सबके कल्याण की संहिता

unicodeडॉ. वेदप्रताप वैदिक

 

सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा है कि वह देश के सभी नागरिकों के लिए समान आचार संहिता कब बनाएगी। बनाएगी या नहीं? उसने यह इसलिए पूछा है कि संविधान के नीति−निर्देशक तत्वों में ऐसा कहा गया है। समान आचार संहिता की मांग सिर्फ भाजपा करती है। अन्य कोई राजनीतिक दल नहीं करता लेकिन आज तक भारत की किसी भी सरकार ने समान आचार संहिता लागू करने की कोशिश नहीं की है। क्यों नहीं की है?

 

इसलिए नहीं की है कि भारत में अनेक धर्म, अनेक जातियां, अनेक भाषाएं, अनेक परंपराएं हैं। उनमें एकता भी है और परस्पर विरोध भी है। उन्हें एक रुप बनाना खतरे से खाली नहीं है। अंग्रेज ने जो कानून बनाए थे, उनमें उसने तरह−तरह की छूट दे रखी थी। वरना उसे पता नहीं, कितने 1857 के ‘गदर’ लड़ने पड़ते। वही परंपरा अभी चली आ रही हे। अंग्रेजों को अपने शासन और शोषण से मतलब था। उन्हें क्या पड़ी थी कि वे भारत के आम आदमी को न्याय दिलाने का सिरदर्द मोल लें। लेकिन स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता चाहते थे कि लोगों को रुढि़वाद और पोंगापंथ से मुक्त किया जाए ताकि हर नागरिक अपने अधिकारों का समान रुप से उपभोग कर सके। जैसे तलाकशुदा किसी भी महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। वह हिंदू हो या मुसलमान, उसे जिंदा तो रहना है। 1985 में जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर सख्त फैसला दिया तो राजीव गांधी सरकार ने कठमुल्लों के आगे घुटने टेक दिए। इसका अर्थ यह नहीं कि आप समान आचार संहिता के नाम पर ऐसा कानूनी ढांचा खड़ा कर दें, जिससे लोगों के धार्मिक विश्वासों और मूल परंपराओं पर आघात हो बल्कि उनके साथ छेड़छाड़ किए बिना मोटे तौर पर नागरिकों के मानवीय अधिकारों की रक्षा हो। हिंदू कोड बिल में यही प्रयत्न किया गया है। ऐसा ही कोड बिल, कमोबेश परिवर्तन के साथ सभी नागरिकों के लिए क्यों नहीं बन सकता?समान आचार संहिता लागू करने का उद्देश्य एक धर्म पर दूसरे धर्म की परंपराओं को थोप देना नहीं है बल्कि सभी परंपराओं में नागरिक कल्याण की रक्षा करना है। जाहिर है कि ऐसी आचार संहिता बनाने के लिए सरकार को बहुमत मगजपच्ची करनी पड़ेगी। अत्यंत व्यापक पैमाने पर देश की सैकड़ों विविध विवाह, तलाक,उत्तराधिकार आदि की परंपराओं का अध्ययन−विश्लेषण करना होगा और संबंधित वर्गों से परामर्श भी नितांत आवश्यक रहेगा। इसके अलावा समान आचार संहिता आयोग के फैसलों को लागू करने की हिम्मत भी चाहिए। किस सरकार में इतनी हिम्मत है? क्या देश में आज कोई ऐसा नेता है, जिसका बात सब मानें या जिसके इरादों पर लोगों को शक−शुबहा न हो?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here