नित मातम के शोर में
देश ने सन्नाटा ओड़ लिया हैं
सदन के हंगामो ने भी
बहार का रुख मोड़ लिया हैं
फिर भी ये शान से कहते हैं
हमारे देश में शांति हैं …
तिरंगे की आड़ में
जनता को भड़काते हैं
धर्म जाति के नाम पर
दंगे फसाद करवाते हैं
ओ!! देश के कर्णधारो बताओ
ये कौन सी क्रांति हैं…..
अपराधियों के अपराध में
आज अंतर आ गया हैं
जब से सदन और बहार
दागी का मुद्दा छा गया हैं
कौन हैं नेता और अपराधी कौन
देश में ये ही एक दुखद भ्रान्ति हैं….
सरकारे बदलती रहती हैं
जनता वही रहती हैं
विकास के मुद्दे गायब हैं
और घोटालो की संख्या बढती रहती हैं
कौन से दल में करे अंतर अब
सत्ता में आने पर सभी एक ही भांति हैं..
समझो न इसे तिकडम का मेल
ये नहीं कोई शरीफों का खेल
बाहुबल पर आजाद हैं सभी
हिम्मत किसकी, जो करे जेल
काट देती हैं अपनों का भी गला
राजनीती दो धार वाली दरांती हैं …
कुछ मजबूरी कुछ हैं डर
खामोश हैं आज जनता अगर
सैलाब जब विद्रोह करेगा
तब लडेगा ये डट कर
न समझो इसे भोली अनजान
ये पब्लिक सब जानती हैं…..