ये है दिल्ली मेरी जान: संगीन नहीं सपेरों के साए में रहेंगे भाजपाई

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अमूमन देश के जनसेवक या जनसेवक बनने की चाह वाले लोगों का संगीनों के साए में रहना पुराना शगल रहा है, इतिहास में संभवत: यह पहला मौका होगा जबकि भाजपा के आला नेता संगीनों के साथ ही साथ सपेरों के साए में दो रात और तीन दिन रहेंगे। दरअसल इंदौर में 17 से 19 फरवरी तक चलने वाली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का जो स्थान चुना गया है, वह वर्तमान में खेत ही है। इस स्थल के चयन के पीछे भी तरह तरह की चर्चाओं के बाजार गर्मा गए हैं। कोई कहता है कि भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी के रिश्तेदार द्वारा उस जगह पर प्रापर्टी डीलिंग का काम कराया जा रहा है, अत: उन्हें उपकृत करने की गरज से उस स्थान का चयन किया गया है, कोई कोर्ट की अवमानना की बात कह रहा है। इसी बीच अधिवेशन स्थल पर सांपों के बहुतायत में निकलने की खबरों से भाजपा के आला नेता घबराए हुए हैं। आला नेताओं ने सांप से डर के बारे में आयोजकों को साफ तौर पर वाकिफ करा दिया है। आयोजकों ने फौरी तौर पर तो सांप के जितने बिल दिखे उन्हें बंद कर दिया है। इसके बाद भी आयोजक कोई चांस लेना नहीं चाहते सो आयोजन स्थल पर सपेरों और सांप पकडने में महारथ हासिल करने वालों को इंगेज कर लिया है। अब चर्चा आम है कि वन्य जीवों से प्यार जताने वालीं भाजपाई सांसद मेनका गांधी इन सांपों के बिल बंद कराने पर चुप क्यों हैं।

अलसाए निजामों को है सुरक्षा की चिंता!

देश की आंतरिक सुरक्षा किस कदर भिदी पडी है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। देश के वजीरे आजम भी इस मसले पर संजीदा हैं। यही कारण है कि उन्होंने देश के अनेक सूबों के निजामों को बुला भेजा और एक बैठक का आयोजन कर दिया। इस बैठक की कार्यवाही में अनेक प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने जो किया वह निश्चित तौर पर शर्मनाक ही कहा जाएगा। हुआ यूं कि बैठक के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा देश की आंतरिक सुरक्षा, बढती घुसपैठ, नक्सलवाद, अलगाववाद, पूर्वोत्तर विद्रोह, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय तनाव, सीमापार जारी आतंकवाद आदि पर मुख्यमंत्रियों से चर्चा कर रहे थे और देश के अनेक प्रदेशों के मुख्यमंत्री खुर्राटे भर रहे थे। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान के अशोक गहलोत, असम के तरूण गोगोई, केरल के वी.एस.अच्युतानंद और आंध्र के मुख्यमंत्री के.के.रोसेया प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान चैन की नींद सो रहे थे। सवाल यह उठता है कि देश के जो सूबे इन सभी मामलों में आंतरिक तौर पर असुरक्षित हों और प्रधानमंत्री के गंभीर भाषण के दौरान रोम के नीरो की तरह चैन की बंसी बजाएं तो हो चुकी जनता के जान माल की सुरक्षा।

रमन को तलब किया सुप्रीम कोर्ट ने

देश की सबसे बडी अदालत ने छत्तीसगढ सरकार से कहा है कि वह उन 12 लोगों को पेश करे जिन्होंने दंतेवाडा में नक्सलियों के खिलाफ छेडे गए अभियान में ग्रामीणों के मारे जाने की घटना की सीबीआई से जांच की मांग कर रहे थे। दरअसल ये 12 लोग पिछले कुछ दिनों से लापतागंज के निवासी हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी और सूरिंदर सिंह निज्जर की खण्डपीठ ने हिमांशु कुमार की याचिका की सुनवाई के दौरान रमन सिंह सरकार की कार्यप्रणाली पर तीखी आलोचना व्यक्त की है। कोर्ट ने इस आदेश की प्रति छग सरकार के मुख्य सचिव को तत्काल भेजने के आदेश भी दिए हैं। मानव अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु का कहना है कि छग सरकार द्वारा इन एक दर्जन लोगों को बार बार धमकाया जा रहा है, और इसके बाद ये लोग लापता हैं। मामले की सुनवाई 15 फरवरी को निर्धारित की गई है।

बंगाल चुनाव पर बाबा रामदेव की नजर

बाबा रामदेव लाख कहें कि सक्रिय राजनीति से उनका कोई सरोकार नहीं है, पर उनकी हरकतें और बयान बार-बार इस ओर इशारा करते हैं कि वे राजनीति के अखाडे में कूदने की जबर्दस्त इच्छा रखते हैं। कभी वे विदेशों से काला धन वापस लाने के मसले में एन लोकसभा के चुनावों के दरम्यान भाजपा के सुर से सुर मिलाते नजर आते हैं और बाद में उसे भूल जाते हैं तो कभी कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से गपचुप मुलाकात करते पाए जाते हैं। अब बाबा की नजरें पश्चिम बंगाल के चुनावों पर इनायत होती नजर आ रहीं हैं। बाबा रामदेव ने हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार को आडे हाथों लिया है। कहते हैं कि बाबा इस समय तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी से पींगे बढाते नजर आ रहे हैं। ममता बनर्जी के नेतृत्व में सूबे में चल रही परिवर्तन की लहर में अब बाबा रामदेव भी कूदने आतुर दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि बाबा रामदेव इस साल अक्टूबर माह से पश्चिम बंगाल के हर जिले का दौरा करने वाले हैं। कोलकता में उन्होंने यह कहकर सभी को चौंका दिया कि पश्चिम बंगाल में बत्तीस सालों से वाम मोर्चा की सरकार है और यहां लोग भुखमरी के शिकार हैं, यहां तक कि लोग पत्ते और चींटी खाने को मजबूर हैं।

क्या ठाकरे ब्रदर्स इसकी आलोचना का साहस करेंगे!

पाकिस्तान के खिलाफ शिवसेना और मनसे दोनों ही के कर्ताधर्ता ठाकरे ब्रदर्स ने मोर्चा खोल रखा है। कोई भी मसला अगर पाक और मुबई से जुडा हो तो ठाकरे ब्रदर्स लोगों को काट खाने को दौडते हैं। हाल ही में एक मसला प्रकाश में आया है, जिसमें बोलने का साहस शायद ठाकरे ब्रदर्स नहीं कर पाएं क्योंकि इस मामले में उन्हें उत्तर भारत आकर मोर्चा खोलना पडेगा। दरअसल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में पतंगबाज के शौकीनों पर लाहौर हाईकोर्ट ने गाज गिरा दी है। कोर्ट ने पाक के पंजाब प्रांत में पतंगबाजी पर यह कहकर प्रतिबंध लगा दिया है कि यह शौक जानलेवा है। गौरतलब है कि पतंग उडाते समय गिरने से 18 लोगों की मौत और 24 घायल हो गए हैं। निराश पतंगबाजों के लिए हिन्दुस्तान के अनेक पतंगबाज संघ ने उन्हें बसंत के दौरान ही भारत आकर पतंगबाजी करने का न्योता दिया है, और वह भी आने जाने, रूकने खाने पीने के किराए के साथ। अब अगर ठाकरे ब्रदर्स में दम है तो उत्तर भारत आकर इनके खिलाफ मोर्चा खोलकर दिखाएं।

कौन बांधेगा बाघ को फ्रेंडशिप बेंड

बाघ संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय बैठक में भारत के प्रस्ताव को मानते हुए वेलंटाईन डे को बाघ दिवस के तौर पर मनाने सर्वसम्मति बन गई है। 14 फरवरी से अंतर्राष्ट्रीय बाघ वर्ष मनाने का भी निर्णय लिया गया है। कितनी विडम्बना है कि शिवसेना जिसका प्रतीक शेर ही है, वह वेलंटाईन डे पर प्रेमी युगलों को सरेआम पीटता है, और दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिन से बाघ वर्ष को मनाने का निर्णय लिया गया है। कारबेट नेशलन पार्क से वेलंटाईन डे पर आरंभ होने वाले बाघ वर्ष का समापन इसी साल नवंबर में साल पूरा होने से पहले ही रणथम्बोर नेशनल पार्क में किया जाएगा। वैसे भी दुनिया भर के कुल बाघों की आबादी का साठ फीसदी भाग भारत में ही मौजूद है। गौरतलब है कि भारत गणराज्य के वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश पहले भी कह चुके हैं कि देश में आदमियों की कमी नहीं है, कमी है तो बाघों की, सो बाघों की चिंता उन्हें दिन रात खाए जा रही है। रमेश की वन्य जीवों के प्रति चिन्ता का स्वागत किया जाना चाहिए किन्तु पूर्वोत्तर के राज्यों में आदमखोर बाघों द्वारा मारे गए लोगों के बारे में रमेश के इस तरह के बयान से उनका मानसिक दिवालियापन ही झलकता है।

मंहगाई : अब राकांपा हुई बावली

देश में मंहगाई का ग्राफ आसमान की बुलंदियों को छू रहा है। देश में आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस पार्टी इसके लिए अपनी ही सरकार के कृषि मंत्री शरद पंवार से इस मामले में बुरी तरह खफा है, पर सरकार चलाने की मजबूरी के चलते वह अपने देश की जनता के साथ होते अन्याय को चुपचाप देखने पर मजबूर है। मंहगाई पर कांग्रेस से घिरने के बाद राकांपा जिसके सुप्रीमो खुद शरद पंवार हैं, बुरी तरह बावली हो उठी है। मंहगाई पर अब राकांपा ने उल जलूल बयान देने आरंभ कर दिए हैं। राकांपा के मुखपत्र राष्ट्रवादी में कहा गया है कि चीनी न खाने से मर नहीं जाएंगे। मंहगाई पर तर्क के बजाए कुतर्क करते हुए इसमें कहा गया है कि चीनी नहीं खाने से किसी की मौत नहीं होती है। पत्रिका की सम्पादकीय में कुतर्क का आलम यह है कि उसमें लिखा है कि जिन्हें मधुमेह होता है, वे चीनी नहीं खाते हैं, पर उनकी मौत नहीं होती है। साथ ही अन्य सोंदर्य प्रसाधनों की उंची कीमतों के बारे में कोई नहीं कहता कि मंहगाई बढ रही है। शायद पत्रिका के संपादक यह नहीं जानते कि खाना न खाने से आदमी पर क्या बीतती है और लाली लिपिस्टिक न लगाने पर क्या बीतती है।

स्वाईन फ्लू बना पुलिस की कमाई का जरिया

देश में सर्दी का मौसम आते ही बर्ड और स्वाईन फ्लू का आतंक पसर ही जाता है। पक्षियों और सूअर जनित इन दोनों ही बीमारियों के चलते देश में दहशत व्याप्त है। क्या आप सोच सकते हैं कि देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की पुलिस द्वारा इसमें भी अवैध कमाई का रास्ता निकाला जाएगा। जी हां, यह सच है दिल्ली पुलिस ने इसमें भी कमाई का रास्ता खोज लिया है। पिछले दिनों दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य मंत्री किरण वालिया के नौकर के साथ घटे हादसे तो यही साबित होता है। बताते हैं कि किरण वालिया के घर खाना बनाने वाला नौकर टोप बहादुर जब अपने भाई राजन को आनंद विहार पैसे देने गया तो उसने पाया कि उसके भाई राजन को पुलिस ने पकड रखा था। बाद में पता चला कि पुलिस ने राजन को यह कहकर धमकाया कि उसे स्वाईन फ्लू है, और पास खडी एंबूलेंस में बैठे डाक्टरनुमा लोगों की तरफ इशारा कर उसका स्वास्थ्य परीक्षण कराने की बात कही जाकर उसके सारे पैसे छुडा लिए थे। बाद में जब पुलिस को पता चला कि यह दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य मंत्री किरण वालिया के खानसामा का भाई है तब जाकर उन्होंने राजन को छोडा मगर पैसे वापस नहीं किए।

तब गे एसे मनाएंगे वेलंटाईन

प्रेम के इजहार के पश्चिमी त्योहार वेलंटाईन डे का सुरूर भारत में भी सर चढकर बोल रहा है। प्रेमी प्रेमिका तो प्यार का इजहार कर लेंगे पर समलेंगिग अर्थात गे इसका इजहार कैसे करेंगे। भावनाओं को कागज पर उकेरने वाले कार्ड निर्माताओ ने गे लोगों को भी प्यार के इजहार करने के मार्ग प्रशस्त कर दिए हैं। दो पुरूष और दो महिलाओं की तस्वीर वाले कार्ड अब बाजार में उपलब्ध हो गए हैं। यू एण्ड मी वाले वेलंटाईन कार्ड से बाजार पट गया है। वैसे समलेंगिगता को कानूनी मान्यता के बाद चली बहस अब ठंडी पड गई है, पर गे लोगों के हौसले आज भी बुलंदियों पर हैं। गे अपने आप को कानूनी तौर पर सही ठहराने से नहीं चूक रहे हैं। रही सही कसर वेलंटाईन डे पर कार्ड के निर्माताओं ने पूरी कर दी है। राजधानी दिल्ली सहित समूचे देश में गे कार्ड की बिकावली में जबर्दस्त उछाल दर्ज किया जाना इस बात का संकेत है कि अब गे लोगों के बीच शर्म और हया का पर्दा हट चुका है।

ये हैं असली लुटेरे जनसेवक

जनसेवक के बारे में लोगों की धारणाएं अब पूरी तरह बदल गई हैं। देश भर में भारतीय सेवा के अधिकारियों ने जनता को सरेआम लूटने के तरह तरह के जतन किए जा रहे हैं, वह भी नौकरशाहों के प्रश्रय में। मध्य प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों अरविंद जोशी और टीनू जोशी के पास मिली अकूत दौलत के बाद भी राजनेताओं का भरोसा भ्रष्ट नौकरशाहों पर से नहीं उठ सका है। मध्य प्रदेश में ही शिवराज सिंह चौहान ने अब परिवहन आयुक्त जैसा मलाईदार पद भारतीय पुलिस सेवा के एस.एस.लाल को सौंप दिया है, जिनके राजधानी भोपाल में कोलार स्थित डीके 5/221 नंबर के मकान में बिना किराएनामे के रह रहे खेमचंद ललवानी द्वारा करोडों रूपए का क्रिकेट का सट्टा खिलवाया जा रहा था। सीआईडी की टीम ने लाल के मकान से 13 दिसंबर 2006 को लगभग पांच लाख रूपए नकद, लेपटाप, मोबाईल फोन सहित अनेक लोगों को पकडा भी था, इनमें से दो दर्जन लोग आज भी फरार ही हैं। सच ही है, जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का।

गडकरी को हिन्दी पट्टी का अघोषित बहिष्कार

राजधानी दिल्ली में भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी की औपचारिक ताजपोशी में हिन्दी भाषी राज्यों की अनुपस्थिति खासी चर्चा में रही है। इस चुनाव में गडकरी के गृह प्रदेश महाराष्ट्र सहित मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ, उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे हिन्दी पट्टी के राज्यों की गैरमौजदी से सियासी हल्कों में तरह तरह की चर्चाओं के बाजार गर्मा गए हैं। गडकरी की ताजपोशी 19 राज्यों द्वारा की गई है। दिल्ली में हुए इस चुनाव में वहीं की भाजपा की गैरमोजूदगी को भी हल्के में नहीं लिया जा रहा है। लोगों का कहना है कि गडकरी समूची देश की भाजपा के बजाए महज 19 राज्यों की भाजपा के अध्यक्ष हैं। खाल बचाने को भाजपा द्वारा यह अवश्य ही कहा जा रहा है कि अनेक राज्यों में भाजपा के चुनाव नहीं होने से यह स्थिति बनी है। आदर्श और अनुशासन पर चलने का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा में पिछले साल के अंत तक चुनाव करवाए जाने थे, किन्तु सामंजस्य न बन पाने के कारण चुनाव टल गए हैं। लोगों का तो यह भी कहना है कि गडकरी की ताजपोशी अनेक सूबाई नेताओं को रास नहीं आई है और यही कारण है कि जानबूझकर राज्यों में समन्वय का अभाव बनाया गया है, ताकि गडकरी की ताजपोशी में वे शामिल न हो सकें।

चुनाव, रेल बजट, बंगाल और ममता

रेल मंत्रालय का कार्यभार चाहे जो संभाले वह सदा ही चर्चाओं में ही रहता है। वर्तमान रेल मंत्री ममता बनर्जी भी इससे अछूती नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, और रेल मंत्री को अपने मंत्रालय से ज्यादा चिंता बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने की है। रेल बजट में ममता बनर्जी अपना पूरा दुलार पश्चिम बंगाल पर उडेल दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे पिछली मर्तबा के रेल बजट में किए प्रावधानों को पूरा न किए जाने का दर्द भी ममता के चेहरे पर झलक रहा है, वहीं दूसरी ओर ममता बनर्जी पर बैगर आवश्क मंजूरियों के आधारशिला रखने और वादे पूरे न किए जाने के आरोप लगने लगे हैं। पिछले बजट में ममता ने कोलकता से लगभग 45 किलोमीटर दूर कचरापाडा में रेल डब्बों के कारखाने की घोषणा के अलावा 309 आदर्श स्टेशन में से आधे, 50 विश्वस्तरीय स्टेशन में से पांच, 12 दुरंतो एक्सप्रेस में से चार को पश्चिम बंगाल के लिए प्रावधान किया था, विडम्बना यह है कि ममता अपने ही सूबे में लक्ष्य से काफी पीछे दिख रहीं हैं।

पुच्छल तारा

मध्य प्रदेश के इंदौर से आशय अर्गल ने ईमेल भेजा है कि भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में सांपों नेताओं को डरने की आवश्यक्ता कतई नहीं है, डरना तो सांपों को चाहिए क्योंकि किसी भी पार्टी के नेता को सांप ने काट लिया तो उसे बचाया जा सकता है, पर अगर सांप को इन्होंने काट लिया तो सांप का बचना बहुत ही मुश्किल है।

-लिमटी खरे

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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