छत्तीसगढ़ को लग रहा है पुलिसिया ग्रहण?

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गिरीश पंकज

देश के अनेक शहरों की तरह छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में भी इन दिनों पुलिसिया ग्रहण-सा लग गया है. एक पुलिस अधिकारी कोहराम मचा कर जाता है और दूसरा आता है, तो वह भी कम गुल नहीं खिलाता. शहर कोई भी हो, पुलिस की दबंगई (गुंडई का कुछ सौम्य शब्द-रूप है दबंगई) की खबरों का सिलसिला जारी रहता है. लोग भूले नहीं है, कि गत वर्ष बिलासपुर में एसपी के सामने ही सिपाहियों ने सिनेमाहाल के गेटकीपर की हत्या कर दी थी. गेटकीपर की गलती हो गई थी, कि वह सादे ड्रेस में ‘दबंग’ फिल्म देखने गए एसपी को (अपने अंतर्ज्ञाननेत्र से) पहचान नहीं पाया और उसे रोक दिया था. बस, एसपी के अनुचर पिल पड़े और गेटकीपर को इतनापीटा, कि बेचारा जान से गया. इसी तरह के अनेक हादसे होते है जिसमे पुलिस को कोई रोके या टोके तो यह बदतमीजी हो जायेगी. अभी हाल ही में बिलाइगढ़ की बात है. एक युवक सर्कस देखने गया. पुलिसवालों ने उसे रोक दिया युवक के पास टिकट था. फिर भी उसके साथ दुर्व्यवहार किया. उसे थाने ले जाया गया. बाद में लोगो का गुस्सा देख कर उसे छोड़ दिया गया.

इधर बिलासपुर की ताज़ा घटना फिर पुलिस के बर्बर चरित्र को बेनकाब करने के लिये पर्याप्त है. पुलिस ऐसा बता रही है, कि एक युवक ने पुलिस को तमाचा मार दिया लेकिन फिर उसके साथ पुलिस ने जो किया वह सबके सामने है. पुलिस ने उस युवक की जान भर नहीं ली, मगर उसे इतना मारा कि वह ठीक से चला नहीं पा रहा था. निसंदेह पुलिस के अधिकारी ने इतनी बदतमीजी की होगी कि युवक बर्दाश्त नहीं कर पाया होगा. और हो सकता है, उसका हाथ भी उठा गया हो. यह मानवीय प्रवृति है. लेकिन एक तमाचे की इतनी बड़ी ”अवैधानिक सज़ा” कि युवक की जान पर ही बन आये? ये कहाँ का न्याय है? न्याय करना न्यायालय का काम है. पुलिस अगर इसी तरह तालिबानी-न्याय करती रही तो लोकतंत्र का मतलब ही क्या रह जाएगा? युवक ने पुलिस पर हाथ उठा, उसे कोर्ट में पेश करो, जेल भेज दो. ये कौन-सा न्याय है कि उसकी बेदम पिटाई करो. युवक की पिटाई के बाद वहाँ के एसपी ने कहा, ”किसी खाकी वर्दी पर हमलाकर दुर्व्यवहार किया जाता है तो वह एसपी पर हमला है. पुलिस के स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ है. ऐसे मामले में मै समझौता नहीं कर सकता.” अब जनता भी तो यह कह सकती है, कि उस यवक की निर्मम पिटाई लोकतंत्र की निर्मम पिटाई है, यह लोकतंत्र का अपमान है. और लोकतंत्र से समझैता नहीं हो सकता” तो फिर क्या होगा?

इस देश में अभी लोकतंत्र है. हालत ऐसे दीख रहे है, कि कई बार लगता है, कि पुलिस का बस चले तो वह लोकतंत्र की ह्त्या ही कर दे. आये दिन होने वाली पुलिसिया घटनाये लोकतंत्र का गौरव नहीं लोकतंत्र की गरिमा खत्मकर रही है. पुलिस को जिस तरीके से स्वतंत्र कर दिया गया है, यह खेदजनक है. सबसे शर्मनाक बात यही लगाती है, कि जो कुरसी पर बैठता है, वह अपने बने रहने के लिये पुलिस को अभयदान-सा दे देता है. छत्तीसगढ़ में (शायद अनजाने में )यही हो रहा है. सत्ता की शह पा कर पुलिस लगातार निरंकुश होती जा रही है. हालत यह है, कि उसे इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि जिसे वह पीट रही है, वह व्यक्ति सत्ता-पक्ष से सम्बंधित है. पुलिस को पता है, कि उसे कुछ नहीं होगा. पुलिस की ऐसी निर्भयता खतरनाक है. पुलिस के मन में सत्ता का डर बना रहना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हो सका तो पुलिस को भस्मासुर होने से कोई नहीं रोक सकेगा. लोकतंत्र में पुलिस जनसेवा और जनसुरक्षा के लिये होती है, जन के दमन के लिये नहीं. एक तो आप जनता से हद दर्जे की बदतमीजी करे, और जनता का कोई प्रतिनिधि हिम्मत करके प्रतिकार करे तो उसकी जान लेने पर ही आमदा हो जाये? यह कैसा लोकतंत्र है? पुलिस और जनता के बीच आत्मीय रिश्ता बनना चाहिए. पुलिस को देख कर जनता के मन में सम्मान का भाव जागे, घृणा का नहीं. अभी केवल घृणा का भाव ही जगता है. क्योंकि कदम-कदम पर पुलिस केवल दुर्व्यवहार करती नज़र आती है. और फिर वह यह अपेक्षा भी करे कि लोग पुलिस के खिलाफ खड़े भी न हो, यह केवल मुर्दों के देश में हो सकता है. इस लिये अब समय आ गया है, कि पुलिस जनता को धौंसियाने की बजाय खुद में अपेक्षित सुधार लाए और लोकतंत्र का आदर करे. उसे हर घड़ी याद रहना चाहिए कि देश आज़ाद है और वह इस देश की जनता की सेवक है, उसकी मालिक नहीं.

बिलासपुर की ताज़ा घटना इस बात का सबूत है, कि पुलिस ने अपने को जनता से ऊपर समझ लिया है. जनता के दामन की अनेक घटनाये लगातार बढ़ रही है. फिर चाहे वह दुर्ग, रायपुर में हो, कांकेर में हों या बिलासपुर में. सरकार को पुलिस की निरंकुशता के लिये चेतावनी देनी ही चाहिए. वरना भविष्य में अनेक दुखद हादसे होते रहेंगे. सर्वाधिक हैरत तो विपक्ष को देख कर होती है. पुलिस अत्याचारों के विरुद्ध उसका व्यापक प्रतिकार नज़र ही नहीं आता? कारण क्या है, यह लोग समझ नहीं पा रहे है. बहरहाल, छत्तीसगढ़ शांति का टापू है. इसे शांति का टापू बनाये रखने में पुलिस ही कारगर हो सकती है.

2 COMMENTS

  1. इसी कालम में छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक का भी एक लेख छपा है.हो सकता है उन्होंने यह लेख न देखा हो,पर वे देख पाते तो उन्होंने जो प्रश्न उठाये हैं उसमे अधिकतर का उत्तर उन्हें मिल गया होता.प्रवक्ता के संपादक से मेरा अनुरोध है की वे इस लेख पर श्री विश्वरंजन की प्रतिक्रिया जानने का प्रयत्न करे.

  2. यह लेख पुलिस का असली चेहरा उजागर करती है. वाकई पुलिस का रवैया आम जन के प्रति सोतेला है …

    ……. बेबाक टिपण्णी के लिए बधाई ….

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