इस राजनीति की काट फिलहाल मुश्किल

चाणक्य (अनुमानतः ईसा पूर्व ३७५ – ईसा पूर्व २२५) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे ‘कौटिल्य’ नाम से भी विख्यात हैं| उन्होंने नंदवंश का नाश कर चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया था| उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है| अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है| चाणक्य के बारे में विख्यात है कि वे शांतचित से अपने विरोधियों की ताकत का अंदाजा लगाकर उन्होंने परास्त करने में विश्वास करते थे| उन्हें उकसाने की जितनी भी चेष्टा की जाए वे अपवादस्वरूप खामोश रखकर अपना बदला लेते थे| चाणक्य ने राजनीति की दशा-दिशा बदलने की जो नींव रखी, उसपर कई लोगों ने चलने का प्रयास किया पर उन्हें असफलता प्राप्त हुई किन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसलों और बातों में चाणक्य की भांति कूटनीति दिखाई देती है| इसे अतिशयोक्ति भले ही माना जाए किन्तु मोदी सही मायनों में आधुनिक राजनीति के चाणक्य बनते जा रहे हैं| ०२ अक्टूबर गांधी जयंती पर स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करते हुए उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर को अपने नवरत्नों में शामिल कर एक तीर से दो निशान साधे| शशि थरूर उन नेताओं की फेहरिस्त में अव्वल थे जो अपने ही नेतृत्व पर करारा प्रहार करते थे| इससे इतर तमाम विवादों के बावजूद उनकी लेखकीय छवि ने उनके प्रशंसकों और आलोचकों के बीच उन्हें लोकप्रिय बना रखा था| मोदी ने उन्हें अपनी टीम में शामिल कर कांग्रेस के अंतर्विरोधों को तो उजागर किया ही, युवाओं और बुद्धिजीवियों के बीच यह संदेश पहुंचा दिया कि हम योग्य विरोधी को भी उचित मान-सम्मान देना जानते हैं| हालांकि इसमें शशि थरूर का खासा नुकसान हो गया| मोदी प्रशंसा ने उन्हें उनकी ही पार्टी में रुसवा कर दिया और अब वे हाशिए पर हैं| इसी तरह अपने निर्वाचन क्षेत्र काशी में प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने फावड़ा उठाकर अस्सी घाट की सफाई शुरू की तो यहां भी अपना दांव चल दिया| समाजवादी पार्टी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव को नवरत्नों में शामिल कर विरोधियों को अवाक कर दिया| पूरे देश ने देखा कि किस तरह अखिलेश मोदी की मुहिम में शामिल होने के प्रश्नों को टालते नज़र आए| उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में मोदी के इस दांव का असर दिखेगा| अखिलेश वैचारिक रूप से न तो अभियान से हटने का एलान कर सकते हैं और न ही राजनीतिक रूप से मोदी का समर्थन कर सकते हैं| यानि अखिलेश के लिए इधर कुंआ तो उधर खाई जैसी स्थिति है| अपने पहले मंत्रिमंडलीय विस्तार में भी प्रधानमंत्री मोदी ने शिव सेना नेता सुरेश प्रभु के प्रति विश्वास जताते हुए उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया है| सुरेश प्रभु को पहले तो शिव सेना छोड़ भाजपा की सदस्य्ता दिलवाई गई और फिर उद्धव ठाकरे को ज़ोर का झटका देते हुए उनके द्वारा प्रस्तावित नाम सांसद अनिल देसाई की जगह सुरेश प्रभु को नामित कर दिया| प्रधानमंत्री के इस कदम से महाराष्ट्र में अपने अस्तित्व की तलाश करती शिव सेना में फूट की आशंकाएं दिखाई देने लगी हैं| कुल मिलाकर राजनीति में न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर के सिद्धांत पर चलते हुए मोदी एक-एक कर विरोधी पार्टियों को हाशिए पर ढकेलते जा रहे हैं और फिलहाल किसी भी पार्टी के पास उनकी इस राजनीति का जवाब नहीं है|
दरअसल गुजरात दंगों के दंश ने मोदी को बहुत परेशान किया है| उनके विरोधियों ने उन्हें मुस्लिमों का हत्यारा कह उन्हें कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया| यह बात और है कि गुजरात दंगों में मोदी की संलिप्तता के प्रमाण किसी राजनीतिक दल या नेता के पास नहीं हैं| मोदी के नाम को जितना बदनाम किया गया, उन्हें राजनीति में उतना ही अधिक फायदा मिलता गया| चूंकि मोदी की कार्यप्रणाली दोषारोपण से अधिक सच्चाई के करीब थी, लिहाजा उन्हें लोकसभा चुनाव में इसका फल भी प्राप्त हुआ| मोदी के बारे में कहा जाता है कि कोई भी उनके भावी कदम की थाह नहीं पा सकता| और यह सच भी है| मोदी जिस चुप्पी से सभी समीकरणों को देख-समझकर कार्य करते हैं, वह राजनीति में इंदिरा युग और नरसिम्हा राव युग की याद दिलाता है| इन दोनों ने जिस तरह अपने विरोधियों को किनारे किया, कुछ उसी तरह मोदी भी अपने विरोधियों को बिना विवाद किनारे कर रहे हैं| मोदी की सबसे बड़ी ताकत उनकी सोच है| वे भविष्य की चुनौतियों को वर्तमान परिपेक्ष्य में समझकर उन्हें सुलझाने की चेष्टा करते हैं| ६ माह के अपने प्रधान्मन्त्रीय कार्यकाल में उन्होंने हर मौके पर खुद को उस हिसाब से ढ़ाला है| अमेरिका जाकर जिस आत्मविश्वास से उन्होंने ५६ इंच का सीना फुलाया, वह राजनीति में विरले ही देखने को मिलता है| मोदी की सादगी, उनकी स्पष्टवादिता, उनकी सोच और आम जनता के प्रति उनका अगाध प्रेम ही विरोधियों को बेचैन कर रहा है| हालांकि मोदी को पानी पी-पी कर कोसने वाले उनके विरोधी अब भी नाम उछालने की राजनीति कर रहे हैं जिससे यह साबित होता है कि मोदी की राजनीति की काट फिलहाल तो दिखाई नहीं देती| यदि यही हाल रहा तो पूरे देश में कमल खिलने से कोई नहीं रोक सकता| आखिर मोदी को रोकने के लिए खुद मोदी बनना पड़ेगा जो संभव नहीं है| अतः मोदी को आधुनिक राजनीति का चाणक्य कहा जाए तो गलत नहीं होगा|
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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

3 COMMENTS

  1. चाणक्य से तुलना करते सिद्धार्थ शर्मा गौतम जी ने अपने आलेख में बड़ी कुशलता से प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व व उनकी अनोखी कार्यशैली का वर्णन किया है| लोक सभा निर्वाचनों से बहुत पहले से मैं प्रातःकालीन प्रार्थना करते श्री प्रभु जी से भारत में सुशासन की कामना करता था। श्री प्रभु जी ने न केवल मेरी प्रार्थना स्वीकार करते अपितु सदियों से शोषित भारत के रुदन को सुन नरेंद्र मोदी जी को हमारे बीच नेतृत्व के लिए भेज मानो हमें यथार्थ स्वतंत्रता दिलाई है। स्वतंत्रता दिवस प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले की प्राचीर से भारत पुनर्निर्माण की रूपरेखा व्यक्त करते उन्होंने करोड़ों दिलों में आत्मविश्वास जगा दिया है|

    मेरे विचार में संयुक्त राष्ट्र अमरीका के जिस अद्वितीय सामाजिक वातावरण में जा कर “आत्मविश्वास से उन्होंने ५६ इंच का सीना फुलाया” है मोदी जी उसे अवश्य पहचानते हैं और जैसा मैं देख समझ रहा हूँ पिछले छह महीनों से उनके “मन की बात” भारत को वैसे ही समानांतर वातावरण में ढालने की है| जिस देश में ईसाई, यहूदी, मुसलमान, हिन्दू, और न जाने और बीसियों धर्मों के लोग बड़े बड़े पूजा स्थलों में स्वतंत्रतापूर्वक अपने धर्म का अनुसरण करते इकट्ठे रह रहे हों तो मुझे इसमें हिंदुत्व के आचरण की अलौकिक झलक देखने को मिलती है| आज वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद के वातावरण में अपनी प्रांतीय भाषाओं को विकसित करते और भारतीय संस्कृति का पालन करते भारत को संयुक्त राष्ट्र अमरीका की भांति समृद्ध व वैभवशाली बनाने में सभी भारतीयों को प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ चलना है|

  2. चाणक्य (अनुमानतः ईसा पूर्व ३७५ – ईसा पूर्व २२५) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे ‘कौटिल्य’ नाम से भी विख्यात हैं| उन्होंने नंदवंश का नाश कर चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया था|पुनः यही किस्सा दुहराया जा रहा है नंद वंष के बुहदरथ रूपी मूलनिवासी समाज के लिये उन्ही के बीच से चन्द्रगुप्त मौर्य रूपी नरेंद्र मोदी को सत्ता में बैठाकर चाणक्य रूपी ब्राहमनवाद देष के मूलनिवासियों को गुलाम बनाने की साजिस है चाणक्य की कूटनीति भी असफल होती है कभी ना कभी किसी ना किसी समय मूलनिवासियों में समझ आती है कभी ना कभी किसी भी समय ।

  3. ऐसे मैं आम जनता का एक हिस्सा हूँ,पर इस नाते मुझे एक सुविधा प्राप्त है कि मैं किसी भी धारणा,विचार या व्यक्ति को निरपेक्ष भाव से देख सकता हूँ. चाणक्य का तो अंत क्या हुआ,यह नहीं मालूम,पर इंदिरा गांधी और कुछ हद तक नरसिम्हा राव का हश्र तो किसी से छुपा नहीं है.नमो एक अच्छे वक्ता अवश्य हैं और सब्ज दिखाने में भी उनको महारत हासिल है,पर एक बात की ओर उनके प्रसंशकों या भक्तों का ध्यान नहीं जा रहा है,वह है उन सपनोको हकीकत का रूप देने की ख़्वाहिश .नमो अगस्त २०१२ में बोले थे,”मुझे १०० दिनों के लिए प्रधान मंत्री बना दो,मैं विदेशों से सारा काला धन वापस ले आऊंगा.अगर मैं ऐसा नहीं कर सकूँ,तो मुझे फांसी दे देना.” यह वक्तव्य अभी कुछ दिनों पहले तक यु ट्यूब पर मौजूद था. फिलहाल हटा दिया गया हो,तो मालूम नहीं.यह तो एक उदाहरण हुआ.ऐसे अनेकों समय सीमा वद्ध वादों से उनके चुनावी भाषण भरे हुए हैं.भरष्टाचार के विरुद्ध उनके अभियान का यह हाल है कि अगर किसी ईमानदार को वे चुनते हैं,तो उसको बैलेंस करने के लिए किसी भ्रष्ट को भी साथ ले लेते हैं. ऐसे यह बैलेंसिंग ऐक्ट तो ऊपर की जोड़ी में ही है,क्योंकि उनके समकक्ष अमित शाह भी खड़े हैं.किस्सा वही पुराना है कि उनके विरुद्ध कोई प्रमाण हो तो दिखाइए.नमो की परीक्षा की घड़ियाँ तो अभी आरम्भ हुई हैं.सरकारी अस्पतालों को ठीक करने की जगह पूरे देश को स्वास्थ्य बीमा को सुविधा देना भी एक वैसा ही कदम है,जिसका लाभ केवल निजी अस्पतालों को मिलेगा.उससे आम भारतीयों के स्वाथ्य में कोई परिवर्तन नहीं आएगा.शिक्षा का मामला भी कुछ वैसा ही . है.
    मेरे जैसे जमीन से जुड़े हुए लोगों की निगाह में भारत एक भ्रष्ट ,बीमार और अशिक्षित राष्ट्र है और इसको ऐसा रखने में राजनैतिक दलों और राज नेताओं का हाथ है.नमो या उनके सहयोगी भी इस मामले में अलग नहीं दिख रहे हैं.पता नहीं ठोस क़दमों के अभाव में यह चाणक्य नीति कब तक चलेगी.

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