बहुत ही दूर तक दिखता है मुझको
ये अकेलापन
तुम्हारे साथ होने पर भी नहीं हटता है
ये अकेलापन
कभी किया करती हूँ खुद से बातें मैं बेपर्दा
कि _छुप के देखता है मुझको
ये अकेलापन
हृदय के एक कोने में जब याद उठती है तुम्हारी
कि_छुप के साँस लेता है मुझमें
ये अकेलापन
कितनी ख्वाइशें सिमटी है मुझ में
मगर मैं बेखबर
कि इस पर आह भरता है
ये अकेलापन
कभी समझी नहीं मैं खुद की काबिलियत
सुनलो
कि_अब दूर से ही मुस्कुराता है
ये अकेलापन
धड़कनो को लिखने की जबसे आदत पड़ गयी
कि_हँस के साथ चलता है ये अकेलापन
अकेले में कभी जब गीत हूँ तेरा गाती
कि साथ मेरे नाचता है
ये मेरा अकेलापन।।.