वह क्रांति का शंखनाद था
अन्याय के अंत का उनका आह्वान था
शोषणमुक्त समाज के निर्माण का सन्देश था
बिना किसी प्रतिदान या इनाम की उम्मीद के
मातृभूमि की मुक्ति का यह महासंकल्प था
हँसते हंसते मृत्यु को जो गले लगाने चल पड़े
उन शहीदों को नमन, शत शत नमन, शत शत नमन.
भारत की स्वतंत्रता युगपरिवर्तन का संकेत था
विश्व भर में दासता के अंत का प्रारम्भ था
मानवता के उद्धार का, दानवता के अंत का,
देश में, विदेश में जाति रंग भेद के चक्रव्यूह को भेदने
युद्धमुक्त, रोगमुक्त, सर्वजन शांतिमय
विश्व के विकास का भारतवंशियों को सन्देश था.
हमने स्वतंत्र देश छोड़ कर जब
विदेश में आ बसने की जो ठान ली
आज उसका भी ऐतिहासिक महत्व है
चुनौतियों से जूझने की शक्ति बनाए हुए
संघर्षों का सामना, निर्भीकता से करते रहे
भारत की गौरव कथा हर श्वास में कहते गए
हमने देशों की सीमाएं जो लाँघ लीं
नस्लवाद, रंगभेद नफरत की दीवारें ढहाते रहे
सहयोग, सह-अस्तित्व की ज्योति जला
अपनी संस्कृति का परिचय कराते रहे
उम्र बिता डाली है पर दर्द यह है
कि अभी मातृभूमि का कर्ज़ बाकी है
करे या न करे कोई स्मरण अपना, चिंता नहीं
तेरा गौरव अमर रहे माँ यही कहते चले आए हैं
जब तक कलम और ज़ुबां चलीं सहज
मैं भी शब्दों की प्रतिमा घढ़ता आया हूँ
अभिव्यक्ति की भाषा जब प्रखर होती है
बुद्धि बल से लिखी कथा सदा अमर होती है
जब अंतिम बेला होगी उसका भी स्वागत होगा
किसी दिन मेरा भी शव धू धू जलता होगा
विजय संकल्प का प्रतीक यह ध्वज अब तुम थामो
साधना पथ पर चल कर ही लक्ष्य तक जाना होगा
फिर से साथ निभाने को मैं धरती पर लौटूंगा
मानवता को फिर से उसका गौरव लौटाना होगा.
पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा ही होता आया है
रचता आया है मानव यूं ही अपना इतिहास सदा
खत्म न हो यह क्रम अनुक्रम, तुम बस यह जानो
अतीत के खंडहर भविष्य की नींव बना करते हैं
उनके ही सीने पर विकास के महल बना करते है
भारत यह गौरव प्राप्त करे अब यह निश्चित करना है.
गंगा के तट पर से निकला था
तमसा के तट पर आ पहुंचा
फिर से गंगा तट प्रदेशों में
जा बसने की तड़प बाकी है
जाओ पूजा की थाली लाओ
माँ के चरणों की अंतिमवंदना कर लूँ
अपनी कोख से ही पुनर्जन्म का वर देना माँ
मातृभूमि का कर्ज़ बाकी है.
भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव के बलिदान दिवस पर
23 मार्च 2015