सिरील अलमिदा : इसे कहते हैं, पाक पत्रकारिता !

cyril-almeida-1पाकिस्तान अपने लिए संकट पर संकट खड़े किए जा रहा है। उड़ी के आतंकी हमले के कारण सारी दुनिया में उसकी बदनामी तो पहले से ही हो रही थी, अब वहां की सरकार अपने पत्रकारों से भी भिड़ गई है। प्रसिद्ध अखबार ‘डॉन’ के संवाददाता सिरील अलमिदा पर वह बरस पड़ी है। अलमिदा का नाम ‘एग्जिट कंट्रोल लिस्ट’ में डाल दिया गया है याने वे अब विदेश-यात्रा नहीं कर सकते। उनका दोष यह है कि उन्होंने 6 अक्तूबर को ‘ड़ॉन’ में एक लेख लिखकर सरकार और फौज की अंदरुनी बहस को उजागर कर दिया। उन्होंने बताया कि पंजाब के मुख्यमंत्री और नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ ने अपनी फौज और आईएसआई के अधिकारियों को काफी खरी-खोटी सुना दी।

शाहबाज ने उनसे कहा कि आप लोग यदि आतंकियों की पीठ ठोकना बंद नहीं करेंगे तो पाकिस्तान सारी दुनिया में इसी तरह बदनाम होता रहेगा। यह खेद की बात है कि सरकार के लोग जब आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं तो फौज और गुप्तचर एजेंसी उन्हें बचाने का काम करती है।

इस खबर के छपते ही पाकिस्तान में हंगामा मच गया। सरकार ने तीन-तीन बार इसका खंडन किया। अलमिदा पर राष्ट्र-द्रोह के आरोप लगाए गए। उन्हें गोपनीयता भंग करने के अपराध में गिरफ्तार करने की मांग की गई और अब उनके विदेश जाने पर रोक लगा दी गई है। सरकार इतनी बौखला गई है कि प्रधानमंत्री और सेनापति को मिलना पड़ा, इस मामले पर विचार करने के लिए। लेकिन ‘डॉन’ के संपादक अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि अलमिदा ने जो कुछ लिखा है, वह प्रमाणों के आधार पर लिखा है। सरकार भी सैद्धांतिक दृष्टि से अपनी जगह ठीक है कि राष्ट्र की सुरक्षा संबंधी सभी गोपनीय बातों को उजागर करना ठीक नहीं है लेकिन इसमें गोपनीय बात कौनसी है? क्या सारी दुनिया और पाकिस्तान की जनता को पता नहीं है कि आतंकियों की मदद कौन कर रहा है?

इसके अलावा, जो उजागर हुआ है, उससे तो पाकिस्तान की छवि कुछ न कुछ सुधरेगी ही। इससे यह भी पता चलता है कि पाक नेता वहां की फौज की कठपुतली नहीं हैं। उनमें कुछ दम-खम बचा हुआ है। दूसरी बात यह कि पाकिस्तान में भी लोकतंत्र जिंदा है। तीसरी बात यह कि अलमिदा की इस खबर से आतंकियों पर दबाव बढ़ेगा और पाकिस्तान के अच्छे दिन आएंगे। पाकिस्तान के कई बहादुर पत्रकार अलमिदा का खुलकर साथ दे रहे हैं। पाकिस्तानी पत्रकारों पर जितने जुल्म होते हैं, वे उतनी ही बहादुरी से उनका मुकाबला करते हैं। यही कहलाती है- पवित्र (पाक) पत्रकारिता!

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