कश्मीर: मोदी,शाह, माधव की दूसरी पारी

संकट

बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार|

एक कबीरा न मुआ,जेहिं के राम आधार||

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कश्मीर को लेकर भाजपा राम  अर्थात अपनें मूल विचार पर अडिग रहे तो ही वह कश्मीर में जीवित रह पाएगी. कश्मीर के विषय में भाजपा और संघ इस बात को समझ भी रहा है; किन्तु कई बार नहीं बल्कि अधिकाशंतः परिस्थितियां ही सर्वोपरि, नियामक और निर्णायक  होती हैं, भाजपा के विषय में भी ऐसा ही है. अपनी बेटी रुबिया सईद के अपहरण की सुनियोजित घटना करवाने और फिर रुबिया की रिहाई के बदले में वी पी सरकार के गृह मंत्री रहते हुए दुर्दांत आतंकवादियों की रिहाई करने वाले मुफ़्ती मोहम्मद सईद के साथ सरकार बनाते हुए भाजपा ने तो बहुत कुछ सोचा और याद रखा ही था, किन्तु पीडीपी बहुत कुछ विस्मृत कर गई थी. वही  स्मृति, श्रवण और लेखन का ज्ञान अब महबूबा के साथ सरकार बनाते समय नरेंद्र मोदी, अमित शाह व राम माधव के बखूबी काम आ रहा है. भाजपा की इस तिकड़ी ने कश्मीर चुनाव में बहुमत से दूर रहने के बाद घटना में छुपे अवसर को पहचाना और उनका दोहन किया. और सबसे बड़ी बात जो जोखिम लेना जानतें हैं वे समझ सकते हैं कि नरेंद्र मोदी की भाजपा नें कश्मीर में एक महत्वाकांक्षी दांव फेंका था जो अब सफलता की ओर बढ़ता नजर आ रहा है. भाजपा द्वारा कश्मीर में मुफ़्ती के साथ सरकार बनाने को एक मात्र संज्ञा “दुर्घटना को अवसर में बदलनें का दुस्साहस” ही कहा जा सकता था. उस समय सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी समझ सकता था मोदीशाहमाधव  की टोली को पीडीपी से गठबंधन के बाद अपनें समर्थकों के नाराज होनें का आभास ही नहीं बल्कि ग्यारंटी रही होगी. फिर भी यदि इस टोली नें यह शतरंज की बिसात पर यह बेहद जोखिम भरी चाल चली थी तो इसे विचार आग्रह के प्रति प्रतिबद्धता के रूप में ही देखा जाना चाहिए था. भाजपा और संघ के स्वयंसेवकों ने तब के दौर में इस दुस्साहसी और संघ की दुनिया में अजीब से लगनें वाले इस गठजोड़ को नवगर्भ की तरह ही साज संभाल दी भी थी.
कश्मीर को लेकर से भाजपा का 370 उन्मूलन का संकल्प, एक विधान का आग्रह और “हर कीमत पर यह भारत का अभिन्न अंग है” जैसा स्पष्ट और मुखर दृष्टिकोण रहा है. यह दृष्टिकोण पीडीपी से मेल नहीं खाता किन्तु फिर भी पीडीपी का ऐसे दृष्टिकोण रखनें वालों के साथ बने रहना भाजपा की सफलता की एक नई कहानी  है.
“हिन्दू मुख्यमंत्री” का लक्ष्य लेकर चले “मोदीशाहमाधव ” के सामनें विधानसभा चुनाव के समय, अपेक्षित परिणाम न आने के बाद और अब दो ही लक्ष्य हैं तात्कालिक लक्ष्य यह कि आम कश्मीरी भाजपा कार्यकर्ता जैसा सोचता है वैसा निर्णय कर अपनी दुर्लभ रही कश्मीरी कार्यकर्ता पूंजी का सरंक्षण करें  और दीर्घकालीन लक्ष्य यह कि इस अवसर का लाभ उठाकर जम्मू और घाटी में अपनी उपस्थिति सुदृढ़ कर “हिन्दू मुख्यमंत्री” का लक्ष्य साधा जाए. इतनें बड़े और महत्वकांक्षी लक्ष्य को काँधे पर रखे हुए भी भाजपा ने महबूबा को जिस प्रकार ढाई माह तक सख्ती से साधे रखा वह स्वमेव एक बड़ा राजनैतिक संकल्प है.
ऐसा नहीं है कि भाजपा ने कश्मीर में कुछ खोया नहीं है. कश्मीर में सत्तारूढ़ होते ही तीसरे दिन मुफ़्ती द्वारा मसरत जैसे कट्टर आतंकवादियों की रिहाई का पक्षाघात (लकवा) भाजपा की स्मृति में अंकित हो गया है.
महबूबा ने अपने पिता कि मृत्यु के बाद सरकार गठन के मामले को शोक के दिवस के नाम असहज सीमा तक लंबित किया और भाजपा से सौदेबाजी करती रही थी. कभी तेज तो कभी सौजन्यशाली भाषा से वह कश्मीर में सरकार गठन के मामले को अशोभनीयता तक लंबित करती रही किन्तु “मोदीशाहमाधव” अडिग ही रहे. मोदशाहमाधव की यह अडिगता भाजपा के पक्ष में कमोबेश आगे पीछे हो सकती है किन्तु राष्ट्र के विषय में निश्चित ही यह दीर्घकालीन परिणाम देगी. सरकार पुरे छः वर्ष चले अथवा न चले किन्तु कश्मीर में अब राष्ट्रबोध छः वर्षो से बहुत आगे की नीवं डाल चुका है यह स्पष्ट हो गया है. हां कुछ निर्णय अप्रिय, अशुभ व अनमने भी लिए गए हैं  जैसे सेना इस महीने के अंत तक श्रीनगर स्थित 212 एकड़ के टट्टू ग्राउंड सहित जम्मू-कश्मीर के चार बड़े स्थानों को खाली करेगी, सेना की उत्तरी कमान जम्मू विश्वविद्यालय परिसर के पास 16.30 एकड़ भूमि,  अनंतनाग के हाईग्राउंड स्थित 456.60 कनाल जमीन तथा कारगिल के निचले खुरबा थांग स्थित जमीन को जम्मू कश्मीर सरकार को सौंप देगी। यह निर्णय राष्ट्रबोध के विरोध में जाता है जिसके लिए भाजपा को तनिक आलोचना भी झेलनी पड़ेगी. विश्वास स्थापना के नाम पर किया गया सरकार गठन के पूर्व का यह निर्णय गठबंधन के लिए और राष्ट्र के लिए किरकिरी बना रहेगा.
महबूबा मुफ्ती का कहना कि उनके दिवंगत पिता मुफ्ती सईद का भगवा पार्टी के साथ गठबंधन करने का निर्णय उनके बच्चों के लिए एक पत्थर की लकीर व वसीयत की तरह है, जिसे अमल में लाना है, भले ही ऐसा करते हुए वे मिट जाएं; यह कथन भी एक गठबंधन के लिए एक पूँजी है जिसमे ब्याज जुड़ता है या पूँजी का घसारा होता है यह समय बतायेगा.
भाजपा के 25 विधायकों का मंडल व भाजपा के चुनावी गठबंधन के साथी सज्जाद लोन दोनों मिलकर विधानसभा में बड़े भाई की भूमिका में हैं, अतः भूमिका भी बड़ी चाहिए, यह संवाद भी हवा में है देखते हैं इसका क्या परिणाम आता है. उधर पनुन जो कि कश्मीरी पंडितों का एक महत्वपूर्ण संगठन है अब इस सरकार गठन के विरोध मे है.पनुन के संयोजक अग्निशेखर ने जिन आपत्तियों को उठाया है वे
महत्वपूर्ण हैं व उनकी चिंता भी सरकार गठन की प्रक्रिया में होनी ही चाहिए.
उल्लेखनीय: दिल्ली में पाकिस्तान दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में नमो सरकार के मंत्री प्रकाश जावड़ेकर सम्मिलित हुए. इसी कार्यक्रम में उपस्थित हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथियों ने कश्मीर समस्या के हल के लिए ‘राजनीतिक दृष्टिकोण’ अपनाने की मांग की और मोदी सरकार के ‘कठोर रवैये’ की निंदा की. गत वर्ष इस कार्यक्रम मे वी के सिंह के शामिल होने पर उनकी कड़ी आलोचना की गई थी.

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