सपा की समस्या

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mulayam

यूपी बिहार के चुनाव के लिए कहा जाता हैं कि जिस हाथ जाति की सही छङी आई गयी समझो उसके हाथ सत्ता के सिंहासन की भी चाबी आ गई है । इन दोनों राज्यों के चुनाव की स्थिति तो अब ऐसी बन गई हैं कि जाति हैं कि जाती नहीं पर इसके साथ ही इन राज्यों के चुनाव में सही – सही किसी भी पार्टी की जीत की आकंशा लगना एक तरह का अपवाद बन जाता हैं । अक्सर बहुत सें लोग कहते हैं कि इन राज्यों के चुनाव में विकास के नाम पर भी कभी – कभी वोट दे दिया जाता हैं लोकिन ऐसी स्थिति बहुत ही कम देखने को मिलती हैं । बडे स्तर पर ऐसी स्थिति अब तक केवल 2014 के लोकसभा के चुनाव में देखने को ही मिली थी जो एक तरह की लहर के कारण ही हुआ था । लोकसभा चुनाव के बाद बिहार के चुनाव नें एक बार फिर साबित कर दिया हैं कि जाति के नाम पर इन राज्यों में चुनाव लङना नेताओं का जन्मसिद्द अधिकार हैं तो जनता भी जाति के नाम पर भी वोट करना अपना जन्मसिद्द अधिकार समझने लगी हैं और जनता और नेता दोनों इस तथाकथित अधिकार को छोङ भी नहीं सकते हैं । बिहार की हार से सबक लेते हुए भाजपा ने उत्तरप्रदेश चुनाव के लिए एक बार फिर जाति कार्ड खेला हैं और केशव मौर्य को उत्तरप्रदेश का पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया हैं जिससे वे कुछ हद तक अपना जातिगत वोटों आकंडा साध सकें । वहीं दूसरी तरफ बिहार में भाजपा के साथ अपनी हार का स्वाद चखनें वाली समाजवादी पार्टी की स्थिति इस समय ऐसी हो गई हैं कि बेचारी आगे बढे तो कुऑ और अगर पीछे हटे तो खाई । पार्टी के पास खुद को सम्भालने का जो वक्त था जिसके सहारे वे सत्ता में वापसी कर सकती हैं तो वह समय अब लगभल खत्म होने की कागार पर पहुँच चुका हैं । पार्टी अगर अब भी नये अवतार में नयें जोश के साथ अभी से चुनाव प्रचार में जी – जान सें नहीं लगती हैं तो 2017 का वर्ष उसके लिए मंगल के स्थान पर अमंगल हो जाएगा और पार्टी को मजबूरन हार का रोना – रोना पङ सकता हैं । पार्टी के लिए जीत की डगर इतनी भी आसान नहीं जितनी आसान पार्टी के कार्यकर्त्ता समझ रहें हैं क्योकि जीत की आसान डगर को सपा के खुद के ही कार्यकर्त्ताओं और नेताओं नें कांटो से सजाकर मुश्किल जो बना दिया हैं । उत्तरप्रदेश के मुख्यमन्त्री के वर्तमान पद के लिए जुमले के तौर पर कहा जाता हैं कि उत्तरप्रदेश में मुख्यमन्त्री का पद तो एक तरह का विडम्बना हैं क्योकि कहा जाता हैं कि उत्तरप्रदेश में साढे पाँच मुख्यमन्त्री हैं । उत्तरप्रदेश की जनता जब अखिलेश यादव को युवा मुख्यमन्त्री के तौर पर पूर्ण बहुमत के साथ लाई थी तो जनता को युवा मुख्यमन्त्री से युवा सोच , युवा रातनीति एंव बूढे होते उत्तरप्रदेश को युवा बनाने की उम्मीद थी । युवा सोच रहे थे कि कोई युवा मुख्यमन्त्री बनने से युवाओं के सपने को वे ज्यादा अच्छे से समझेंगे और रोजगार के अवसर उतने ही ज्यादा विकसित करेगें पर अफसोस युवाओं के ये मुख्यमन्त्री युवा तो हैं पर अब उनकी सोच युवा के प्रति और उनके रोजगार के प्रति उदासीन होती दिख रहीं हैं पर इन सब में सारी गलती अखिलेश यादव जी की भी नहीं हैं , उन्होनें तो शायद युवाओं के सपने और उत्तरप्रदेश को युवा बनाने का प्रयास किया भी होगा पर वे खुद के अतिरिक्त शासन में मौजूद पाँच मुख्यमन्त्री और परिवार वाद के बोझ तले इतने दबे हुए हैं कि वे चाह कर भी इस परिवार वाद से खुद को और प्रदेश को ऊपर नहीं उठा पा रहें हैं । समाजवादी पार्टी आजकल परिवार वाद के विकास के नाम पर उभरती हुई पार्टियों में शायद पहले नम्बर पर आ गई हैं । ऐसा नहीं हैं कि इस परिवार वाद की शुरुआत सपा ने की हैं , राजनीति में इस परिवार वाद की नींव तो देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने ही कर थी जब वे राजनीति में अपनी बेटी इन्दिरा गांधी जी को लेकर आए थें । पर अब इस परिवाद के सारे रिकार्ड शायद सपा अपने नाम करना चाहती हैं तभी तो इस पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के परिवार में 6 एमपी , 3 एमएलए / एमएलसी , 2 जिला पंचायत अध्यक्ष , 2 ब्लॉक प्रमुख , 2 सरकारी बोर्डो के चेयरमैन , 1 पार्टी के प्रदेश सचिव , 1 पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष और 1 जिला पंचायत सदस्य हैं । इस परिवार के 13 सदस्य तो ऐसे हैं जो सियासत में अपने पैर रख चुके हैं , वे खुद मुलायम सिंह के बच्चे और भाई हैं – मुलायम सिंह यादव , अखिलेश यादव , डिंपल यादव , शिवपाल यादव , राम गोपाल यादव , अंशुल यादव , प्रेमलता यादव , अरविंद यादव , तेज प्रताप सिंह यादव , सरला यादव , अंकुर यादव , धर्मेंद यादव और अक्षय यादव हैं । सपा सरकार में पुलिस प्रशासन एंव लचर कानून व्यवस्था पर भी कई सवाल उठ रहे हैं । जनता तो जनता अब तो मुख्यमन्त्री जी को भी कहना पड रहा हैं कि यदि हमारा वोट घटेगा तो अफसरों को भी परेशानी होगी । मुख्यमन्त्री जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि राज्य बङा हैं इसीलिए पूरी तरह कानून एंव पुलिस सुधर भी नहीं सकती हैं । ऐसे में तो सवाल उठना तो लाजमी हैं कि जब राज्य मुख्यमन्त्री ऐसा बोलेगें तो बेचारी जनता का क्या होगा ? पुलिस जब – जब अपने स्तर पर काम कर कानून व्यवस्था पर नियन्त्रण करने की कोशिश करती हैं तब – तब पार्टी के कार्याकर्त्ता ही कानून की धज्जिया उडा देते हैं । पार्टी का झंडा लगाकर चलना इन कार्यकर्ताओं के लिए एक तरह का लाइसेंस हो गया हैं क्योकि पुलिस जब भी इन लोगों से लाइसेंस मांगती हैं या चलान काटने की बात करती हैं तो यें पुलिस वालों को ही वर्दी उतरवा देने की धमकी देने लगते हैं । सपा सरकार जिन डॉ लोहिया जी की बात करती हैं , उन्ही लोहिया जी ने एक बार कहा था कि राजनीति का काम बुराई से लडना हैं । राजनीति जब बुराई से नहीं लङती हैं तब वह कलही हो जाती हैं । एक अनुमान के मुताबिक में इस सदी के अन्त तक उत्तरप्रदेश की आबादी 42 करोड तक पहुँच सकती हैं । इस समय इस राज्य की आबादी लगभग 20 करोड हैं और यह दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला पांचवां क्षेत्र होगा , लगभग ब्राजील के बराबर । आज देश की कुल आबादी का करीब 16.5 प्रतिशत लोग अकेले उत्तरप्रदेश में ही रहते हैं और साल 2050 तक इस राज्य की आबादी देश की आबादी में अपना 25 प्रतिशत अपना स्थान रखेगी । ऐसे में अगर इस राज्य की कानून व्यवस्था अब भी नहीं सुधरी तो शायद बाद में बहुत देर हो जाएगीं और इस आबादी में सें अधिकांश लोग ऐसे भी हैं जिन्हे दो वक्त की रोजी भी नसीब नहीं होती और सरकार इन गरीबों पर ध्यान देने के स्थान पर सैफई महोत्सव पर ध्यान देती हैं और गरीबों का पैसा सैफई में बर्बाद कर देती हैं । मुज्जफरनगर दंगे के समय पीङित जहॉ एक तरफ पालीथीन के बने टैंट में रह रहे थे , वहीं दूसरी तरफ सैफई के मेहमानों को फाइव स्टार होटलों में रुकवाया गया था । राज्य के अधिकांश जिले सूखाग्रस्त हो जाते हैं पर सपा सरकार हर साल पङने वाले इस सूखे पर ध्यान दे या न दे पर सैफई में हर साल होने वाले सैफई महोत्सव की हरियाली पर जरुर ध्यान जेती हैं । कई बार ऐसा देखने को भी मिलता हैं कि पार्टी के नेताजी ,मुलायस सिंह यादव बङे ही बेरुखी एंव बङी कङाई से अपनी ही पार्टी की सरकार की आलोचना सार्वजनिक मंचो पर कर देते हैं और पार्टी की समय – समय पर हार की भी भविष्यवाणी करने से भी नहीं चूकते हैं । ऐसे में नेता जी के इस झूठ पर सवाल तो उठने चाहिए कि अगर नेता जी को वाकई में ऐसा लगता हैं कि पार्टी पथ भटक रहीं तो उसे रास्ते पर लाने के लिए और दिशा दिखाने के लिए नेताजी क्या कर रहें हैं ? केवल सार्वजनिक मंचो से पार्टी की फटकार लगाकर वे अपनी जिम्मेदाती पूरी हुई नहीं समझ सकते हैं और अगर उन्हें वाकई में पार्टी के भविष्य की इतनी ही चिन्ता हैं तो उन्हे पार्टी को अन्दरुनी स्तर पर मजबूत करने के लिए काम करना होगा और पार्टी को दिशा दिखानी होगी । सपा सरकार की एक सबसे बङी कमजोरी और विरोधियों का सबसे बङा हथियार यह हैं कि वे सरकार पर आरोप लगाती हैं कि सपा सरकार के शासन काल में 250 से ज्यादा छोटे – बङे दंगे हो गए हैं और सरकार इस पर नियन्त्रण करने में नाकाम रहीं हैं तो दूसरी तरफ सरकार अपना बचाव करते हुए कहती हैं कि दंगो के पीछे हिन्दुतवादी संगठनों एंव भाजपा का हाथ हैं , जो साम्प्रदायिक माहौल बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती हैं । तो भाजपा भी अपने बचाव में कहती हैं कि क्या सरकार की गुप्तचर एंजेंसियां , कानून व्यवस्थ एंव पुलिस व्यवस्थ इतना कमजोर हैं कि कोई भी माहौल खराबब कर सकता हैं ? सपा सरकार की जहाँ इतनी कमियां सामने आ रहीं हैं वहीं इस सरकार के कुछ काम ऐसे भी जो स्वागत योग्य हैं और जिनका जनता को फायदा के जमीनी स्तर पर मिल भी रहा हैं । अगर सरकार एक साल बाद खुद को फिर सें उत्तरप्रदेश की सत्ता पर खुद को काबिज देखना चाहती हैं तो उसें अपनें कामों , अपनी नीतियों को जो उसने जनहित के लिए बनाई थी , उन सब का उचित ठंग से प्रचार प्रसार करना होगा क्योंकी आज राजनीति हो या बाजार स्थिति ऐसी हो गई हैं कि जो दिखता हैं वहीं बिकता

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