आधुनिक जमाने की पत्रकारिता का जीवन जोखिम भरा ?

patrakaritaलक्ष्मी नारायण लहरे-

 

लोकतंत्र के चैथे स्तंभ के खिलाफ लगातार दुर्भावनापूर्ण अभियान चल रहा है ? समाज की अंतिम व्यक्ति की लड़ाई लड़़ने वाला मीडिया चैक चैराहों से लेकर दफ्तर तक तृस्कार और अपमानजनक शब्दों का घूंट पी रहा है। यह बात किसी से छिपी नहींं है। मीडिया को कभी प्रोस्टीट्यूट तो कभी बिकाऊ मीडिया, बजारू जैसे अपशब्द अपमानजनक ढंग से संझाएं दी जाती हैं। पत्रकारों की उस विशाल बिरादरी का अपमान है जो अपना काम समर्पण और कर्मठता के साथ करती है। खबर है कि 90 प्रतिशत पत्रकार अपने पेन व माईक का उपयोग अच्छे उद्देश्य के लिए करता है । समाज की अंतिम व्यक्ति की लड़ाई लड़ने वाला पत्रकार ,लेखक – साहित्यकार आज ब्यथित नजर आता है मिडिया । की स्वतंत्रता की एक ओर इस्तमाल हो रहा है वही उनकी स्वतंत्रता पर दबाव भी , हर वर्ग मीडिया पर हक जताना चाहता है और काम लेना जब पत्रकार ,लेखक – साहित्यकार सच को सामने रखता है तब वही हक जताने वाले वर्ग उसका अपमान करने से नहीं चुकते। वर्तमान दौर में पत्रकारिता पर हमला आम बात हो गई है। पिछले एक दशक से पत्रकारिता पर उंगली उठाने वालों की संख्या बढ़ी है। दिल्ली से लेकर ग्रामीण अंचल में काम करने वाले पत्रकार ,लेखक -साहित्यकार अछूते नहीं हैं ,वो लिखते भी हैं और लड़ते भी हैं । बहुलतावादी समाज और राजनिति हमेशा वर्चस्ववादी होती है और साहित्य हाशिए की समाज , हाशिए के लोगों की आवाज होता है। वही पत्रकार ,लेखक -साहित्यकार नायक होता है जो लोगों की तकलीफों ,पीड़ाओं और सरोंकारों को शब्द देता है। एक पत्रकार ,लेखक -साहित्यकार की हैसियत अपने समय के समाज की सामूहिक चेतना के तौर पर होती है और ये तभी होता है जब उसकी जड़ें अपने लोक जीवन और अपनी मिट्टी में बहुत गहरी हों ,लेकिन पत्रकारिता पर हो रहे हमलों ने अभिव्यक्ति की आजादी पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। ऐसा भी नहीं की पत्रकार बिरादरी ही अपमान की घूंट पी रहे हैं, लेखक -साहित्यकार भी अछूते नहीं हैं। बिना राग-द्ववेश से देखा जाये तो देश का चैथा स्तंभ अपनी अपमान का घूंट पी रहा है। मीडिया और साहित्य की जो उलाहना हो रही है, जो घटनाएं घटी हैं और घट रही है, उसी पर मेरा ये कॉलम है, मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि उंगली उठाने वालों की कोई विशेष समप्रदाय नहीं होती। एक तरह से उंगली उठाने वाले खबर को लेकर छुब्ध होकर गुस्सा व्यक्त करने की कोशिश करता है और कुछ हद तक कामयाब भी हो जाते हैं, पर असल में वो समाज की उस आवाज को दबाने की हिमाकत करते हैं जिससे उसके साख को बट्टा लग रहा होता है और मीडिया की कर्तव्य पर सवाल खड़े कर देते हैं। पत्रकार उत्पीड़न सहकर भी पत्रकारिता को नहीं छोड़ता और अपनी कर्म पर जोर देता है। मेरे विचार में सब वर्ग सहमत होंगे, मैं ऐसा नहीं सोचता। न ऐसा हो सकता है। कुछ लोगों के मन में ये भी विचार आयेगा कि मैं अपनी बिरादरी के बचाव के लिए इस कॉलम में जोर दे रहा हूं या पक्ष रख रहा हूं। जानकार वरिष्ठ पत्रकारों की अभिव्यक्तिों को गौर करें तो बात सामने आती है कि हाल के दिनों में मीडिया में बहुत सारे परिवर्तन भी दिखे हैं। आज जो बातें प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रानिक मीडिया में नहीं लिख पा रहे, दिखा पा रहे हैं, वह बातें सोशल मीडिया और ब्लाॅग के जरीये लोगो तक पहुंच रहा है जो समाज में एक क्रांति के रूप में सामने आयी है, पर इन पर भी दबाव दिख रहे हैं। जब समझ- बूझ की जगह सनसनी और सत्य की जगह निरर्थक किस्से ले लेते हैं तो पेशवर विश्वसनीयता पर हमला होने की बड़ी संभावना रहती है ? मीडिया के एक तबके पर बार-बार अरोप लगता है कि कुछ भी दिखा दिया जाता है, कुछ भी लिख दिया जाता है ? यही वो ऐसा समय होता है और मीडिया पर उंगली उठती है। समाज के एक तबके को इससे कोई लेना-देना होता और मीडिया पर दबाव बना ली जाती है और दबे कुचले समाज का मुद्दा दफन हो जाती है। कभी-कभी तो पत्रकारों पर सीधा हमला कर दिया जाता है। इस तरह की घटनाओं से मीडिया के एक तबका पर गहरा असर दिखता है। आखिर निशाने पर क्यों है मीडिया और साहित्य विगत वर्षों की इतिहास पर गौर करें तो मीडिया और साहित्यकारों के साथ ऐसी कई घटनाएं घटीं जो अभिव्यक्ति को दबाने की एक कोशिश है। सरकार को किसी रूप में चुनौती या किसी वर्ग विशेष पर चुनौती देने वालों को निशाना बनाया जा रहा है, जबकि उनके सुर में सुर मिलाने वालों को सम्मान ? ताजा उदाहरण पर गौर करें तो जनरल वीके सिंह का पत्रकारों को प्रोस्टीट्यूट कहना पत्रकारों की उस विशाल विरादरी का अपमान है, वहीं कुछ वर्षों में लेखक -साहित्यकारों पर भी सीधा -सीधा हमला हुआ, जो वरिष्ठ और नामचीन हैं, जिनके साथ गलत हुआ साहित्यकार यूआर अनंतमूर्ति ,सुरेष भाट बकराबैल ,पेरूमल मुरूगन ,81 वर्षीय कन्नड़ लेखक एम चिदानंद मूर्ति ,के. सेन्थिल मल्लार आदि केरल की अरूंधती राॅय तो हमेशा पूरे देश में ऐसे हमलों के केंद्र में रहती हैं ।

बहुत ऐसे कई मामले हुए जहां अपमान के घूंट पीकर भी अपनी लेखनी चला रहे हैं । दिल्ली से लेकर ग्रामीण अंचलों में भी काम करने वाले साथी अपमान के शिकार होते हैं, पर उनकी आवाज कोई नहीं उठा पाता ?

छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ वर्षों में सीधा -सीधा पत्रकारों पर जानलेवा हमला के साथ हत्याएं भी कर दी गईं। 2010 में बिलासपुर शहर में पत्रकार सुशील पाठक एवं रायपुर गरियाबंद के छुरा में उमेश राजपूत की हत्या, वहीं 2013 में बीजापुर में पत्रकार सांई रेड्डी की माओवादियों द्वारा हत्या की गई थी। विगत माह जिला कांकेर के इलेक्ट्रानिक मीडिया के ईटीवी न्यूज पत्रकार राकेश शुक्ला से दुर्व्यवहार का मामला विधान सभा में गुंजी नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने मामले को विधानसभा में चर्चा का विषय में रखकर पत्रकारिता पर हमला की निंदा की। यही नहीं, जाॅंजगीर जिला में इलेक्ट्रानिक मीडिया के इंडिया न्यूज के पत्रकार रोहित शुक्ला व कैमरा मेन अंकुर तीवारी को नशे में धुत आरक्षक थाना परिसर में डंडे से मारता है और अपशब्दों का प्रयोग करता है । जब जिसको मौका मिलता है अपमान करता है प्रताड़ित करता है। आखिर मीडिया पर इतनी खुन्नस क्यों? समाज को आईना दिखाने वालों की बेइज्जती क्यों ?

आधुनिक जमाने की पत्रकारिता का जीवन इतना जोखिम भरा है? आज समाज के उस अंतिम छोर के व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए जो दिन -रात पेन और कलम लेकर न्याय मांगने वाला समाज से मगरूर है । पत्रकार लेखक साहित्यकार को जो सम्मान समाज से मिलना चाहिए नहीं मिलता। ये अलग बात है, पर उनकी अभिव्यक्ति पर भी दबाव बनाकर प्रताड़ित किया जा रहा है जो पत्रकारिता के लिए शुभ संकेत नहीं लगता । ग्रामीण क्षेत्र में काम कर रहे पत्रकारों की स्थिति सबसे खराब है जिस पर कभी चर्चा नहीं होती ।

1 COMMENT

  1. पत्रकार, लक्ष्मी नारायण लहरे जी ने एक ऐसे विषय पर लेखनी चलाई है, जिस पर साधारण जानकार पाठक भी भ्रांत मान्यता ही रखता है।
    एक हिन्दी का बहुत ख्याति प्राप्तसमाचार पत्र धीरे धीरे अपना नाम बिगाड रहा है।आप पारदर्शक रीति से बिना विशेष परिश्रम, उसके शीर्षक और वृत्त के आशय में अंतर देख सकते हैं। वैसे इस वृत्तपत्र के समाचार और उनके शीर्षक में ही, आपको विरोधाभास दिखाई देगा।

    तो ऐसा क्यों होता है? मुझे यह भ्रष्टाचार के कारण लगता है।
    क्या सभी ऐसे भ्रष्ट होते हैं?
    अवश्य नहीं। पर अल्पसंख्या में ही, जो पत्रकार भ्रष्ट है, उनके कारण सारे पत्रकारों की छवि दूषित होती है।
    लेखक ने एक अनछुए विषय की ओर ध्यान खींचा है।
    जिस विषय पर कोई लिखता नहीं, उसी पर विचारोत्तेजक लेख लिखकर लेखक ने बडी सेवा ही की है।
    लक्ष्मी नारायण जी को धन्यवाद।

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