मनमोहन को दागदार कर गए थॉमस

हमेशा ईमानदार अधिकारी की छवि रखने वाले केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पीजे थॉमस को पॉलमोलिन इंपोर्ट केस में आठवां अभियुक्त होना इतना महंगा पड़ेगा यह उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनने के साथ ही थॉमस विवादों के साए में आ गए। इस दौरान प्रधानमंत्री के साथ-साथ पूरी कांग्रेस ने उनका साथ दिया लेकिन थॉमस की नियुक्ति को गैरकानूनी करार देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए एक और जोर का झटका है। जिस तरह उन्होंने थॉमस की वकालत की थी उससे उनका दामन भी दागदार हो गया है।

अभी प्रधानमंत्री ए राजा, सुरेश कलमाड़ी और अशोक चव्हाण के कर्मों से अपने दामन पर लगे दागों को साफ भी नहीं कर पाए थे कि सुप्रीम कोर्ट ने थॉमस की नियुक्ति को गैरकानूनी करार देकर प्रधानमंत्री के दामन पर एक और गहरा दाग लगा दिया। वैसे इस मामले में प्रधानमंत्री के पास सफाई देने के लिए ज्यादा कुछ बाकी भी नहीं रह गया है। थॉमस की नियुक्ति के लिए गठित तीन सदस्यीय पैनल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी चिदंबरम के अलावा विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज थीं। सुषमा ने थॉमस की नियुक्ति का पुरजोर विरोध किया था। लेकिन प्रधानमंत्री ने उनके विरोध को दरकिनार करते हुए 7 सितंबर 2010 को पीजे थॉमस की नियुक्ति पर अपनी मुहर लगा दी थी। अब पीजे थॉमस की इसी नियुक्ति ने प्रधानमंत्री की बेदाग छवि को दागदार बना दिया है।

यदि भ्रष्टाचार के इस मामले के छोड़ दिया जाए तो थॉमस की छवि साफ-सुधरी रही है। वो इससे पहले केरल के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं। थॉमस सचिव, दूरसंचार विभाग, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,सचिव, संसदीय कार्य मंत्रालय, नई दिल्ली,अपर मुख्य सचिव (उच्चतर शिक्षा),सरकार के मुख्य निर्वाचक अधिकारी एवं प्रधान सचिव,सचिव, केरल सरकार,निदेशक, मात्स्यिकी,प्रबंध निदेशक, केरल राज्य काजू विकास निगम लिमिटेड,सचिव टैक्स (राजस्व बोर्ड),जिलाधीश, एर्नाकुलम,सचिव, केरल खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और उप जिलाधीश, फोर्ट, कोचीन जैसे प्रतिष्ठित और जिम्मेदारी में परिपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।

केरल का पॉलमोलिन इंपोर्ट केस पिछले दो दशकों से पीजे थॉमस को परेशान किए हुए था। अब इस केस के चलते ही थॉमस को बड़ी बेरुखी से सीवीसी का पद छोडऩा पड़ रहा है। वो पहले ऐसे सीवीसी बन गए हैं जिनकी नियुक्ति को देश की शीर्ष अदालत ने अवैध करार दिया है। थॉमस पर आरोप लगे थे कि उन्होंने मलेशिया की एक कंपनी से 1500 टन पॉल्म ऑयल इंपोर्ट करने के सौदे में भ्रष्टाचार किया। यह सौदा 1992 में उस समय किया गया था जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के करूणाकरन केरल के मुख्यमंत्री थे। इस मामले में करुणाकरन प्रथम अभियुक्त जबकि उस समय राज्य के खाद्य मंत्री टीएच मुस्तफा दूसरे नंबर के अभियुक्त थे।

पीजे थॉमस केंद्रीय सतर्कता आयोग के ऐसे पहले आयुक्त हैं जिनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद आज पीजे थॉमस ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया है। इनका पूरा नाम पोलायिल जोसफ थॉमस है। थॉमस का जन्म 13 जनवरी 1951 को हुआ था। वे भौतिक विज्ञान में एमएससी और अर्थशास्त्र में एमए हैं। उन्होंने वर्ष 1973 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदभार संभाला। थॉमस पर इससे पहले पामोलीन तेल के आयात के घपले के मामले में आरोप लग चुके हैं। 1992 में जब वे केरल के फूड एंड सिविल सप्लाई सचिव थे, तब यह घोटाला हुआ था। इस घोटाले से सरकार को दो करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ था। हाल ही में खुले 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी उनका नाम सामने आया है। इस घोटाले के दौरान वह टेलीकॉम सचिव के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे थे। उनकी नियुक्ति के दौरान विपक्ष ने आपत्ति जताई थी, जिसे नजरअंदाज कर उन्हें सीवीसी बना दिया गया। थॉमस को डर है कि यदि वह इस्तीफा दे देते हैं तो सीबीआई उनसे पूछताछ कर सकती है। साथ ही जरूरत पडऩे पर सीबीआई उनकी गिरफ्तारी भी कर सकती है।

अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीवीसी पीजे थॉमस की नियु्क्ति को गैरकानूनी करार देने से कई स्वतंत्र जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठ रहे हैं। भ्रष्टाचार की जांच कर रही विभिन्न खुफिया एजेंसियों में कैसे होती हैं शीर्ष पदों पर नियुक्तियां, क्या राजनीति होती है और कैसे जोड़-तोड़ की जाती है? इन नियुक्तियों के पीछे किस-किस तरह की राजनीतिक मजबूरियां और लाभ व छूट के समीकरण रहते हैं। शीर्ष पद पर पहुंचने के लिए कैसे काम आते हैं नेताओं से प्रगाढ़ संबंध।

केंद्रीय सतर्कता आयोग पूरे देश में भ्रष्टाचार की किसी भी शिकायत की जांच कराने वाली महत्वपूर्ण एजेंसी है। इसके मुखिया पीजे थॉमस की नियुक्ति की प्रक्रिया अपने आप में कई राज खोलती है। थॉमस केरल के पामोलीन आयात घोटाले में फंसे थे। केंद्र सरकार में सचिव बनने के लिए जरूरी केंद्र में दो साल के डेपुटेशन का अनुभव तक उनके पास नहीं था। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने उन्हें सचिव बनाया। उनकी नियुक्ति पर ज्यादा लोगों का ध्यान न जाए, इसलिए उन्हें कम महत्वपूर्ण माने जाने वाले संसदीय कार्य मंत्रालय में सचिव बनाया गया। फिर एक आम तबादले की तरह उन्हें हाई प्रोफाइल टेलीकॉम विभाग में सचिव की कुर्सी मिली। उनकी तरफ लोगों का ध्यान तब गया, जब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी ने उन्हें सीवीसी नियुक्त किया। इस कमेटी में गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने तो प्रधानमंत्री का समर्थन किया, लेकिन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने कड़ी आपत्ति जताई।

थॉमस की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाले पूर्व सीबीआई अफसर बीआर लाल कहते हैं कि बाजार भाव से कहीं ज्यादा भाव पर पामोलीन खरीदना भ्रष्टाचार था। प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि ऐसे भ्रष्ट आदमी को भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली एजेंसी का मुखिया बनाने के पीछे क्या मजबूरी थी। भ्रष्ट नौकरशाहों की सूची को इंटरनेट पर डालने का क्रांतिकारी कदम उठाने वाले पूर्व सीवीसी एन. वि_ल कहते हैं कि थॉमस की नियुक्ति नियमों में कमी की वजह से हुई है। नियमों में यह कहीं नहीं है कि केवल बेदाग व्यक्ति को ही सीवीसी बनाया जा सकता है और न ही यह है कि उसे चयन समिति द्वारा सर्वसम्मति से चुना जाएगा।

जानकार बताते हैं कि थॉमस की नियुक्ति नियमों में कमी की वजह से हुई है। नियमों में यह कहीं नहीं है कि केवल बेदाग व्यक्ति को ही सीवीसी बनाया जा सकता है और न ही यह है कि उसे चयन समिति द्वारा सर्वसम्मति से चुना जाएगा। प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि ऐसे भ्रष्ट आदमी को भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली एजेंसी का मुखिया बनाने के पीछे क्या मजबूरी थी।

1 COMMENT

  1. AISA कुछ NAHI की MANMOHAN JI KO कुछ मालूम NAHI हो, AGAR कुछ मालूम नहीं, कुछ नहीं कर SAKTE थान GADDDI पर ? बेठेया है ?

    YUVRAJ JI KO GADDI (सीट) देकर JAI VAPIS AMRITSAR ……………………………………………………………………………………………………………………….

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