राजीव गांधी फाउण्डेशन का असली चेहरा

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मनोज ज्वाला
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निधनोपरांत तत्कालीन कांग्रेसी
सरकार की पहल पर स्थापित किए गए ‘राजीव गांधी फाउण्डेशन’ के बारे में आम
तौर पर सामान्य लोग यही जानते हैं कि यह देश का भला करने वाली एक
जन-कल्याणकारी संस्था है । घोषित तौर पर इसके उद्देश्य और कार्य ऐसे ही
हैं । देश में स्वास्थ्य-साक्षरता-विज्ञान प्राद्यौगिकी के विस्तार तथा
महिलाओं-बच्चों-विकलांगों-उपेक्षितों के उत्थान और ग्रामीण क्षेत्रों के
विकास का काम करना इस संस्था की प्राथमिकताओं में शामिल है । यह संस्था
चूंकि राजीव गांधी की स्मृति में उन्हीं के नाम पर कायम है, इसलिए जाहिर
है इसकी मालकिन या यों कहिए कि अध्यक्ष उनकी पत्नी सोनिया माइनो गांधी ही
हैं । जबकि , उनके पुत्र-राहुल गांधी व पुत्री- प्रियंका गांधी के साथ इस
गांधी-परिवार की पालकी ढोने वाले वाले दो-दो पगडीधारी- नौकरशाह- मनमोहन
सिंह एवं मोंटेक सिंह अहलुवालिया और कांग्रेस-अध्यक्ष के दस जनपथ-स्थित
दरबार में तता-थैया करने वाले ढोलची-तबलची यथा- पी चिदम्बरम आदि इसके
कार्यकारी सदस्य हैं । सन १९९२ से कांग्रेसी सरकार के शासनकाल में प्रायः
प्रतिवर्ष हमारे देश के सरकारी खजाने से करोडों रुपये का अनुदान प्राप्त
करते रहने वाली यह संस्था आज भी देश की सबसे समृद्ध व सर्वाधिक धनशाली
एन०जी०ओ० की सूची में शामिल है , जिसके लिए विशेष अनुदान का प्रावधान तीन
साल पहले तक केन्द्र सरकार के बजट में ही किया जाता रहा है । भारी-भरकम
सरकारी धनराशि के बदौलत कतिपय लोकलुभावन काम कर के बाहर से अपनी छवि को
जन-कल्याणकारी बनाए रखते हुए यह संस्था भीतर-भीतर अपने खास गुप्त
एजेण्डों पर काम करती है , जिन्हें जान लेने पर इसका असली चेहरा हमारे
सामने आ जाता है ।
असलियत यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर सरकारी संरक्षण
और राजनीतिक छत्र-छाया में पल रही यह संस्था वेटिकन सिटी से निर्देशित
युरोप-अमेरिका की उन संस्थाओं की भारतीय सहयोगी है , जो भारत में धार्मिक
मतान्तरण , सामाजिक विखण्डन और राजनीतिक विभाजन की जमीन तैयार करने में
लगी हुई हैं । भारतीय मूल के एक अमेरिकी लेखक राजीव मलहोत्रा की पुस्तक
‘ब्रेकिंग इण्डिया’ में ऐसी संस्थाओं की गतिविधियों का विस्तार से खुलासा
हुआ है । ये संस्थायें भारत के ही कुछ खास लोगों, समूहों व संस्थाओं को
अपना अघोषित अभिकर्ता बना कर उनके माध्यम से अपनी गतिविधियों को अंजाम
देती हैं, जिसका खुलासा मैं ‘भारत के विरुद्ध सक्रिय संस्थाओं का वैश्विक
तंत्र’ नामक दो लेखों में कर चुका हूं । दूसरे शब्दों में कहें तो यह कि
राजीव गांधी फाऊण्डेशन भारत-विरोधी विदेशी संस्थाओं की गतिविधियों को
भारत में अंजाम देने के बावत उन संस्थाओं से सम्बद्ध भारतीय लोगों-समूहों
को सहयोग-संरक्षण देते हुए उनकी ‘सिस्टर आर्गनाइजेशन’ (सहयोगी संगठन) के
रुप में काम कर रहा है । इस तथ्य की पुष्टि उसके ऐसे कार्यों के कुछेक
उदाहरणों से ही हो जाती है ।
प्रामाणिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ‘दलित
फ्रीडम नेटवर्क’ तथा ‘फ्रीडम हाऊस’ दो ऐसी अमेरिकी संस्थायें हैं , जो
भारत में वेटिकन चर्च के ‘ईसाई विस्तारवाद’ और अमेरिका-ब्रिटेन के ‘छद्म
साम्राज्यवाद’ का मार्ग प्रशस्त करने के लिए यहां के दलित-मामलों को खूब
भंजाती हैं । दलितों की तथाकथित स्वतंत्रता , सुरक्षा , अधिकारिता , के
नाम पर उन्हें धर्मान्तरित करने-कराने तथा उनके धर्मान्तरण का औचित्य
सिद्ध करने के लिए ये संस्र्थायें तरह-तरह के हथकण्डों का इस्तेमाल करती
हैं । इस बावत ये संस्थायें दलित-उत्पीडन-विषयक झूठे-मनगढन्त समाचार
सम्प्रेषण व मिथ्या साहित्य-लेखन से लेकर सनातन वैदिक धर्म के विकृत
निरुपण-विश्लेषण जैसे कुटिल कारनामों के साथ-साथ दलितों के नस्ल व इतिहास
को विभेदित-प्रक्षेपित करते हुए उनके लिए पाकिस्तान की तर्ज पर पृथक
‘दलितस्तान’ की वकालत-युक्त विभाजनकारी हिंसक माहौल बनाने के एक से एक
वारदातों को भी अंजाम देती रहती हैं । दलितों को भारत के बहुसंख्यक समाज
की मुख्य धारा से अलग-थलग दिखाने-करने तथा सनातन वैदिक धर्म को
हिंसक-शोषक-उत्पीडक सिद्ध करने के निमित्त उपरोक्त तमाम तरह के
छल-छद्म-युक्त कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने के लिए इन संस्थाओं
द्वारा भारतीय बुद्धिजीवियों को ही तरह-तरह से उपकृत-लोभित-लाभान्वित कर
उन्हें भाडे के टट्ट के रुप में इस्तेमाल किया जाता है । ऐसे तथाकथित
बुद्धिजीवियों की एक अदृश्य फौज ही कायम है हमारे देश में , जिनका
पर्दाफास करते हुए मैंने अलग से एक लेख लिखा है- “भारतीय
बौद्धिक-बहादुरों के अभारतीय करामात” । इन ऐसे करामाती बौद्धिक-बहादुरों
की फेहरिस्त में कांचा इलाइया, जान प्रभुदोष , सेण्ड्रिक प्रकाश, जान
दयाल, तिस्ता सितलवाड, विजय प्रसाद , कुमार स्वामी , राम पुणयानी ,
टिमोथी शाह, मीरा नन्दा , सीलिया डुग्गर , अंगना मुखर्जी आदि अनेक नाम
हैं, जो भारत में अब दलितों के नाम पर एक और विभाजन तथा उनके सामूहिक
धर्मान्तरण करने-कराने के हालात निर्माण की बौद्धिक कसरत कर रहे हैं,
जिन्हें राजीव गांधी फाऊण्डेशन द्वारा किसी न किसी रूप में
प्रायोजित-पोषित किया जाता रहा है । ये वही लोग हैं जिनमें से अधिकतर
कांग्रेस की मनमोहनी सरकार के दौरान उसकी रिमोट-कण्ट्रोलर- सोनिया माइनो
गांधी के ढोलची-तबलची दरबारियों की असंवैधानिक संस्था- ‘राष्ट्रीय
सलाहकार परिषद’ के भी सदस्य बनाए गए थे । इन्हीं लोगों ने बहुसंख्यक
हिन्दू समाज को दंगाई सिद्ध करते हुए ‘लक्षित व साम्प्रदायिक हिंसा-रोधी
विधेयक’ का मसौदा तैयार किया था, जो सरकार बदल जाने के कारण कानून का रूप
नहीं ले सका , अन्यथा बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के घर पानी भरना पडता

कांचा इलाइया नाम का तथाकथित भारतीय लेखक अमेरिका के दलित
फ्रीडम नेटवर्क से सम्बद्ध है , जिसे उसके एक पुस्तक – ह्वाई आई एम नाट ए
हिन्दू’ के लिए डी०एन०एफ ने पोस्ट डाक्टोरल फेलोशिप प्रदान किया हुआ है ;
जबकि राजीव गांधी फाऊण्डेशन सन २०१० से ही इस पुस्तक को भारत भर में
प्रायोजित कर रही है । इस पुस्तक में कांचा ने सनातन वैदिक धर्म व इसे
मानने वाले हिन्दुओं के विरूद्ध जम कर विष-वमन किया है तथा भारत की समस्त
समस्याओं के लिए इसे ही जिम्मेवार ठहराया है । इतना ही नहीं उसने
दलित-जातियों को सवर्ण हिन्दुओं के विरूद्ध सशस्त्र गृह-युद्ध के लिए
भडकाया है और ईसा मसिह को दलितों का मुक्ति-दाता बताया है । पुस्तक में
उसने दलितों को संस्कृत की हत्या कर देने के लिए ललकारा है और
गोमांस-भक्षण की वकालत करते हुए गोरक्षा को राष्ट्रीयता के विरूद्ध अपराध
करार दिया है । भारत के बहुसंख्यक समाज के ‘कर’ से निर्मित सरकारी खजाने
से अनुदान हासिल करते रहने वाले इस राजीव गांधी फाऊण्डेशन द्वारा
डी०एन०एफ० के धर्मान्तरण्कारी और भारत-विभाजनकारी उपकरण के तौर पर उसकी
षड्यंत्रकारी योजना के तहत लिखित-प्रकाशित इस पुस्तक को प्रायोजित किया
जाना अथवा ऐसे अन्य कार्यों को संरक्षण-पोषण देना कहीं से भी भारत के
हित में नहीं है । यह तो भारत राष्ट्र के विरूद्ध और बहुसंख्यक भारतीय
समाज के विरूद्ध षड्यंत्रकारी गतिविधियों में उसकी सहभागिता का प्रमाण है

इसका दूसरा सबसे बडा प्रमाण यह है कि भारत में भारतीय
संविधान को खुली चुनौती देने तथा खूनी इस्लामी जिहाद को अंजाम देने के
बावत मुस्लिम युवाओं को प्रोत्साहन-प्रशिक्षण देते रहने वाली कुख्यात
संस्था- इस्लामिक रिसर्च फाऊण्डेशन ( आई०आर०एफ०) से भी इस राजीव गांधी
फाऊण्डेशन के नजदीकी सम्बन्ध हैं । वर्ष २०११ में आई०आर०एफ० के संचालक
जाकिर नाइक , जिस पर कई आतंकी मामले दर्ज हैं , उससे राजीव गांधी
फाऊण्डेशन ने ५० लाख रुपये अनुदान हासिल किया था । मीडिया में आयी खबरों
के अनुसार आई०आर०एफ० और जाकिर नाइक पर जब कानूनी सिकंजा कसता गया तथा
उक्त अनुदान के बावत राजीव गांधी फाऊण्डेशन पर ऊंगलियां उठायी जाने लगीं
तब कांग्रेस की ओर से यह सफाई दी गई कि चंदा की वह राशि फाऊण्डेशन को
नहीं बल्कि राजीव गांधी ट्रट को दी गई थी, जो जुलाई २०१२ में वापस कर दी
गई । केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राजीव गांधी फाऊण्डेशन पर
जाकिर नाइक को उसकी भारत-विरोधी आतंकी गतिविधियों की कानूनी जांच से
बचाने के लिए उससे रिश्वत के रूप में वह चंदा लेने का आरोप लगाया है ।
इतना ही नहीं , इस संस्था की धनदाता एजेंसियों में युरोप-अमेरिका की चर्च
मिशनरियों से सम्बद्ध उन संस्थाओं के नाम भी शामिल हैं , जो दिन-रात भारत
के विरूद्ध विखण्डन और हिन्दुओं के धर्मान्तरण के षड्यंत्रकारी
कार्यक्रमों को अंजाम देने में लगी रहती हैं । जाहिर है कि कांग्रेस के
राजनीतिक संरक्षण में पल-बढ रहा राजीव गांधी फाऊण्डेशन बाहर से देखने में
तो लोकलुभावन है , किन्तु वास्तव में भीतर से यह अन्य भारत-विरोधी
तत्वों से कम खतरनाक नहीं है ।
• मनोज ज्वाला;

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