हिमाचल में आम आदमी पार्टी का अस्तित्व

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भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस पार्टी को यह राहत भरी खबर है कि हिमाचल में आम आदमी पार्टी का नेतृत्व एक ऐसा व्यक्ति कर रहा है जिसने भारतीय जनता पार्टी के राज के दौरान राजस्व मंत्री के रूप में गलत निर्णय लेकर लगभग 5 लाख परिवारों के हाथ काट कर सरकारी फाईलों में नस्ती कर रखे है जिस का दंस आजतक लोग झेल रहे हैं |

राजस्व मंत्री के रूप में इस व्यक्ति ने एक घोषणा के अंतर्गत लोगों को विश्वास दिलाया था कि जिस-जिस ने सरकारी भूमि पर कब्ज़ा कर रखा है उसका नियमितीकरण कर दिया जायेगा जिसके लिए लोगों को कागजात माल के साथ-साथ एक ब्यानहल्फी भी जमा करवाना होगा कि उन्होंने कितनी सरकारी भूमि पर कब्ज़ा कर रखा है | लोगों ने इस घोषणा में विश्वास करके दस्तावेज जमा करवा दिए व ब्यानहल्फी देकर अपने गुनाह को कबूल कर के अपने हाथ कलम तो करवा दिए परन्तु सरकारी रकबे का नियमितीकरण आज तक न हो पाया क्योंकि यह घोषणा गैर-क़ानूनी थी जिसकी पुष्टि बाद में हि.प्र. उच्च न्यायालय ने भी एक केस में की है | इस गैर-क़ानूनी घोषणा के कारण न जाने कितने ही प्रधानों व अन्य पंचायत सदस्यों को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ रहा है | क्या हिमाचल के लोग ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व में चल रही पार्टी को अपना समर्थन दे पायेंगें | यह एक बड़ा प्रश्न है, जिसका उत्तर भविष्य की कोख में छुपा है | लेकिन भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी राहत की खबर है कि आम आदमी पार्टी का नेतृत्व हिमाचल में यह व्यक्ति कर रहा है |

जब अन्ना हजारे ने दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का डंका बजाया था व बाद में केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन कर के दिल्ली के विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीत कर खलबली मचा दी थी, उस समय हिमाचल में कुछ देशभक्त व ईमानदार लोगों ने आम आदमी पार्टी का आगमन खुले दिल से हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में भी किया था व पूरे प्रदेश का दौरा करके लोगों में एक आस बाँध दी थी कि आने वाले समय में उन्हें बीजेपी व कांग्रेस का विकल्प मिल पायेगा परन्तु ऐसा नही हो पाया | संसदीय चुनाव के दौरान गलत लोगों को टिकट देकर चुनाव में उतारने की वजह से लोगों ने पार्टी को नकार दिया तथा एक बार फिर आम आदमी पार्टी के अस्तित्व का प्रश्न उठ खड़ा हुआ |

समय बीतता गया व दिल्ली में विधानसभा चुनाव का दोबारा शंखनाद हुआ | चुनाव प्रचार के दौरान लगा कि यह चुन्नव आम आदमी पार्टी के लिए “जियों और मरों” की तरह साबित होगा और वैसा ही हुआ भी | आम आदमी पार्टी ने अपने को दोबारा जिंदा कर के मोदी सरकार के बढ़ते कदम को रोक लिया | केजरीवाल ने 70 में से 67 सीटें जीत कर दोबारा पूरे भारतवर्ष में उर्जा का संचार किया | हिमाचल के कुछ घिसे-पिटे नेताओं को लगा कि अपने परिवार के विस्थापन का मौका इससे अच्छा दोबारा नही मिल पायेगा | अत: वे आम आदमी पार्टी की बागडोर अपने हाथ लेने में सफल हो गये | लेकिन अब देखना यह है कि क्या हिमाचल के लोग इन जले हुए कारतूसों को अपना समर्थन दे पाएंगे या नही |

आम आदमी पार्टी की दिल्ली की सत्ता में विराजने के उपरान्त पार्टी में भारी घमासान चल रहा है जो दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है | इस का क्या अंत हो पायेगा या फिर पार्टी दो भागों में बंट जाएगी, का उत्तर 28-29 मार्च को होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में ही स्पष्ट हो पायेगा | क्या पार्टी में आये इस तूफ़ान में पैराशूटी नेता हिमाचल में टिक पाएंगे या फिर इतिहास बन कर राजनितिक भंवर में धंस जायेंगे, यह भी आने वाला समय ही बतायेगा | यदि पार्टी का नेतृत्व अच्छे व्यक्ति के हाथ आए तो वह दिन दूर नही जब हिमाचल के लोग बीजेपी व कांग्रेस को छोड़ कर तीसरे विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी को गले लगा लेंगे | लेकिन क्या यह संभव हो पायेगा, यह भी तो आने वाला वक्त ही बतायेगा |

आम आदमी पार्टी का नेतृत्व किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में आना चाहिए जो नेता नहीं सृजेता बनने की चेष्ठा रखता हो | जिसमें समाजसेवा व लोकसेवा की पवित्र भावना हो तथा सचमुच ही देश एवं समाज के लिए कुछ करना चाहता हो तो कोई मजाल नही कि तीसरा विकल्प हिमाचल की राजनीति में राज न करे | लोग आज दोनों, कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी की तू–तू मैं-मैं की राजनीति से ऊब चुके हैं लेकिन तीसरा विकल्प कोई पार्टी दे नही पा रही है जिस कारण लोग हर पांच साल के बाद कभी कोंग्रेस तो कभी भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने के लिए मजबूर है | आखिर अब समय आ गया है जब तीसरे विकल्प को परिवारवाद की राजनीति छोड़ कर जनसेवा का दरवाजा खोलकर सत्ता में आने का प्रयास करना होगा | परन्तु यह संभव तभी होगा जब पार्टी का नेतृत्व नेता नही बल्कि सृजेता करेगा | दिल्ली के विधानसभा चुनाव में यह साबित हो गया कि यदि नेतृत्व करने वाला व्यक्ति सृजेता, ईमानदार व देश के प्रति समर्पित हो तो लोग एक बार नही तो दूसरी बार गले लगा ही लेते हैं | केजरीवाल को उसकी ईमानदारी, समर्पण की भावना व अंहकार रहित व्यक्तित्व का फल लोगों ने दिया और दूसरी तरफ मोदी सरकार के अंहकार व अनाबशनाब बयानबाज़ी तथा कीचड़ उछालने की प्रवृति को झाड़ू लगा कर कूड़ेदान में डाल दिया | यह भारतीय प्रजातंत्र का आज तक का सबसे बड़ा केजरीवाल के लिए उपहार व मोदी के लिए प्रहार था और यही भारतीय प्रजातंत्र की खुबसूरत है | लोगों ने नेताओं को यह बता दिया कि अब आप गुमराह करके व ढोल-बाजे बजा कर उन के वोट बटोर नही सकते बल्कि उन्हें धरातल पर चल कर धरातलीय परिस्थितियों के अनुरूप लोगो के लिए ईमानदारी से काम करना होगा |

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लगातार ऊँचे होते राजनितिक कद को पहली बार बड़ी चुनौती मिली है | उनके कंधे पर दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ रही बीजेपी के कमल को आम आदमी पार्टी ने कील दिया तथा पार्टी को धूल चटा दी | करीब दो साल पहले राजनितिक सफ़र की शुरुआत करने वाली अरविन्द केजरीवाल की इस पार्टी ने दिल्ली की सत्ता के लिए बीजेपी का 16 साल का इन्तजार और बढ़ा दिया है | कभी अजेय मानी गयी कांग्रेस तो इस चुनाव में खाता भी नही खोल सकी |

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने ऐसी झाड़ू फेरी कि 70 में से 67 सीटें अपनी झोली में डाल लीं और कांग्रेस ही नही, बीजेपी को भी कूड़ेदान में डाल दिया | कहते है कमल कीचड़ में फलता-फूलता है इसलिए केजरीवाल ने अपने विरोधी बीजेपी पर कीचड़ न फैंक कर कमल को मुरझा दिया जबकि दूसरी तरफ केजरीवाल के झाड़ू ने मोदी के फैंके कीचड़ को इकट्ठा करके कूड़ेदान में डाल दिया व मोदी के स्वच्छ भारत में अपना सहयोग दिया |

केजरीवाल ने पहली बार की सरकार के 49 दिन के शासन में बिजली-पानी के बिल फ्री कर दिए थे | जनता को यह भी एहसास हुआ था कि उस दौरान भ्रष्टाचार में कमी आई थी | जन सेवाओं की जल्द उपलब्धता ही आम आदमी पार्टी के पास सबसे बड़ी पूंजी थी | केजरीवाल ने बार-बार माफ़ी मांग कर “भगोड़ा” मुख्यमंत्री होने के आरोप को भी धो डाला | दूसरी तरफ मोदी सरकार अंहकार से ग्रस्त आम लोगों के हितकर कम व कार्पोरेटर के हितकर ज्यादा देखती थी | अपनी उपलब्धियों व भविष्य की योजनाओं को लोगों के सामने रखने की जगह केजरीवाल पर प्रहार करती रही | अंतिम समय में किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में उतरने से भारतीय जनता पार्टी स्तानीय तौर पर बंट गयी | मोदी स्वयं गलियों में रैलियां करने उतर गये जिसे लोगो ने प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को कम करना माना | अपने प्रथम वर्ष के कार्यकाल में मोदी सरकार ने भूमि-अधिग्रहण बिल को अध्यादेश जारी करके कमजोर कर डाला जिसे किसानों ने अपने विरुद्ध लिया कदम माना | मजदूरों के कानूनों से छेड़छाड़ को मजदूरों ने अपने साथ कुठाराघात माना | जो कसर थी वह साक्षी महाराज जैसे नेताओं ने अनाबशनाब ब्यान दाग कर पूरी कर दी | जिससे लोगों को लगा कि सरकार धर्म के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण करने में लगी है | अत: गैर हिन्दू समुदायों ने इसे अपने हितों के खिलाफ माना | मोदी-शाह की जुगलबंदी पार्टी के अंदर कई नेताओं को रास नही आई | बीजेपी ने कालेधन, भ्रष्टाचार व मंहगाई कम करने के वादे पर लोगों से समर्थन माँगा था परन्तु न तो काल धन आया, न भ्रष्टाचार ही कम हुआ और न ही मंहगाई कम हुई | पैट्रोल व डीज़ल के दाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कम हुए परन्तु इसका फायदा लोगों को नही मिला | परिणामस्वरूप बीजेपी का कमल मुरझा गया व केजरीवाल के झाड़ू ने दिल्ली की गद्दी का रास्ता साफ़ कर दिया | यही इतिहास अब दूसरे राज्यों में भी दोहराया जा सकता है बशर्ते पार्टी का नेतृत्व यदि नेता नही सृजेता करे |

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