मलाला का संघर्ष, स्कूली छात्राओं के लिए प्रेरणादायक 

शैलेन्द्र चौहान
एक खबर के अनुसार स्कूली छात्राओं के प्रबोधन हेतु म. प्र. राज्य प्रशासन भोपाल द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि उन्हें नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई के शिक्षा अर्जित करने के लिए किये गए संघर्षों से पोस्टर प्रदर्शन द्वारा परिचित कराया जायेगा ताकि तमाम परेशानियों के बावजूद उन्हें पढ़ाई जारी रखने की प्रेरणा मिल सके. यह तब जब इंग्लिश, उर्दू और अरबी शब्द, क्रांतिकारी कवि पाश की एक कविता, मिर्जा ग़ालिब की शायरी और रविंद्रनाथ टैगोर के विचारों को टेक्स्ट बुक्स से हटाने समेत कई सुझाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) को भेजे हैं. इस न्यास के प्रमुख दीनानाथ बत्रा हैं जो आरएसएस के शैक्षणिक शाखा विद्या भारती के प्रमुख रह चुके हैं. एनसीईआरटी ने हाल ही में आम जनता से पाठ्य पुस्तकों में बदलाव से जुड़े सुझाव मांगे थे. न्यास ने एनसीईआरटी को पांच पन्ने में अपने सुझाव भेजे हैं. आरएसएस से जुड़े बत्रा ने एनसीआरटी को भेजे अपने सुझावों में अंग्रेजी, उर्दू  और अरबी के शब्दों के अलावा टैगोर, एमएफ हुसैन और गालिब का जिक्र हटाने की मांग की है. बत्रा को एनसीईआरटी की किताबों में गुजरात दंगों में 2000 लोगों के मारे जाने की जानकारी पर एतराज है. वे नहीं चाहते कि सिख विरोधी दंगों पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ओर से मांगी गई माफी के बारे में बताया जाए. तो क्या इस सरकार में स्कूली पढ़ाई से लेकर उच्च शिक्षा को लेकर होने वाले फैसले पर दीनानाथ बत्रा की ही छाप दिखेगी. यह सवाल इसलिए क्योंकि गुजरात में उनकी किताबों को सरकारी स्कूलों तक पहुंचाने की कवायद तो पूरी हो ही चुकी है. नई सरकार बनते ही देश के शिक्षा जगत में जितनी चर्चा दीनानाथ बत्रा की हुई उतनी शायद ही किसी और की हुई हो. दीनानाथ बत्रा का जन्म मौजूदा पाकिस्तान के डेरा गाजीखान में हुआ था. लाहौर यूनिविर्सिटी में पढ़ाई के बाद उन्होंने टीचर की नौकरी कर ली. कुरुक्षेत्र के श्रीमद भागवत गीता कॉलेज में प्रधानाचार्य भी रहे और रिटायर होते ही शिक्षा के क्षेत्र में एक नई भूमिका उनका इंतजार कर रही थी. दीनानाथ बत्रा बीजेपी और आरएसएस के लोगों के साथ मिलते जुलते हैं, मंच साझा करते हैं और अहम मुद्दों पर अपनी बड़ी सलाहें देने से भी नहीं चूकते. संघ की विचारधारा का समर्थक होने की वजह से दीनानाथ को आरएसएस के स्कूल चलाने वाले विद्याभारती का महासचिव बना दिया गया था. दीनानाथ बत्रा की विद्याभारती में क्या भूमिका थी ये इसी बात से साफ हो जाता है कि साल 2001 में कांग्रेस ने विद्याभारती की किताबों में सती प्रथा और बाल विवाह जैसी बातों के जिक्र पर एक प्रस्ताव पास किया था. इस आरोप के खिलाफ दीनानाथ बत्रा ने सोनिया गांधी को एक कानूनी नोटिस भेज दिया था. उस वक्त वह विद्याभारती के महासचिव थे और तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी के सलाहकार भी. दीनानाथ बत्रा को लेकर हो चुकी कुछ चर्चाएं भी सुन लीजिए. शोभा डे लिखा है कि स्कूल के एक रिटार्यड प्रधानाचार्य, दीनानाथ बत्रा अचानक राष्ट्रीय और अतंर्राष्ट्रीय अहमियत हासिल कर लेते हैं. अचानक उनकी शैक्षिक सिफारिशें गंभीरता ली जाने लगती हैं और सिर्फ इस एक शख्स का बेकाबू गुस्सा जाने कितने बेहतरीन शोधों की किस्मत तय कर देता है. वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि ये उनकी सोच के दायरे के मुताबिक नहीं था. शोभा डे यहां जिसका जिक्र कर रही हैं वह 85 साल की बुजुर्ग शख्सियत हैं दीनानाथ बत्रा . जिनकी सोच, नजरिया और कामकाज का तरीका अरसे से एक के बाद एक बड़ी बहस खड़ी करता रहा है. दीनानाथ बत्रा वही शख्स हैं जिनका जिक्र देश की संसद में होता है और वह भी तब जब यूपीएससी में सीसैट के पेपर पर भड़के गुस्से को संभालने के लिए नई सरकार के मंत्री संसद में बयान दे रहे होते हैं.दीनानाथ बत्रा वही शख्स हैं जिनकी किताबों को स्कूल में पढ़ाने के लिए गुजरात सरकार बाकायदा एडवायजरी यानी सलाह जारी करती है और दीनानाथ बत्रा की उन गुजराती किताबों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजराती में जो प्रस्तावना लिखते हैं उसमें दीनानाथ बत्रा को धन्यवाद देना नहीं भूलते. कुछ इस तरह – ‘एक अध्यापक देश के भविष्य को आकार देता है. इसका धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि गुजरात पाठ्यपुस्तक मंडल लेखक दीनानाथ बत्रा के साहित्य को प्रकाशित कर रहा है. ऐसी उम्मीद की जाती है कि ऐसा प्रेरणादायी साहित्य छात्रों और अध्यापकों को प्रेरित करेगा.’
दीनानाथ बत्रा ने कई किताबें हिंदी में लिखी हैं- जिन्हें लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. मसलन उन्होंने लिखा है कि भगवान राम ने जिस पुष्पक विमान का इस्तेमाल किया था वह दुनिया का पहला हवाई जहाज था. वैदिक गणित ही असली गणित है और इसे स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए. हमारे ऋषि दरअसल वैज्ञानिक थे जिनकी तकनीक, चिकित्सा और विज्ञान की नकल पश्चिमी देशों ने की. जिन किताबों की सिफारिश गुजरात के स्कूलों के लिए की गई उनमें लिखा है कि जन्मदिन पर केक खाना और मोमबत्ती जलाना गलत है. ऐसी बातों पर जब सवाल उठते हैं तो दीनानाथ बत्रा अपनी किताबों के विवाद पर सफाई भी देते हैं. किताब और मोदी के बीच कोई कनेक्शन होने से भी इंकार देते हैं बत्रा. लेकिन ये भी कहते हैं कि अगर मेरी किताबों से शिक्षा का भगवाकरण होता हो तो होने दीजिए. इन्हीं किताबों में एक विवाद अखंड भारत को लेकर दीनानाथ बत्रा की सोच पर भी है जिसमें भारत और पाकिस्तान ही नहीं बल्कि म्यांमार तक को अंखंड भारत में शामिल करके पेश किया गया है. इस मामले में वह संघ से भी आगे निकल गए हैं. मशहूर इतिहासकार इरफान हबीब की प्रतिक्रिया थी कि कि जब वह भूगोल को फैंटसी में बदल देंगे तो छात्रों को क्या पढा़एंगे. विवादों के बीच दीनानाथ बत्रा को समर्थन भी मिल रहा है. हिंदू संस्कृति को लेकर दीनानाथ बत्रा की सोच को लेफ्ट और कांग्रेसी विचारधारा से जुड़े लेखक साहित्यकार हिंदू कट्टरवादी बताते रहे हैं जबकि दीनानाथ बत्रा वामपंथी विचारधारा वाले लेखकों पर आरोप लगाते रहे हैं कि देश के साहित्य और इतिहास के साथ अन्याय किया जा रहा है.
शोभा डे लिखती हैं कि हो सकता है कई काम (किताबें, लेख) जांच के दायरे में हों. दीनानाथ के तोड़फोड़ दस्ता साल 2008 से ही सक्रिय हैं जब दिल्ली विश्वविद्यालय ने उनके दबाव के आगे घुटने टेक दिए थे और एके रामानुजन के इतिहास के कोर्स से रामायण पर लिखे निबंध को हटा लिया था. तब से ही बत्रा के मुंह में खून लग गया था. अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो वो साल 2011 में भगत सिंह के जिक्र को लेकर एनसीईआरटी की टेक्स्ट बुक के पीछे पड़ने की सोचते भी नहीं. दीनानाथ बत्रा खुद को लेखक नहीं मानते बल्कि वह खुद को किताबों का सोशल ऑडीटर कहते हैं. साल 2014 में अपनी इसी भूमिका को साबित करने के लिए उन्होंने वेंडी डोनिगर की किताब द हिंदू – एन आल्टरनेट व्यू का इतना विरोध किया कि आखिरकार प्रकाश पेंग्विन को ये किताब वापस लेनी पड़ी. वहीँ शिवराज सिंह चौहान भी दीनानाथ बत्रा की बात नहीं टाल पाए. सेक्स एजुकेशन को स्कूली पढ़ाई से हटाने का फैसला मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने दीनानाथ बत्रा के कहने पर ही किया था. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या श्री चौहान फिर वही करने जा रहे हैं जो बत्रा जैसे रूढ़िवादियों को कतई पसंद नहीं, और जो आरएसएस एवं मोदी जी के परम चहेते भी हैं. यहां एक विवाद अब यह भी पैदा हो रहा है कि एक ओर मलाला के संघर्ष को प्रेरक तत्व के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है तो मलाला के ही साथ नोबेल प्राप्तकर्ता कैलाश सत्यार्थी को जो स्वयं मध्यप्रदेश के ही हैं और जिनका बच्चों की मुक्ति को लेकर बड़ा काम है उन्हें प्रेरणास्रोत क्यों नहीं माना जा रहा?

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