सरकार आपकी शक्कर खाई है

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सरकार ने अपने चमचे की तरफ बंदूक तान दी और शूट करने का मन बना लिया|चमचा बेचारा घबरा गया,सरकार के हाथ पैर जोड़ने लगा,गिड़गिड़ा कर् कहने लगा”सरकार मैँने आपकी शक्कर खाई है, मुझ पर रहम करो|”शक्कर का नाम सुनकर सरकार की जीभ में पानी आ गया|नमक हलाल यदि नमक हरामी करे तो उसे तुरंत मार डालने का प्रावधान सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में रखा था किंतु शक्कर हरामों के कोई प्रावधान नहीं था|फिर यह शब्द सरकार के लिये भी बिल्कुल नयाथा|जयचंद ,मीरजाफर ,दूल्हाजू ये सब नमक हराम थे और इन्हीं से प्रेरणा पाकर सरकार ने नमक हरामों के लिये विशेष नियमावली बनाई थी|उन्हें गोली अथवा बम से उड़ा देने का कानून सरकार सभा में पारित करा लिया था|किंतु शक्कर हरामों के लिये इंडियन कांस्टीट्यूशन में कहीं भी उल्लेख नहीं था|शक्कर हरामों को कहीं परिभाषित भी नहीं किया गया था|आज़ादी के पहिले किसी सोचा भी नहीं था की शक्कर हरामी भी पैदा हो सकते हैं|

चमचे की बात सुनकर सरकार ने बंदूक उठाकर एक तरफ रख दी|उनकी आंखें अंगारे सी दहक रहीं थीं,बोला “बेटा यह शक्कर हलाली क्या बला है?अभी तक तो दुनिया मॆं नमक हराम ही पैदा हो रहे थे, ये शक्कर हराम कब से पैदा होने लगे|किस संविधान में यह प्रस्ताव पारित हुआ है|”

सरकार को बंदूक रखते देख चमचे की जान में जान आई”सरकार दुहाई हो,आप हमारे माई बाप हैं,भगवान हैं,आपकी दया पर मैं जिंदा हूँ,आप सेवक हैं जनता के और मैं आप का|सरकार आपको याद है न आप जनता की सेवा में पुड़ियां बनाकर भेजते हैं और इस काम का मैं चीफ हूँ|सरकार मैंने इन पुड़ियों में से शक्कर निकाल कर् नमक भर दिया है| चूंकि दोनों चीजें सफेद होतीं हैं,प्रजाजनों को आसानी से बे बकूफ बनाया जा सकता है|फिर नमक पूर्णत: आयोडाइज़्ड है और शुद्ध है जो स्वास्थ्य के लिये अति उत्तम है|”

सरकार यह सुनकर बड़े जोर से चिल्लाये तो ये शक्कर तूने बचा रखी है?कहाँ है शक्कर?”

सरकार बादलों के समान गरजे और चमचे के शरीर में बिजली चमक गई|

‘सरकार यह शक्कर मैंनें आपके सर्वांगीण‌ विकास और आपकी आने वाळी कई पीढियों के लिये दुख निवारक सुख देयक बेंक में जमा कर दी है|फिर आपके अश्वमेघयग्यों में कितनी शक्कर झोंकनी पड़ती है,आपको नहीं मालूम|जितनी शक्कर झोंको मदमस्त ‘मत’ देवता उतने ही प्रसन्न होते हैं|राक्षस रूपी विरोधियों का दमन करने में शक्कर की आहुतियों का विशेष रोल रहता है|पंच कुंडीय ,पंच वर्षीय अश्वमेध यग्य में घोड़ा आपको मिल जाता है यह मेरी शक्कर हलाली का परिणाम है|”

सरकार ने दोनों हाथ बढ़ाकर चमचे को गले लगा लिया|वे पश्चाताप की अग्नि में तंदूर की भाँति जलने लगे|अपने सर्व प्रिय हितेषी शुभ चिंतक और मार्ग दर्शी को मारने चले थे|सरकार को यह भी मालूम हो गया है कि प्रजा को शक्कर के बदले नमक कि ही पुड़ियां मिल रहीं हैं|तभी तो साले विरोधी, अवरोधी चिल्लाते हैं कि शक्कर के बदले नमक की पुड़ियां मिलती हैं|

चमचा प्रसन्नता की सारी सीढ़ियां लांघकर मन की गांठें खोलने लगा|”जब लोग कहते हैं कि शक्कर की पुड़ियों में नमक है तो हम और हमारे भक्त प्रचारित करते हैं कि शक्कर खानेवालों की जीभ में कोई भयंकर बीमारी है,तभी तो शुद्ध शक्कर को नमक बता रहे हैं और ईश्वरीय विधान को झुटला रहे हैं|

देश के कुछ अनाम आदमियों ने मामला कचहरी में भेज दिया है|कमवक्त मजिस्ट्रॆट को भी जीभ की बीमारी है और उसने भी पुड़ियों में नमक पाया जाना सिद्ध किया है|किंतु सरकार के रुतबे और दबदबे के कारण कोई सजा नहीं दे पाया है|वैसे हज़ूर मैंनें मामला सुप्रीम कोर्ट में भेजा है एवं नमूनों की पुड़ियों में असली शक्कर भरकर कोर्ट के मालखाने में भिजवा दी है|जैसे ही जज और वकील पुड़िया खॊलकर सफेद चूर्ण चखेंगे,मामला अपने ही पक्ष में जायेगा|क्योंकि इन पुड़ियों में असली शक्कर है|”

सरकार खुशी से पागल होते होते बच गये|कुछ चमके कुछ गरजे फिर चमचे को पकड़कर गोल गोल घूम गये|चमचा भी खुशियों की बाढ़ में, भय को छोड़कर सागर रूपी सरकार के चरणों में समा गया|फिर कहने लगा”सरकार मैंनें लोगों को अपने पक्ष में लाने के लिये सदा शुद्ध शक्कर का ही प्रयोग किया है,किंतु अपना उल्लू सीधा होने के बाद मैंने उनको नमक तक को नहीं पूछा|सरकार आपने ही हमें सिखाया है कि इस अकारथ संसार में अपना उल्लू सीधा करना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है,बाकी सब बेकार है|

चमचे की अक्ल कितनी आधुनिक है ,सरकार को आज मालूम पड़ गया था|आखिर आधुनिक क्यों न हो, चमचा रोज चार कदम सूरज की ओर जा रहा है|चमचे ने अपने हाथ से अपनी पीठ ठोकी और गुनगुनाने लगा| होती जय जय कार रहेगी , अब मालिक के चमचों की,

जगह जगह सरकार बनेगी अब मालिक के चमचों की|

चाँद सितारे सूरज जब तक टिके हुये हैं अंबर में.

रोज रोज दरकार रहेगी ,अब मालिक के चमचों की|

कल तक तो भटके थे दर दर ,सड़क छाप मजनूं बनकर,

अपनी खुद की कार रहेगी, अब मालिक के चमचों की|

अब तो बिन माँगे ही सब कुछ, घर में आता रहता है,

कोठी भी तैयार रहेगी, अब मालिक के चमचों की|

लंदन पेरिस न्यूयार्क ,जाकर इलाज करवायेगा,

जब पत्नी बीमार पड़ेगी, अब मालिक के चमचों की|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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