अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का पर्व है गुडफ्राइडे

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आर.एल.फ्रांसिस

मानव का मानव द्वारा शोषण, निर्धनों का धनियों द्वारा दमन, शासकों का न्याय माँगने वालों को बन्दीगृह में डालना, मनुष्‍य के अधिकारों की अहवेलना, धर्म के पालन हेतु लोगों को उत्पीड़त करना, मानव इतिहास का दुखद पक्ष रहा है। इसके विरुद्ध बहुत से व्यक्तियों एवं धर्मपरिवर्तकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर एक ऐसा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक वातावरण पैदा करने की चेष्‍टा की है जिसमें मनुष्‍य स्वतन्त्र हवा में सांस ले सके। मनुष्‍य को सभ्य एवं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने में धर्म की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दुनिया के प्रत्येक धर्म में क्रांति का धर्मविज्ञान मौजूद है इसलिए क्रांति धर्मविज्ञान और स्वतंत्र धर्मविज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू है।

बइबिलशिक्षा क्रांति धर्मविज्ञान की पुष्टि करती है। बाइबिल में हम पढ़ते है कि मूसा ईश्‍वर की आज्ञा पाकर मिस्र देश से इस्राएली प्रजा को मिस्रियों की गुलामी से निकाल लाये, मिस्र में इस्राएली लोग मिस्रियों की दासता की चक्की में पीसे जा रहे थे। इतिहास में सम्भवत: यह पहला स्वतन्त्रता आन्दोलन था, इस सन्दर्भ में दाऊद नबी भी लिखता है कि ‘ईष्वर दोहाई देने वाले दरिद्र का, और दु:खी और असहाय मनुष्‍य का उद्वार करेंगे। उपरोक्त दोनों प्रसंगों से यह निष्‍कर्ष निकाला जा सकता है कि परमेश्‍वर दासता में जकड़े हुए लोगों के कराहने को केवल सुनता ही नहीं वरन् उसका निवारण भी करता है और वह दमनकर्ता को दण्ड भी देता है।

असहाय और शोषित जनता के जीवन में क्रांति लाकर दमन, दासता, निर्धनता, शोषण समाप्त करना ईश्‍वरीय कार्य में हाथ बँटाना है। हम प्रभु यीशु मसीह को देखें- नासरत के आराधनालय में वह अपना पहला प्रवचन देते हुए कहते हैं – ”प्रभु का आत्मा मुझ पर है उसने मुझ को (यीशु मसीह) इस सेवा के लिए अभिशिक्त किया है, कि मैं गरीबों को शुभ संदेश सनाऊँ। प्रभु ने मुझे इस कार्य के लिए भेजा है कि मैं बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृष्टि पाने का संदेश दू: मैं (यीशु मसीह) दलितों को स्वतन्त्रता प्रदान करुँ।” (लूका 4:18-19) ‘बीसवीं शताब्दी के प्रमुख मसीही धर्मविज्ञानी’ पुस्तक के लेखक ‘डा. बैन्जामिन खान’ लिखते है कि दरअसल यीशु मसीह के कार्य अनिवार्य रुप से दलितों को स्वतन्त्रता प्रदान करने के ही कार्य थे। वह सदैव ही पापियों, दलितों, निर्बलों और निर्धनों के प्रति सहानुभूति रखते थे। उन्होंने नेक सामरी के कार्य की प्रशंसा की और फरीसियों (पुरोहित वर्ग) के अहम् की निंदा भी की।

भारत में करोड़ों वंचितों ने अन्याय, शोषण, निर्धनता और सामाजिक विंसगतियों से विद्रोह करते हुए चर्च नेतृत्व की शरण ली थी। लेकिन यहां उन्हें निराशा ही हाथ लगी हैं, भारत का चर्च नेतृत्व प्रभु यीशु मसीह के उल्टी राह पर चल रहा है। वह यहां के वंचितों की अशिक्षा, अन्याय, शोषण, निर्धनता और सामाजिक विसंगतियों का लाभ उठाते हुए अपना साम्राज्यवाद बढ़ाने में लगा हुआ है। ईसा मसीह के नाम पर व्यापार कर रहा चर्च नेतृत्व अपने ही घर में वंचित वर्गों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर रहा है। अपने व्यव्साय को बनाये रखने के लिये उसने प्रभु यीशु मसीही के क्रांतिकारी बलिदान पर धर्मिक कर्म-कांडों का ऐसा मुलमा चढ़ा दिया है कि भारत में ईसाइयत असफल सिद्ध होती दिखाई दे रही है। धर्मांतरित ईसाइयों के अखिल भारतीय संगठन ”पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट” का आरोप है कि चर्च द्वारा संचालित संस्थानों का लाभ दलितों या दलित ईसाइयों को छोड़कर पूंजीपतियों को पहुंचाया जा रहा है। आज चालीस हजार से ज्यादा मँहगें कान्वेंट स्कूल, कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेजों का चर्च द्वारा जाल फैलाया जा चुका है, तथाकथित समाज सेवा के नाम पर विदेशों से हजारों करोड़ रुपये इक्कठा किये जा रहे है। चर्च के पास भारत सरकार के बाद दूसरे नम्बर पर भूमि का मलिकाना हक है वो भी पॉश शहरी इलाकों में।

चर्च नेतृत्व सामाजिक हाशिए पर धकेल दिये गये अपने वंचित वर्गों से आये अनुयायियों का विकास करने से बचने के लिये सरकार पर दबाब बना रहा है कि वह इन करोड़ों वंचितों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करके इनके विकास की जिम्मेदारी निभाये। चर्च ईसाइयत/मसीही षिक्षा को धर्म क्रांति विज्ञान में डालने में पूरी तरह असफल रहा है। प्रभु यीशु मसीह ने इस बात की घोषणा की कि ईश्‍वर का राज्य निर्धनों के लिये है और धनी का इस राज्य में प्रवेश अत्यन्त कठिन है। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि ईश्‍वर के राज्य के प्रवेश के लिये निर्धन होना आवश्‍यक है केवल यीशु मसीह इतना कहना चाहते थे कि ‘धनी ईश्‍वर पर विश्‍वास न रखता हुआ अपनी पूंजी पर विश्‍वास रखता है। जबकि निर्धन प्रत्येक कठनाई और समस्या को पार करने के लिये ईश्‍वर का मुख निहारता है। ईसाई धर्मविज्ञानी श्री पी.बी.लोमियों का मत हैं कि भारतीय चर्च नेतृत्व ने दलितों के धर्म को कुलीनों के धर्म में परिवर्तत कर दिया है। बाइबिल इस बात को सिद्ध करती है कि प्रभु यीशु मसीह सदैव ही दलितों के पक्ष में थे। अन्याय के विरुद्व अवाज उठाने के कारण उन्हें देशद्रोही के रुप में क्रॉस पर मृत्य दण्ड भी दिया गया। यीशु मसीह हमें यह शिक्षा भी देते है कि ”ऐसे तन्त्र के, जो समान्य-हित्ता की रक्षा नहीं करता, बन्धन को तोड़ देना और उसके स्थान पर नये तन्त्र की स्थापना करना, जो सामान्य हित्ता की रक्षा करता है, उचित है। ईश्‍वरीय कार्य है।” क्या भारत में मौजूदा चर्च तन्त्र में बदलाव करना ईश्‍वरीय कार्य नहीं हैं ?

3 COMMENTS

  1. सही प्राथना के लिए चर्च की क्या जरुरत लेकिन हमें यह जानना चाहइए की हम प्राथना किससे
    कर rahe है क्योकि. Bhagwan का दुसमन ही इस संसार को चला रहा है Jo बहुत be रहेम
    है आज उसने संसार में. बहुटी से झूठे धरम्ग्रंथ लिखवाया है लोगो को लगता है bhagwan ने लिखवाया है
    उसमे इल्खे नाम को log भगवान मन लेते है
    आपको क्या लगता है संसार बनाने वाले की Pooja करना jaruri है की janvar की jaise शेर चूहा
    हाथी गाय बैल आदि बहुत से aise धर्म में है. मैंने देखा है
    अगर सुच जानना है तो वेद्पुरण कुरान और बाइबल तीनो पढो क्यों मैंने Padua और Jana और तुम भी जानो
    क्यों की धन्य है o जो भागvan के खोजने वाले है

  2. फ्रांसिस भाई ,
    मै आपके विचारों से सहमत हूँ और इस लेख के लिए आपको धन्यबाद देती हूँ |
    रेखा बहन

  3. एक यथार्थ परक लेख. विदेशियों द्वारा भारत के निर्धन ईसाईयों के दुरूपयोग के बारे में निर्भीक होकर कहने की समझ और साहस बहुत कम लोगों में है. फ्रांसिस इस इमानदार व साहसपूर्ण प्रयास हेतु बधाई के पात्र हैं.

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