धर्मपरिवर्तन को लेकर मुसलमान दो पैमाने नहीं अपना सकते!

इक़बाल हिंदुस्तानी

शरई अदालत गैर कानूनी इनकमिंग तो जारी रखे आउटगोइंग बंद ?

0साम्प्रदायिकता और जातिवाद के ज़हरीले माहौल में आप चाहे कश्मीर के कट्टरपंथी नेता सैयद अली शाह गिलानी को उनकी कश्मीर नीति को लेकर जितना चाहें उतना कोसें लेकिन शरई अदालत के फैसले के खिलाफ ईसाई मिशनरियों के पक्ष में खुलकर बयान देकर उन्होंने राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर जो हिम्मत और दानिशमंदी का सबूत दिया है उसका स्वागत किया जाना चाहिये। गिलानी का दो टूक कहना है कि शरई अदालत का ईसाई मिशनरियों को जम्मू कश्मीर की सीमा से बाहर करने का फर्मान गलत है। उन्होंने उमर अब्दुल्लाह सरकार की इस नाकामी को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि वादी में हर अल्पसंख्यक की हिफाज़त करना बतौर मुस्लिम हमारा पहला फ़र्ज़ है। उनका यह भी कहना है कि कुछ लोगों को कश्मीर से बाहर का रास्ता दिखाकर धर्म परिवर्तन की समस्या का हल नहीं किया जा सकता।

साथ ही ईसाई मिशनरियों के शैक्षिक और मानवीय सेवा के काम की भी गिलानी ने कश्मीरियों को याद दिलाई है। हुर्रियत नेता गिलानी ने यहां तक कहा कि धर्मांतरण पर हायतौबा मचाने वाले आम आदमी पर अत्याचार होने पर चुप्पी साधे रहते हैं। गिलानी ने यहां तक कहा कि बजाये ईसाई मिशनरियों पर सारे मामले का दोषारोपण करने के कश्मीरी हर मुहल्ले में ज़रूरतमंदों की मदद और नौजवानों को इस्लामिक तालीम से रूबरू करायें तो बेहतर रहेगा। गौरतलब है कि कश्मीर की एक शरई अदालत ने 11 जनवरी को एक फैसले में चार ईसाई मिशनरी पादरी सीएम खन्ना, चंद्रकांता खन्ना, गयूर मसीह और जीएम ब्रोस्ट को वादी में मुस्लिम युवक युवतियों को बरगलाकर ईसाई बनाने के आरोप में दोषी मानते हुए हमेशा के लिये राज्य की सीमा से बाहर रहने का फर्मान सुनाया है जिसपर राज्य की उमर सरकार ने चुप्पी साध ली है।

यह मसला आज नहीं तो कल तय करना ही होगा कि जब हमारे संविधान में धर्म परिवर्तन का अधिकार दिया गया और कोई मुस्लिम बन जाये तो उसका जमकर स्वागत किया जाता है और जो मुस्लिम किसी गैर मुस्लिम से प्रेम सम्बंधों के बाद किसी लड़की से शादी करने के लिये उसको इस्लाम अपनाने के लिये तैयार करता है उसको भी सवाब मिलने की बात कही जाती है तो फिर मुस्लिम से किसी और धर्म में जाने के रास्ते कैसे बंद किये जा सकते हैं? या तो इनकमिंग भी बंद होती तो यह माना जा सकता था कि हमारे यहां धर्मपरिवर्तन को लेकर एक ही पैमाना अपनाया जाता है। हालांकि व्यक्तिगत रूप से मैं इस बात के पक्ष में नहीं हूं कि धर्मपरिवर्तन पर रोक लगाई जाये। हां लालच, शादी या डर दिखाकर किसी को मज़हब बदलने के लिये मजबूर किया जाना गलत माना जाना चाहिये।

यह बात मेरी समझ से बाहर है कि कोई मुस्लिम बन जाये तो ठीक और मुस्लिम से ईसाई या अन्य कुछ बन जाये तो हम कानून की सीमा से बाहर जाकर उसका अंधविरोध करेंगे। अगर गौर से देखा जाये तो गिलानी साहब ने इसका भी हल पेश किया है कि कैसे लड़कों को मुस्लिम धर्म से बाहर जाने से रोका जाये। उनका कहना है कि आप मुस्लिमों को इस्लाम की इतनी अच्छाइयां और खूबिया सिखाइये जिससे कि उसको अपना मज़हब छोड़कर जाने की ज़रूरत ही महसूस ना हो। देखने वाली खास बात यह है कि अगर वे कारण बने रहेंगे जिससे लोग धर्म बदलते हैं तो कानून ही नहीं ज़ोर ज़बरदस्ती के बल पर आप लोगों को ज्यादा दिन तक अपने साथ रहने को मजबूर नहीं कर पायेंगे।

इतिहास इस बात का गवाह है कि कैसे दलितों का एक समय में धर्मपरिवर्तन किसी कीमत पर रोकने से नहीं रुक पाया था। इसकी वजह यह थी कि उनके साथ जो अन्याय और पक्षपात हज़ारों साल से हो रहा था अगर वह जारी रहता और उनको आरक्षण आदि का सहारा नहीं दिया जाता तो वे किसी कीमत पर भी हिंदू धर्म में नहीं बने रहते लेकिन धीरे धीरे ही सही कानूनन छुआछूत पर रोक लगाई गयी और समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार बढ़ने से लोगों को यह अहसास हुआ कि असमानता जारी रही तो दलित हिंदू धर्म छोड़कर एक ना एक दिन जायेंगे ही फिर वे चाहे मुस्लिम बने या बौध्द इससे कोई खास अंतर नहीं पड़ेगा।

दलित समाज के बड़े नेता बाबा साहब अंबेडकर तो स्वयं ही बौध्द नहीं बने बल्कि उन्होंने दलितों को बड़े पैमाने पर धर्मपरिवर्तन के लिये अभियान भी यही मानकर चलाया कि हिंदू धर्म का हिस्सा बने रहते उनके साथ कभी न्याय नहीं होगा। वे कहते थे कि मैं हिंदू धर्म या दलित घर में पैदा हुआ यह मेरे हाथ में नहीं था लेकिन मैं क्या बनकर मरना चाहता हूं यह पूरी तरह से मेरा अपना निर्णय होगा, जबकि उनका यह अनुमान मेरे विचार में ठीक साबित नहीं हुआ क्योंकि आज गैर दलित इस बात को काफी हद तक स्वीकार कर चुके हैं कि आदमी आदमी के बीच किसी तरह का भेदभाव सारे समाज और सारे देश की उन्नति के लिये बाधक है।

धीरे धीरे दलितों और अन्य समाज के बीच की खाई कम हो रही है। कानून के बल पर भी इस अन्याय को काबू किया जा रहा है। कहने का मतलब यह है कि जब तक वे हालात रहेंगे जिनके कारण कोई आदमी धर्म परिवर्तन के बारे में सोचने को मजबूर होता है तब तक समाज, धर्म के नियम या कानून बनाकर भी किसी को धर्म परिवर्तन से रोकना एक हद तक ही संभव है।

सच यह तो यह है कि धर्म एक व्यक्तिगत मामला है इसको किसी का निजी मसला मानकर उस आदमी पर छोड़ देना चाहिये कि वह खुद कहां जाना चाहता है। किसी को डरा धमकाकर या लालच देकर धर्म विशेष में बने रहने या किसी और धर्म में दीक्षित होने के लिये मजबूर करना एक तरह से ब्लैमेलिंग कहा जा सकता है। मिसाल के तौर पर पूरा अफगानिस्तान और कश्मीर कभी हिंदू हुआ करता था फिर ये एक साथ बौध्द बन गये और उसके बाद थोक में मुसलमान हो गये। आज वह दौर नहीं है। एक समय था जब अरब के व्यापारियों के सम्पर्क में आकर सबसे ज्यादा लोग बंगाल और केरल में मुसलमान बन रहे थे।

उसके बाद ब्रिटिश काल में ईसाई भी बने लेकिन उनकी तादाद और स्पीड उतनी ज्यादा कभी नहीं रही जितनी पहले के दौर में रही थी। यह भी माना जाता है कि एक दौर में तलवार के बल पर यानी ज़बरदस्ती भी लोगों को धर्म विशेष में लाया गया लेकिन इसका कोई ठोस सबूत या आधार मेरी जानकारी में नहीं है। हो सकता है दलितों की वर्ण व्यवस्था की तरह वह समय की ज़रूरत रही हो उस दौर में ऐसा ही संभव हो। वैसे मुझे इतिहास और धर्मों की विस्तृत जानकारी नहीं है लेकिन मैं इतना तो दावे के साथ कह सकता हूं कि चाहे कोई भी धर्मावलंबी हो पहले भले ही जोरज़बरदस्ती, सूफी परंपरा का प्रभाव और लालच का सहारा भी इस काम के लिये लिया गया हो लेकिन आज के दौर में किसी को धर्मपरिवर्तन के लिये ना तो मजबूर किया जा सकता है और ना ही लालच के बल पर अधिक दिन तक वहां रोका या नये धर्म में बने रहने को तैयार किया जा सकता है।

अब समय आ गया है कि हम सब सम्प्रदाय, वर्ग और समुदाय अपना अपना धर्म प्रचार बेशक करें लेकिन घटिया तौर तरीकों से किसी का धर्म परिवर्तन करने का प्रयास ना करें और कोई अगर वास्तव में संविधान में दिये अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सोच समझकर अपने विवके से बिना किसी लालच और दबाव के मज़हब बदलता है तो धर्म के ठेकेदार अपने गिरेबान में झांके कि ये नौबत क्यों आ रही है ना कि शरई अदालत के ज़रिये किसी को राज्य से निकाला दिया जाये।

न इधर उधर की बात कर यह बता क़ाफिला क्यों लुटा,

मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

1 COMMENT

  1. गिलानी साहब ने जो विचार व्यक्त किये हैं उसकी सराहना की जानी चाहिए ,पर एक प्रश्न मन में उठता है.
    अगर गिलानी साहब ने यही रवैया कश्मीरी हिन्दुओं के लिए अपनाया होता तो उनको घाटी छोड़ कर भागने की नौबत नहीं आती.उन्होंने उस समय ऐसा क्यों नहीं किया?

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