रेन मालगाड़ी से टकरा गई थी। इस हादसे में 30 यात्रियों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इसके बाद महीने भर का भी समय नहीं व्यतीत हुआथा कि 25 जून 2014 को बिहार के छपरा के पास डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेसहादसे का शिकार हो गई। इस हादसे में भी पांच लोगों की मौत हुई थी। एकअक्टूबर 2014 को फिर उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जिले के पास कृषक एक्सप्रेसऔर लखनऊ-बरौनी एक्सप्रेस के बीच टक्कर हो गई। टक्कर में 12 लोग मारे गए और 45 लोग घायल हुए। 16 दिसंबर 2014 को बिहार में नवादा जिले के वारिसअलीगंजरेलवे स्टेशन के समीप एक मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर एक एक्सप्रेस ट्रेनसे एक बोलेरो की टक्कर हो गई। इसमें पांच लोगों की मौत हो गई और तीन अन्यलोग घायल हो गए। 13 फरवरी 2015 को बेंगलुरु से एर्नाकुलम जा रही एकएक्सप्रेस ट्रेन की आठ बोगियां होसुर के समीप पटरी से उतर गईं। इसमें दसलोगों की मौत हो गयी व 150 यात्री घायल हो गए। 16 मार्च 2015 को दिल्ली सेचेन्नई जा रही तमिलनाडु एक्सप्रेस के एक डिब्बे में नेल्लोर के समीप शॉर्टसर्किट होने की वजह से आग लग गयी, इस हादसे में कम से कम 47 यात्रियों कीजल कर मौत हो गई थी।28 यात्री बुरी तरह झुलस गये थे। डिब्बे में शौचालयके समीप शॉर्ट सर्किट हुआ था। 20 मार्च 2015 को उत्तर प्रदेश के रायबरेलीजिले में बछरावां रेलवे स्टेशन के निकट देहरादून से वाराणसी जा रही जनताएक्सप्रेस ब्रेक फेल हो जाने से पटरी से उतर गई। इस हादसे में 40 से अधिकयात्रियों की मौत हो गयी और 150 से अधिक लोग घायल हो गए। यह केवल वह घटनाएंहैं, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में घटित हुई हैं। दूसरीचुनौती के रुप में यात्रियों को गन्तव्य तक सुरक्षित यात्रा करा पाने मेंभी रेलवे पूरी तरह से नाकाम नजर आ रहा है। 2 जून 2014 को ऊधमसिंह नगर जिलेमें मनचले युवकों ने तीन छात्राओं से छेड़छाड़ की। एक छात्रा के भाई ने इसकाविरोध किया तो मनचलों ने उसका सिर फोड़ दिया। इस पर एक छात्रा ने बीच-बचावकरने की कोशिश की तो उसे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया। 3 जून 2014 कोउत्तर प्रदेश के बरेली जिले में लालकुआं बरेली पैसेन्जर ट्रेन में यात्राकर रही तीन छात्राओं का अपहरण करने की कोशिश की गई। छात्राओं ने इसकाप्रतिरोध किया तो बदमाशों ने एक छात्रा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। 28 जून 2014 को महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में गया-मुगलसराय रेलखंड परअनुग्रह नारायण रोड व फेसर स्टेशन के बीच इंटर की एक छात्रा के साथ बदमाशोंने लूट करने की कोशिश की। उसने इसका विरोध किया तो बदमाशों ने उसे चलतीट्रेन से नीचे फेंक दिया। 19 नवंबर 2014 को कानपुर की रहने वाली छात्रा ऋतुत्रिपाठी दिल्ली से मालवा एक्सप्रेस की स्लीपर कोच एस-7 पर सवार होकरमहाकाल बाबा का दर्शन करने के लिए उज्जैन जा रही थी। रात में करीब दो बजेबदमाशों ने ऋतु का पर्स लेकर भागने की कोशिश की। इसका आभास होने पर ऋतु नेविरोध किया तो बदमाशों ने उसे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। उत्तरप्रदेशके बरेली जिले में ही लालकुआं-बरेली पैसेन्जर ट्रेन में 24 फरवरी 2015 कोफिर बदमाशों ने बैंककर्मी मनप्रीत के साथ लूट की कोशिश की। उन्होंने इसकाविरोध किया तो बदमाशों ने डंडे से प्रहार कर उन्हें चलती ट्रेन से नीचेफेंक दिया। 18 मार्च 2015 को जबलपुर निजामुद्दीन एक्सप्रेस के एसी कोच मेंसफर कर रहे मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया और उनकी पत्नी सुधामलैया को मथुरा के पास बदमाशों ने चलती ट्रेन पर लूट लिया। सुधा मलैया नेइस बात की शिकायत खुद रेल मंत्री सुरेश प्रभु से मिलकर की थी। इसके एक दिनपहले छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में भी बदमाशों ने लूटपाट की घटना को अंजाम दियाथा। 19 मार्च 2015 की रात विशाखापट्टनम एक्सप्रेस ट्रेन पर यात्रा कर रहींसुनीता जैन मध्य प्रदेश के उमरिया स्टेशन से पहले लूटेरों का शिकार होगर्इं। घटना रात 11 बजे ही है बैग लेकर भाग रहे बदमाशों का उन्होंने पीछाकिया तो बदमाशों ने उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। मैंने उन्हींघटनाओं को जिक्र किया है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार केकार्यकाल में ही हुई हैं। ट्रेनों में लगातार घट रही इस तरह की घटनाएंप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश में सुशासन लाने के नारे को मुंह चिढ़ारही हैं। इस घटनाओं को रोका जा सकता है, बशर्ते इसके लिए महज भाषणबाजी करनेके बजाय कुछ काम किया जाए। रेल मंत्री सुरेश प्रभु में यह इच्छाशक्ति नहींदिखाई देती है। रेल मंत्री बेशक अच्छी योजनाएं तैयार कर सकते हैं। रेलवेको रुपए से मालामाल कर सकते हैं, पर इस बदहाल सूरत को सुधारने में एक कदमभी वह सफल नजर नहीं आ रहे हैं। सोचिए उन परिवार के सदस्यों की क्या हालतहोगी, जिनके घर के लोग ट्रेन हादसे का शिकार हो जाते हैं। देश में बुलेटट्रेन का सपना दिखाने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहल करकेरेलवे की इस बदहाल सूरत के साथ ही उसकी सीरत भी बदलनी होगी।
-रमेश पाण्डेय
मैं ने, पहले भी सुना था, कि, कर्मचारियों की प्रशिक्षा की पुस्तक अंग्रेज़ी में होती है।
यदि ऐसा है, तो, हमारे कर्मचारियों को शिक्षा क्रम, ठीक समझ में नहीं आता होगा।
श्री. मीणा जी ने भी पहले इसी विषय पर, आलेख लिखा था।
प्रशिक्षा और पुस्तक जन भाषा में होनी चाहिए।
कम से कम हिन्दी में तो होनी ही चाहिए।
पाण्डेयजी मैं आप से सहमत हुँ. लेकिन दूसरा पक्ष यह है की क्या ये घटनाएँ पाहिले से होती नहीं आ रही हैं?यदि मोदीजी के आने से ये अचानक अधिक मात्रा में बढ़ गयी हों तो निशचित रूप से तुलनात्मक दृष्टि से सुरेश प्रभु और मोदी से पूछा जाना चाहिए, दूसरे सम्पर्क फाटकों. पुरानी रेल लाइनो ,पर यातायात का दवाब दिनोदिन बढ़ रहा है ,तीसरे भारतीय रेलवे में जो भर्तियां होती हैं उनकी एक विवशेषता है की यदि सर्वेक्षण किया जाय तो ३०%कर्मचारी के अभिभावक रेलविभाग के ही हैं. हालांकि फौजीयों के बच्चे फौज मे.व्यापारी के बच्चे व्यापारी ,नेताओं के बच्चे नेता ,चिकत्स्कों के बच्चे चिकित्सक यह आम बात है. किन्तु जितने शासकीय विभाग हैं चाहे केंद्रीय या प्रांतीय ,इनके बच्चे उस अनुपात में नहीं हैं जितने रेलवे के. खुली प्रतिस्पर्स्धा से रेल में आये कम हैं. चतुर्थ वर्ग के जो रेलवे में भर्ती हैं ,वे आपको ,मंडल स्तर के अधिकारी बने दिखेंगे ,कोई नयी बात नही. किन्तु अन्य विभागों में एक चपरासी ,तहसीलदार,या एक प्राचार्य,या प्रथम श्रेणी का अधिकारी मुश्किल से मिलेगा. तीसरे अब जो रेल इंजीन आ रहे हैं उनमे बिजली के संयत्र और सर्किट इतने जटिल हैं की कम से कम चालक सहचालक ,गणित विज्ञानं का स्नातक तो होना ही चाहिए. आप जाँच करा लें कितने चालक ,परिचालक स्नातक स्टार के या डिप्लोमा लिए हैं./मोदीजी आज हैं कल कोई दूसरे आएंगे ,ये घटनाएँ थामेंगी नही. मलहम लगाने से नहीं ,विषाणु विरोधी दवाई से घाव ठीक होगा.