जम्मू कश्मीर में सशस्त्र बलों पर तथाकथित मानवाधिकारवादियों और पाक आतंकियों के दोहरे हमले

डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

  दस साल बाद एक बार फिर पाकिस्तान संरक्षित आतंकवादियों ने जम्मू में सेना के कैम्प पर हमला किया है । २६ सितम्बर २०१३ को जम्मू संभाग की नियंत्रण रेखा पार कर तीन पाकिस्तानी  आतंकवादियों ने घुसपैठ कर कठुआ जिला में हीरा नगर पुलिस स्टेशन पर हमला कर चार सिपाहियों और एक सिविलियन की हत्या कर दी । इन आतंकियों ने भारतीय सेना के कपडे पहने हुये थे । उन्होंनेनियंत्रण रेखा के नजदीक के गांब हरिया चक से एक आटो रिक्शा पर कब्जा कर उसके चालक रोशनलाल को मुख्य मार्ग पर ले चलने का आदेश दिया । रास्ते में हीरा नगर पुलिस स्टेशन दिखाई देने पर वे उसके संतरी को गोली मार कर थाने के अंदर चले गये और अंधाधुंध फयरिंग कर दी । रोशन लाल के अनुसार ,'ये आतंकवादी फ़ोन पर किसी से निर्देश प्राप्त कर रहे थे और उन्हीं निर्देशों के अनुसार उन्होंने मुझसे केन्द्रीय रक्षित पुलिस बल और सेना के शिविरों के बारे में दरयाफ्त किया ।'  भारी हथियारों से लैस ये आतंकवादी , थाने पर हमले के बाद , वहीं पर खडे  एक ट्रक में जम्मू की ओर बढे । विरोध करने पर ट्रक के कलीनर की गोली मार कर हत्या कर दी । रास्ते में जम्मू-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग पर साम्बा के नजदीक माहेश्वर में सेना के शिविर पर आक्रमण कर तीन सैनिकों को मार दिया , जिनमें एक लैफ्टीनैंट कर्नल भी शामिल था ।इस प्रकार इस फ़िदायीन हमले में बारह लोग मारे गये । बाद में सेना ने इन तीन आतंकवादियों को भी मार गिराया । विश्वास किया जाता है कि पाकिस्तान से ये आतंकवादी जम्मू के कठुआ जिला की हीरानगर तहसील के गाँव सलालपुर के छप नाले को पार कर इधर पहुँचे । नियंत्रण रेखा को पार कर सुरक्षा बलों पर आतंकियों के आक्रमण की यह घटना दस साल बाद हुई है ।इससे पहले मई २००२ को जम्मू के कालू चक में पाकिस्तान से नियंत्रण रेखा पार कर आये  , भारतीय सेना की बर्दी pakistan and talibanपहने हुये तीन आतंकियों ने हमला कर तीन भारतीय सैनिकों समेत ३१ व्यक्तियों को मार दिया था । साठ से भी ज़्यादा लोग घायल हो गये थे । सुरक्षा  बलों का मानना है कि इन तीन पाकिस्तानी आतंकियों की सहायता कुछ स्थानीय गिरोह भी कर रहे थे । जिस प्रकार इस हमले को अंजाम दिया गया , वह लम्बी योजना एवं तैयारी से ही संभव हो सकता है । ध्यान रहे इस हमले के समय का चयन भी अत्यन्त सावधानी से तय किया गया था । हमले के तीन दिन बाद ही न्यूयार्क में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आपस में बात करने वाले थे । शायद जम्मू में हुये इस हमले की सफलता के कारण ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की हिम्मत , भारत के प्रधानमंत्री को एक देहाती औरत कह कर खिल्ली उड़ाने की हुई । 
                      कश्मीर घाटी में पिछले कुछ अरसे से सुरक्षा बलों पर आतंकी आक्रमणों में तेज़ी आई थी , लेकिन जम्मू में नियंत्रण रेखा को पार कर सेना पर हमला करने की घटना दस साल बाद हुई है । इससे पाकिस्तान और आतंकियों की नई रणनीति के संकेत समझे जा सकते हैं । सुरक्षा बलों का मानना है कि पाकिस्तान 1947 में क़ब्ज़े में किये गये जम्मू के इलाक़े बाग़ , रावलकोट , कोटली , गुलपुर इत्यादि में आतंकवादियों को उच्च स्तर का प्रशिक्षण देने के लिये शिविर चलाता है । जम्मू में यह वारदात करने वाले आतंकी भी इसी नियंत्रण रेखा को पार कर आये होंगे ।    
                              इस आक्रमण का उद्देश्य कहीं ज्यादा गहरा है । आतंक फैलाना महज उसका एक भाग है । जम्मू कश्मीर में पिछले कुछ अरसे से राज्य में पाकिस्तान द्वारा संरक्षित देशी विदेशी आतंकवादियों की गतिविधियों को रोकने में सशस्त्र सुरक्षा बलों को सफलता प्राप्त होने लगी थी । या उन के हाथ से कम से कम पहल छीन ली गई थी । आम लोगों ने भी कहना शुरु कर दिया था कि राज्य , ख़ास कर जेहलम घाटी से गन कल्चर समाप्त हो गया है । आतंकवाद की लड़ाई में सशस्त्र बलों की भूमिका इतनी ही हो सकती है । इसके बाद स्थिति को सामान्य बनाने के लिये रणनीति राजनैतिक नेतृत्व को बनानी पड़ती है और सुशासन के माध्यम से जन विश्वास अर्जित करना होता है । लेकिन अपेक्षाकृत इस नये शान्त वातावरण का लाभ उठाकर राज्य सरकार ने राजनैतिक पहल करने की बजाय सशस्त्र सैनिक बलों की घेराबन्दी करने और उन पर मानवाधिकारों के हनन के नाम पर विभिन्न थानों में प्राथमिक सूचना रपटें लिखने में ज़्यादा दिलचस्पी दिखाई । इतना ही नहीं सेना के जिन कामों की सामान्य तौर पर सार्वजनिक चर्चा से भी परहेज किया जाना चाहिये , सोनिया कांग्रेस की सरकार पूर्व सेनाध्यक्ष को केवल नीचा दिखाने की खातिर ही , उसकी जांच करवाने के दमगजे मार रही है ।मामला बिल्कुल स्पष्ट है । यदि सुरक्षा बलों का दबाव आतंकवादी गिरोहों पर निरन्तर बना रहता है तो ज़ाहिर है राज्य के आम लोगों के मानस से आतंकवादियों का आतंक भी समाप्त हो जायेगा । आतंकवादियों का आतंक समाप्त हो जाने पर प्रदेश की आम जनता को छोड़ कर , बाक़ी सभी को नुक़सान ही नुक़सान है । तब नैशनल कान्फ्रेंस और पी डी पी के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचेगा । आतंकवादियों के आज़ादी के नारे का डर दिखा कर ही ये दल स्वायत्तता के नाम पर केन्द्र सरकार को ब्लैकमेल कर सकते हैं । तथाकथित सिविल सोसायटी और हुर्रियत का तो विदेशों से आने वाले अकूत धन का स्रोत ही समाप्त हो जायेगा । पाकिस्तान की तो सारी राजनीति ही उनके जहाँ से आतंक के ़ ,विशेषकर हिन्दुस्तान में , निर्यात पर टिकी हुई है । अब जब अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना हट रही है तो भारत को कश्मीर में आतंकवादियों की सहायता से घेरे रखना पाकिस्तान की रणनीति का अहम हिस्सा है । यदि पाकिस्तान ऐसा न कर पाया तो भारत काबुल में महत्वपूर्ण स्थिति में बनने की ओर अग्रसर हो सकता है । जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों पर आतंकवादियों के आक्रमणों की बढ़ती घटनाओं को इसी परिप्रेक्ष्य में देखना होगा । 
                         पिछले कुछ समय से इन हमलों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही है । जनवरी २०१३ से आज तक सुरक्षा बलों पर छोटे बड़े सभी आतंकवादी हमलों की संख्या तीस से चालीस तक पहुँचती हैं । इस में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों के साथ सेना की घुसपैठ की घटनाएँ भी शामिल हैं ।सुरक्षा बलों पर हमला करने वाले आतंकवादी गिरोहों में प्रमुख तौर पर लश्कर-ए-तोयबा, फ़िदायीन , और हिज़बुल मुजाहिदीन का नाम आता है । 
                      ८ जनवरी २०१३ को पुँछ सेक्टर में मेंढर के स्थान पर पाकिस्तान की सेना ने नियंत्रण रेखा को पार कर भारतीय सेना की पेट्रोल टुकड़ी पर हमला कर दिया और एक सैनिक का सिर काट कर भी साथ ले गये ।   १३ मार्च २०१३ को श्रीनगर के केन्द्र में बेमिना में केन्द्रीय आरक्षित पुलिस बल के शिविर पर आतंकवादी गिरोह ने आक्रमण किया , जिसमें बल के पाँच जवान शहीद हो गये । इस आक्रमण में दस लोग घायल हो गये । सुरक्षा बलों का मानना है कि यह आक्रमण हिज़बुल मुजाहिदीन और लष्करे तोयबा का हो सकता है । लेकिन श्रीनगर के केन्द्र में आतंकवादियों का यह आक्रमण आम जनता को यह दिखाने के लिये भी था कि अभी आतंकवादी संगठनों का बल टूटा नहीं है । इस हमले के अगले महीने ही २६ अप्रेल २०१३ को बारामूला के हैगाम में हिज़बुल मुजाहिदीन के आक्रमणकारियों ने पुलिस बल पर हमला कर चार सिपाहियों की हत्या कर दी । इसके एक महीने बाद ही २४ मई को पुलवामा ज़िला के तराल क्षेत्र में उग्रवादियों ने सेना की टुकड़ी पर हमला कर चार सैनिकों की हत्या कर दी । तीन आक्रमणकारी आतंकियों में से केवल ही मारा गया बाक़ी दो भाग जाने में कामयाब हो गये । इसके बाद २४ जून को श्रीनगर के हैदरपोरा में हिजबुल मुजाहिदीन के गिरोह ने एक अत्यन्त दुस्साहसपूर्ण हमले में सेना की एक कानवायी पर हमला कर दिया । इस हमले में आठ सैनिक शहीद हो गये और ग्यारह घायल हुये । चार मास के भीतर ही सेना पर यह आतंकवादियों का दूसरा बडा हमला था । इस आक्रमण के समय का चयन बहुत ही सावधानी से किया गया था । इसके अगले ही दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह श्रीनगर आने वाले थे । आतंकवादियों का मक़सद साफ़ था । सेना के प्रभाव को चुनौती देकर जनमानस में अपनी शक्ति और क्षमता का आतंक बिठाना था । 
                  इस हमले के कुछ दिन बाद ही एक जुलाई को पुलवामा के तराल में ही एक बार फिर मुजाहिदीन ने पुलिस बल पर हमला कर एक सिपाही की हत्या कर दी । आठ जुलाई को बारामूला के उडी सैक्टर के रुसतम क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के पार से , भारतीय सेना के गश्ती दल पर हुई गोलीबारी में एक जवान शहीद हो गया । इसके दो दिन बाद ही १० जुलाई को कुपबाडा ज़िला के लोलाब क्षेत्र में आतंकियों से मुठभेड़ में भारतीय सेना का एक कमांडो शहीद हो गया और तेरह जुलाई को हंदबाडा में आतंकियों ने एक सिपाही की हत्या कर दी । सत्रह जुलाई को जब पुलिस एक गिरफ़्तार आतंकी शकील अहमद कासना को श्रीनगर से बारामूला उप जेल को लेकर जा रही थी तो आतंकवादियों ने उसे छुड़ाने के लिये पुलिस पार्टी पर ग्रेनेड से हमला किया । इस हमले में शकील ख़ुद ही मारा गया लेकिन चार सिपाही गंभीर रुप से घायल हो गये । 
                            पाँच अगस्त को साम्बा के रामगढ़ सेक्टर में नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर पाकिस्तानी सेना ने सीमा सुरक्षा बल के एक सैनिक की हत्या कर दी और उससे अगले ही दिन   छह अगस्त २०१३ को पुँछ सेक्टर में भारतीय सेना के गश्ती दल पर घात लगा कर पाकिस्तानी सेना ने हमला किया जिसमें टुकड़ी के छह सदस्यों में से पाँच शहीद हो गये । इस आक्रमण में आतंकवादी भी शामिल थे । भारत के रक्षामंत्री बहुत देर तक यह गीत गाते रहे कि , आक्रमण करने वाले पाकिस्तान की सेना की वर्दी में आतंकवादी थे । 
                इधर जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों पर आतंकियों के आक्रमण की घटनाएं बढतीं जा रही हैं , उधर पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ करवाने के प्रयासों को तेज कर दिया है । नियंत्रण रेखा के पार से भारतीय क्षेत्रों पर गोलीबारी करना इन्हीं प्रयासों का हिस्सा होता है । भारतीय सेना का ध्यान गोलीबारी में उलझा कर पाकिस्तान आतंकवादियों को सीमा पार करवाता है । इस बार भारतीय सेना की चौकसी इस क्षेत्र में बढ़ गई है । सीमा पार से घुसपैठ करने के प्रयासों में अनेक आतंकवादी मारे गये , लेकिन इसमें भारतीय सैनिक भी शहीद हुये व अनेक निरपराध नागरिक भी मारे गये हैं । 
                           १९ जुलाई को बंदीपोरा ज़िला के गुरेज़ सेक्टर में नियंत्रण रेखा पार से आतंकियों ने भारत में घुसने की कोशिश की लेकिन सेना की सतर्कता ने इसे विफल कर दिया । इस प्रयास में एक आतंकी मारा गया । इसी प्रकार २४ जुलाई को आतंकियों ने बारामूला ज़िले के उड़ी क्षेत्र से नियंत्रण रेखा पार कर घाटी में घुसने का असफल प्रयास किया , जिसे सेना ने विफल कर दिया । इसमें भी तीन आतंकी मारे गये । अब की बार २८ जुलाई को आतंकियों की जम्मू ज़िला के अखनूर सेक्टर में लालेयाली गाँव से नियंत्रण रेखा पार कर घुसपैठ की कोशिश में एक और आतंकी मारा गया । तीस जुलाई को सेना ने कुपबाडा ज़िला के मछेल गाँव से नियंत्रण रेखा को पार कर घाटी में घुसने के आतंकियों के एक बड़े प्रयास को विफल कर दिया और चार आतंकियों को मार भी गिराया । दो अगस्त को आतंकियों ने कुपबाडा ज़िले के तंगधार इलाक़े से नियंत्रण रेखा को पार कर घाटी में घुसने का प्रयास किया जो सेना की सतर्कता ने विफल कर दिया । इस में भी एक आतंकी मारा गया । अगले दिन एक बार फिर आतंकियों ने एेसा ही प्रयास किया । प्रयास विफल रहा लेकिन दो आतंकी मार किराये गये । अब की बार आतंकियों ने घुसपैठ का प्रयास कुपबाडा के करेन सेक्टर से किया । इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली । लेकिन इस प्रयास में दो आतंकी खेत रहे । 
                   उस पार से घुसपैठ को रोकने की सेना की तमाम सतर्कता के बाबजूद आतंकी कुछ स्थानों से अपने प्रयास में सफल भी होते ही हैं । कुपबाडा ज़िला के हंदबाडा क्षेत्र में घुस आये आतंकियों की धर पकड़ के लिये सेना ने २९ जुलाई को अभियान चलाया । इसमें लश्करे तैयबा के पाँच आतंकी मारे गये । 

                        कुल मिला कर पाकिस्तान और उसके पोषित देशी विदेशी आतंकी गिरोहों , जम्मू कश्मीर राज्य और देश के दूसरे हिस्सों में आतंकी गिरोहों के सिविल संस्करणों की इस मिली जुली रणनीति के कुछ बिन्दु अत्यन्त स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं । 
१ आतंकी गिरोहों के गिरे हुये मनोबल को पुनः ऊपर उठाना
२ जनता में आतंकी गिरोहों के डर को दोबारा बिठाना
३ सेना की प्रतिष्ठा को गिराना और मानवाधिकार हनन का हल्ला मचा कर उसकी नकारात्मक छवि निर्माण करना , ताकि सेना को कटघरे में खड़ा कर उसे सफ़ाई देने की स्थिति में पहुँचा दिया जाये । 
४ आतंकियों के मनोबल को बढ़ाने के लिये पाकिस्तान में प्रशिक्षित नये आतंकियों को राज्य में भेजना । इस कार्य को सफल करने के लिये ही पाक सेना नियंत्रण रेखा पर प्राय गोलीबारी करती रहती है । 
                   वर्ष २०१३ में अभी तक (क) राज्य में सुरक्षा बलों पर आतंकियों के हमले (ख) नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की सेना की अकारण गोलीबारी और भारतीय सेना पर नियंत्रण रेखा पार कर किये गये हमले , आतंकी गिरोहों और पाकिस्तान की इसी रणनीति का संकेत देती है । लेकिन दुर्भाग्य से भारत सरकार इस संकट काल  में भी जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को परास्त कर पाकिस्तान की रणनीति को विफल करने की बजाय आतंकवाद से लड रहे सुरक्षा बलों को ही बार बार सफ़ाई देने के लिये कटघरे में बुला रही है । चाहिये तो यह था कि अब जब पिछले कुछ समय से राज्य में किसी सीमा तक आतंकवाद पर शिकंजा कस लिया गया था , तब घरेलू राजनीति से परे हट कर , अगले क़दम के रुप में राज्य में राष्ट्रवादी शक्तियों के सशक्तीकरण के लिये क़दम उठाये जाते । यदि सरकार इसी प्रकार सेना का मनोबल गिराने के काम में लगी रही और उसकी घेराबन्दी को ही अपनी प्रथमिकता मानती रही तो राज्य में पहल एक बार फिर पत्थर फेंकने की योजना बनाने वालों के हाथ आ सकती है और उसकी दोषी केन्द्र सरकार ही मानी जायेगी । लेकिन लगता है मनमोहन सिंह नवाज़ शरीफ़ के देहाती औरत के ख़िताब से ही स्वयं को सम्मानित महसूस करते हैं और उसी के अनुरुप आचरण भी कर रहे हैं ।

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