एक अनाम के नाम

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aajnaviरससिक्त छंद कुछ कविता के,

कर रहा समर्पण प्रिय तुमको |

चाहो,  उर मे रख, दुलरा कर,

संरक्षित  कर  लेना  इनको |

 

यूं तो तुम स्वंय अकल्पित हो,

ऐसा  प्रिय रूप,  तुम्हारा है |

लगता है स्वंय , विधाता  ने,

रच-रच कर तुम्हें  संवारा है |

 

है अंग सुगढ, हर  सांचे सा,

हर मानक पर है, खरा-खरा |

मधु-सिक्त, साथ में वाणी को,

रख दिया कंठ में, प्रियम्वरा |

 

हर रोम अलंकृत – प्राकृतिक,

क्या बाह्य,अलंकृत कर पाए |

देखे  जो  एक नजर तुमको,

हतप्रभ-जड़वत सा हो जाए |

 

हिम-उज्जवल रूप तुम्हारा है,

छूने से,   मैला  हो जाए |

आना धरती पर सार्थक  हो,

सानिध्य तुम्हारा मिल पाए |

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