​समय की रेत, घटनाओं के हवा महल …

0
146

unnamed
तारकेश कुमार ओझा

बचपन में टेलीविजन के प र्दे पर देखे गए दो रोमांचक दृश्य भूलाए नहीं भूलते। पहला क्रेकिट का एक्शन रिप्ले और दूसरा पौराणिक दृश्यों में तीरों का टकराव। एक्शन रिप्ले का तो ऐसा होता था कि क्रिकेट की मामूली समझ रखने वाला भी उन दृश्यों को देख कर खासा रोमांचित हो जाता था। जिसे चंद मिनट पहले हकीकत में होते देखा था। एक्शन रिप्ले में दिखाया जाता … देखिए यह बल्लेबाज किस तरह रन आउट हुआ। बहुत ही आहिस्ता – आहिस्ता दिखाए जाने पर पहले देखा गया दृश्य बड़ा ही रोचक और रोमांचक लगता। अगर कहा जाए कि तब की पीढ़ी में क्रेकिट को लोकप्रिय बनाने मे्ं इस एक्शन रिप्ले का बहुत बड़ा योगदान था, तो गलत नहीं होगा। इसी तरह पौराणिक दृश्यों में दो योद्धाओं के बीच होने वाला तीर – धनुष युद्ध भी बड़ा रोमांचक लगता था। तब शायद गिने – चुने टेलीविजन ही रंगीन रहे होंगे। हम देखते हैं कि एक योद्धा ने अपनी कमान से एक तीर छोड़ा। थोड़ी देर में उसके प्रतिद्वंदी ने भी तार दागा। दोनों तीर आपस में मिले। मानो एक – दूसरे की ताकत को तौल रहे हों और एक झटके में कम ताकतवर तीर हवा में ओझल होकर परिदृश्य से गायब हो गया। करीब घंटे भर के सीरियल में यह दृश्य बार – बार दिखाय जाता। आज दैनंदिन जीवन में कुछ इसी प्रकार घटनाओं का टकराव देखता हूं तो अचरज होता है। इस टकराव के चलते एक घटना हावी हो जाती है तो दूसरी परिदृश्य से पूरी तरह से गायब। राजनीति की बिसात पर यह खेल कुछ राजनेताओं के अनुकूल बैठता है तो किसी के गले की फांस बन जाता है। अब देखिए ना… देश के सबसे बड़े सूबे में चाचा – भतीजा विवाद का मामला तूल पकड़ने से पहले राष्ट्रीय परिदृश्य पर कुछ दूसरे मसले सुर्खियों में थे। लेकिन चाचा – भतीजा प्रकरण ने सभी को पीछे धकेल दिया। कुछ दिनों तक जब भी टेलीविजन खोलो बस चाचा – भतीजा संवाद ही देखने को मिलता। कभी बताया जाता कि नाराज चाचा मुंह फुला कर बैठे हैं। वे नेताजी की भी सुनने को तैयार नहीं।
लेकिन फिर बताया जाता कि एक समारोह में चाचा – भतीजा प्रेम से गले मिले और साथ बैठ कर खाना भी खाया। खबर देखते – देखते ब्र्ेकिंग न्यूज चलती कि पहले से नाराज चल रहे चाचा तो कुछ नर्म पड़े हैं, लेकिन इस बात से एक दूसरे चाचा नाराज हो गए हैं। लेकिन यह क्या इस बीच भोपाल में जेल से भागे विचाराधीन कैदियों के मुठभेड़ में मारे जाने की घटना ने चाचा – भतीजा प्रकरण को वैसे ही नेपथ्य में धकेल दिया, जैसा पौराणिक दृश्यों में एक तीर दूसरे को हवा में ध्वस्त कर देता है। जब लगा कि मुठभेड़ में कैदियों की मौत का मसला व्यापम की तरह राज्य सरकार के गले की फांस बन जाएगा तभी नोटबंदी मसले ने इस घटना को पूरी तरह से बेअसर कर दिया। लगा मानो सब इस वाकये को भूल गए। नोटबंदी मसले के सुर्खियों में रहने के दौरान हुई ट्रेन दुर्घटना ने कुछ समय के लिए इस मसले को परिदृश्य से गायब करने में योगदान दिया। लेकिन फिर बोतल के जिन्न की तरह यह बाहर निकल आय़ा। फिलहाल पंजाब में जेल से भागे आतंकियों व अपराधियों की फरारी और पकड़े जाने का मसला गर्म है।लगता है समय की रेत पर बनने वाले घटनाओं के ये हवा – महल भविष्य में  राजनीति में खलबली मचाते रहेंगे और लाटरी के खेल की तरह किसी राजनेता के अनुकूल तो किसी के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां उत्पन्न करते रहेंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here