डॉ॰अंबेडकर की मान्यताओं के विपरीत अम्बेडकरवादी समर्थक

ambedkarडा. राधेश्याम द्विवेदी
बाबासाहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर एक विश्व स्तर के विधिवेत्ता थे। वे एक दलित राजनीतिक नेता और एक समाजपुनरुत्थानवादी होने के साथ साथ, भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार भी थे। एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें सारा जीवन नारकीय कष्टों में बिताना पड़ा। उन्होंने अपना सारा जीवन हिंदू धर्म की चतुवर्ण प्रणाली और भारतीय समाज में सर्वव्यापित जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया। उन्होंने इस व्यवस्था को बदलने के लिए सारा जीवन संघर्ष किया। इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म को ग्रहण करके इसके समतावादी विचारों से समाज में समानता स्थापित कराई। उन्हें बौद्ध आंदोलन को प्रारंभ करने का श्रेय भी जाता है। उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। उन्होंने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही विधि, अर्थशास्त्र व राजनीति विज्ञान में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से कई डॉक्टरेट डिग्रियां भी अर्जित कीं। कुछ साल तक उन्होंने वकालत का अभ्यास किया। इसके बाद उन्होंने कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन किया, जिनके द्वारा उन्होंने भारतीय अस्पृश्यों के राजनैतिक अधिकारों और सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की। डॉ॰ आंबेडकर को भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने बोधिसत्व की उपाधि प्रदान की है, हालांकि उन्होने खुद को कभी भी बोधिसत्व नहीं कहा
राजनैतिक जीवन:- 13 अक्टूबर 1935 को, अम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। उनकी रूढ़िवादी हिंदुओं की आलोचना का उत्तर बडी़ संख्या मे हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा की गयी उनकी आलोचना से मिला। 13 अक्टूबर को नासिक के निकट येओला मे एक सम्मेलन में बोलते हुए अम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की अपनी इच्छा प्रकट की। उन्होने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़ कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया।1936 में अम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 15 सीटें जीती। उन्होंने अपनी पुस्तक जाति के विनाश मे अम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अस्पृश्य समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी़ निंदा की। अम्बेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद के लिए श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे।
पुस्तकें और पर्चे :- 1941 और 1945 के बीच में उन्होंने बड़ी संख्या में विवादास्पद पुस्तकें और पर्चे प्रकाशित किये जिनमे ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ भी शामिल है, जिसमें उन्होने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। ‘वॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स’ (काँग्रेस और गान्धी ने अछूतों के लिये क्या किया) के साथ, अम्बेडकर ने गांधी और कांग्रेस दोनो पर अपने हमलों को तीखा कर दिया। उन्होने अपनी पुस्तक ‘हू वर द शुद्राज़?’( शुद्र कौन थे?) के द्वारा हिंदू जाति व्यवस्था के पदानुक्रम में सबसे नीची जाति यानी शुद्रों के अस्तित्व मे आने की व्याख्या की। अम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक पार्टी को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन मे बदलते देखा। 1948 में ‘हू वर द शुद्राज़’? की उत्तरकथा ‘द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी’ (अस्पृश्य: अस्पृश्यता के मूल पर एक शोध) मे अम्बेडकर ने हिंदू धर्म को लताड़ा।
पहले कानून मंत्री :- अपने विवादास्पद विचारों और गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार पहले के कानून मंत्री के रूप में आमंत्रित किया गया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को, अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना कि लिए बनी के संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। संघ रीति मे मतपत्र द्वारा मतदान, बहस के नियम, पूर्ववर्तिता और कार्यसूची के प्रयोग, समितियाँ और काम करने के लिए प्रस्ताव लाना शामिल है। संघ रीतियाँ स्वयं प्राचीन गणराज्यों जैसे शाक्य और लिच्छवि की शासन प्रणाली के निदर्श (मॉडल) पर आधारित थीं। अम्बेडकर ने हालांकि उनके संविधान को आकार देने के लिए पश्चिमी मॉडल इस्तेमाल किया है पर उसकी भावना भारतीय है।
अम्बेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान पाठ मे संवैधानिक गारंटी के साथ व्यक्तिगत नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की जिनमें, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया। अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए section 370 व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों मे आरक्षण प्रणाली शुरू के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया, भारत के विधि निर्माताओं ने इस सकारात्मक कार्यवाही के द्वारा दलित वर्गों के लिए सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन और उन्हे हर क्षेत्र मे अवसर प्रदान कराने की चेष्टा की जबकि मूल कल्पना मे पहले इस कदम को अस्थायी रूप से और आवश्यकता के आधार पर शामिल करने की बात कही गयी थी। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया।
सामाजिक और राजनैतिक सुधारक:- अम्बेडकर की सामाजिक और राजनैतिक सुधारक की विरासत का आधुनिक भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा है। स्वतंत्रता के बाद के भारत मे उनकी सामाजिक और राजनीतिक सोच को सारे राजनीतिक हलके का सम्मान हासिल हुआ। उनकी इस पहल ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे आज के भारत की सोच को प्रभावित किया। उनकी यह् सोच आज की सामाजिक, आर्थिक नीतियों, शिक्षा, कानून और सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से प्रदर्शित होती है। एक विद्वान के रूप में उनकी ख्याति उनकी नियुक्ति स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में कराने मे सहायक सिद्ध हुयी। उन्हें व्यक्ति की स्वतंत्रता में अटूट विश्वास था और उन्होने समान रूप से रूढ़िवादी और जातिवादी हिंदू समाज और इस्लाम की संकीर्ण और कट्टर नीतियों की आलोचना की है। उसकी हिंदू और इस्लाम की निंदा ने उसको विवादास्पद और अलोकप्रिय बनाया है, हालांकि उनके बौद्ध धर्म मे परिवर्तित होने के बाद भारत में बौद्ध दर्शन में लोगों की रुचि बढ़ी है।
दलित आंदोलन को बढ़ावा :- अम्बेडकर के राजनीतिक दर्शन के कारण बड़ी संख्या में दलित राजनीतिक दल, प्रकाशन और कार्यकर्ता संघ अस्तित्व मे आये है जो पूरे भारत में सक्रिय रहते हैं, विशेष रूप से महाराष्ट्र में। उनके दलित बौद्ध आंदोलन को बढ़ावा देने से बौद्ध दर्शन भारत के कई भागों में पुनर्जागरित हुआ है। दलित कार्यकर्ता समय समय पर सामूहिक धर्म परिवर्तन के समारोह आयोजित उसी तरह करते रहते हैं जिस तरह अम्बेडकर ने 1956 मे नागपुर मे आयोजित किया था।
आरक्षण अप्रासांगिक:- आधुनिक भारत में कुछ लोग, अम्बेडकर के द्वारा शुरू किए गए आरक्षण को अप्रासांगिक और प्रतिभा विरोधी मानते हैं। पिछले वर्षों में लगातार बौद्ध समूहों और रूढ़िवादी हिंदुओं के बीच हिंसक संघर्ष हुये है। 1994 में मुंबई में जब किसी ने अम्बेडकर की प्रतिमा के गले में जूते की माला लटका कर उनका अपमान किया था तो चारों ओर एक सांप्रदायिक हिंसा फैल गयी थी और हड़ताल के कारण शहर एक सप्ताह से अधिक तक बुरी तरह प्रभावित हुआ था। जब अगले वर्ष इसी तरह की गड़बड़ी हुई तो एक अम्बेडकर प्रतिमा को तोड़ा गया। तमिलनाडु में ऊंची जाति के समूह भी बौद्धों के खिलाफ हिंसा में लगे हुए हैं। इसके अलावा, कुछ परिवर्तित बौद्धों ने हिंदुओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया (2006, महाराष्ट्र में दलितों द्वारा विरोध) और हिंदू मंदिरों मे गन्दगी फैला दी और देवताओं के स्थान पर अम्बेडकर के चित्र लगा दिये।
आरक्षण गले की फांस:आरक्षण हमारे देश के लिए गले की फांस बन चुका है, जिसे देखों आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आता है। लोग जाति धर्म और मजहब के नाम आरक्षण कीमांग करते है? जबकि इस देश में सभी को जीने का सामान्य अधिकार है फिर क्यों हमखुद ही अपने आपको और अपनी समाज को नीचा दिखाकर औरों की अपेक्षा कम आंकेजाने की मांग करते है। सही मायने में सरकारआरक्षण की जंग की जिम्मेदार है।आरक्षण देश की बर्बादी और मौत का जिम्मेदार है। क्योंकि आरक्षण मांगने वाले या आरक्षितलोग कहीं ना कही सामान्य वर्ग से कमजोर होते है और ऐसे ही कमजोर लोगोंके हाथों में हम अपने देशकी कमान थमा देते है। जो उसको थामने लायक थे ही नहीं।बस उन्हें तो यह मौका आरक्षण के आधार पर मिल गया।
आरक्षण से नुकसान:-आज हमारे देश में कई इंजीनियर और डॉक्टर्स आरक्षित जातिसे है। जिनकी नियुक्ति को आरक्षण का आधार बनाया गया। एक सामान्य वर्ग,सामान्य जाति के छात्र और एक आरक्षित जाति के छात्र के बीच हमेषा ही सामान्यजाति के छात्र का शोषण हुआ, चाहे स्कूल में होने वाला दाखिला हो , फीस की बात होया अन्य प्रमाण पत्रों की। इन सभी आरक्षित जति वाले छात्र को सामान्यजाति वाले छात्र से आगे रखा जाता है। स्कूल फीस में कटौती मिलती है और साथही साथ छात्रवृति भी दी जाती है। इतना ही नहींपरीक्षा मेंकम अंक आने पर भी सामान्य जाति वाले छात्र के अपेक्षा उसे प्राथमिकता पर लिया जाता है। जबसामान्य जाति वाला छात्र स्कूल की पूरी फीस भी अदा करता है औरमन लगाकर पढ़ने के बाद परीक्षामें अच्छे अंकों से पास भी होता है।अगर हम इसी कहानी के दूसरे पड़ाव की बात करें यानी नौकरी की तो अच्छे अब्बलनंबरों से पास हाने के बाबजूद सवर्ण जाति की बजाय उस व्यक्ति को वह नौकरी सिर्फइसलिए मिल जाती है क्योंकि वह आरक्षित जाति से है। जबकि वह उस नौकरी की पात्रता नहीं रखता था, क्योंकि उसने तो यह पढ़ाई सरकार के पैसों की है, जबकि सवर्णजाति के छात्र ने यह तक पहुंचने में अपने मांबाप के खून पसीने की कमाई को दांव परलगा दिया। विकास तो हुआ पर देश का नहीं बल्कि देशद्रोहियों का जिनको हमारे वतन मेंरहने की जगह मिली, खाने को रोटी मिली, तन ढ़कने को कपड़े मिले। उन्होंने ही इस सरजमी को गिरवी रख दिया, हमारे अपनों को एकएक निवालों को तरसा दिया, हमारेघरों की इज्जत को वेपर्दा कर उन्हें बदनाम और देश को बर्बाद कर दिया, बिल्कुल यहीसब तब हुआ था जबहम अंग्रेजों के गुलाम थे और वह सब अब भी हो रहा है। जब हम अपनों के गुलाम है। ना हम तब आजाद थे और ना ही हम अब आजाद है। फर्क बस इतना है कि तब हमें गैरों ने लूटा था आज हमें कोई हमारा अपना ही लूट रहा है। डॉ. अम्बेडकर बनाम अम्बेडकरवादी:-एक नया ड्रामा डॉ अम्बेडकर के नाम पर प्रचलित हुआ है। इसका उद्देश्य केवल डॉ. अम्बेडकर के नाम का प्रयोग कर अपरिपक्व लोगों को भड़काता है। इनकी मान्यताएं डॉ. अम्बेडकर की मान्यताओं के सर्वथा विपरीत है।
1. मत डॉ अम्बेडकर- आर्य लोग बाहर से नहीं आये थे। Aryan invasion theory पश्चिमी लेखकों की एक कल्पना मात्र है।
मत अम्बेडकरवादी- दलित लोग भारत के मूलनिवासी हैं। उन्हें ब्राह्मण आर्यों ने हरा कर इस देश पर कब्ज़ा कर लिया। सभी ब्राह्मण आर्य हैं, सभी दलित अनार्य हैं।
2. मत डॉ अम्बेडकर – इस्लाम समभाव एवं भ्रातृभाव का सन्देश देने में व्यवहारिक रूप से सक्षम नहीं है। इसलिए 1947 में पाकिस्तान बनने पर सभी दलित भारत आ जाये। इतिहास इस बात का गवाह है।
मत अम्बेडकरवादी – इस्लाम एकता और भाईचारे का सन्देश देता हैं। हमें इस्लाम स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं हैं।
3. मत डॉ अम्बेडकर – ईसाई समाज धन, शिक्षा, नौकरी, चिकित्सा सुविधा आदि के बल पर दरिद्र, अशक्त, पीड़ित हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन करता हैं, यह गलत हैं।
मत अम्बेडकरवादी- धन लो और ईसाई बनो। बाप बड़ा न भइया, सबसे बड़ा रुपया। ईसाईयों की इस कुटिल नीति का कभी विरोध नहीं करना।
4. मत डॉ अम्बेडकर – राष्ट्रवाद सबसे ऊपर है और रहेगा। राष्ट्र से ऊपर कुछ नहीं हैं।
मत अम्बेडकरवादी- हम भारत की बर्बादी का नारा लगाने वालों के साथ है। स्वहित पहले राष्ट्रवाद बाद में हैं।
5. मत डॉ अम्बेडकर- संविधान का सम्मान करना और उसका पालन करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य हैं।
मत अम्बेडकरवादी- हम संविधान विरोधी इस्लामिक फतवों का समर्थन करते हैं। हम संविधान के आधार पर फांसी चढ़ाये गए अफ़जल गुरु और याकूब मेनन की फांसी का विरोध करते हैं। जहाँ जैसे काम निकले वैसा करो।
6. मत डॉ अम्बेडकर – देश तोड़ने वाली विदेशी ताकतों के हाथ की कठपुतली बनना गलत है। अनेक प्रलोभन मिलने के बाद भी मुझे अस्वीकार है।
मत अम्बेडकरवादी- दुकानदारी पहले देश बाद में। NGO का धंधा तो चलता ही विदेशी पैसे के बल पर हैं। विदेश से पैसे लो देश को बर्बाद करो।
7. मत डॉ अम्बेडकर- देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों और भारत के वीर सैनिकों का सम्मान हो।
मत अम्बेडकरवादी- भारतीय सेना पर हमला करने वाले, पाक समर्थक कश्मीर के आतंकवादियों के लिए ज़िंदाबाद। असली सिपाही वही है। भारतीय सेना ने कश्मीर पर कब्ज़ा किया हुआ हैं।
8 . मत डॉ अम्बेडकर – वन्दे मातरम, भारत मत की जय आदि नारा लगाने का मैं समर्थन करता हूँ।
मत अम्बेडकरवादी- जय अम्मी, जय हिन्द का नारा लगाएंगे मगर भारत माता की जय और वनडे मातरम कहने में दिक्कत हैं। क्यूंकि हम तो सहूलियत पर विश्वास करते है।
9. मत डॉ अम्बेडकर – देश की उन्नति करने वालों के साथ मिलकर काम करना गलत नहीं हैं।
मत अम्बेडकरवादी- हम केवल नास्तिकों, मुसलमानों और ईसाईयों का समर्थन करेंगे। क्यूंकि बाकि सभी ब्राह्मणवादी और मनुवादी हैं।
10. मत डॉ अम्बेडकर- जीवन में आगे बढ़ने के लिए पुरुषार्थ करो, सकारात्मक कार्य करो। सदाचारी, संयमी, शुद्ध आचरण वाला, प्रगतिशील बनो।
मत अम्बेडकरवादी- हम केवल विरोध करना जानते हैं। चाहे अच्छी बात हो चाहे बुरी बात हो। चिल्ला चिल्ला कर अपना हक लेंगे। मगर काम कुछ नहीं करेंगे।
11. मत डॉ अम्बेडकर- मांस खाना गलत है।
मत अम्बेडकरवादी- बीफ़ पार्टी करना हमारा मौलिक हक हैं। मांस खाने में कोई हिंसा नहीं हैं। गोमांस खाएंगे अम्बेडकरवादी कहलाएंगे। गोमांस खाने से हम मुसलमानों के मित्र बन जाते हैं।
12 मत डॉ अम्बेडकर- बुद्ध के अहिंसा के सन्देश पर चलो।
मत अम्बेडकरवादी- अहिंसा का तगमा गले में लटका कर हम सदा वैचारिक हिंसा और प्रदुषण करते हैं क्यूंकि हम अम्बेडकरवादी मत वाले हैं।
यहाँ कुछ उदहारण दिए गए हैं। मित्रों, इस मत को चलाने वालों का डॉ. अम्बेडकर की मान्यताओं से कुछ भी लेना देना नहीं हैं। ये लोग केवल डॉ. अम्बेडकर के नाम का प्रयोग कर अपनी रजनीतिक रोटियां सेकते हैं। डॉ. अम्बेडकर के नाम पर देश विरोधी, समाज विरोधी कार्यों को करते हैं। इनके दुष्प्रचार के कारण जाने अनजाने में अनेक दलित युवा भ्रमित होकर अपना और देश का अहित करने में लग गए हैं।गाली गलोच, असभ्य भाषा आदि का प्रयोग करने के स्थान पर अम्बेडकरवादी इस पोस्ट को पढ़ कर आत्मचिंतन करें कि वह डॉ. अम्बेडकर के समर्थक हैं अथवा अम्बेडकरवाद मत के समर्थक हैं।

3 COMMENTS

  1. लोगों को तर्क करना नहीं आता है केवल सीधी भाषा में एक दूसरे को नीचा दिखाना आता है आप तर्क की तह तक नहीं जा सकते हैं आप लिख तो सकते हो परंतु निष्पक्ष नहीं लिख सकते हो
    यह आपकी सबसे बड़ी कमजोरी है जिस दिन आप लिखना सीख जाओगे उस दिन देश को किसी आरक्षित वर्ग से कोई खतरा नहीं होगा आप के ऊपर तो यह जिम्मेदारी होना चाहिए कि हम इस देश के हर एक नागरिक को समानता का अधिकार दिलाएं तथा उन नागरिकों के लिए अधिक से अधिक प्रयास करें जो सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं क्या आपने ऐसा कभी लेख लिखा उन लोगों के लिए जिनसे उनके जीवन दर्शन का उत्थान हुआ हो

  2. तुम लोग झुठे हो क्योकि तुम लोग हमें निचा अस्तर पे हमेसा देखना चाहते हो

    लेकिन samvidhan अगर तुम लोग बाबा सहेब् इतना पड़ा लिखा होता तो आज हरी सामज का कोई अस्तिव् ही नहीं रहता
    मनुस्म्रिति को samvidhan मान लिया जाय तो सब ठीक है

  3. जाति प्रथा के लिए व्रह्मिनों को जिमेदार नहीं ठहराया जा सकता, व्रह्मिन तो केवल धर्म के नियमों के व्याख्याता थे I व्रह्मिनो को जिम्मेदार ठहरा कर समाज अपना पल्ला नहीं झाड़ सकता दलितों में भी बिभिन्न जातियां हैं क्या वे अपने में भेद भाव मिटा दिए हैं ? क्या सभी कथित जातियां आपस में वैवाहिक सम्बन्ध 21 वी शदी में भी बना रही हैं ? नहीं ,97 % समाज किसी भी बिसंगति के लिए किसी एक 3% वाले समाज को कैसे दोषी ठहरा सकता है यदि अम्बेडकर के सिद्धांत को अनुकरण नहीं कर सकते तो उनके नाम पर प्रगतिशील समाज में विष घोलने का अधिकार किसी को नहीं है Iसमाज में जातिवाद का जहर घोलना भी एक आतंकवाद ही है I
    अब भारत वर्ष अश्पृश्यता से ऊपर उठता जा रहा है भेद भाव धीरे धीरे समाप्त होते जारहे है कुत्सित राज नैतिक पाखंडी इसे कभी भी मरने नहीं देंगे क्यों की उनके दुकान विभेद निति से ही चलती है I

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