अभी हाल ही में अमेरिका ने इंमिग्रेशन सुधार विधेयक पारित किया है। इसे एक एतिहासिक विधेयक माना जा रहा है। इससे अमेरिका में मौजूद 11 मिलियन अवैध इंमिग्रेटस के लिए नागरिकता की राहें खुल जाएगीं। वे गिरफ्तारी या अपने देश वापस भेजे जाने के डर से बेहिचक काम कर सकेगें। लेकिन इस विधेयक में कुछ ऐसे भी प्रावधान हैं जिसका संबंध गैर इंमिग्रेशन वीजा से भी है। इसका सीधा कुप्रभाव हमारी आईटी कंपनियों पर पड़ेगा। इन प्रावधानों में एच-1बी और एल-1 वीजा हासिल करने की प्रक्रिया को न सिर्फ मुश्किल बना दिया है, बल्कि इसे बहुत मंहगा भी कर दिया गया है। इसे गौर से देखा जाए तो इस विधेयक के जरिए सस्ते में सुविधाएं प्रदान करने वाली आईटी कंपनियों की प्रतिस्पर्धाक क्षमता पर विराम लगाने की कोशिश की गई है। एक तरह से यूं कहिए कि अब भारत के लिए सिलिकॉन घाटी के दरवाजे बंद हो सकते हैं। यह भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। इस विधेयक के अनुसार अमेरिका में जो कंपनियां काम कर रही हैं उसमें विदेशों से आये लोगों का प्रतिशत केवल 50 होना चाहिए। बाकी 50 प्रतिशत अमेरिकी होगें। गौरतलब है कि अमेरिका में अधिकतर काम करने वाली भारतीय आईटी कंपनियां वीजा के जरिए भारत से सस्ते में वर्कफोर्स हासिल कर लेती थी, जिससे वे प्रतिस्पर्धा में बनी रहती थी। अब क्या होगा? अब केवल वीजा हासिल करने पर ही सीमा निर्धारित नहीं की गई बल्कि वीजा को भी काफी मंहगा कर दिया गया है। इतना ही नहीं जिन कंपनियों में 15 प्रतिशत से भी कम अस्थायी वीजा पर वर्कफोर्स है, उन्हें भी इन वीजा के लिए ज्यादा पैसा देना होगा। इसके अलावा अन्य सरकारी नियंत्रणों का भी सामना करना होगा। अब इन कंपनियों को मजबूरन वहां के लोकल वर्कर को उच्च वेतन पर हायर करना पड़ेगा। इससे अमेरिका की कुछ हद तक बेरोजगारी कम होगी। लेकिन अब भारतीय कर्मचारियों के लिए बहुत बड़ी परेशानी उत्पन्न हो जाएगी। अमेरिका खुद ही भूमंडलीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ की थी। लेकिन वह खुद इससे मुकर रहा है। ग्लोबलाईजेशन के कारण लोग आसानी से एक देश से दूसरे देश में जाकर नौकरी करते थे। इससे दुनिया भर में अनुभवी प्रतिभाओं से लाभ हो रहा था। लेकिन अब अमेरिका अपने दोयम दर्जे के कर्मचारियों को खपाने का एक अच्छा तरिका निकाल लिया है।
ऐसी हालत में अब भारत को क्या करना चाहिए? भारत को इस विधेयक में संशोधन लाने का भरपूर कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि सिनेट से पारित होने के बाद अब यह विधेयक हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में जाएगा। अभी इसमें समय है इसलिए भारत इस दौरान वहां अपनी लॉबी सक्रिय करे। इस विधेयक में जो भारत के लिए हानिकारक प्रावधान है उसे पूरी ताकत के साथ संशोधन कराने की कोशिश करें। भारत सरकार को अपने मित्र देशों से भी मदद लेनी चाहिए और इस विधेयक को पास होने से पहले अपने हितों को सुरक्षित करवाना चाहिए। अमेरिका केवल अपना हित देख रहा है। अगर भारत के लिए अमेरिका दरवाजे बंद कर रहा है तो उसे ऐसी उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि यहां उसकी कंपनियों के लिए रास्ता खुला रखा जाएगा। इस विधेयक से भारत पर एक अन्य तरीके से भी प्रभाव पड़ सकता है। भारतीय प्रतिभायें शिक्षा के रास्ते से अमेरिका में स्थाई नागरिकता हासिल कर सकती हैं। हां भारत के इंजीनियर, वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिए वहां रहना आसान हो जाएगा। लेकिन इससे भारत में कुलीन प्रतिभायें कम हो जाएगीं। दरअसल अमेरिका का श्रम संगठन सरकार पर दबाव बनाए हुए है कि सबसे पहले अमेरिकियों को जाब ऑफर किया जाए उसके बाद विदेशियों को हायर किया जाए। सिनेट का विधेयक इसी दबाव के चलते पारित किया गया है। ऐसा अनुमान है कि यही दबाव हाउस पर भी बरकरार रहेगा। वैसे भी यह बहस अमेरिका में भावनात्मक रूप ले लिया है। अमेरिकी ये सोच रहे हैं कि विदेशी यहां आकर उनके अधिकार को छिनते जा रहे हैं। वे उनके जाब्स पर कब्जा कर रहे हैं। वहां बेरोजगारी बढ़ रही है, जबकि विदेशी हर जगह छा जा रहे हैं। खासतौर से भारतीयों का दिमाग वहां बड़ी तेजी से काम कर रहा है।
लेकिन अगर दूसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह विधेयक अमेरिका के लिए ही घातक होगा। विदेशों से जो प्रतिभायें वहां आती हैं वे अमेरिकियों से ज्यादा मेहनत और लगन से काम करती हैं। उनको वेतन भी कम मिलता है। फिर भी वे मन लगाकर काम करते हैं। अगर हम सिलिकॉन घाटी को ही लें तों वहां श्रमबल की जबरदस्त कमी है। अमेरिका में इस उद्योग के लिए अमेरिकी युवक सामने नहीं आ रहे हैं। आईटी कंपनियां ठीक ढंग से काम करती रहे इसके लिए जरूरी है कि विदेशों से प्रतिभाशाली प्रतिभाओं को हायर किया जाए। लेकिन दूसरी तरफ अमेरिका के श्रम संगठनों का कहना है कि आईटी कंपनियां बहुत कम वेतन देती हैं। इसलिए अमेरिकी युवक नहीं जाते। वे कम वेतन पर विदेशों से अस्थाई कर्मचारियों को ला रही हैं। खासतौर से भारतीय इंजीनियर उसे आसानी से मिल जा रहे हैं। वैसे ग्लोबलाइजेशन के दौर में हर योग्य व्यक्ति के लिये गुंजाइश होनी चाहिए। अयोग्य व्यक्तियों की भरपाई करने के लिए विधेयक नहीं बनने चाहिए। इस बात को अमेरिका को समझना चाहिए। इससे उद्योग के क्षेत्र में काफी नुकसान होगा। उद्योग व व्यपार इससे ठप हो जाएगें। क्योंकि अयोग्य व्यक्ति कभी लाभ नहीं दिला सकता। इसलिए यह जरूरी है कि अमेरिका को इस विधेयक पर पुनः विचार करना चाहिए।