हर बार के पद्म पुरस्कार थोड़े अलग

डॉ. शुभ्रता मिश्रा
हर साल हमारे देश में पद्मपुरस्कारों की घोषणा की परम्परा के साथ जारी सूची के कई नामों से आमलोगों के असंतुष्ट होने की परम्परा भी बन गई है। कोई साल ऐसा नहीं जाता जिसमें कुछ नामों के लिए आमलोग असंतोष न जताते हों कि फलां को मिला पद्म पुरस्कार उसके लायक नहीं था। 1954 में जब पद्म पुरस्कार प्रारम्भ किए गए थे, तब भी खैर असंतोष तो रहा ही होगा। अलबत्ता यह बात अलग है कि उस समय सामाजिक परिवेश पद्म पुरस्कारों के प्रति उतना जागरुक नहीं रहा होगा, जितना कि इस समय है। वास्तव में पद्म पुरस्कार भारत के नागरिक सम्मान होते हैं, जिनके अन्तर्गत पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री तीन श्रेणियों में ये प्रदान किए जाते हैं। 1978, 1979 तथा 1993 से 1997 के दौरान के वर्षों को छोड़ दिया जाए तो इनके शुरु किए जाने से अब तक लगातार पद्मपुरस्कारों की घोषणा प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस पर की जाती है। ये पुरस्कार कला, सामाजिक कार्य, जन हित के मामलों, विज्ञान एवं इंजीनियरिंग, व्यापार एवं उद्योग, चिकित्सा, साहित्य तथा शिक्षा, खेल-कूद तथा नागरिक सेवाओं के लिए प्रदान किए जाते हैं। ये पुरस्कार सरकारी कर्मचारियों (डॉक्टरों तथा वैज्ञानिकों को छोड़कर) और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों को नहीं दिए जा सकते हैं। प्रायः पद्म पुरस्कार मरणोपरांत प्रदान नहीं किए जाते हैं। लेकिन फिर भी कभी कभी विशेष परिस्थितियों में अब ये दिए जाने लगे हैं। इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि सम्मानित किए जाने वाला व्यक्ति यदि योग्यता की उत्कृष्टता से परे है, तब उसकी असाधारण प्रतिभा को दृष्टिगत रखते हुए सरकार मरणोपरांत भी उस व्यक्ति को पद्म पुरस्कार प्रदान करने के लिए विचार कर सकती है। हांलाकि इसमें भी एक शर्त यह होती है जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि सम्मानित किए जाने वाले व्यक्ति का निधन हाल ही अर्थात उस वर्ष के गणतन्त्र दिवस से एक वर्ष पूर्व की अवधि में हुआ हो, जिस पर उक्त पुरस्कार को घोषित किया जाना प्रस्तावित हो, तो उसे पद्म पुरस्कार मरणोपरांत दिए जा सकते हैं। भारत के सभी व्यक्ति बिना किसी जाति, व्यवसाय, पद अथवा लिंग के भेदभाव के इन पुरस्कारों के लिए आवेदन कर सकते हैं।
हाल ही के कुछ सालों से आम भारतीय लोगों में पद्म पुरस्कारों के प्रति अधिक जागरुकता आई है। यही कारण है कि जब इन पुरस्कारों की घोषणा होती है, तो चयन प्रक्रिया आमलोगों द्वारा संदेह के कटघरे में खड़ी कर दी जाती है। लोगों का असंतोष भड़कता है और वे चयनप्रक्रिया के प्रति कुछ अमर्यादित होने को बाध्य हो जाते हैं। अधिकतर लोगों के मन में प्रश्न उठते हैं कि क्यों पद्म पुरस्कार पाने वालों में ज्यादातर राजनीति और फिल्मों से जुड़े लोगों के नाम ही होते हैं। आम लोगों में चयन के मापदण्डों को लेकर भी भ्रम होते हैं। वैसे पद्मपुरस्कारों के लिए स्पष्टरुप से मापदण्ड यह होते हैं कि जो लोग अपने किसी विशिष्ट क्षेत्र में असाधारण और उत्कृष्ट सेवा करते हैं उनको पद्म विभूषण दिया जाता है। इसी तरह पद्म भूषण के मापदण्ड उच्च श्रेणी की उत्कृष्ट सेवाओं पर आधारित होते हैं, तो वहीं पद्मश्री सिर्फ उत्कृष्ट सेवाओं के लिए प्रदान किए जाते हैं। इन तीनों मानदण्डों के और भी क्या सूक्ष्म आधार होते हैं, उनके बारे में कोई व्यक्त विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। यद्यपि इन नामों का चयन प्रतिवर्ष भारत के प्रधानमंत्री द्वारा गठित एक पुरस्कार समिति द्वारा किया जाता है, जिसमें कैबिनेट और गृहमंत्रालय के सचिव, राष्ट्रपति के सचिव, प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव और पांच गैर सरकारी विशेषज्ञ होते हैं।
इस साल 2017 में पद्म पुरस्कार प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए आम लोगों के विचार शामिल करने की ओर ध्यान दिया गया। 2016 तक ऐसा होता था कि सभी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों, भारत सरकार के मंत्रालयों व विभागों, भारत रत्न और पद्म विभूषण प्राप्तकर्ताओं तथा उत्कृष्ट संस्थानों तथा मंत्रियों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों/राज्यपालों, संसद सदस्य तथा गैर सरकारी व्यक्तियों तथा निकायों आदि जैसे अन्य स्रोतों से भी प्राप्त सिफ़ारिशें पुरस्कार समिति के समक्ष रखी जाती थीं। लेकिन 2017 की पद्म पुरस्कार चयन प्रक्रिया से अब कोई भी भारतीय पद्म पुरस्कार के लिए किसी व्यक्ति के नाम की सिफारिश पुरस्कार समिति से कर सकता है। इसके बाद यह समिति प्राप्त नामांकनों पर विचार करके एक अंतिम सूची तैयार करती है, जिसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के समक्ष अनुमोदन के लिए रखा जाता है। अंत में नामों की अंतिम घोषणा से पूर्व सरकार की विभिन्न एजेंसियां अपनी ओर से इनका पुनः सत्यापन करती हैं। हमारे पद्मपुरस्कारों के लिए एक और सँख्या सीमा निर्धारित की गई है कि एक साल में दिए जाने वाले कुल पद्म पुरस्कारों की अधिकतम संख्या 120 ही हो सकती है, हांलाकि इसमें मरणोपरान्त तथा विदेशियों को दिए जाने वाले पुरस्कार शामिल नहीं होते हैं। एक बार पद्मश्री मिलने के बाद यदि किसी को उससे उच्चतर श्रेणी का पद्म पुरस्कार यानि पद्मभूषण या पद्मविभूषण के लिए चयन करना है तो ऐसे किसी मामले में पूर्व पद्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के समय से कम से कम पांच वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के बाद ही वे प्रदान किए जा सकते हैं। तथापि कई बार ऐसा भी होता है कि बहुत अधिक असाधारण प्रतिभा के लिए पुरस्कार समिति द्वारा इस अवधि में छूट प्रदान की जा सकती है|
इस तरह देखा जाए तो पद्म पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में किसी भी तरह के संदेह की गुंजाइश कहीं भी दिखाई नहीं देती है। लेकिन यह भी शाश्वत सत्य है कि आग चाहे सच की हो या संदेह की हो लगने से पहले यदि थोड़ा भी धुंआ दिखता है, तो असंतोष की चिनगारियां भड़कना स्वाभाविकता की निशानी है। सम्भवतः आम लोगों के इसी असंतोष को दूर करने के लिए 2017 से पद्म पुरस्कारों के लिए नामांकन की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है। इससे अब कोई भी आम भारतीय अपने किसी जानकार किसी क्षेत्र विशेष में उपलब्धि हासिल करने वाले उत्कृष्ट व्यक्तित्व का नाम सम्मानित पद्म पुरस्कार के लिए अपनी तरफ से अनुशंसित कर सकता है। इस साल से पद्म पुरस्कारों के लिए नामांकन या सिफारिशें सिर्फ गृह मंत्रालय द्वारा तैयार इलेक्ट्रॉनिक प्रबंधन प्रणाली के तहत ऑनलाइन स्वीकार की जाने लगी हैं। वर्तमान में डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट पद्म अवार्डस डाट जीओवी डाट इन नामक एक पद्म अवार्ड वेबसाइट भी तैयार की गई है, जिसमें एक इंटरएक्टिव डैशबोर्ड के माध्यम से 1954-2016 तक के कुल 4400 पद्म पुरस्कार विजेताओं का पूर्ण विवरण दिया गया है। इसके अलावा इसमें पद्म पुरस्कारों की प्रविष्टियों के लिए प्रोफार्मा भी उपलब्ध कराए जाते हैं। इस साल 2017 के लिए कुल 89 पद्म पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं की जो सूची गणतंत्रदिवस पर घोषित की गई है, वह पहली बार ऑनलाइन नामांकन प्रक्रिया के आधार पर तैयार हुई है। इस साल की सूची में 19 महिलाएं, 5 विदेशी हस्तियां और छह दिवंगत हस्तियां भी पद्म पुरस्कार पाने वालों में शामिल हैं।
ऑनलाइन चयनप्रक्रिया के माध्यम से पहली बार बनी पद्म पुरस्कार विजेताओं की सूची में शामिल नामों में “पद्म विभूषण” के लिए सात विभूतियों क्रमशः केजे येसुदास, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, शरद पवार, मुरली मनोहर जोशी, यूआर राव, स्वर्गीय सुंदर लाल पटवा, स्वर्गीय पीए संगमा के नाम शामिल हैं। वहीं शास्त्रीय गायन के क्षेत्र में विश्व मोहन भट्ट, साहित्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रोफेसर देवी प्रसाद दिवेदी, चिकित्सा के क्षेत्र में तेहेम्तोन उडवाड़िया, आध्यात्मिक क्षेत्र में रतन सुंदर महाराज, योग गुरु स्वामी निरंजनानंद सरस्वती और दिवंगत पत्रकार जोराराम स्वामी सहित थाईलैंड की राजकुमारी को भी भारत की तरफ से “पद्म भूषण” के लिए चुना गया है। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली, मशहूर गायक कैलाश खेर, हॉकी टीम के कप्तान पी. श्रीजेश, ओलिम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी पहलवान साक्षी मलिक, जिम्नास्ट दीपा कर्मकार, पैरा-एथलीट दीपा मलिक, डिस्कस थ्रोअर विकास गौड़ा, पत्रकार भावना सोमैया, उपन्यासकार नरेंद्र कोहली, पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल जैसी प्रख्यात हस्तियों सहित कुल 75 लोगों को “पद्म श्री” हेतु चुना गया है। “पद्म श्री” पाने वाले मशहूर लोगों के अलावा इस साल ऑनलाइन नामांकन की पारदर्शिता की कसौटी पर खरे उतरे कुछ ऐसे नाम भी देश के सामने आए जो बिना किसी प्रसिद्धी की अभिलाषा के बरसों से अपने स्तर पर समाज को बेहतर बनाने की दिशा में सतत् प्रयासरत हैं। इंदौर की 92 वर्षीय डॉक्टर दादी के नाम से जानी जाने वाली डॉ. भक्ति यादव, केरल की 76 वर्षीय भारत की सबसे उम्रदराज महिला तलवारबाज कही जाने वाली भारतीय मार्शल आर्ट कलारीपयट्टू विशेषज्ञा मीनाक्षी अम्मा, तेलंगाना के 68 वर्षीय वृक्ष पुरुष के नाम से विख्यात दरिपल्ली रमैया, पुणे के स्वच्छता दूत के नाम से जाने जानेवाले डॉक्टर मापुस्कर जैसे अनेक भारतीय निश्छल विभूतियां इस साल पद्मश्री की अधिकारी बनी हैं।
इस बार पद्मपुरस्कार पाने वालों में अनेक वे लोग सामने आए हैं, जो इसके बाद अब अपने कामों के लिए पहचाने जाएंगे। 68 सालों से महिलाओं का मुफ्त इलाज कर रहीं डॉक्टर भक्ति यादव और अकेले अपने दम पर पूरे एक करोड़ वृक्षों को लगाने वाले डी रमैया लोगों को पद्मभूषण या पद्मविभूषण के अधिकारी लगते हैं।

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