क्या इतना सहज सरल है!
शून्य भाव का संवर्धन ,
अंकित मनः पटल पर ,
निःस्वार्थ भाव से अटल खड़ा,
चलायमान अबिराम अतुल,
सर्वथा सर्व भौम भावना ,
प्रेरणा है नहीं गरल है !
नैनों की भाषा पढ़ना,
क्या इतना सहज सरल है !
अक्षहर् आदि अनादि अनामय ,
गंध हींन रस हींन निरामय ,
अखंड असीम दुरद्वय दुस्कर,
जीवन पथ ज्योतिर्मय अपलक,
राग द्वेष है किंचित किसलय,
विभावरी सी संग गामिनी,
शीत निशा है नहीं तरल है !
नैनों की भाषा पढ़ना,
क्या इतना सहज सरल है !
अभिव्यक्ति है उद्गार ह्रदय का,
प्राण संग पाषाण ह्रदय का,
शुद्ध प्रवृद्ध प्रकाश निरन्तर,
एक कर्ण है एक पर्ण है,
एक कलामय एक ह्रदय है,
झंकृत हो बाचाल मनः,
परस्क्रित पुण्य सदा मधुरद्वेय,
मन की अभिलासा पढ़ना,
क्या इतना सहज सरल है !
नैनों की भाषा पढ़ना,
क्या इतना सहज सरल है!
राकेश कुमार सिंह