जीएसटी पर केंद्र की सफलता

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gstवस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की राह में उत्पन्न सभी समस्याएं नई सरकार के आते ही दूर हो गई हैं। वस्तुत: जीएसटी का विचार केंद्र की तरफ से 2006 में आया था। इसे एक अप्रैल, 2010 से लागू होना था। तत्कालीन संप्रग सरकार ने वर्ष 2011 में जीएसटी विधेयक भी पेश किया, लेकिन केंद्र और राज्यों के बीच सहमति न बनने के कारण यह अभी तक अटका पड़ा है। अब इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकार चलाने का कुशल प्रबंधन नहीं कहें तो और क्या कहा जा सकता है‍ कि कल तक जो राज्य सरकारें कर वसूली के केंद्रीय मापदंडों और संयुक्त व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थीं, जिसमें कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी जिन राज्यों में कांग्रेस सरकारें थीं, उनके मुख्यमंत्री भी इस करावधान को लेकर अपनी असहमति जता रहे थे, उन्हें भी डर था कि राज्य प्राप्ति का अधि‍कतम हिस्सा कर के रूप में प्राप्त करने वाली राज्य सरकार के सामने इसके लागू होते ही आर्थिक रूप से समस्याएं पैदा होना शुरू हो जाएगा। क्योंकि टैक्स राशि‍ का बहुत बड़ा हिस्सा उनके हाथ से निकलकर सीधा केंद्र के पास पहुंच जाएगा। पर अब नई राज्य सरकार के आने के बाद किसी राज्य की सरकार को नहीं लग रहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अपने प्रदेश में लागू करने से उन्हें कोई हानि होने वाली है।

‍वस्तुत: अप्रत्यक्ष करों के क्षेत्र में लाए जाने वाले इस नए कानून से उत्पाद एवं सेवाकर तथा राज्यों में लगने वाले मूल्यवर्धित कर यानी वैट इसमें समा जाएँगे। इसके अलावा स्थानीय शुल्क, उपकर और अधिभार भी समाप्त हो जाएँगे। जीएसटी के लागू होने पर केंद्र और राज्यों के स्तर पर कई अप्रत्यक्ष कर समाप्त हो जाऐंगे। इससे मैन्यूफैक्चरिंग को बल मिलेगा और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि होने की उम्मीद है। इसके कारण जनता को लाभ मिलेगा लेकिन राज्यों की आय में कमी आएगी।

सरल शब्दों में कहें तो जीएसटी एक ऐसा टैक्स है, जो राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी सामान या सेवा की मैन्युफैक्चरिंग, बिक्री और इस्तेमाल पर लगाया जाता है। इस सिस्टम के लागू होने के बाद चुंगी, सेंट्रल सेल्स टैक्स (सीएसटी), राज्य स्तर के सेल्स टैक्स या वैट, एंट्री टैक्स, लॉटरी टैक्स, स्टैप ड्यूटी, टेलीकॉम लाइसेंस फीस, टर्नओवर टैक्स, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाले टैक्स, सामान के ट्रांसपोटेर्शन पर लगने वाले टैक्स इत्यादि खत्म हो जाएंगे।

इस कारण से केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को जो आश्वासन जीएसटी के लागू होने पर राजस्व हानि की भरपाई के संबंध में दिया जा रहा था वह उन्हें रास नहीं आ रहा था। राज्यों को लगता था कि केंद्र जो सुझाव दे रहा है उससे उनकी हानि अधि‍क है। प्रदेश इस बात की मांग पर अड़े थे कि राजस्व क्षतिपूर्ति का प्रावधान संविधान में किया जाए। चौदहवें वित्त आयोग के साथ जब इसे लेकर राज्यों के वित्त मंत्रियों की बैठक हुई थी तो उसमें भी यही मांग राज्यों की ओर से प्रमुखता से उठाई गई थी। उस समय वित्त आयोग के समक्ष राज्यों ने दलील दी कि जीएसटी के लागू होने पर अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में व्यापक बदलाव होंगे। इसका असर राज्यों के राजस्व पर पड़ना तय है। वस्तु एवं सेवा कर लागू होने से पहले केंद्रीय बिक्री कर की दरों में जब कमी की गई थी। जब भी इसके कारण राज्यों को राजस्व क्षति हुई। इस क्षति की पूर्ति पूरी तरह अब तक नहीं हुई है। यह टैक्स लगाता तो केंद्र है, लेकिन इसकी वसूली राज्य सरकारें करती हैं।

राज्यों ने केंद्र को सुझाया था कि इस क्षतिपूर्ति का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 270 में किया जाए। राज्यों की प्रमुख मांग यह है कि वे पेट्रोलियम, तंबाकू और शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना चाहते हैं। इसके अलावा राज्य जीएसटी से छूट प्राप्त वस्तुओं की सूची को संविधान संशोधन विधेयक में शामिल करने की मांग भी कर रहे हैं। जीएसटी लागू होने पर राजस्व हानि की भरपायी के लिए पांच साल तक क्षतिपूर्ति पैकेज देने और उसका प्रावधान भी संविधान संशोधन विधेयक में करने की मांग प्रदेश सरकारें करती रही हैं। राज्यों का करीब 13,000 करोड़ रुपये का केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) क्षतिपूर्ति पैकेज केंद्र पर अभी भी बकाया है।

वास्तव में यही वह कारण थे जिनके कारण देशभर में जीएसटी लागू करने में राज्य सरकारें आना-कानी कर रही थीं लेकिन जैसा कि अब लग रहा है केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ मिलकर इसके लिए बीच का रास्ता निकालने पर विमर्श किया और उसके बाद जेटली अपनी आर्थिक विशेषज्ञों की सरकारी टीम को लेकर ऐसा रास्ता खोजने में लग गए कि जीएसटी लागू करने से किसी राज्य को कोई राजस्व प्राप्ति का घाटा नहीं उठाना पड़े, अब जाकर उन्हें सफलता भी मिल गई है। जब इस बात को आगे बढ़ाया गया तो देश के लगभग सभी राज्य केंद्र की योजना में अपनी सहमति के लिए तैयार हो गए।

तभी तो आज जीएसटी लागू करने को जरूरी संविधान संशोधन के लिए प्रस्तावित विधेयक के अधिकांश प्रावधानों पर केंद्र और राज्यों के बीच सहमति बन गई है। वित्तमंत्री जेटली ने कहा भी है कि सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, एक्साइज ड्यूटी को हटाकर जीएसटी बनाया जा रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद सारे टैक्स हटेंगे। ये टैक्स सिस्टम सुधार का सबसे बड़ा कदम है। जीएसटी के तहत पूरे देश में एक ही रेट पर टैक्स लगेगा। पूरे देश में 12-16 फीसदी का टैक्स रेट होगा।

वैसे भी उपकर (सेस), अधिभार (सरचार्ज), लेन-देन पर कर और लाभांश वितरण कर को लोक वित्त के सिद्धांतों में खराब माना जाता है इसलिए इन्हें खत्म करने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त यह भी सच है कि दुनियाभर में उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कंपनियों पर सर्वाधिक कर भारत में ही लगते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कर की जो दरें हैं उसके औसत के बराबर कर दर हम भारत में रखें। ऐसा होने पर वैश्विक और भारतीय कंपनियों के लिए निवेश का अच्छा अवसर यहां मिल सकेगा । जीएसटी लागू होने से देश की जीडीपी 2 फीसदी तक बढ़ सकती है। इससे टैक्स चोरी कम होगी और टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा। इसके आने के बाद टैक्स का ढांचा पारदर्शी होगा और असमानता नहीं होगी। विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि देश में बहुत सीमा तक टैक्स विवाद कम होंगे। जीएसटी लागू होने से ढेरों टैक्स कानून और रेगुलेटरों का झंझट नहीं होगा। साथ ही, सब कुछ ऑनलाइन होगा।

वित्त मंत्री अरुण जेटली की यह बात भी गौर करने लायक है कि जीएसटी वित्तीय क्षेत्र का अहम विधायी सुधार है। वर्तमान स्थि‍तियों को देखकर उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र और राज्यों के बीच सहमति बनने पर बहुप्रतीक्षित जीएसटी एक अप्रैल, 2016 से लागू हो जाए। केंद्र के स्तर पर जीएसटी लागू करने के लिए जरूरी सूचना तकनीकी तंत्र भी तैयार है। यह देश के हित में होगा कि जीएसटी लागू होने से सभी राज्यों में टैक्स एक समान हो जाएंगे। वस्तुओं को, खासकर खाद्य वस्तुओं को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाना आसान होगा। ज्यादातर वस्तुओं की कीमतें सभी राज्यों में एक समान हो जाएंगी। वास्तव में आज इसे केंद्र सरकार की बहुत बड़ी सफलता माना जाएगा कि उसने इतने पैचीदगीभरे मामले पर राज्यों को सहमति के लिए तैयार कर लिया  है। इसे मोदी मैजिक या गुडगवर्नेंस का सटिक उदाहरण माना जाए  तो भी कोई हर्ज नहीं है ।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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