नगरीय निकायों के चुनाव में भाजपा को मिली भारी सफलता से राजनैतिक हल्कौं में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी हैं कि आगामी पंचायत चुनाव भी क्या प्रत्यक्ष एवं दलगत आधार पर होंगें? उल्लेखनीय हैं कि वर्तमान में पंचायत चुनाव दलगत आधार पर नहीं होते हैं। इनमें प्राम पंचायत के सरपंच के चुनाव ही सीधे मतदाताओं द्वारा किये जाते हैं। जनपद अध्यक्ष एवं जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव सीधे मतदाताओं से ना होकर सदस्यों के द्वारा कराये जाते हैं।
जिला पंचायत एवं जनपद पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव सीधे मतदाताओं से कराने के संबंध में शिवराज सरकार में कई दिनों से मेराथन चल रही थी। विधानसभा चुनावों में भारी सफलता हासिल कर भाजपा की लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का रिकार्ड अपने नाम करने वाले शिवराज को चंद महीनों बाद हुये लोकसभा चुनाव में भारी झटका लग गया था। तभी से प्रदेश को फिर से भाजपा मय करने की कवायत चल रही थी। इस योजना के तहत प्रदेश में पंचायतों के चुनाव सीधे और दलगत आधार पर कराने का विचार किया जा रहा था। लेकिन भाजप के रणनीतिकारों ने पहले नगरीय निकायों के चुनाव में पार्टी की स्थिति का जायजा लेने का विचार बनाया तथा यह निर्णय लिया गया कि इन चुनावों के परिणामों की अनुकूलता पर ही इस योजना पर विचार किया जायेगा। बताया जाता हैं कि इस योजना के जनक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के राजनैतिक गुरू सुन्दरलाल पटवा हैं।
यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि 1990 में प्रदेश की भाजपा सरकार के जब मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा थे तो उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ मजबूत करने के लिये प्रदेश में पंचायत के चुनाव दलगत आधार पर कराने को निर्णय लिया था। उनका ऐसा मानना था कि गा्रमीण क्षेत्रों में टिकिट की मारामारी कांग्रेस में होगी क्योंकि वहां उसका जनाधार अधिक हैं। इसलिये कम से कम जिला पंचायत अध्यक्ष,जनपद पंचायत अध्यक्ष एवं सरपंच पदों के लिये पंजे से चुनाव लड़ने वालों में मारामारी होगी। ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस के असंतुष्टों के हाथ में कमल का फूल थमा कर ग्रामीण क्षेत्र में आसानी से भाजपा का जनाधार ब़ाया जा सकता हैं। जैसा पटवा ने सोचा था हुआ भी वैसा ही और टिकिट से वंचित कई कांग्रसी नेताओं ने अपने अपने पंजे में कमल को पकड़ लिया था। उस समय म.प्र. उच्च न्यायालय में भी मामला लंबित था और कभी भी चुनाव रोके जाने की संभावना थी लेकिन कोर्ट के आदेश के पहले ही मतदान से मात्र चंद दिनों पहले खुद पटवा सरकार ने ही समूचे प्रदेश में पंचायत चुनाव रोक दिये थे।
नगरीय निकायों के चुनावों में समूचे प्रदेश में मिली भारी सफलता और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के एक बार फिर स्टार प्रचारक साबित होने पर अब राजनैतिक और प्रशासनिक हल्कौं में एक बार फिर यह चर्चा जोर पकड़ने लगी हैं कि प्रदेश में पंचायत चुनाव सीधे और दलगत आधार पर होंगें। यदि ऐसा कुछ तय होता हैं तो जानकारों का यह दावा हैं कि शीघ्र ही प्रदेश मंत्री मंड़ल की बैठक में तत्संबंध में निणर्य लेकर पंचायत अधिनियम में संशोधन कर सरकार एक अध्यादेश जारी कर इस संबंध में निर्णय लेकर भाजपा विपक्षी कांग्रेस पर एक धमाका कर सकती हैं और प्रदेश कीे पंचायती राज संस्थाओं पर भी अपना परचम फहराने की कोशिश कर सकती हैं।
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