पूर्णाहुति से पूर्व चिंतन की बेला

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-प्रवीण दुबे-

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पांचवे चरण का मतदान प्रारंभ होने में अब कुछ ही घंटे का समय शेष है। यह चरण कई मायनों में दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण कहा जा सकता है।

9 चरणों की इस विशाल मतदान प्रक्रिया का यह पांचवां चरण इस कारण से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस चरण में 13 राज्यों की सर्वाधिक 122 सीटों के लिए मतदान होगा। जहां तक ग्वालियर अंचल की बात है इसी चरण में यहां की गुना, ग्वालियर, भिण्ड और मुरैना सीटों के प्रत्याशियों का भाग्य भी ईवीएम की स्मृति में कैद हो जाएगा। इस दृष्टि से हम विचार करें तो मतदान पूर्व के ये अंतिम घंटे बेहद महत्वपूर्ण हैं। यही वह समय है जब मतदाता को अपने मतदान धर्म की पूर्णाहुति पर चिंतन-मनन करना होता है। यही चिंतन-मनन भावी भारत का लोकतंत्र कैसा होगा, इसकी आधार शिला रखने वाला होगा। जागरुक मतदाता वही है जो इस महत्वपूर्ण घड़ी में उन सारी बातों का चिंतन-मनन करे जो उसने पिछले पांच वर्ष में भोगी है। इस चिंतन को समुद्रमंथन की संज्ञा दी जाए तो अतिश्योक्ति नहीं कहा जाना चाहिए। जिस प्रकार समुद्रमंथन से बहुत कुछ बाहर आया था, उसी प्रकार मतदाता के मस्तिष्क मंथन से भी वह सब कुछ बाहर आएगा जो देश की दिशा और दशा को तय करेगा।
यह सच है कि पिछले दो माह के दौरान चले धुआंधार चुनाव प्रचार में नरेन्द्र मोदी ने बाजी मारी है और वह अपने प्रतिद्वंदियों से काफी आगे हैं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जिस प्रकार मोदी के विरोधियों ने इस चुनावी युद्ध में झूठ, छल, कपट का सहारा लेकर मोदी या यूं कहें कि एक पूरी की पूरी विचार धारा पर शाब्दिक हमला बोला, उससे मतदाता बेहद गुस्से में है। यह गुस्सा ईवीएम मशीनों तक तभी पहुंचेगा जब चिंतन के इस दौर में सौ प्रतिशत मतदान का संकल्प लिया जाएगा। अत: चिंतन के साथ संकल्प का भी यह महत्वपूर्ण समय है और इसका सदुपयोग हमें करना होगा। चिंतन में हमें नहीं भूलना होगा महंगाई को, नहीं भूलना होगा भ्रष्टाचार को, नहीं भूलना होगा। विदेशी बैंकों में जमा कालेधन को, मतदाताओं को यह भी याद रखना होगा कि किस प्रकार पांच वर्षों में केन्द्र सरकार ने नीतिगत पंगुता दिखाई, किस प्रकार पूरी दुनिया के सामने भारत को अपमान का घूंट पीना पड़ा। याद रखना होगा कि पाकिस्तान सीमा पर कठमुल्लों द्वारा काट कर ले जाए गए हमारे वीर जवानों के सिरों को याद रखना होगा कि पड़ोसी चीन की भारत के भीतर मीलों तक की गई घुसपैठ को और चीन के सामने घिघयाते विदेश मंत्रालय के नेतृत्व को। याद रखना होगा कि पूर्वोत्तर से जारी बांग्लादेशी घुसपैठ को और मुम्बई के शहीद स्मारक पर लातें बरसाते देशद्रोही युवकों की जमात को। याद रखना होगा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस वक्तव्य को जिसमें उन्होंने तुष्टीकरण की सारी सीमाएं लांघते हुए इस देश के बहुसंख्यक समाज को अपमानित करने वाला वक्तव्य दिया था जिसमें कहा गया था कि इस देश के सभी संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। याद रखना होगा कि केन्द्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दिए उस हलफनामे को जिसमें रामसेतु तोड़ऩे के लिए भगवान राम के ही अस्तित्व को अस्वीकार कर दिया गया था। याद रखना होगा कि पिछले 22 वर्षों से अयोध्या की रामजन्मभूमि पर टाट के अस्थाई मंदिर में विराजमान रामलला को याद रखना होगा कि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हमला करने वाले पाकिस्तान को और वहां से भारत की धार्मिक यात्रा पर आने वाले राजनयिकों का ढोल नगाड़ों के साथ स्वागत करने वाले भारतीय विदेश मंत्री नवाज शरीफ को, चिंतन की इस बेला में सर चढ़ती महंगाई और गरीबों का मजाक बनाते नेताओं के वक्तव्यों को भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है। कांग्रेस द्वारा विगत 57 वर्षों से लगाए जा रहे गरीबी हटाओ के नारे को भी स्मृति से जोडऩा होगा। यह भी याद रखना जरूरी है कि किस प्रकार देश के प्रधानमंत्री ने 100 दिन में महंगाई कम करने का झूठा वादा किया, यह भी याद रखना बहुत आवश्यक है कि लोगों की कठिनाइयों से नाता तोड़ चुकी कांग्रेस के दौर में एक समय खाद्य मुद्रास्फीति 18.5 प्रतिशत तक जा पहुंची थी। चिंतन केवल नकारात्मक हो, हमारा यह कदापि उद्देश्य नहीं, परन्तु इसे यूपीए का दुर्भाग्य और असफलता ही कहा जाएगा कि देश में जिन राज्यों ने प्रगति की या अच्छा किया वहां भाजपा की सरकारें थीं। कौन नहीं जानता आज गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे राज्य विकास की दौड़ में बेहद आगे हैं। जनता की मूलभूत आवश्यकताओं सड़क, बिजली, पानी के क्षेत्र में वहां रिकॉर्ड कार्य हुए और स्वयं केन्द्र द्वारा कई बार इन प्रदेशों को सर्वश्रेष्ठ विकास कार्य के लिए पुरस्कृत भी किया गया। आखिर एक ही देश में केन्द्र सरकार ने क्यों देशवासियों की मुश्किलें लगातार बढ़ाई और उसी देश में गुजरात, मध्यप्रदेश क्यों विकास के कीर्तिमान स्थापित करते चले गए? इस पर मतदान से पहले चिंतन-मंथन बेहद जरुरी है। जैसा कि हमारे देश के तमाम बुद्धिजीवी कहते आए हैं कि चुनाव लोकतंत्र का महाकुंभ है। यह सच भी है जिस प्रकार कुंभ स्नान से चूकने पर पांच वर्ष तक सिर्फ और सिर्फ पछतावा ही हाथ रह जाता है, उसी प्रकार इस चुनावी महाकुंभ में यदि मतदान नहीं किया या फिर बिना चिंतन-मनन के अपना अमूल्य वोट डाल दिया तो पांच वर्ष तक सिवा पछतावे और सिर पीटने के कुछ हाथ नहीं रहने वाला। अत: उठिए जागिए और लोकतंत्र के इस महाकुंभ में पूर्ण मनोयोग और गहराई से चिंतन-मनन करके डुबली लगाइए।

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प्रवीण दुबे
विगत 22 वर्षाे से पत्रकारिता में सर्किय हैं। आपके राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय विषयों पर 500 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से प्रेरित श्री प्रवीण दुबे की पत्रकारिता का शुभांरम दैनिक स्वदेश ग्वालियर से 1994 में हुआ। वर्तमान में आप स्वदेश ग्वालियर के कार्यकारी संपादक है, आपके द्वारा अमृत-अटल, श्रीकांत जोशी पर आधारित संग्रह - एक ध्येय निष्ठ जीवन, ग्वालियर की बलिदान गाथा, उत्तिष्ठ जाग्रत सहित एक दर्जन के लगभग पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया है।

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