यह स्वागतयोग्य है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने वाहनों पर लालबत्ती और सायरन के इस्तेमाल को लेकर कड़ा रुख अख्तियार किया है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति सी नागप्पा की पीठ ने लालबत्ती के दुरुपयोग रोकने वाली याचिका पर फैसला देते हुए कहा है कि सिर्फ उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों को ही ड्यूटी के दौरान लालबत्ती लगाने का अधिकार होगा। न्यायालय ने लालबत्ती और सायरन के इस्तेमाल को सामंती सोच का प्रतीक मानते हुए कानून तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है। साथ ही ये भी कहा है कि लालबत्ती का इस्तेमाल करने वाले अधिकांश लोगों में देश के कानून के प्रति कोई सम्मान नहीं है और वे आम नागरिकों को हेय दृष्टि से देखते हैं। न्यायालय ने राज्य सरकारों को ताकीद किया है कि वह तीन महीने के अंदर नियमों में बदलाव करने और लालबत्ती देने के लिए अति प्रमुख लोगों की नई सूची तैयार करें। यह भी हिदायत दी है कि ‘उच्च पदस्थ हस्तियों’ की सूची में केंद्र द्वारा 2002 और 2005 की अधिसूचना में प्रतिपादित संख्या से अधिक संख्या नहीं होनी चाहिए। गौरतलब है कि इस सूची में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, देश के प्रधान न्यायाधीश, कैबिनेट मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और तीनों रक्षा सेवाओं के मुखिया शामिल हैं। न्यायालय के आदेश के मुताबिक अब पुलिस, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और आपात प्रबंधन में लगे वाहनों को ही सायरन और नीली बत्ती इस्तेमाल करने का अधिकार होगा। राज्यों को इनके अलावा सभी वाहनों से लालबत्ती और सायरन हटाना होगा। देखना दिलचस्प होगा कि सरकारें इस दिशा में क्या कदम उठाती हैं। पिछले दिनों न्यायालय ने राज्यों से जानना चाहा था कि लालबत्ती दिए जाने का आधार क्या है? वह किस फार्मूले के तहत किसी व्यक्ति को विशिष्ट मानती हैं या उनकी सुरक्षा का पैमाना तय करती हैं? राज्य सरकारों ने इन सवालों का जवाब नहीं दिया। नियम विरुद्ध सुरक्षा मुहैया कराने को लेकर देश के वरिष्ठ वकील हरीश शाल्वे ने पिछले दिनों न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एचएल गोखले की पीठ के समक्ष याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें मनमाने तरीके से नियम विरुद्ध जाकर सरकारी सुरक्षा मुहैया करा रही हैं। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि इससे आम लोगों की मुश्किलें बढ़ रही हैं। अनावश्यक सुरक्षा तामझाम से ट्रैफिक जाम होता है और गंभीर मरीजों की जान चली जाती है। बहरहाल सर्वोच्च अदालत के इस निर्णय से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अपने दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं को लालबत्ती बांटने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी और आमजन की मुश्किलें कम होंगी, यह कहना अभी मुश्किल है। इसके लिए सरकारों को कड़े कानून बनाने होंगे। अभी तक लालबत्ती का गलत इस्तेमाल करते हुए पहली बार पकड़े जाने पर 100 रुपए और दूसरी बार पकड़े जाने पर 1000 रुपए जुर्माना का प्रावधान है। मजे की बात यह कि इसे रोकने के कड़े कानून बनाने के बजाए सरकारें जुर्माने की धनराशि बढ़ाने पर विचार कर रही हैं। क्या इस शुतुर्गमुर्गी रवैए से कानून का पालन होगा। पिछले दिनों न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व कुरियन जोसेफ की पीठ ने राजधानी दिल्ली में दूसरे राज्यों से आने वाले सुरक्षा काफिले को लेकर कड़ा ऐतराज जताया था। उन्होंने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकार से पूछा था कि दिल्ली में प्रवेश करते समय उनके सुरक्षा दस्ते को अनुमति क्यों दी जाती है? नाराजगी व्यक्त करते हुए न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकारों से सुरक्षा प्राप्त अतिविशिष्ट लोगों की सूची और उस पर होने वाले खर्च का ब्यौरा मांगा। राज्य सरकारों ने जो ब्यौरा दिया है उसके मुताबिक जिन लोगों को अतिविशिष्ट बता लालबत्ती से नवाजा गया है वे इसके हकदार ही नहीं हैं। हद तो यह है कि अब पंचायत स्तर के प्रतिनिधि भी धड़ल्ले से लालबत्ती का इस्तेमाल कर रहे हैं और शासन- प्रशासन आंख बंद किए हुए है। इसके अलावा ऐसे लोग भी गैर कानूनी ढंग से लालबत्ती का इस्तेमाल कर अपने रसूख का प्रदर्शन कर रहे हैं जो माफिया और अराजक हैं। पकड़े जाने पर जुर्माना भर आसानी से बच निकलते हैं। इसके लिए पूरी तरह राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। दरअसल वे खुद लालबत्ती दिए जाने को लेकर गंभीर नहीं हैं। उन्हें इस बात की भी चिंता नहीं है इससे राज्य के माथे पर वित्तीय बोझ बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार अतिविशिष्ट लोगों की सुरक्षा पर प्रतिमाह तकरीबन 14.89 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। राज्य में लालबत्ती पाने वाले लोगों में मंत्री, राज्यमंत्री और मंत्री का दर्जा प्राप्त लोग हैं। गौर करने वाली बात यह कि इनमें ऐसे लोगों की तादात है जिनपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। देश के अन्य राज्यों की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ओर सरकारें संसाधनों और सुरक्षा बलों की कमी का रोना रो आमजन को सुरक्षा देने में नाकाम हैं वहीं ऐसे लोगों को लालबत्ती से नवाज रही हैं जिनका सामाजिक व राजनीतिक सरोकारों से कुछ लेना-देना ही नहीं है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तकरीबन 1400 विशिष्ट लोगों की सुरक्षा पर तकरीबन 3000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात हैं। यानी एक विशिष्ट व्यक्ति की सुरक्षा पर 2 से अधिक जवान हैं। जबकि राज्य में प्रति 1 लाख की आबादी पर महज 132 पुलिस कर्मी हैं। देश के अन्य राज्यों की स्थिति भी ऐसी ही है। मजे की बात यह कि बिहार, बंगाल और आंध्रप्रदेश जैसे राज्य जिसकी आबादी यूपी से कम है वहां विशिष्ट व्यक्तियों की संख्या यूपी से अधिक है। जबकि इन राज्यों में आमजन की सुरक्षा के लिए पुलिस बलों की भारी कमी है। आंकड़ें बताते हैं कि बिहार में प्रति एक लाख की आबादी पर 68, प. बंगाल में 60 और आंध्र प्रदेश में 104 पुलिसकर्मी हैं। ये राज्य धन की कमी का बहाना बना पुलिसकर्मियों की नियुक्ति नहीं कर रहे हैं लेकिन वीआइपी सुरक्षा पर होने वाले खर्च को अनावश्यक नहीं मानते हैं। देश की आबादी सवा अरब से उपर पहुंच चुकी है। लोगों की सुरक्षा के नाम पर देश में सिर्फ 21 लाख पुलिसकर्मी हैं। यानी 568 लोगों पर सिर्फ एक पुलिसकर्मी। जबकि एक वीआईपी पर 2 से अधिक जवान नियुक्त हैं। आखिर यह कैसे न्यायसंगत है? एक आंकड़े के मुताबिक 2011 में 14842 वीआईपी की सुरक्षा में 47557 जवान लगे थे। मानकों के हिसाब से 15081 जवान अधिक थे। तय प्रावधानों के मुताबिक एक्स श्रेणी की सुरक्षा में 2, वाई श्रेणी में 11, जेड श्रेणी में 22 और जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा में 36 जवान होते हैं। लेकिन सरकारें अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाती रहती हैं। नतीजा यह है कि जिन्हें एक्स श्रेणी की सुरक्षा की जरुरत होती है वे वाई श्रेणी की सुरक्षा की मांग करते हैं और सुरक्षा में कटौती किए जाने पर जान का खतरा बता अनावश्यक शोर मचाते हैं। न्यायालय ने उचित कहा है कि आज लालबत्ती और हूटर सुरक्षा से ज्यादा स्टेटस सिंबल बन चुका है। राजनेता से लेकर अधिकारी-सेलेब्रिटी सभी इससे लैस होना चाहते हैं। न्यायालय ने आश्चर्य जताया कि दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में जनप्रतिनिधियों और लोकसेवकों की गाडि़यों में लाल बत्त्यिों का इस्तेमाल नहीं होता है लेकिन यहां नियमों को दरकिनार कर इसका इस्तेमाल हो रहा है। पिछले दिनों न्यायालय ने राज्य सरकारों से सवाल किया कि क्यों न जिन विशिष्ट व्यक्तियों को सरकारी सुरक्षा दी जा रही है वे इसका खर्च स्वयं वहन करें। लेकिन राज्य सरकारों ने इसमें कोई रुचि नहीं दिखायी। हालांकि न्यायालय के मौजूदा रुख से उम्मीद बंधी है कि सरकारें गैरकानूनी ढंग से अपने दल या निकट संबंधियों को लालबत्ती देकर उपकृत नहीं करेंगी और गंभीरता पूर्वक अतिविशिष्ट लोगों की सुरक्षा की समीक्षा करेंगी। अगर ऐसा होता है तो लोकतंत्र के लिए शुभ होगा। यह किसी भी लिहाज से उचित नहीं है कि जनता के प्रतिनिधि सामंतों की तरह दिखें और आचरण करें। उचित होगा कि राजनीतिक दल स्वयं आगे बढ़कर लालबत्ती, सरकारी बंगला, सरकारी मोटर गाड़ी एवं अन्य सरकारी सुविधाओं का परित्याग करने की घोषणा करें। इससे आमजन में उनकी विश्वसनीयता बढ़ेगी और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग भी नहीं होगा।