कमर्शियल फिल्मों का कॉमर्स

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शैलेन्द्र चौहान
पिछले दिनों अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की गिरफ्तारी के बाद सारे देश में एक हलचल सी मच गई। बॉलीवुड की दुनिया भी इससे अछूती नहीं रही। जाहिर है बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड एक दूसरे के प्रति हमेशा से आकर्षित रहे हैं। बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड का रिश्ता बहुत अजीब है, इन दोनों के बीच निकटता भी देखी गई है और दूरियां भी। कभी अंडरवर्ल्ड की पार्टियों में बॉलीवुड के सितारों के शामिल होने की खबर आती है तो कभी उन्हें धमकाने की। कई हिंदी फिल्मों पर आरोप भी लगते रहे हैं कि पैसे का फाइनेंस अंडरवर्ल्ड से हुआ है। अंडरवर्ल्ड को बॉलीवुड ग्लैमर बहुत भाता है। नब्बे का दशक एक ऐसा दौर था जब अंडरवर्ल्ड का सीधा हस्तक्षेप बॉलीवुड में माना जाता था। धीरे- धीरे उनका रिश्ता इतना असरदार होता गया कि कलाकार और किरदार ही नहीं कहानियां भी तय होने लगी। ज्यादातर अंडरवर्ल्ड के लोगों को फिल्म की कमाई से ही मतलब रहता था। लेकिन मुंबई ब्लास्ट और गुलशन कुमार की हत्या के बाद धीरे- धीरे बॉलीवुड से उसके कदम उखरते गए और बॉलीवुड आजाद हुआ। मगर दबे कदम अभी भी इनका रिश्ता कहीं न कहीं बना हुआ है। मुंबई पुलिस की सख्ती के बाद दाऊद इब्राहिम और उसके गुर्गे मुंबई से भागकर दुबई पहुंच गए। इस बीच बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड की दखल moviesकुछ कम जरूर हुई लेकिन पूरी खत्म नहीं हो पाई। मुंबई के बजाय दुबई में दाऊद के दरबार में सितारों की महफिलें बदस्तूर सजती रहीं। अंडरवर्ल्ड डॉन और बॉलीवुड की हसीनाओं का काफी पुराना नाता है। बॉलीवुड की कई हीरोइनों का नाम अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से जुड़ा। कहा जाता है कि 1985 में ‘राम तेरी गंगा मैली’ से बॉलिवुड में अपनी खास पहचान बनाने वालीं ऐक्ट्रेस मंदाकिनी भी दाऊद की गर्लफ्रेंड हुआ करती थीं। क्रिकेट के मैदान पर दाऊद के साथ खड़ीं वह कई बार नज़र आईं। मंदाकिनी इन दिनों तिब्बत में योग जैसे काम में बिज़ी हैं और दलाई लामा की फॉलोअर बन चुकी हैं। अंडरवर्ल्ड और बॉलीवुड के बीच के रिश्ते सबसे ज्यादा खुलकर सामने आए अबू सलेम और मोनिका बेदी के कारण। दोनों की लव स्टोरी लंबे समय तक सुर्खियों में रही। सलेम से मोनिका की मुलाकात दुबई में हुई थी। इससे पहले दोनों फोन पर घंटों बातें करते थे। पहली मुलाकात में अबू सलेम ने खुद को बिजनेसमैन बताया था। दोनों को नकली दस्तावेजों के जरिए पुर्तगाल जाते समय गिरफ्तार किया गया था। सुरक्षा, जोड़ी नंबर वन, जानम समझा करो जैसी बॉलीवुड फिल्मों के साथ मोनिका ने तमिल-तेलुगू फिल्मों में भी काम किया टीवी सीरियल में भी नजर आईं। मुंबई और अंडरवर्ल्ड के पहले डॉन हाजी मस्तान की हमेशा ही बॉलीवुड में काफी दिलचस्पी रही। बॉलीवुड में अभिनेत्री सोना को बी ग्रेड फिल्मों की एक्ट्रेस माना जाता था। सोना का लुक अभिनेत्री मधुबाला से काफी मिलता जुलता था। इस बात की न सिर्फ बॉलीवुड में बल्कि दर्शकों तक में काफी चर्चा थी। उस दौर में सोना को गैंगस्टर हाजी मस्तान के साथ देखा गया और फिर उनके प्यार के किस्से बॉलीवुड में आग की तरह फैल गए। उन्होंने शादी कर ली और डॉन ने कई फिल्में भी बनाई। फिल्म इंडस्ट्री को तब इंडस्ट्री का दर्जा नहीं मिला था और आज की तरह बैंक से कर्ज लेने के बजाय फिल्मों में अमीर बिजनेसमैन, बड़े प्रोड्यूसर्स या फिर अंडरवर्ल्ड का ही पैसा लगता था। बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड का यह रिश्ता इतना गहरा और असरदार हो गया था कि महज फिल्म के कलाकार और किरदार ही नहीं, बल्कि कई बार अंडरवर्ल्ड डॉन कहानियां भी तय करने की मांग करते। हालांकि ज्यादातर मामलों में उन्होंने कंटेंट में दखल तभी दिया जब किसी गैंगस्टर की इमेज जैसी कोई बात हुई। दाऊद इब्राहिम के राज में बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड के रिश्ते कुछ ज्यादा ही गहरे थे। ये वो दौर था जब दाऊद की बॉलीवुड में तूती बोलती थी। पूरा बॉलीवुड पर डी कंपनी के इशारे पर चलता था। दाऊद के करीबियों का कहना है कि डॉन भले ही मुंबई और बॉलीवुड से हजारों मील दूर रहता है, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हर खबर पर उसकी पैनी नजर रहती रही है। कहा जाता रहा है कि डी-कंपनी अभी भी बॉलीवुड की फिल्मों में करोड़ों-अरबों रुपये लगाती है। बॉलीवुड में डी-कंपनी का सारा काम छोटा शकील संभालता है। सारा लेन-देन वही संभालता है। लोगों का कहना है कि आज भी डी कंपनी के इशारे पर कलाकारों को फिल्मों में काम मिलता है या उन्हें फिल्म से निकाला जाता है। फिल्म की ओवरसीज राइट्स से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक में डी-कंपनी का दखल रहता है। सीनियर फिल्म जर्नलिस्ट अजय ब्रह्मात्मज ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि फिल्मों में अगर खलनायक का कोई कैरेक्टर होता तो उसे कैसे दिखाया जाए यह तय करने में अंडरवर्ल्ड की दखलंदाजी जारी थी। सुपरस्टार शाहरूख खान के बाद एक्टर बोमन इरानी को धमकी मिलने के बाद मुंबई पुलिस ने उनकी सुरक्षा बढ़ा दी। इरानी को गैंगस्टर रवि पुजारी की ओर से धमकी दी गई। इससे पहले अली मोरानी प्रोड्यूसर के घर के बाहर फायरिंग कर एक नोट छोड़ा गया था जिसमें शाहरूख को टारगेट करने की बात कही गई थी। इस घटना के कुछ महीने पहले ही प्रीति जिंटा के पूर्व प्रेमी नेस वाडिया ने एक शिकायत दर्ज़ करवाई थी कि उन्हें अंडरवर्ल्ड से धमकी मिल रही है कि वह प्रीति को परेशान न करें। बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड का रिश्ता काफी पुराना और गहरा है। रुपहले पर्दे पर अंडरवर्ल्ड के हर किरदार को बड़ी शिद्दत से निभाया गया है। लोगों के बीच इनकी कहानियां लोकप्रिय होने की वजह से ऐसी फिल्मों को दर्शकों ने भी काफी सराहा है। अस्सी के दशक में मुंबई में अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला गैंग का राज हुआ करता था। दाऊद भी इस गैंग के लिए काम करने लगा। चोरी और तस्करी करने वाला दाऊद जरायम की दुनिया का बड़ा नाम बन गया। वह फिल्म फाइनेंसिंग और सट्टेबाजी का भी काम करने लगा। इसी दौरान उसकी मुलाकात छोटा राजन से हुई। दोनों मिलकर भारत के बाहर भी काम करने लगे। मुंबई और दुबई के बीच इनके गुनाहों की तूती बोलने लगी। फिर वे अलग ही नहीं हुए एक दूसरे के दुश्मन भी बन गए। जुर्म की दुनिया के इन रीयल किरदारों दाऊद इब्राहिम, अबू सलेम, छोटा शकील, छोटा राजन, माया डोलस और माण्या सुर्वे को रील पर बखूबी दिखाया गया। बॉलीवुड में कई फिल्‍में अंडरवर्ल्‍ड डॉन और गैंगस्‍टर्स के जीवन पर बनाई जा चुकी हैं। दरअसल इस तरह के विषय पर बनने वाली फिल्‍में दर्शकों के बीच खूब पसंद की जाती हैं और हिट भी रहती हैं। इक्‍का-दुक्‍का फिल्‍में अपवाद भी रहीं और वे फ्लॉप भी रहीं। अंडरवर्ल्ड की दुनिया पर बनने वाली फिल्मों में ‘ब्लैक फ्राइडे’ (9 फरवरी, 2007), ‘शूटआउट एट वडाला’ (1 मई, 2013), ‘कंपनी’ (15 अप्रैल, 2002), ‘डी’ (3 जून, 2005), ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ (30 जुलाई, 2010), ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई अगेन’ (15 अगस्त, 2013), ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ (25 मई, 2007), ‘डी डे’ (19 जुलाई, 2013) आदि का नाम प्रमुख है। अंडरवर्ल्ड डॉन के अलावा बताया जा रहा है कि धर्म के डॉन आसाराम और उसके बेटे नारायण साईं ने बॉलीवुड में बड़ा निवेश किया हुआ है। डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम खुद फिल्में बना रहे हैं और उसमें नायक की भूमिका निभा रहे हैं। विवादित महिला धर्मावतार राधे मां की भी फिल्मों में गहरी रूचि है उन्हें फ़िल्मी गानों पर डांस करते हुआ बखूबी देखा जा सकता है। आज व्यावसायिक फिल्मों के निर्माण में बहुत पैसा लगता है। जाहिर है कमाई भी अथाह है। पिछले कुछ वर्षों से निर्माता रुपहले पर्दे पर धूम मचाने के लिए रिलीज़ से पहले और बाद में भी अपनी कमर्शियल फिल्मों का जोर-शोर से प्रचार करते रहे हैं। कई बार तो जानबूझ कर फिल्मों को विवादास्पद बनाकर प्रदर्शित किया जाता है ताकि दर्शक इन्हें इसी बहाने देखने आएं और फिल्में ज़्यादा से ज़्यादा कमाई करें। अब आपको यह भी बता दें कि बॉलीवुड की शुरुआत 1899 में एक लघु फिल्म के प्रोडक्शन से हुई थी। 1913 में आई दादा साहब फाल्के की फिल्म राजा हरिश्चंद्र बॉलीवुड की पहली मूक फिल्म थी। उसके बाद 1930 में पहली बोलती फिल्म आर्देशियर ईरानी की आलमआरा थी, जो हिंदी सिनेमा जगत के इतिहास में सुपर-डुपर हिट के रूप में दर्ज़ है। उसके बाद बॉलीवुड में आवा़ज़ वाली फिल्में बनने का सिलसिला शुरू हुआ। 1899 में बॉलीवुड में एक शॉर्ट फिल्म बनने के लगभग ग्यारह साल बाद यानी 1910 में हॉलीवुड का जन्म हुआ। हॉलीवुड का पहला प्रोडक्शन एक बायोग्राफिक मेलोड्रामा थी। वर्ष 2006 में बॉलीवुड ने 1.75 बिलियन डॉलर की कमाई की थी, जबकि इसी साल हॉलीवुड के वाल्ट डिजनी स्टूडियो की आमदनी इसकी दोगुनी थी। आज कला फिल्मों की तरफ शायद ही कोई निर्माता ध्यान देता हो। बॉलीवुड की फिल्मों को आर्ट और कमर्शियल दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है। कमर्शियल फिल्में मनोरंजन को लक्ष्य करके बनाई जाती हैं। ऐसी फिल्में रोमांस, सस्पेंस, कॉमेडी, भूत-प्रेत आदि विषयों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इनमें कैमरे का जादू ख़ूब दिखाया जाता है, लेकिन ये तार्किक नहीं होती और न ही कहानी पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है। इन विषयों पर बनने वाली अधिकतर फिल्में बड़े बजट की होती हैं। जबकि कला फिल्में समाज को प्रभावित कर रहे मुद्दों, सामाजिक जागरूकता, महत्वपूर्ण सच्चाइयों और उनसे जुड़ी जानकारियों पर आधारित होती हैं। इनमें कहानी को बिना तोड़े-मरोड़े और वास्तविकता से रूबरू कराते हुए पर्दे पर पेश किया जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि समाज को आईना दिखाने वाली ऐसी फिल्मों के निर्माण में न तो निर्माताओं को कोई रुचि होती है और न निर्देशक को। डॉन और साधु संत भी इनसे दूर ही रहते हैं। यही वजह है कि बेहतरीन कहानी-संदेश वाला एक सार्थक सिनेमा लोगों तक पहुंच पाने में नाक़ाम है। अक्सर पैसे के अभाव की वजह से इन फिल्मों के प्रस्तुतिकरण पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। न ही इनके वितरण और पब्लिसिटी का ही कोई माकूल इंतज़ाम होता है। जबकि तड़क-भड़क वाली और लगभग बेकार फिल्मों में निर्माता पैसा लगाने से नहीं हिचकते। यह बिडम्बना ही है कि फिल्म इंडस्ट्री में इतना पैसा लगने और लौटने के बावजूद अच्छी फिल्में, पर्दे पर आने से पहले ही ग़ायब हो जाती हैं। उन्हें देखने वाले भी बहुत काम होते हैं। इसे दुखद ही कहा जायेगा कि हिंदी सिनेमा अपनी मूल्यगत पहचान खोता जा रहा है।

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