सेना के पास हथियारों की कमी

-प्रमोद भार्गव-

cag--संदर्भः- कैग एवं रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति की रिपोर्ट-

भारतीय रक्षा तंत्र से जुड़ी एक साथ दो हताशा पैदा करने वाली खबरें आई हैं। पहली खबर में नियंत्रक एवं महालेखा परिक्षक ;कैगद्ध ने सेना के तीनों अंगों का आर्थिक एवं भौतिक सत्यापन करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सेना के पास युद्ध के हालात में बमुश्किल 20 दिन तक लड़ने लायक हथियार व सुरक्षा उपकरण हैं। दूसरी रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति की है। इसमें खुलासा किया गया है कि सेना,आवंटित धन पूरा खर्च नहीं कर पा रही है, इस कारण सैन्य-तंत्र का आधुनिकीकरण भी नहीं हो पा रहा है। हालांकि केंद्र में राजग सरकार के वजूद में आने के बाद से लगातार प्रतिरक्षा क्षेत्र की ताकत बढ़ाने के प्रयास हो रहे है,बावजूद संवैधानिक संस्थाओं के ये तथ्यात्मक खुलासे,जहां सीमा पर तैनात सैनिकों का मनोबल गिराते हैं, वहीं आम जनमानस की भी चिंता बढ़ाते हैं। लिहाजा सेना के तीनों अंगों की कमियों को यथाशीध्र दूर करने की जरूरत है।

कैग ने रक्षा विभाग का आर्थिक व भौतिक मूल्यांकन करते हुए कहा है कि भारतीय थल सेना के पास महज 15-20 दिन का गोला-बारूद व अन्य साजो-सामान है। 30 वर्श से निर्माणाधीन लड़ाकू विमान ‘तेजस‘ भी अभी जंग में लड़ने की भूमिका निभाने लायक नहीं हो पाया है। गोला-बारूद की कमी, करीब 12 लाख थल-सैनिकों की आपातकालीन तैयारियों पर बुरा असर डाल रही है। तेजस के सफल उड़ान भरने में आ रही समस्याओं के कारण वायुसेना में आकाशीय उड़ान भर कर दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले सैनिकों की कमी बनी हुई है। सीएजी ने रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा है कि नियमों के मुताबिक थल सेना के पास युद्ध की स्थिति में 40 दिन के लिए सैन्य-सामग्री सुरक्षित होनी चाहिए। लेकिन मौजूदा हालात में सेनाएं केवल 20 दिन तक लड़ सकती हैं। युद्ध सामग्री की कमी के कारण, इसका असर सेना की सैन्य ऑपरेशन की तैयारियों और प्रशिक्षण पर भी पड़ रहा है। क्योंकि सेना के पास फिलहाल 170 प्रकार के मारक हथियारों में से 125 किस्म के ही हथियार व उपकरण उपलब्ध हैं। जो 20 दिनों की लड़ाई के लिए भी पर्याप्त नहीं हैं। इनमें से भी 50 फीसदी रक्षा सामग्री तो केवल 10 या उससे कम दिनों में लिए ही है।

कम बजट के चलते 2013 में थल सेना के लिए आर्टिलरी बंदूक,कार्बाइन,मिसाइल और एंटी टैंक सिस्टम जैसे हथियार खरदे ही नहीं गए। धन की कमी के चलते की कोस्ट गार्ड के लिए पेट्रोल वेसेल्स और सर्विलांस हेलीकॉप्टर भी खरीदे जाना संभव नहीं हो पाया। इस बाबत वायुसेना की शिकायत है कि उसे लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए जितनी धनराशि की जरूरत है,उसकी 25 प्रतिशत राशि ही मार्च 2015 के बजट में आवंटित की गई है। यह राशि 3264 करोड़ रूपए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस से जो 36 लड़ाकू राफेल विमानों का सौदा किया है, उसकी पहली किश्त ही चुकाने में खत्म हो जाएगी। यह स्थिति तब हैं, जब इस साल प्रतिरक्षा क्षेत्र में 7.9 फीसदी अतिरिक्त बजट का प्रावधान किया गया है।

इस स्थिति के खुलासे से साफ होता है कि रक्षा बजट और बढ़ाने की जरूरत है। हमारे सेना प्रमुख अर्से से मांग कर रहे हैं कि रक्षा खर्च में बजट का प्रावधान जीडीपी दर के हिसाब से किया जाए। क्योंकि हमारे पड़ोसी मुल्क और अन्य देश भी इसी तर्ज पर रक्षा-बजट प्रस्तावित करते हैं। चीन में जीडीपी का 2 फीसदी,पाकिस्तान में 3,अमेरिका में 3.8 और रूस में जीडीपी का 4.1 प्रतिशत धन रक्षा के क्षेत्र में खर्च किया जाता है। जबकि भारत में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा रक्षा-बजट बढ़ा दिए जाने के बावजूद जीडीपी की तुलना में आवंटित बजट 1.7 फीसदी है। गौरतलब है कि यह धनराशि 1960 के बाद से रक्षा क्षेत्र को दी जा रही धनराशियों में सबसे कम है। यही वजह है कि थल सेना 20 परियोजनाओं के लिए अनुबंध करना चाहती है,लेकिन धन की कमी के कारण नहीं कर पा रही है। सेना की बड़ी परियोजनाओं को अमल में लाने में इसलिए भी देरी होती है,क्योंकि परियोजनाओं का वित्त मंत्रालय से अनुमोदन कराना होता है।

हमारे यहां हथियारों की कमी कोई नहीं बात नहीं हैं। इसके पहले पूर्व थल सेनाध्यक्ष और अब केंद्र सरकार में मंत्री वीके सिंह द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को लिखी चिट्ठी से भी यह रहस्योद्घाटन हो चुका है कि सेना के पास सैन्य सामग्री की कमी रही है। यही नहीं रक्षा खरीद में घूस के लेन-देन का मामला भी सिंह ने सार्वजानिक किया था। उनका कहना था,600 टेट्रा ट्रकों की खरीद में उन्हें 14 करोड़ रुपए की रिश्वत देने की पेशकश सेना के ही एक सेवानिवृत आधिकारी ने की थी। बाद में सेना क्षेत्र में रिश्वत लेने की पुश्टि इटली की फिनेमेकेनिका कंपनी से 12 अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टरों की खरीद में भी हो चुकी है। सीबीआई इस मामले में पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एसपी त्यागी और उनके विदेश में रह रहे परिजनों के विरूद्ध एफआईआर दर्ज करके,कानूनी-प्रक्रिया आगे बढ़ा चुकी है। 3600 करोड़ की इस खरीद में 362 करोड़ रुपए बतौर रिश्वत लिए गए थे।

रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के खुलासे के कारण भी पिछले चार साल हथियारों की खरीद बाधित रही है। अलबत्ता 2007 से 2011 के बीच भारत ने 11 अरब डॉलर के हथियार खरीदे थे। जो दुनिया में हथियारों की हुई बिक्री का 10 फीसदी थे। बावजूद यह उम्मीद है कि आने वाले 10 सालों में भारत करीब 100 अरब डॉलर के लड़ाकू विमान,युद्धपोत,पनडुब्बियां और टोही हेलीकॉप्टर खरीदेगा। नरेंद्र मोदी ने सिलसिलेवार इन खरीदों को आगे भी बढ़ा दिया है। इस क्रम में 2014 में ही 21 हजार करोड़ रुपए की रक्षा सामग्री को खरीदे जाने की मंजूरी ‘रक्षा अधिग्रहण परिशद‘ की पहली ही बैठक में दे दी गई थी। इस खरीद में नौसेना के लिए 5 बेड़ा सहायक पोतें और तटरक्षक बलों के लिए 32 उन्नत किस्म के ‘धु्रव‘ हेलिकॉप्टर शामिल हैं।

रक्षा मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने रक्षा बजट में आवंटित धन खर्च नहीं हो पाने को लेकर चिंता जताई है। रक्षा विभाग वित्तिय वर्श 2013-14 में करीब 28,000 करोड़ रूपए खर्च नहीं कर पाया। इस धन राशि से सैन्य तंत्र का आधुनिकीकरण किया जाना था। किंतु संप्रग सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में इतने घपले-घोटालों में घिर गई थी कि वह प्रतिरक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में भी खरीद की कोई कारगर पहल नहीं कर पाई थी। हालांकि अब हालात बदलने की उम्मीद इसलिए भी है,क्योंकि मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में एफडीआई 26 फीसदी से बढ़कर 49 फीसदी कर दिया है। रक्षा में विदेशी निवेश की सीमा जब मनमोहन सिंह सरकार ने 26 प्रतिशत की थी,तब इस धन की मदद से ही हम ब्रह्मोस मिसाइल बनाने में कामयाब हुए थे। सेना में जरूरी संसाधनों की आपूर्ति के आलावा सैनिकों की कमी भी अनुभव की जा रही है। इसे भी अन्य खर्चों में कटौती करके जल्द पूरा करने की जरूरत है। बहरहाल कैग और संसदीय समिति की चिंताएं बेवजह नहीं हैं,लिहाजा इन चिंताओं के मद्देनजर जो कमियां सामने आई हैं,उन्हें उनके सामाधान सरकार की प्रथम प्राथमिकता में होनी चाहिए ?

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