महिलाओं ने उठाया शराब बंदी का बीड़ा

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alcoholराजेन्द्र बंधु

“योग तभी पूर्ण होगा जब केन्द्र सरकार शराब पर पांबदी लगाए,शराब बंदी से किसानो को बहुत लाभ होगा। बिहार मे शराब बंदी से अपराधो मे कमी आई है, उन्होने बिहार के आंकड़े बताते हुए कहा शराब पर पांबदी से 30 प्रतिशत सड़क हादसे, 70 प्रतिशत फिरौती, 25 प्रतिशत रेप, महिला उत्पीड़न, लूट, इत्यादी मामले कम हुए हैं”। 29 जून 2016 को ग्रेटर नोएडा मे आयोजित नशा मुक्ति प्रोग्राम को संबोधित करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये बाते कही। एक ओर बिहार के मुख्यमंत्री शराब मुक्त देश बनाने और किसानो के लाभ के नए नए रास्ते ढुढ़ने मे लगे हैं तो वहीं दुसरी ओर मध्यप्रदेश सरकार ने शराब बंदी से इंकार कर दिया है, किन्तु प्रदेश की पंचायतें और उनकी महिला सरपंच इस मामले मे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
गौरतलब है कि महिला पंच-सरपंचों तथा गांव की अन्य महिलाओं द्वारा शराबबंदी की कोशिश भावनाओं में उठाया गया कदम नहीं है, बल्कि इसके पीछे महिलाओं और बच्चों की पीड़ा है। शराब के कारण बच्चें और महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण जैसी मूलभूत जरूरत से तो वंचित होते ही हैं हिंसा केशिकार भी होते हैं। सागर जिले के ग्राम बरखेड़ी टांडा का पांच वर्षीय भगवनसिंह, चार वर्षीय रीना और तीन वर्षीय सोनू इसका उत्त्म उदाहरण हैं जो शराब के कारण अनाथ हो चुके हैं। इनके पिता तुलसीराम ने डेढ़ साल पहले शराब के नशे में घर में लड़ाई कर खुद पर केरोसीन डालकर आग लगा ली। उन्हें बचाने के प्रयास मे पत्नी भी आग में झुलस गई, जिससे दोनों की मृत्यु हो गई। उनके तीनों बच्चे आज अपनी मौसी के घर में रहते हैं। शराब से पैदा हुई पीड़ा की यह कोई इकलौती घटना नहीं है, बल्कि गांव की कई महिलाएं और बच्चे इसे भुगतने को विवश है। किन्तु शराब की सरकारी आय इस पीड़ा पर इतनी हावी है कि सरकार शराब बेचने के नए उपाय ढ़ुढ़ रही है। सूखे से जूझ रहे बुंदेलखण्‍ड क्षेत्र के गांवों में पीने का पानी नहीं है, किन्तु पिछले एक साल में यहां अरबों की शराब बेची जा चुकी है। यहां के सागर संभाग में पिछले साल सरकार ने दो अरब से ज्यादा रूपए की शराब नीलामी का लक्ष्य तय किया था, मध्‍यप्रदेश सरकार के आबकारी विभाग द्वारा इस साल अप्रैल में जारी की गई रिपोर्ट बताती है कि इस लक्ष्य को पूरा किया जा चुका है। साथ ही प्रदेश सरकार ने शराब तक लोगों की पहुंच आसान बनाने के लिए 10 लाख तक सालाना आय वालों को 100 बोतलें रखने की छूट दे दी है। जबकि पहले ऐसी कोई छूट नही थी।
इस सबके बावजूद कई महिला सरपंचो के प्रयास के कारण एक किरण जरूर दिखाई देती है। साल 2015 में भिण्ड जिले की ग्राम पंचायत सर्वा की सरपंच चुनी गई निर्मला देवी ने सबसे पहले शराब पर रोक लगाने का फैसला लिया। पांच हजार की आबादी वाले इस गांव में कई अवैध शराब दुकानें मौजूद थीं। बोतल और पाऊचों में शराब आसानी से बिकती थीं। शराब के पाउच बच्चों तक भी पहुंचने लगे थे। इस दिशा में सरपंच निर्मला देवी ने ग्राम पंचायत की बैठक बुलाकर गांव में शराब पीने और बेचने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित करवाया। इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए 50 महिलाओं का संगठन बनाया और गांव की सभी शराब की दुकाने बंद करवाई। संगठन की महिलाएं पूरे गांव की निगरानी करती है, जिनके डर से कोई भी व्यक्ति गांव में शराब पीकर नही आता।
छतरपुर जिले के बड़मलहारा ब्लाक के गांव कायम के लोग भी शराब से बुरी तरह परेशान थे। यहां की अवैध शराब दुकानों पर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता था। शराबियों की हरकतों से महिलाएं परेशान थीं और शाम ढलने के बाद वे घर से बाहर नहीं निकल पाती थीं। इस दिशा में यहां की फूलाबाई ने सरपंच का चुनाव लड़ते समय वायदा किया था कि वह गांव को शराब मुक्त कराएगी। शराब से लोग इतने ज्यादा परेशान थे कि उन्होंने फूलाबाई को सिर्फ इसी घोषणा के कारण सरपंच चुना। अतः सरपंच बनने के बाद फूलाबाई ने एस पी को ज्ञापन देकर गांव की सभी अवैध शराब दुकानों को बंद करवाने की मांग की, साथ ही महिलाओं को इकठ्ठा कर शराब दुकानों के सामने प्रदर्शन किया। आखिरकार प्रशासन को उन दुकानों पर छापे डालने पड़े। आज यहां की सभी शराब दुकानें बंद हो चुकी है।
रतलाम जिले की ग्राम पंचायत बंजाली की उपसरपंच ताराबाई ने महिलाओं को संगठित कर गांव में शराबबंदी की मांग की, जिससे पंचायत को शराबबंदी का फैसला लेना पड़ा। अब इस पंचायत में शराब पीने वालों को 100 रूपए जुर्माना देना पड़ता है। पंचायत के इस फैसले के कारण यहां पारिवारिक झगड़ों के मामलों में कमी आई है। महिलाएं पांच -पांच के समूह में गांव में घूमती है और शराब पीने वालों को पकड़ती है। महिलाओं के डर से कई लोगों ने शराब पीकर गांव में आना बंद कर दिया। इन्दौर जिले की मानपुर तहसील के रामपुरीया खुर्द गांव में भी लोग शराब पीकर गांव में घुसने की हिम्मत नहीं करते। यहां की सरपंच मीरा नायर गांव की 11 महिला पंचों के साथ निगरानी करती है। इस दौरान यदि उन्हें कोई व्यक्ति शराब के नशे में मिल जाए तो वह उसे गांव मे प्रवेश नही करने देती। महिलाओं के इस सराहनीय कदम को दूसरे राज्यों की महिलाएँ भी अपना कर अपना जीवन संपन्न कर सकती हैं इससे पहले कि शराब उनके घर- संसार की खुशियाँ छीन लें। (चरखा फीचर्स)

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