अगले ईमानदार प्रधानमंत्री प्रणव मुखर्जी?

 डॉ. मनोज शर्मा 

अगले सप्ताह प्रणव दादा को देश के नए ईमानदार प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ दिलवानी पड़ेगी. इस समय यदि राहुल बाबा को प्रधानमंत्री बनाया गया तो राहुल बाबा चल नहीं पाएँगे. देश में अभी हालात ठीक नहीं हैं, क्योंकि बाबा रामदेव भी और अन्ना भी देश में ठौर-ठौर घूम रहे हैं. इस 2G के मामले को गत तीन वर्षों से अच्छे-भले ठीक-ठाक मैनेज करते आ रहे थे, परन्तु एकाएक सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘लक्ष्मण रेखा पार’ करने की वजह से अब आगे बात बननी बहुत मुश्किल हो गयी है. देश की शीर्ष अदालत में इतने कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार न्यायाधीश आकर जम जाएँगे, यह तो कभी सोचा भी न था. आज के जमाने में भी कई लोग पता नहीं कैसी पुरानी सोच वाले होते हैं, जो बड़े निष्ठावान बनते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ ‘कमाकर’ छोड़ जाने की जरा भी परवाह नहीं करते. इस देश में नैतिकता की जड़े अभी तक इतनी गहरी हैं कि कब कौन चरित्रवान कहाँ से प्रकट हो जाए और अचानक मुसीबत बनकर सामने डट जाए, पता ही नहीं चलता.

जब पहले ही सारी बात तय हो गयी थी कि दूरसंचार से जुड़े सभी मामलों को ‘डी एम के’ ही ‘संभालेगा’, तो भला GoM बनाने जैसी उलटी-सीधी स्टेटमेंट देने की क्या पड़ी थी. वैसे, सारी फसाद की जड़ तो खुद ‘डी एम के’ का अपना अंदरूनी झगड़ा है. यदि मारन के खिलाफ लाबिंग न हुई होती और नीरा राडिया व बुरका दत्त का फोन टेप न हुआ होता, तो ये इतना सारा फसाद भी खड़ा न होता. चलो मान लिया कि बेचारी नीरा तो अपने ग्राहकों के लिए सबको ‘टाटा’ करती घूम रही थी, ऐसे लोगों के बिना दाल भी नहीं गला करती, पर इस बुरका दत्त को क्या जरूरत थी इतनी लम्बी-लम्बी सीक्रेट बातें फोन पर करने की? असल में हैं तो मनमौन जी भी कमजोर और दब्बू ही हैं. उन्हें भला लोगों को ‘सूचना का अधिकार’ दिलाने की इतनी जल्दी क्या पड़ी थी, देश में जहाँ अनेक बड़े-बड़े मुद्दे सदियों से लटकते आ रहे हैं, जो हमारे लिए बहुत खतरनाक हो सकते हैं, वहीँ यह भी लटकता रहता तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ता?

भईया, जब समय बुरा आता है, तो जो अपने होते हैं, वे भी चेहरे बदलकर बेगाने बन जाते हैं. कल तक जिस मारन को GoM से भी ज्यादा ताकत सौंप रखी थी और जिसके काले कारनामों की पूरी तरह अनदेखी कर उसे खुलकर निधि बटोरने दिया, वही मारन आज दया छोड़कर चौराहे पर जा पहुँचा है और बेचारे मजबूर प्रधानमंत्री जी पर गुर्रा रहा है. आज इस कलिकाल में कैसे-कैसे कृतघ्न लोग पैदा हो गए हैं, जो कृतज्ञता की जीवंत मूर्ति को भी आँखें दिखाने से नहीं घबराते. एक ओर महान अर्थशास्त्री एवं ईमानदार कृतज्ञ प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह जी हैं, जिन्होंने सोनिया मैडम द्वारा मजबूरी में उन्हें प्रधानमन्त्री बना देने पर भी मैडम के उपकार को कभी नहीं भुलाया. यह तो चलो हम सब कांग्रेसियों ने मिल-जुलकर सही समय पर ठीक बात सोच ली थी और मीडिया में सोनिया मैडम द्वारा स्वयं ही प्रधानमंत्री का पद त्याग देने की अफवाह उड़ा दी थी, जिससे देश में अपनी कांग्रेस की छवि और अधिक निखर गयी, वर्ना कौन कांग्रेसी भाई नहीं जानता कि तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने मैडम के विदेशी नागरिक होने के कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने से साफ़ मन कर दिया था. खैर, चाहे जैसे भी हो, भले ही मजबूरी में सही, सोनिया मैडम ने यदि मनमोहन जी को बिना चुनाव लड़े ही सात साल तक प्रधानमन्त्री बनाकर रखा है, तो मनमौन साहब ने भी मैडम के प्रति अपनी पूरी वफादारी निभाई है. बल्कि उस बेचारे ने तो कितनी ही बार भारतमाता की भी सीधी-सीधी उपेक्षा करके मैडम की कई गलत बातें तुरंत पूरी की हैं. वैसे, बात तो ठीक भी है, सोनिया मैडम ने मनमौन जी को जितना कुछ अब तक दिया है, उसके मुकाबले भारतमाता भला क्या दे देती?

अब चिदम्बरम को हटाने से ही काम नहीं चलने वाला. महँगाई व कई और मामलों के कारण मनमौन जी की छवि भी एकदम बिगड़ चुकी समझो. अब तो प्रणव दादा को लाने से ही बात बनेगी. प्रधानमंत्री बनते ही प्रणव दादा से एक-दो बड़ी-बड़ी घोषणाएँ करवा देंगे, जिससे लोगों का पारा ढल जाएगा और फिलहाल चिदम्बरम व मनमौन जी को जेल जाने से बचा लेंगे. मनमौन जी ने संयुक्त राष्ट्र में कह ही दिया है कि अभी विकासशील देशों में मंदी (और भारत में महँगाई) और अधिक बढ़ेगी. इससे प्रणव दा को आगे दिक्कत नहीं आएगी. यदि लोग महँगाई-महँगाई करके चीखेंगे तो प्रणव दा कह देंगे- “यह तो संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव है, इसमें मैं कर ही क्या सकता हूँ?” वैसे भी, प्रणव दा ठीक हैं, वे एकदम सख्त हैं. दादा कभी भी मनमौन जी की तरह लोगों को ज्यादा चीखने-चिल्लाने का मौका नहीं देंगे और शुरु में ही उन्हें घुड़क कर चुप करा देंगे. मनमौन जी ने संयुक्त राष्ट्र में भाषण देकर अपना इतिहास बना ही लिया है. इस समय यदि उनकी विदाई होती है, तो इसे उनका अपमान भी नहीं माना जाएगा. उत्तर प्रदेश की चिंता तो अब मिट ही चुकी है, मनमौन जी ने संयुक्त राष्ट्र में बार-बार फिलिस्तीन-फिलिस्तीन करके यूपी के अपने वाले सारे वोट तो पक्के कर ही लिए हैं. जैसे-तैसे करके यह दो-ढाई साल का समय निकालना है, सो प्रणव दा ठीक-ठाक निकाल ही लेंगे. अगले लोकसभा चुनाव में हम सब भाई राहुल बाबा के पीछे अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे. तब तक सब मोदी-वोदी निपटा लिए जाएँगे. अपने पास ‘सी बी आई’ है…और कई तरीके हैं, अभी बहुत समय है.

2 COMMENTS

  1. विद्वान लेखक महोदय ने कांग्रेस की बहुत सारी पोल पट्टी बड़े हंसते – हंसते खोल कर रख दी है।

  2. दोस्त, कोंग्रेसी और ईमानदार दोनों बाते कदापि एक साथ नहीं हो सकती है. कोंग्रेस को ईमानदार पी एम् के लिए या तो दूसरे दल से नेता आयात करना होगा, या फिर ईमानदारी की परिभाषा ही बदल देनी पड़ेगी. खैर दूसरा वाला विकल्प कोंग्रेस के लिए सुविधाजनक है. क्योंकि इसने पहले भी सेकुलरिज्म की परिशाषा बदल दी है (हिन्दूद्वेश) और इस काम में वह महारती है. साथ में NDTV चाप बिकाऊ मीडिया तो है ही.

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