टिया और मैं

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एक मशहूर पौराणिक कथा से बात शुरु होती है। नारद मुनि को हाथ में तेल से लबालब भरा कटोरा लिए राजर्षि जनक के बाग का पूरा चक्कर लगाने को कहा गया था। शर्त थी कि तेल की एक भी बूँद छलकने नहीं पाए। मुनिवर ने सफलतापूर्वक चक्कर लगाया। अब उनसे बाग का वर्णन देने को कहा गया। उन्होंने जवाब दिया कि वे तो बाग का अवलोकन कर ही नहीं पाए क्योंकि उनका पूरा ध्यान तेल के कटोरे पर लगा हुआ था।
जीवन पथ पर चलते हुए हम अक्सर अपने रोजाना उलझनों में इस कदर लगे रहते हैं कि जीवन के समारोह के आनन्द को महसूस ही नहीं कर पाते।
मेरी उम्र अभी चौरासी साल है। मेरा अवस्थान इण्टरफेस पर है। मैं जीवन के समारोह और मृत्यु के अन्धकार के बीच सीमा बनाती सतह पर रह रहा हूँ। जीना काफी रोमांचक,घटना बहुल, तथा दिलचस्प रहा है। पर अब जो लोग मेरे जीने के साथ ओतप्रोत रहे हैं, जिन्होंने मेरे होने को परिभाषित किया है, वे तेजी से अन्धकार में समाते जा रहे हैं। ऐसी हर घटना के साथ मेरा एक हिस्सा ( मेरे अस्तित्व का एक अंश) लुप्त होता गया है। मैं अपनी सन्तान और मित्रों के निकट अवांछित एवम् अप्रासंगिक हो गया हूँ। और मैं फिर भी मौजूद हूँ। क्या मेरी मौजूदगी सचमुच है?
संक्रमण से पेश आने का हमारा अंदाज हमारी पहचान बताता है।
जीना ऐसा ही होता है। नदी के तट पर बहत सारे लोग हुआ करते हैं. उन्हें उस पार ले जाने वाली नावें एक एक कर आएँगी। कोई क्यू नहीं होता लेकिन हर किसीका खयाल रखा जाएगा। इसमें कोई चूक नहीं होती। इण्टरफेस पर रहना एक अनोखा तजुर्बा है। और एक पंडित व्यक्ति का कहना है। “अपने तजुर्बों को इस तरह फ्रेम करो कि वृद्धि हो।“
मैं अपने अनुभवों को एक फ्रेम में गूँथने की जद्दोजहद करता हूँ तो एक किताब मेरे जेहन में उभरती है। इसका नाम है- “टिया- एक तोते की घर वापसी का सफर।“ लेखक का नाम है समर्पण। वे रामकृष्ण मिशन के संन्यासी है। यह पंचतंत्र की शैली की एक आख्यायिका है। टिया एक तोता है, जो बरगद के एक पेड़ पर अनेक अन्य पक्षियों के साथ एक समाज में रहता है । कहानी शुरु होती है जब टिया को एक अजाने, अदृश्य और निराकार सूत्र से आती आवाज सुनाई पड़ती है, “टिया, तुम अपने को जो कुछ समझते हो, उससे बहुत ही अधिक बड़े हो और तुम जितने की उम्मीद करते हो,उससे काफी अधिक हासिल कर सकते हो। “ इस बात को तुम्हें अपने तजुर्बे से जानने की जरूरत है, इस बात को तुम्हें अपने कामों से हकीकत में रुपान्तरित करने की जरूरत है, अपनी सोच से अधिक हासिल कर। संक्षेप में, तुम्हें अपने आपको आविष्कृत करना है। इसके लिए तुम्हें इस जगह से बाहर निकलना होगा। जैसा मैंने कहा, मैं तुम्हें रास्ता दिखाने और तुम्हारी हिफाजत करने के लिए साथ में रहूँगा। अगर कभी तुम्हें मुझे देखने की सख्त जरूरत महसूस हो, मैं हंस के रुप में तुम्हारे सामने प्रगट होउँगा. लेकिन अगर तुम मेरा वास्तविक रुप देखोगे तो हो सकता है कि तुम अचेत हो जाओ।”
हंस के उकसावे के असर से टिया एक अभियान में निकलता है, जो शीघ्र ही विपत्तियों का सिलसिला बन जाता है। टिया अज्ञात की तलाश में निकला था। उत्साह, उत्सुकता और आशा उसके संगी थे। पर वह सुरक्षा से संकट की ओर बढ़ता रहा। अन्त में वह घर की ओर वापस चला तो था, लेकिन ऐसा लगा कि उसका वापसी सफर उसे उसके बरगद के पेड़ से और दूर और दूर ले जा रहा था।
टिया के अभियान ओर अनुभवों के सिलसिले में मुझे अपने जीवन की झलक दिखती है। मैं भी सुरक्षा एवम् सुविधा के आश्वासन से युक्त जीवन को त्याग कर अनिश्चितता, एवम् खतरों से भरी जिन्दगी की ओर आकर्षित हुआ था। मैं अब समझ सकता हूँ कि क्यों में साहसिक अभियान के लिए उन्मुख हुआ था। कुसंस्कार, परिवर्तन, अशिक्षा, बाल विधवा, विद्रोह, प्रतिवाद, आजादी जैसे वाक्यांश मेरी आँखों के सामने तैरते रहा करते थे. मैं इनके मायनी समझने की कोशिश करता। क्या मेरी जानकारी के परे भी कुछ है? मैंने महसूस किया कि इन सवालों के जवाब पाने के लिए मुझे तजुर्बे करने होंगे। हालात को बदलनें में मेरी भूमिका होनी चाहिए। मेरी समझ थी कि इसके लिए मुझे अपनी जगह छोड़नी पड़ेगी और अनजाने लोगों के बीच रहना पड़ेगा। आज अपने सफर का जायजा लेता हूँ तो महसूस करता हूँ कि मैंने उससे कहीं अधिक हासिल किया जितने की मैंने उम्मीद रखी थी। मेरी समझ बनी है कि जिन्दगी अनुभवों का ऐसा सिलसिला है, जो अन्ततोगत्वा हमें हमारे संकीर्ण अस्तित्व से मुक्त करता है। अनुभव ज्ञान देता है और ज्ञान शक्ति है और शक्ति शान्ति देती है। मुझे शान्ति की उपलब्धि हो चुकी है।
“जब मुझे एहसास हुआ कि मेरी सारी यन्त्रणा और परेशानियाँ खुद मेरे द्वारा ही पैदा की गई थीं तब से मेरा अतीत मुझे पूरी तरह हास्यास्पद लगने लगा है। केवल मैं ही अपने जीवन के तमाम खट्टे मीठे तजुर्बों के लिए जिम्मेदार था—आनन्द और विपत्तियाँ, मुस्कान और आँसू, खुशियाँ और आँसू सब के लिए। सारे अनुभव आए और गए, वास्तविक मुझको छूए बग़ैर। वे शिक्षकों की तरह थे, जिनके पास हम सीखने जाते हैं, न कि उनके साथ बसने कें लिए।– वे आवश्यक तो हैं, पर स्थाई नहीं।“
“मेरे मन का असन्तोष का बीज मोहभंग के जरिए सींचा गया था, और अब वह एक पेड़ के रुप में बढ़ गया है जिसपर अनासक्ति का फल उगा हुआ है।“
“हमें हालात के रुबरु होना चाहिए, पर उसमें डुबकी लगाने से परहेज करना भी सीखना चाहिए। खत्म नहीं होनेवाला सफर एक स्थिति से दूसरी स्थिति तक ले जाया करता है. हम रोते और हँसते है, कुछ और भी पाना चाहते हैं, नए अवश्यम्भावी तयक पहुँचते हैं, नए प्राणियों से मिलते हैं, और सफर जारी रहता है. इसका मतलब है कि संयोग जैसी कोई चीज नहीं होती. केवल वे घटनाएँ ही हमारे निकट आती हैं जिनके लिए हम उपयुक्त होते हैं. हम उनका पता भी नहीं होता जिनके लिए हम नहीं थे- चाहे वे अच्छी रही हों या बुरी।“

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