नये राजनैतिक ध्रुवीकरण की संभावनाएँ पुनर्जीवित

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श्रीराम तिवारी

अति-उन्नत वैज्ञानिक-सूचना एवं संचार क्रांति की बदौलत धरती पर यह बहुत तीव्रगामी परिवर्तनों की लालसा का दौर है. अपने बाह्यरूप -आकार में चीजें जितनी विद्रूप नजर आती हैं ; वस्तुतः वे अपने आप में अन्यान्य सुन्दर और सकारात्मक गुणों से सम्पृक्त भी हैं.वैश्विक परिदृश्य में भारत की तस्वीर यदि यूरोप, पूर्व-एशिया चीन, तथा समीचीन राष्ट्रों के सामने फीकी है तो उपद्रवग्रस्त,आतंकग्रस्त मुस्लिम राष्ट्रों और घोर दरिद्रता एवं भुखमरी से पीड़ित मध्य-अफ़्रीकी राष्ट्रों से उजली भी है. संचार माध्यमों पर शक्तिशाली वर्ग के आधिपत्य और भूमंडलीकरण की कोशिशों ने दुनिया भर के निर्धन,अकिंचन और अभावग्रस्त नर-नारियों को लगभग पंगु ही बना डाला है. शोषण से मुक्ति की कामना की जगह अवसाद,कुंठा,हिंस्र प्रतिस्पर्धा और संवेदनहीनता स्थापित होती जा रही है.

भारत के विद्वान् लेखक, इंटेलेक्चुअल, एनजीओ संचालक, अखवार नवीस और इन सबके प्रभामंडल से आक्रांत भारत का मजदूर-छोटी जोत का किसान-खुदरा व्यवसायी-खेतिहर मजदूर-दैनिक वेतनभोगी और निम्न मध्यम वर्ग का शिक्षित-अशिक्षित आवाल वृद्ध-नर-नारी वेहद उदिग्नता के दौर से गुज़र रहा है. नितांत सर्वहारा-वर्ग को जो कि वर्गीय-चेतना से कोसों दूर है,इस जड़तामूलक अधोगति से कोई सरोकार नहीं . अपनी दयनीयता,निर्धनता,आवास-हीनता,सामाजिक-आर्थिक-शारीरिक सुरक्षा-विहीनता का कारण देव {इश्वर}को मानकर चलने वालों को वर्तमान दौर के इन झंझावातों में भी आशा कि जो एक किरण नज़र आ रही है ;वो है अपने मताधिकार की ताकत. वोट की ताकत का लोकतंत्र में उतना ही महत्व है जितना कि सूरज में धूप का और चंदा में चांदनी का. वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, जातीय, क्षेत्रीय जैसे निक्रष्ट स्वार्थों से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्वार्थ भी वोट की ताकत से ही साधे जा सकते हैं. वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य को भारत का सूचना एवं संचारतंत्र कुछ इस तरह पेश कर रहा है की मानों गठबंधन के एनडीए और यूपीए दो ध्रुव ही क्षितिज पर विद्यमान हैं;तीसरा कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है.

माना कि अधिकांश क्षेत्रीय दलों में राष्ट्रीय मूल्यों और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों का अभाव है ,किन्तु उनको संगठित और संयोजित करने वाले वामपंथ तथा यत्र-तत्र बिखरे हुए पुराने लोहियावादियों-समाजवादियों के पास

किसी किस्म की आर्थिक,सामाजिक,वैदिशिक और राजनेतिक चिन्तनशीलता का अभाव नहीं है नितीश बाबु, मायावती, जयललिता, नवीन पटनायक, देवेगौडा, मुलायम,पंवार, पासवान बादल , उमर अब्दुल्ला और समूचा वाममोर्चा यदि एक हो जाएँ और भाजपा का बाहर से समर्थन मिले तो तीसरा मोर्चा सता में आ सकता है..कांग्रेस और यु पी ऐ यदि राहुल गाँधी को आगामी प्रधानमंत्री मानकर चल रहे हैं तो यह तभी संभव है जब राहुलजी उन नीतियों से नाता तोड़ें जिनके कारण आज़ादी के ६४ साल बाद भी उन्हें स्वयम गाँव के दलित गरीब कि झोपडी में एक ग्लास स्वच्छ पानी नहीं मिल सका. देश कि जनता यदि यूपीए गठबंधन को तीसरी बार बहुमत से जिताती है और यूपीए संसदीय बोर्ड अपना आगामी नेत्रत्व राहुल को सौंपता है तो इससे यह माना जाएगा कि गाँव में २६ रुपया रोज कमाने वाला और शहर में ३२ रुपया रोज कमाने वाला खुशहाल है. मानाकि राहुलजी नेकदिल इंसान हैं,हर दिल अज़ीज़ हैं,वतन परस्त हैं,भ्रष्टाचार और अन्याय के विरुद्ध हैं ,युवा हैं,सुन्दर हैं किन्तु क्या वे विश्व-बैंक ,अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और देश पर काबिज कार्पोरेट लाबी द्वारा प्रणीत प्रतिगामी आर्थिक नीतियों को पलटकर जन-कल्याणकारी,सामाजिक सरोकारों से युक्त वैकल्पिक नीतियों के बारे में रंचमात्र भी चल सकेंगे? नहीं !!

१९६९ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिराजी ने नारा दिया था- गरीवी हटाओ- आज़ाद भारत कि सत्ता के ६५ सालों में से लगभग ५५ साल केवल और केवल कांग्रेस ने ही देश पर हुकूमत की है.गरीवी ज्यों की त्यों बरकरार है,महंगाई सुरसा के मुख की तरह बिकराल है,भ्रष्टाचार अपरम्पार है, हर तरफ सरकारी अफसरों द्वारा देश कि जनता की लूट वेशुमार है. सब जानते हैं कि कौन जिम्मेदार है?

स्वर्गीय राजीव गाँधी ने प्रचंड बहुमत पाने के बाद,सत्ता में आने पर १९८५ में कहा था कि ’हम १०० पैसे दिल्ली से भेजते हैं किन्तु ८५ बीच में गायब हो जाते हैं’कांग्रेस के लिए यह सूक्त-वाक्य अपने अधिकृत लेटर पैड पर छपवा लेना चाहिए.अन्ना एंड कम्पनी,बाबा रामदेव या कोई और अधिनायकवादी व्यक्ति या समूह देश में दिग्भ्रम फ़ैलाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी बहरहाल कांग्रेसी नेत्रत्व की ही मानी जाएगी.

देश कि प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा बड़े गर्व से दावा करती है कि वह अन्य दलों से अलग है.उसका चाल,चेहरा और चरित्र बहुत उन्नत किस्म का है.केंद्र की सत्ता में आने पर उसने देश को जो घाव दिए वो तो सदियों तक याद रखे जायेंगे किन्तु जो वादे किये उनके पूरे न होने से समूचा हिन्दू समाज उससे कट चूका है.अब भाजपा में यत्र तत्र सर्वत्र विकास -पुरुष {विकास नारी नहीं!}पैदा किये जा रहे हैं.नरेंद्र मोदी को जब गडकरी ने विकास- पुरुष कहा तो आडवानी जी ने कहा शिवराज ही विकास पुरुष है,उधर रमण सिंह भी सरकारी इश्तहारों में विकास पुरुष कि छटाएं बिखेर रहे हैं.स्वयं गडकरी जी कि भी सेहत अच्छी खासी है ,उनका विकास भी वैयक्तिक रूप से श्लान्घ्नीय है,कि संघ ने फर्श से अर्श पर बिठा दिया.भाजपा में रेड्डी बंधुओं ने जितना विकास किया उसका शतांश भी कोई कांग्रेसी क्या खाक करेगा?

तत्कालीन अटल सरकार के चार मंत्रियों पर हवाला काण्ड कि तलवार लटकी थी.२००० में तत्कालीन केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त एन विट्ठल ने सीबीआई से कहा था कि वह उन चार केन्द्रीय मंत्रियों कि अंधाधुंध काली- कमाई की जांच करे, जिन पर हवाला के आरोप हैं.उसके बाद क्या हुआ ?एनडीए सरकार ने विट्ठल की नाक दबा दी, उनके अधिकार छीनकर सतर्कता-आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया.ताकि आइन्दा कोई एन बित्थल इस तरह की हिमाकत न कर सके.यह काम उस भाजपा ने किया जो कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए रथ-यात्रायें निकाल रही है.कभी अन्ना ,कभी रामदेव कभी उपवास और कभी रामधुन गाकर सत्ता-सुन्दरी का आह्वान कर रही है.ये इश्क नहीं आसान …

भाजपा आज भी क्वात्रोची-क्वात्रोची चिल्ला रही है जबकि अपने किये धरे को भूल रही है.सारा देश जानता है कि वह भाजपा का ही एक चेहरा था जो शराब के नशे में बोल रहा था,पैसा खुदा नहीं,पर खुदा कसम ,खुदा से कम भी नहीं’यह बिडम्बना ही है कि भाजपा अपनी कसौटी पर-चाल,चेहरा,चरित्र पर ढेर हो गई जिसका फायदा अनायास ही उस कांग्रेस को २००४ में मिला जो देश को दुर्गति में ले जाने के लिए जिम्मेदार है.भाजपा अब जनता कि नहीं दौलत वालों की ,राजनीति के ठेकेदारों की और बड़बोलों की अंक-शायनी बन चुकी है ,अन्ना,रामदेव या नत्थू-खेरों के चक्कर में दिग्गजों के अहंकार का अड्डा बन चुकी है.

सिर्फ उपवास ,अनशन, रथ-यात्राओं या जन्म दिन मनाने से राज्य-सत्ता की प्रप्ति,अभीष्ट का ध्येय समभाव नहीं. राज्य-क्रांति के लिए यदि जन-समर्थन या वोट चाहिए तो जनता के हित की नीतियां और कार्यक्रम पेश करो वरना हाथ कुछ नहीं आने वाला- वही-जीरो/सन्नाटा.

2 COMMENTS

  1. || ॐ साईं ॐ || सबका मालिक एक
    काले धन पर बेफिक्री-अंधा पिसे और कुत्ते खाय …..भ्रष्टाचारियो को कौन समझे
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    एक विस्फोटक खुलादे में स्विस बैंकिंग घोटालों को उजागर करने वाले रुडोल्फ एल्मर ने कहा कि बहुत सी भारतीय कंपनियां और धनी भारतीय, जिनमें अनेक फिल्म स्टार और क्रिकेटर भी शामिल हैं, केमैन द्वीप जैसे टैक्स हैवेन इलाकों में अपने काले धन को जमा कर रहे थे। एल्मर ने कहा कि 2008 में उन्होंने जो सूची जारी की थी उसमें कर चोरी करने वाले अनेक भारतीयों के नाम भी दर्ज थे। उन्होंने भारत सरकार पर आरोप लगाया कि वह काले धन को वापस लाने की दिशा में गंभीर और सार्थक प्रयास नहीं कर रही है। रुडोल्फ एल्मर को हल्के में नहीं लिया जा सकता। वह स्विस बैंक जूलियस बेयर के पूर्व अधिकारी हैं। उन्होंने 20 साल तक इस बैंक में काम किया है। वह केमैन द्वीप में बैंक के मुख्य परिचालन अधिकारी थे। अपने कार्यकाल के दौरान एल्मर को साबुत मिले कि उनका बैंक ग्राहकों को कर चोरी में मदद पहुंचा रहा है। इन्हीं सबूतों को एल्मर ने सीडी में कॉपी करके विकिलीक्स के संपादक जूलियन असांजे को सौंप दिया था। दावा किया गया है कि सीडी में दो हजार खातेदारों के नाम हैं, जिनमें कई भारतीय हैं। इसमें 1997 से 2002 के बीच के बैंक खातो का विवरण है, जिसे अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
    इस संबंध में अमेरिका जैसे कुछ देशों ने गंभीर प्रयास किए और स्विट्जरलैंड पर दबाव बनाकर अपना धन वापस लाने में सफलता हासिल की। बराक ओबामा को अपना धन वापस लाने की चिंता है, जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल इसे लेकर क्रोधित हैं और फ्रांस में निकोलस सरकोजी बैंकिंग व्यवस्था के नियमन पर जोर दे रहे हैं, किंतु विदेशों में जमा काले धन से सर्वाधिक प्रभावित भारत इस संबंध में जरा भी परेशान नहीं है, बल्कि वह कर चोरों को फायदा पहुंचाने के लिए स्वैच्छिक घोषणा योजना का मसौदा तैयार कर रहा है। रुडोल्फ एल्मर ने कहा कि सब कुछ रवैये पर निर्भर करता है। भारत सरकार ने काले धन को वापस लाने के गंभीर प्रयास नहीं किए। सरकार को कार्रवाई के लिए मजबूर करने के लिए समाज को दबाव डालना होगा। भारत एक बड़ा देश है और दिन पर दिन और शक्तिशाली होता जा रहा है। यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए अफसोस की बात है कि निर्वाचित सरकार तथा अधिकारियों के बजाय एक विदेशी हमारे देश के काले धन को लेकर चिंतित है।

    दिलचस्प बात यह है कि इसी जूलियस बेयर बैंक में काला धन जमा करने वालों की एक अन्य सूची भी सामने आई है। इसमें सौ से अधिक भारतीयों के नाम शामिल हैं। कर चोरी सुरक्षित ठिकानों में 40 करोड़ रुपये जमा कराने वाले 18 भारतीयों के नाम का इस साल के शुरू में खुलासा हुआ था। लीचेंस्टाइन सूची को एक जर्मनवासी ने हासिल किया तथा इसे भारतीयों के साथ साझा किया। नागरिक समूह ‘इंडिया रिजुवेनेशन इनीसिएटिव’ द्वारा दर्ज की गई जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी सरकार ने इन खातेदारों के नाम सार्वजनिक नहीं किए। सरकार इस आधार पर नाम सार्वजनिक करने से इंकार कर रही है कि वह जर्मनी के साथ दोहरे कराधान संधि से बंधी हुई है। इन आंकड़ों को हासिल करने से भारत-जर्मनी के बीच संधि का उल्लंघन नहीं होता, किंतु कुछ रहस्यमय कारणों से सरकार इस मामले में दुराग्रहपूर्ण रवैया अपना रही है। भारत के करदाताओं के साथ सूचना साझा न करने का एक और उदाहरण कुछ माह पूर्व का है। स्विट्जरलैंड में एचएसबीसी बैंक में काला धन जमा करने वाले एक हजार भारतीयों के नामों की सूची सरकार को मिली। ये आंकड़े फ्रांस सरकार को मिले, जिसने भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिए, किंतु सरकार ने अभी तक यह सूची सार्वजनिक नहीं की। जब भी विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वालों के नाम सार्वजनिक करने का प्रश्न उठाता है, सरकार और अधिकारी एक ही राग अलापने लगते हैं कि दोहरे कराधान संधि ने उनके हाथ बांध रखे हैं। भारत में अनेक स्विस कंपनियां और बैंक कारोबार कर रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सरकार इन कंपनियों और स्विट्जरलैंड सरकार पर दबाव बनाकर काले धन की जानकारी आसानी से हासिल कर सकती है, किंतु काले धन पर सरकार षड्यंत्रकारी चुप्पी साधे है। भारत के कानून मंत्री द्वारा हाल ही में दिए गए बयान से पता चलता है कि भारत के लूटे गए धन को वापस लाने की उनकी कोई इच्छाशक्ति नहीं है, बल्कि वह इस प्रकार के मामलों में न्यायिक दख लंदाजी पर लगभग दुर्भावनापूर्ण बयान जारी से गुरेज नहीं करते।

    भारत में ख़ुफ़िया एजेंसियों पर अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं। क्या रॉ, इंटेलीजेंस ब्यूरो जैसी इकाइयां कर चोरों और आर्थिक अपराधियों के विदेशी खातो के बारे में जानकारी नहीं जुटा सकतीं? इस पर अविश्वास नहीं किया जा सकता कि इन एजेंसियों में काबिल अधिकारी और संसाधन हैं, जो काले धन के स्रोत तक पहुंच सकते हैं। तब सवाल उठता है कि इन्हें नागरिकों के वृहद हितों के पक्ष में काम करने से कौन रोकता है? अगर जर्मनी की खुफिया एजेंसी एक अघोषित भेदिये को 60 लाख डॉलर देकर एलटीजी ग्रुप के ग्राहकों का गोपनीय विवरण हासिल कर सकती है तो भारत की खुफिया एजेंसियां इस प्रकार के उपाय क्यों नहीं अपना सकतीं? भारतीय राजनीतिक नेतृत्व काले धन को वापस लाने पर कदम पीछे खिचता रहा है। भारत से जुड़े स्विस व्यापारिक और वित्तीय हितों पर दबाव बढ़ाने के बजाय सरकार ने इनके प्रति नरमी बरती है। यही नहीं, भारत में यूबीएस जैसे स्विस बैंकों की शाखाए खुलवाकर सरकार ने काले धन के विदेशों में इलेक्ट्रॉनिक ट्रान्सफर का रास्ता और आसान बना दिया है।

    कानून मंत्री के हालिया बयान से निषकर्ष निकलता है कि उन्हें सामान्य करदाताओं के हितों से अधिक चिंता व्यापारियों और कर चोरों के निवेश को सुरक्षित रखने की है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा काले धन के संबंध में विशेश जांच दल के गठन के फैसले को भी अनुचित बताया। इससे भी अधिक झटका इस बात से लगता है कि हाल ही में सरकार ने स्विट्जरलैंड के साथ कर संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अनुसार अतीत में भारत से लूटी गई संपदा स्विस बैंकों में जमा करने वालों को दोष ·मुक्त कर दिया जाएगा और इन अपराधियों को दंड नहीं दिया जा सकेगा। यह संधि एक अप्रैल, 2012 से लागू होगी। सरकार ने एक बार फिर काले धन के संबंध में भविष्य में होने वाले खुलासो का सुरक्षा कवच तैयार कर लिया है। सरकार को तगड़ा बहाना मिल गया है-स्विट्जरलैंड के साथ संधि होने के कारण हमारे हाथ बंधे हैं। हम किसी अपराधी को सजा नहीं दे सकते।
    [जसवीर सिंह: लेखक आइपीएस अधिकारी हैं और लेख में उनके निजी विचार हैं]

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