माओवाद के विरुद्ध निर्णायक युद्ध का समय

ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजद सरकार के विधायक झीना हिकाका को माओवादियों द्वारा बंधक बनाने की घटना ने माओवादियों के बुलंद हौसले और सरकार की कमजोरी को तो उजागर किया ही है, साथ ही राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार के मध्य चले आ रहे टकराव को भी सार्वजनिक कर दिया है| इससे पहले दो हफ्ते पूर्व माओवादियों ने ओडिशा से ही दो इतावली पर्यटकों को बंधक बना कर सरकार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा था| संबंधित मामले में राज्य सरकार वार्ता की प्रक्रिया का अनुमोदन कर ही रही थी कि अब जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि के माओवादियों द्वारा बंधक बनाए जाने की घटना ने हमारे सूचना तंत्र तथा सुरक्षा व्यवस्था के खोखलेपन को प्रदर्शित किया है| बीजद विधायक का अपहरण इसलिए भी चौंकता है क्योंकि इतावली पर्यटकों की रिहाई की बात भी माओवादियों की मांगों के अनुरूप ही चल रही थी| तो फिर माओवादियों के इस दुस्साहस को क्या यह मान लिया जाए कि अब स्थिति सरकारों के नियंत्रण से बाहर हो गई है? क्या माओवादियों के समानांतर सत्ता चलाने के मंसूबे को और धार मिलने लगी है जिसकी वजह से वे कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं? हाल के वर्षों में ऐसी घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से बढोत्तरी तो यही संकेत करती है|

 

सुरक्षा एजेंसियों की माने तो बीजद विधायक का अपहरण सत्ता समीकरणों की वजह से नहीं बल्कि माओवादी गुटों के बीच वर्चस्व की लड़ाई को लेकर हुआ है| यदि सुरक्षा एजेसियों की बात पर भरोसा कर भी लिया जाए तो क्या सरकार का यह फ़र्ज़ नहीं बनता कि माओवाद की चुनौती से मजबूती से निपटा जाए? क्या सरकार का यही कर्त्तव्य है कि वह माओवादी गुटों के बीच जारी संघर्ष के प्रति मात्र जनता को आगाह करती रहे और हाथ पर हाथ धरे उनकी आपसी अदावत को देखे? यदि यह बात सत्य है कि ओडिशा में माओवादी गुटों में बंट गए हैं और आपस में ही लड़ रहे हैं तो सरकार के लिए तो उन्हें समाप्त करना और आसान है| आपसी एकता में लगा घुन माओवादी गुटों के अस्तित्व पर प्रश्न-चिन्ह लगा सकता है| किन्तु प्रतीत होता है कि सरकार को माओवाद की चुनौती से अधिक खतरा केंद्र द्वारा राज्य के संघीय ढांचे से छेड़छाड़ के संभावित कदम से है|

 

गौरतलब है कि राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र पर विरोध की शुरुआत ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने ही की थी| और आज जबकि उनकी ही पार्टी का विधायक माओवादियों द्वारा अपहृत हो चुका है तो नवीन पटनायक केंद्र सरकार की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं| नवीन पटनायक को यह समझना चाहिए था कि आतंकवाद या माओवाद मात्र राज्य से संबंधित मामला नहीं है| यह तो सीधे-सीधे देश की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देना है| ऐसे में यदि केंद्र सरकार एक मजबूत कानून बनाकर राज्य सरकारों को आतंरिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु आश्वस्त कर रही है तो फिर उसकी मंशा का विरोध क्यूँ? चाहे आतंकवाद हो या माओवाद, दोनों से तब तक नहीं निपटा जा सकता जब तक केंद्र और राज्य बेहतर समन्वय बनाकर इनकी चुनौती को स्वीकार नहीं करते| फिर वर्तमान परिपेक्ष्य में माओवाद ऐसी ज्वलंत समस्या बन चुका है जिसका खात्मा अकेले राज्य सरकार के बस में नहीं है| केंद्र सरकार के राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र कानून पर जितना राग क्षेत्रीय दलों की सरकारों ने अलापा है; उसका सीधा सा असर संबंधित राज्य की कानून व्यवस्था पर पड़ा है| राज्य सरकारों के विरोध से माओवादी गुटों को निश्चित रूप से ताकत मिली होगी| वे भी इस तथ्य को अच्छी तरह समझ चुके हैं कि राज्य सरकारों के पास उनके समूल नाश हेतु आवश्यक संसाधनों का अभाव है| ऐसे में सत्तारूढ़ सरकार के विधायक का अपहरण कर उन्होंने अपने खतरनाक इरादों को ज़ाहिर कर यक़ीनन ही नहीं वरन देश की संप्रभुता पर कुठाराघात किया है|

 

अब जबकि इस पूरे मामले को लेकर केंद्र भी अतिरिक्त सतर्कता बरत रहा है तथा नवीन पटनायक केंद्रीय गृहमंत्री के सीधे संपर्क में है, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार दोनों मिलकर राजनीति से परे माओवाद के समूल नाश हेतु दृढ संकल्पित होंगे और अपरिहार्य कदम उठाएंगे| सत्तारूढ़ सरकार के विधायक का अपहरण कर माओवाद ने यह पुनः साबित किया है कि उसके बारे में जो भी पूर्वानुमान थे, वह उससे आगे बढ़कर ऐसे कदम भी उठा सकता है जिससे सरकार घुटनों के बल आ जाए| माओवादी आंदोलन के रक्त-रंजित इतिहास एवं तात्कालिक घटनाओं से सबक लेते हुए माओवाद के खात्मे हेतु सरकार को ठोस कदम उठा लेना चाहिए ताकि बार-बार की सरदर्दी खत्म हो| और यदि अब भी सरकार ने ठोस एवं सार्थक कदम नहीं उठाये तो माओवाद पूरे देश में समानांतर सत्ता का ऐसा जाल बिछाएगा जिसे काट पाना सरकार के लिए संभव नहीं होगा|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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