वेटिकन, ब्रदरहुद का एजेंडा और वाल्टीमोर का सच?

-डॉ. अजय खेमरिया-

ObamaAFP

अमेरिका की एक संस्था ने भारत में धार्मिक आजादी को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े करते हुए राष्ट्रपति, बराक हुसैन ओबामा से कहा है कि वे भारत पर इस बात के लिए दबाव बनाये कि वहां की सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों की आजादी की सुरक्षा सुनिश्चित करें। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दलित ईसाइयों के घर गिरिजाघर में तब्दील हो गए हैं. क्योंकि बहुसंख्यक हिन्दू समाज के भय से ये लोग गिरिजाघरों में नहीं जा पा रहे हैं. पूरी दुनिया के मीडिया में यह रिपोर्ट इन दिनों छायी हुयी है. डेली टेलीग्राफ, न्यूयार्क टाइम्स, आब्जर्वर, वाशिंगटन पोस्ट, जैसे अखबारों ने इस अमेरिकी रिपोर्ट को प्रमुखता से छापा है। बी.बी.सी. ने भी इस रिपोर्ट को आधार बनाकर गत रोज एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया. विदेशी मीडिया में कुछ इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है कि भारत में मोदी सरकार के आने के बाद अल्पसंख्यकों की आजादी खतरे में पड़ गयी है. यही कोण दुनिया में ईसाइत की ताकतवर पूंजी को स्वयंसिद्ध करता है. दुर्भाग्य से हमारे देश में जो लोग वेटिकन के टुकड़ों पर पलते हैं उन्हें अपना एजेंडा लागू करने का मौका मिल गया है. पूरी दुनिया को “वसुधैव कुटम्बकम” का जीवन दर्शन देने वाले भारत को क्या किसी अमेरिकी प्रमाणपत्र की आवश्यकता है? यह सवाल इसलिए मौजूं है क्योंकि इस देश की नीतियां पिछले दो दशक से अमेरिका परस्त हो चुकी है हम हर मामले में अमेरिका की ओर देखते है. इसीलिए देश दुनिया में इस रिपोर्ट की चर्चा हो रही है। लेकिन हम इस मामले को धर्मान्तरण की पूंजीवादी ताकतों के परिप्रेक्ष्य में खंगालने की कोशिश करें तो सबकुछ साफ नजर आता है कि कैसे वेटिकन का एजेंडा लागू करने के लिए हमारे ऊपर वैश्विक दबाव बनाया जा रहा है. हाल ही में सरकार ने देश के 9000 एन.जी.ओ. के लायसेंस रद्द कर दिए. फोर्ड फाउन्डेशन और ग्रीन पीस जैसे अन्तर्राष्ट्रीय एन.जी.ओ. के विरूद्ध सरकार ने सख्त कारवाई संस्थित की. ये वे एन.जी.ओ. हैं जो बड़े पैमाने पर विदेशों से चंदा प्राप्त करते हैं और उसका कोई हिसाब सरकार को नहीं देते हैं. कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने भी अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में चार हजार ऐसे एन.जी.ओ. के लायसेंस रद्द किए थे. देश की खुफिया एजेंसी आई.बी. एवं रॉ ने इन सभी एन.जी.ओ. के विरूद्ध गंभीर सूचनायें सरकारों को दी थी। कुछ समय पूर्व राजीव मेहरोत्रा की एक किताब “ब्रेकिंग इंडिया” में विस्तार से इन एनजीओं की करतूतों को उजागर किया गया था. अपनी शोध परक इस पुस्तक में राजीव ने प्रमाणों के आधार पर बताया कि कैसे ग्रीनपीस फोर्ड फाउन्डेशन आदि भारत की मुख्यधारा की राजनीति, समाज, नीति निर्माण, यहां तक की विदेश नीति को प्रभावित करने के लिए सशक्त दबाव समूह के रूप में काम कर रहे हैं, इसके बदले में इन्हें विदेशों, खासकर वेटिकन, और मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे संस्थानों से करोड़ों डॉलर प्राप्त होते हैं. भारत के आधारभूत विकास से जुड़े प्रोजेक्टों पर एन.जी.ओ. के प्रभाव को भी इस शोध में दिखाया गया है। जानी मानी लेखक मधु किश्वर ने इस अमेरिकी रिपोर्ट के संदर्भ में भारत की छवि वैश्विक रूप से खराब कर धर्मान्तरण के एजेंडे पर अपनी आपत्ति दर्ज करायी लेकिन उनकी बात को अनसुना कर दिया गया. महत्वपूर्ण बात यह है कि ये रिपोर्ट ठीक उस समय जारी की गयी, जब भारत सरकार ने इन संदिग्ध एनजीओ को कसने का काम किया और उधर अमेरिका के वाल्टीमोर शहर में एक हफ्ते से इसलिए कर्फ्यू लगा है क्योंकि वहां एक काले अमेरिकी नागरिक को गोरी अमेरिकी पुलिस ने मार डाला। अमेरिका में अब तक इसी नस्लभेद के चलते 320 युवक गोरी पुलिस की गोली खाकर अपनी जान गंवा चुके है. यानि भारत को धार्मिक आजादी का उपदेश देने वाला अमेरिका खुद अपने ही घर में काले रंग के कारण अपने नागरिकों को गोली से उड़ाने में पीछे नहीं है. दुनिया के सामने लोकतंत्र का ठेकेदार बनने वाला अमेरिका खुद नस्ल और जाति के आधार पर जब अपने ही नागरिकों के बीच समानता स्थापित करने में नाकाम है वह भारत को किस आधार पर धार्मिक आजादी का उपदेश दे रहा है? कोण आसानी से समझा जा सकता है. और वह है वेटिकन। पूरी दुनिया में वेटिकन की पूंजी से ईसाइत का प्रचार और धर्मान्तरण वर्षों से चला आ रहा है. एन.जी.ओ. इस धर्मान्तरण का सबसे सशक्त और सरल जरिया है। ग्रीनपीस की रिया पिल्लई म.प्र. के आदिवासियों के तथाकथित उत्पीड़न की शिकायतें लेकर इंग्लैंड के सांसदों के यहां जा रही थी. सरकार ने उन्हें एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया इसमें क्या गलत था? क्या रिया पिल्लई को भारत के संविधान में भरोसा नहीं था? डॉ. विनायक सेन का मामला भी हमें याद है जिन्हें हाइकोर्ट ने नक्सलियों से रिश्ते का दोषी पाया लेकिन ग्रीनपीस, एन.बी.ए. जैसे संगठनों ने कैसा नाटक किया था यानि देश की न्यायिक व्यवस्था कानून, संसद, सबसे ऊपर है विदेशी फंड से चलने वाले एन.जी.ओ.? गुजरात दंगा पीड़ितों के नाम पर तीस्ता सीतलवाड़ ने पूरी दुनिया के मुस्लिम देशों से कैसे धन हासिल किया और बाद में सुप्रीम कोर्ट तक ने तीस्ता की कहानियों को फर्जी करार दिया। इसके बावजूद तीस्ता दुनिया के इस्लामी देशों की चहेती बनी हुयी है. कुल मिलाकर ईसाइत और इस्लामिक धन के सहारे भारत में धनी मानी राष्ट्र अपना एजेंडा लागू करते रहें एन.जी.ओ. की तथाकथित यही तक सीमित है। भारत की कोई भी सरकार हो यदि इन पर निगरानी करती है, नकेल कसती है या सिर्फ अपने खातों की जांच कराने के आदेश दें तो वेटिकन और ब्रदरहुड के इशारों पर इस तरह की रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर जारी कर दी जाती है जिनसे पूरी दुनिया में भारत की छवि खराब हो और हमारे देश में मौजूद इनके लाखों एजेंट हो हल्ला मचायें। जरा गौर से सोचिए जिस अमेरिका ने इस रिपोर्ट को जारी किया है क्या उसके मुखिया ओबामा ने अपने जनवरी के भारत दौरे में नहीं कहा था कि स्वयं और मिशेल ओबामा के परिवार अमेरिकी समाज में रंगभेद का शिकार हो रहे हैं. ताजा वाल्टीमोर शहर में जो कुछ घटित हो रहा है क्या ये भारत में तथाकथित धार्मिक असहिष्णुता से कम है क्या? लेकिन दुनिया के दरोगा को यह सब नहीं दिखता क्योंकि वेटिकन इसे क्षम्य और शौर्य का प्रतीक मानता है. असल में भारत की प्रगति और उसका आर्थिक भविष्य का कोण भी दुनिया के धनीमानी विकसित राष्ट्रों को परेशान करता है. अमेरिका की जिस संस्था ने इस रिपोर्ट को जारी किया है उसे बनाने वाले रॉबर्ट पी. जार्ज और प्रो. जेसासा कैथोलिक कन्जरवेटिव समुदाय से जुड़े हैं जिनका घोषित एजेंडा दुनियाभर में धर्मान्तरण पर टिका है. यह वही संस्था और चेहरे हैं जिनकी अनुशंसा पर नरेन्द्र मोदी को गुजरात के सीएम रहते हुए अमेरिकी प्रशासन ने वीसा देने मना कर दिया था। ऐसे पूर्वाग्रही और हिडन एजेंडा चलाने वाले चेहरों की प्रमाणिकता स्वयंसिद्ध है. सच्चाई तो यह है कि भारत में धार्मिक आधार पर जितनी आजादी है वैसी दुनिया के किसी लोकतांत्रिक देश में नहीं है. लेकिन इसके बावजूद कभी मानवाधिकारों, कभी धार्मिक आजादी, कभी भारत की बेटी (निर्भया) के नाम पर ‘वेटिकन’ और ‘ब्रदरहुड’ हमें नीचा दिखाने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहते है. हमारा दुर्भाग्य यही है कि इनके इशारों पर हमारे ही समाज के कुछ चंद लालच में आकर राष्ट्रहित को तिलांजलि देकर षड्यंत्रों के सुर में सुर मिलाने लगते हैं. सरकार ने जिस सख्ती के साथ इस अमेरिकी रिपोर्ट को खारिज किया है वह स्वागत योग्य है. क्योंकि सच यही है कि भारत को किसी दीगर प्रमाणपत्र की कतई आवश्यकता नहीं है।

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  1. भारत में आये दिन सभी धार्मिक स्थानो में चोरियां होती हैं। यह किसी संगठन का कृत्य नहीं है. कोल्कता नन बलात्कार कांड के अपराधी पकड़े गए है इस सूचि में देखिए की सभी लोग अपराधी हैं किसी संगठन के नहीं हैं,. जावरा (म.pr )के एक माधवानंद आश्रम में तो चोरी भी हुई और महंत को पीट पीट कर लहूलुहान कर दिया. मुंबई के एक चर्च में एक ईसाई लड़के को चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया है. इराक से एक ईसाई पादरी को भारत छुड़ाकर लाया। उस पादरी ने इसका श्रेय मोदी को दिया है। वेटिकन है कहाँ और वेटिकन के कारनामो की वजह से वह सिकुड़कर केवल एक छोटीसी तहसीलनुमा जगह रह गयी. और जहाँ तक अमेरिका का सवाल है वह तो दुनिया का पटेल/सरपंच/चौधरी स्वयमेव है. यमन सीरिया िारक में वह सरकार और विद्रोहियों दोनों को एक साथ हतियार देता है. अमरीका को तो आनंद विएतनाम में आया था.वैसा अब होने वाला है. एक बार मध्यपूर्व के देशों को समझ आ जाय तब अमेरिका की वास्तविकता पता चलेगी। वेटिकन तो अब छोटीसी तहसील नुमा जगह है. ब्रदर हुड के लोग ज़रा एतियोपिया ,सूडान, सोमालिया ,यमन। और अनन्यन देशों में जाकर गरीब मुस्लिम नागरिकों के घरों पर जो बोम्बारी हो रही उसे देखें तो?यमन,सीरिया के नागरिक ठिकानों के मकान कितने धवस्त हैं?भारत के परामर्श और सीख की जरूरत नही है.

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