अभी हाल में 17 सितम्बर को जो एक प्रमुख टी.वी. चैनल ने दिखलाया, वह दिल दहला देने वाला था। 27 सितम्बर को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जैसे ही दंगे शुरू हुए और वहा की पुलिस ने हत्या के आरोप में सात मुसलमानों को पकड़ा। इसके साथ ही वहां के डी.एम. और एस.पी. ने कुछ घरों की तलाशी क्या ली, कि उसके कुछ ही घण्टों बाद उनके स्थानान्तरण का आदेश आ गया। उनका गुनाह सिर्फ इतना था कि उन्होने कुछ मुसलमानों के घरों की तलाशी लेने की जुर्रत की थी। क्योकि ऐसी आशंका थी कि वहां अवैध असलहे ही सकते है। खैर उत्तर प्रदेश की समाजवादी एवं धर्म निरपेक्ष कहीं जाने वाले सरकार ने डी.एम., एस.पी. को तुरंत हटाकर पूरे मुजफ्फरनगर को दंगों की आग में झोंक ही दिया। पर हत्या के आरोप में जिन सात मुसलमानों को 27 अगस्त को सायं 04:00 बजे पकड़ा गया, उन्हे तुरंत ही लखनऊ से आजम खांन ने छोडने का आदेश पुलिस को जारी कर दिया। अब भला पुलिस की कहा ऐसी हिम्मत कि वह ताकतवर मंत्री आजम खान के हुकुम का पालन न करें। और कुछ ही घण्टो बाद इन हत्यारों को छोड़ दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि दूसरे समुदाय को ऐसा लगा कि यहां कानून और न्याय नाम की कोर्इ चीज नहीं है, और उन्हे सिथति से स्वत: निबटना पड़ेगा। जिसकी परिणती थी मुजफ्फरनगर के भयवाह दंगे, जिसमें 48 लोगों की जाने गर्इ। पर उत्तर प्रदेश सरकार की बेशर्मी देखिए! ऐसी खबरे लाइव देखे जाने के बाबजूद न तो आजम खान का मंत्रि-पद से इस्तीफा लिया गया और न किसी स्वतंत्र जाच की ही, यहां तक सी.बी.आर्इ. जाच की घोषणा की गर्इ।उल्टे उन थाना प्रभारियों और पुलिस अधिकारियों को यह सच सामने लाने में मदद करने पर लाइन हाजिर कर दिया गया।
अब उत्तर प्रदेश सरकार और सपा का कहना है कि एक सदस्यीय न्यायिक जाच की घोंषणा कर दी गर्इ है, और सच सामने आने पर दोषी लोगों को दणिडत किया जाएगा, पर क्या यह लीपा-पोती का प्रयास नहीं? ऐसे जाच आयोगों की विश्वनीयता क्या होती है, यह तो 2004 में यू.पी.ए. सरकार बनने पर तभी पता चल गया था-जब रेलमंत्री के नाते लालू यादव ने 27 फरवरी 2002 के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में रामभक्तों को जिंदा जलाने को लेकर एक सदस्यीय बनर्जी आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने लालू की इच्छानुसार ऐसी रिपोर्ट भी दे-दी थी कि आग बाहर से नहीं, बलिक अंदर से लगी थी। भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसने नानावटी आयोग के चलते इस आयोग के गठन को ही अवैध घोषित कर दिया।
स्पष्ट है कि सपा चाहती है कि आने वाले चुनाव के बाद मुलायम सिंह प्रधानमंत्री बने। इसके लिए उसे मुसलमानों का थोक में वोट चाहिए। बाकी जाति-वर्ग के आधार पर हिन्दुओं के बोट तो मिलेगे ही। इसी नीति के चलते सपा के डेढ़ वर्ष के शासन काल में 100 से ज्यादा दंगें हो चुके है। क्योकि प्रकरांतर से मुसलमानों को खुली छूट मिली है कि वह चाहे जो करें, शासन -प्रशासन उनके साथ खड़ा है। ऐसा लगता है कि केन्द्र सरकार का प्रस्तावित साम्प्रदाियक हिंसा विरोधी लांछित कानून कम-से-कम उत्तर प्रदेश में तो आजम खान लागू कर ही चुके है। अब आजम खान जैसे लोगो को जिनकी जगह हत्यारों को बचाने एवं शासकीय कार्य में बांधा डालने के चलते जेल में होनी चाहिए। वह बड़ी ठसक के साथ राज-पाट चला रहे है। यह बताना भी उल्लेखनीय है कि आजम खान भारत माता को डायन भी कह चुके है। बड़ी बात यह कि इस सच्चार्इ के खुलासे एवं राज्यपाल की प्रतिकूल रिपोर्ट के बाद भी केन्द्र सरकार के विरूद्ध वोट राजनीति एवं सत्ता-लिप्सा के चलते कोर्इ कदम उठाने को तैयार नहीं है।
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार अपने को बहुत बड़ा धर्म निरपेक्षतावादी कहते है। इसको साबित करने के लिए वह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनाव-प्रचार के लिए बिहार में नही घुसने देते थे। यहां तक कि कछु वर्षो पूर्व कोसी नदी में आर्इ बाढ़ के चलते जब नरेन्द्र मोदी ने 5 करोड़ की सहायता बिहार सरकार को भेजी, तो नितीश कुमार ने उसे भी बडें ठसके के साथ लौटा दिया था। जबकि यह रूपएं कोर्इ नरेन्द्र मोदी के नहीं, बलिक गुजरात की जनता के थे, जो अपने संकट-ग्रस्त बिहारी भार्इयों को दिए गए थे। पर अब नितीश कुमार पर अपने को धर्म निरपेक्षता का मसीहा साबित करना था, तो उसके चलते चाहे वह जो करे सब जायज ही-है। इतना ही नहीं धर्म निरपेक्षता का झण्डाबरदार बताने के लिए नितीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी को भाजपा की चुनाव-अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर भाजपा से इतने पुराने रिश्ते तोड़ लिए। चलिए मान लेते है कि नरेन्द्र मोदी घोर मुसिलम विरोधी होंगे और नितीश कुमार मुसिलमों के बड़ें हितैषी। तभी तो जब जम्मू क्षेत्र के किश्तवाड़ में हिन्दुओं पर सत्ता-प्रतिष्ठान के संरक्षण में हिन्दुओं पर हमले होते है, और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाए जाते है। तो नितीश कुमार यह कहकर उमर अब्दुला के पक्ष में खड़ें हो जाते हैं कि उमर अब्दुला को सिथति समय संभालने के लिए पर्याप्त समय मिलना चाहिए। सिर्फ इतना ही नहीं कुख्यात आतंकवादी यासीन भटकल को लेकर नितीश कुमार और उनकी पुलिस ने जो उदासीनता दिखार्इ उससे यह समझ में आ जाता है कि नितीश कुमार जैसे लोगों के लिए धर्म निरपेक्षता के क्या मायने है? यह आम जानकारी है कि यासीन भटकल लगभग 1 वर्ष तक दरभंगा में रहा और इस दौरान उसने आंतकियों की अच्छी-खासी पौध भी तैयार की। नितीश कुमार और उनकी पुलिस इससे भी अनजान नहीं हो सकती कि बोधगया में धमाकों को पीछे यासीन भटकल और उसके साथियों के द्वारा खडें किए गए इणिडयन मुजाहिददीन का ही हाथ था। ऐसी सिथति में बड़ा सवाल यह कि बिहार पुलिस ने यासीन भटकल की रिमाण्ड क्यों नहीं मागी? क्या रिमाण्ड न मागे जाने के लिए प्रकारांतर नितीश कुमार का दवाब था? सच्चार्इ यह है कि 2007 के बाद भारत में हुए हर धमाके पीछे यासीन भटकल का नाम बताया जाता है।
इस तरह से यह समझा जा सकता है कि इस देश में धर्म निरपेक्षता का हो-हल्ला करने वालो के असली चेहरे क्या है? सच्चार्इ यह है कि वह दंगाइयों, आंतकियों की कीमत पर सत्ता पाना चाहते है, और अपने कारनामों से राष्ट्र के हिन्दू समाज को एक बार फिर से द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाने के लिए पूरी तरह तैयारी में दिखते है।