वह

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जब मैं सोकर उठता हूँ प्रातः तडके.

अलार्म की आवाज सुनकर.

पहला ध्यान जाता है इस ओर.

वह आयेगी या नही?

मैं जल्दी जल्दी तैयार होता हूँ,

नित्य क्रिया से निपट कर.

दाढी बनाकर,चेहरे का साबुन पोंछ कर,

देखता हूँ आइने में.

पर ध्यान तो वही लगा रहता है,

वह आयेगी या नहीं.

इसके बाद मैं दूध लेने जाऊं,

या देखता रहूँ घडी की ओर अखबार पढते पढते.

समय सुनिश्चित है स्नान के लिये औरनाश्ता करने की.

पर ध्यान तो वहीं लगा रहता है.

वह आयेगी या नही?

करके नाश्ता और पहन कर जूते,

मैं निकल पडता हूं घर से.

निगाह अवश्य उठती है पत्नी की ओर,

जब वह बंद करती है दरवाजा,

पर ध्यान तो वहीं लगा रहता है.

वह आयेगी या नही?

घर से जल्दी जल्दी निकल कर.

उठते निगाहों से अनजान.

मैं चल पडता हूँ अपने गन्तव्य की ओर.

राह में मिलते लोगों के अभिवादनों को भी

देखा अनदेखा करते हुए

जब मैं आगे बढता हूँ,

ध्यान वहीं लगा रहता है,

वह आयेगी या नहीं.

जब मैं घर से थोडी दूर,

आकर खडा होता हूं तिराहे पर.

उठती है निगाह झिझकते झिझकते.

मन प्रफुल्लित हो जाता है ,

इब दिख जाती है वह सामने.

कभी कभी एैसा भी होता है.

तरस जाता हूँ,उसकी एक झलक के लिये.

फिर हो जाता है,सब कुछ उल्टा पुल्टा.

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