एक वर्ष से कम अन्तराल में देश की जनता ने दो ऐसे अद्भुत जनादेश दिये हैं, जिन्हें अविश्वसनीय एवं अकल्पनीय कहा जा सकता है। यदि लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत अविश्वसनीय थी, तो दिल्ली विधानसभा में ‘आप’ को मिला प्रचण्ड बहुमत निश्चित तौर पर अकल्पनीय है। यह चुनाव परिणाम सभी राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी एवं खतरे की घण्टी हैं, जहां 2014 में सत्ता पर अपना जन्मजात अधिकार समझने वाली कांग्रेस औंधे मुंह गिरी। इसमें कोई शक नहीं कि यह चुनाव नतीजे कांगे्रस के प्रति अभूतपूर्व आक्रोश का परिणाम हैं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनावों के परिणामों को देखकर ऐसा लगता है कि भाजपा के अन्दर भी कुछ ऐसा सुलग रहा है, जिससे पार्टी नेतृत्व या तो बेखबर है अथवा इसे गम्भीरता से लेने की जरूरत नहीं समझ रहा है। दिल्ली में कांग्रेस को एक भी सीट न मिलने के बावजूद खबर यह है कि छोटे चुनाव के परिणामों ने पूरे देश में सिहरन पैदा कर दी एवं कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोग ‘आप’ की जीत की अपेक्षा भाजपा की हार का जश्न मनाने लगे।
राजनीति में अब जनता घमण्ड, गुस्सा, झूठ, फरेब, धोखा, शक्ति-प्रदर्शन, अनर्गल बयानबाजी, जोड़-तोड़, अहंकार एवं लच्छेदार भाषण बर्दाश्त नहीं करेगी तथा उसी पर विश्वास करेगी जो वास्तव में यह समझाने में कामयाब रहेगा कि वह औरों की तुलना में भ्रष्टाचार से बेहतर तरीके से लड़ सकता है। इसके अलावा राजनीतिक दलों को विरोधियों के अच्छे कामों की तारीफ एवं अपने सहयोगियों की आलोचना के लिए भी तैयार रहना होगा। ‘आप’ दिल्ली मेंं जनता को यह विश्वास दिलाने में काफी हद तक सफल रही है।
भाजपा की इतनी बड़ी हार के बावजूद भी नरेन्द्र मोदी की छवि एवं प्रभाव अभी भी बरकरार है, क्योंकि पिछले नौ माह के कार्यकाल में मोदी के दामन पर भ्रष्टाचार का कोई भी दाग नहीं है, यह मोदी की बहुत बड़ी सफलता है। भविष्य में यह भी हो सकता है कि नरेन्द्र मोदी एवं अरविन्द केजरीवाल के बीच भारतीय राजनीति की अभूतपूर्व सकारात्मक प्रतिद्वंदता देखने को मिले, क्योंकि भ्रष्टाचार के प्रति दोनों ही ‘जीरो टोलरेन्स नीति’ के पक्षधर हैं। सारदा घोटाले में फंसे एक नेता को बचाने के प्रयास में केन्द्रीय गृहसचिव अनिल गोस्वामी की बर्खास्तगी भ्रष्टाचार के विरोध में मोदी सरकार द्वारा लिया गया बहुत बड़ा फैसला है।
आम चर्चा यह है कि मोदी के कड़े नियंत्रण के कारण विरोधियों की तुलना में सहयोगी अधिक परेशान हैं, क्योंकि वे अपनी मनमर्जी से कार्य नहीं कर पा रहे हैं। इस देश में नासूर बन चुके भ्रष्टाचार के खिलाफ जो भी ईमानदारी से कार्य करने की कोशिश करेगा, उसे इन विकट परिस्थितियों का सामना करना ही होगा। पिछले साल भोपाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय चिन्तन शिविर में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ‘निजी स्वार्थ एवं रिश्वतखोरी’ को आज की सबसे बड़ी समस्या बताया है। जाहिर है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जल्दी खत्म होने वाली नहीं है, लेकिन यदि राजनीतिक दलों को चुनाव परिणामों के अनुरूप कार्य करना है तो कुछ अविश्वसनीय एवं अकल्पनीय ही करना होगा। जनता अब भ्रष्टाचार की राजनीति को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है।
प्रो. एस.के. सिंह