सफाई कर्मचारी की असुरक्षित जीवन-शैली

0
179

कोई अन्य नौकरी नही देगा हम शापित हैं।

दिल्ली शहर की घनी आबादी के बीच ओखला के एक कमरे के घर में 25 साल का रंजीत अपने मां-बाप पत्नी और एक बेटी के साथ रहता है। उसकी शादी को दो साल हुए हैं। वह उन लोगों में से एक है, जो जीवित रहने के लिए सेप्टिक टैंकों में जाने को मजबूर है। ये काम उसने अपने पिता से सीखा है, जो लंबे समय से बिमार हैं। वह रोज़ सबुह फोन आने की प्रतिक्षा करता है ताकि काम के लिए घर से निकल सकें। उसका किसी भी निजी संगठन से संबद्ध नहीं है, लेकिन उसके द्वारा किए गए काम के कारण उसे काम मिलता रहता है। रंजीत के अनुसार “सरकारी सीवर लाइन को साफ़ करने में ज्यादा पैसे नही मिलते हैं।दो या तीन लोग एक टैंक को साफ करते हैं”।

सफाई करने वाला एक अन्य कर्मचारी पांचवीं कक्षा तक पढ़ा है,कहता है कि “कुछ नियमित परिवार हैं जो मुझे बुलाते हैं”। एक टैंक को साफ करने में लगभग छह से सात घंटे लगते हैं, खासकर अगर यह लम्बे समय से साफ नहीं किया गया है। मजदूरी कहीं भी 1000-1,200 के बीच होती है जिसे तीनों के बीच विभाजित किया जाता है। हम टैंक की गहराई को मापने के लिए एक बांस के डंडे का उपयोग करते हैं कि क्या अंदर कोई सांप बिच्छु है।”
रंजीत कहता है“मेरे पिता गंध को सहन करने के लिए शराब का इस्तेमाल करते थे उन्होंने यह भी कहा कि शराब आपको टैंक से आने वाली खतरनाक गैसों से बचाता है। इसलिए ये जरुरी है”।
चूंकि इस प्रकार का काम हर रोज नहीं आता है, इसलिए रंजीत भी अन्य कार्य करता है जैसे कार धोना और सफाई करना। एक महीने में, वह लगभग 5000-6000 कमाता है, जो कि उसके परिवार की देखभाल के लिए पर्याप्त नहीं है। वह कहता है, “मेरी एक साल की एक बेटी है। मेरी मां भी दूसरे घरों में काम करती है ताकि घर का खर्च पूरा हो सके।”
रंजीत ने अन्य काम करने की कोशिश की, लेकिन खानदानी रुप से इस काम से जुड़े होने के कारण उसे कोई और काम नही मिलता। उपर से पिता की बिमारी के बाद बिना समय बर्बाद किए उसे इस काम को करना पड़ा।
वह कहता है, “मेरे पास इतना समय नही था कि मैं बेहतर काम के लिए इंतजार करता”।
आंखो में आँसू लिए रंजीत की पत्नी कहती है” जब मेरी शादी हुई तो शुरु शुरु में बहुत समस्या होती थी। ऐसा लगता था कि पूरे घर से गंदी गंध आ रही है। मैं हर रोज़ घर की पूरी सफाई करती हूं। पति काम से लौटते ही नहाते हैं फिर भी सोंचती हुं कि काश इस काम से छुटकारा मिल जाए। अभी तो बेटी बहुत छोटी है जब वो बड़ी हो जाएगी तो पिता का काम देखकर न जाने क्या सोंचे इस बात की चिंता सताती है। उपर से इस काम के कारण स्वास्थ्य पर जो बुरा असर पड़ रहा है वो अलग। जान का खतरा भी तो है और कमाई कुछ खास नही।

सिर्फ पत्नी ही नही बल्कि रंजीत खुद भी अपने स्वास्थय को लेकर चिंता मे है क्योंकि इस काम के कारण टीबी या पीलिया जैसी बिमारी होना बहुत आसान है। रंजीत के पिता ने 30 साल तक इस काम को किया जिसके कारण उनके सिर पर हमेशा फोड़े फुनसे निकल आते थे।
जब पूछा गया कि क्या वह सफाई कर्मचारी और ड्राईलॉट्रीन्स के निर्माण (निषेध अधिनियम, 1993) के बारे में जानता हैं,जिसे 2003 में सेप्टिक टैंक और सीवर लाइनों में काम करने वाले लोगों को कवर करने के लिए बढ़ा दिया गया था,तो वह अपना सिर हिलाता है “कोई बात नहीं। हमें कोई अन्य नौकरी नही देगा हम शापित हैं। ”
हम यहां हमारे घरों में एक शौचालय नहीं ले सकते, लेकिन दूसरों की गंदगी को साफ करना किस्मत में है।”

सफाई कर्मचारी आंदोलन के प्रमुख बेज़वाडा विल्सन कहते हैं “दुर्भाग्य से, सरकारी अधिकारियों के बीच भी सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा और रोजगार के बारे में कोई जागरूकता नहीं है। तो फिर ये कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि निजी रुप से इस काम को करने वाले को इस बारे में पता होगा?” दरअसल इस प्रक्रिया का कोई मशीनीकरण नहीं है और न ही दूसरे देशों की तरह सफाई कर्मचारियों के लिए अन्य सुविधाएं हैं।”

एनडीटीवी के अनुसार “दिल्ली में पिछले दो महिने के भीतर सीवर साफ करते समय 7 लोगो की मौत हुई। आंकड़ो की बात करे तो 1993 से लेकर अबतक इसके कारण 1471 लोगों की मौत हो चुकी है। देश मे औसतन हर साल 100 लोगो की मौत सीवर साफ करते हुई जाती है। इसी 6 अगस्त को दक्षिण दिल्ली के लाजपत नगर में तीन लोगों की मौत हो गई। इस काम में मशीनों का इस्तेमाल तो होता है मगर जब राजधानी दिल्ली में ही अगर हाथ से सीवर का गंदा मैला उठाया जा रहा है तो बाकी देश का हाल आप समझ सकते हैं”।

 

आपको बता दें कि 2008 में आई मद्रास हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था कि सीवरों की सफाई हाथ से नही होगी। लेकिन फिर भी बात चाहे दिल्ली की करे या कहीं और की हर जगह सीवर सफाई कर्मचारी की स्थिति एक जैसी ही है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here