समझना होगा इंटरनेट के इंद्रजाल को

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सायबर क्राईम के लिए हो गया है उपजाउ माहौल तैयार

अब समय आ गया है कि इस बात पर सर जोडकर बैठा जाए और विश्लेषण किया जाए कि इंटरनेट का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए। इंटरनेट की उमर अब 41 साल हो गई है। सितंबर 1969 में अमेरिका में इसका जन्म हुआ था। लास एंजेलिस के कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में एक कंप्यूटर ने दूसरे कंप्यूटर को ईमेल संदेश सफलता पूर्वक प्रेषित किया था। इसके बाद इंटरनेट ने पीछे मुडकर कभी नहीं देखा।

इसके बाद पडाव दर पडाव तय करके इंटरनेट ने नित नई उंचाईंया तय की हैं। अब तो मामला ईमेल से कोसों आगे बढकर चेटिंग और सोशल नेटवर्किंग वेव साईट्स तक पहुंच गया है। इंटरनेट पर अब वर्चुअल स्पेस पर एकाधिकार की जंग, विज्ञापनदाताओं को आकर्षित करने की होड के अलावा ऑनलाईन बाजार में अपने आप को बेहतर साबित करने की कवायद भी साफ दिखाई पडने लगी है।

चिंताजनक पहलू यह है कि आज इंटरनेट अपने उद्देश्य से भटकता दिखाई देने लगा है। आज लोग इंटरनेट को पोर्न साईट्स (सेक्स से संबंधित अश्लील साईट्स) का अड्डा और टाईम पास का जरिया समझने लगे हैं। बच्चों से लेकर युवा, प्रोढ यहां तक कि वृध्द मन को आकर्षित करने वाले पोर्नोग्राफी सबसे अधिक देखी जाने वाली साईट्स में स्थान पा चुकी हैं। आज छोटे छोटे शहरों में भी अगर इंटरनेट पार्लर का सर्वेक्षण किया जाए तो यहां आठ साल से साठ साल तक के आयुवर्ग के लोगों का आना जाना रहता है। छोटे छोटे बच्चों का कंप्यूटर फ्रेंडली होना अच्छा है, किन्तु उनका रूझान पोर्न साईट्स की ओर होना शुभ संकेत नहीं हैं।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इंटरनेट को सूचना क्रांति का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है। इस पर एक ओर नित नई जानकारियां, दुर्लभ वीडीयो मिलते हैं। कल तक अखबारों या पत्रिकाओं की कतरनें सहेजकर रखना होता था, आज जमाना बदल गया है। कोई भी जानकारी आपको बस एक क्लिक पर ही उपलब्ध हो जाती है। यह सब इंटरनेट का ही कमाल माना जाएगा। गांधी के विचार हों या माक्र्स की थ्योरी या फिर हिटलर की सोच, आज सर्च इंजन पर सिर्फ टाईप कर दीजिए, पलक झपकते ही इसके हजारों लिंक आपके सामने होंगे, जिनके माध्यम से आप उनके वेब पेज तक पहुंच सकते हैं, वह भी बिल्कुल मुफ्त।

मीडिया ने भी इंटरनेट के साथ कदम ताल मिलाया है। कल तक प्रिंट मीडिया का बोलबाला था। अनेक समाचार पत्र इतने लोकप्रिय हुआ करते थे कि लोग दो दिन बाद भी उसे पढा करते थे। अस्सी के दशक तक प्रिंट को जबर्दस्त सफलता मिली। इसके बाद बाजार में आया इलेक्ट्रानिक मीडिया। समाचार चेनल्स ने लोगों को लाईव कवरेज दिखाया तो इसका जादू सर चढकर बोलने लगा, मगर प्रिंट का अपना एक वजूद था, जो आज भी बना हुआ है। इसके बाद अब वेब पत्रकारिता ने लोगों को अकर्षित किया है। वेव बेस्ड समाचार एजेंसी, समाचार वेब साईट्स को जबर्दस्त सफलता मिल रही है।

अंग्रेजी में तो नेट पर न जाने कितनी समाचार की साईट्स हैं, पर अब हिन्दी में भी इन साईट्स ने धमाल मचाया हुआ है। वेब और प्रिंट मीडिया की खासियत यह है कि आप जब चाहे तब जौन सी चाहे वो खबर देख सकते हैं, पर समाचार चेनल्स में अगर आप उसे देखने से वंचित रह गए तो फिर आपको वह नहीं मिल सकता है।

इसके साथ ही साथ दस साल पहले अस्तित्व में आए ब्लाग का जादू लोगों के सर चढकर बोलने लगा। पहले लोगों को ब्लाग के मायने नहीं पता थे, आज हर विधा के ब्लाग से भरा पडा है इंटरनेट का संसार। ब्लाग एग्रीकेटर्स ने तो ब्लागर्स को नया स्पंदन दिया है। आलम यह है कि ब्लागर्स के ब्लाग पर जाकर अब तो समाचार पत्र पत्रिकाएं खबरें, आलेख, काव्य संग्रह, कहानी, वृतांत आदि को लिफ्ट कर उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं।

अखबरों की दुनिया में पितृ पुरूष की छवि वाले ”जनसत्ता” अखबार ने तो रोजाना ही एक न एक ब्लाग को अपने संपादकीय पेज में स्थान देना आरंभ किया है। इसके अलावा कुछ ब्लागर्स ने प्रिंट में छपे ब्लाग्स को एक जगह एकत्र कर अनुकरणीय प्रयास आरंभ किया है, जिससे सभी यह देख सकते हैं कि किस ब्लाग को कहां सराहा गया है।

इंटरनेट के अच्छे के साथ बुरे पहलू भी हैं। सरकारों की अनदेखी के चलते सोशल नेटवर्किंग वेवसाईट्स पर तंबाखू और धूम्रपान को बढावा देने के विज्ञापनों को खासा स्थान दिया जा रहा है। अनेक विज्ञापन तो इतने लुभावने होते हैं कि युवाओं के कोमल मन में सिगरेट का कश लगाने की कसक पैदा हो जाती है। सोशल नेटवर्किंग साईट पर स्मोकिंग के अनुभव बांटने वाली कम्यूनिटी काफी चर्चित हो हो रही हैं।

तम्बाकू नियंत्रण के लिए बने कानून ”सिगरेट एण्ड अटर टौबैको प्रॉडक्ट्स (प्रोहिबिशन ऑफ एडवराटाईजमेन्ट एण्ड रेगुलेशन ऑफ टे्रड एण्ड कामर्स, प्रोडक्शन, सप्लाई एण्ड डिस्टीब्यूशन) एक्ट 2003 के तहत उत्पादनों के विज्ञापन हेतु बनाई गई आचार संहिता के उल्लंघन पर पांच साल के कारावास का भी प्रावधान है। बावजूद इसके नेट पर इन प्रतिबंधित चीजों को परोसा जा रहा है।

इस सबसे उलट इंटरनेट के माध्यम से साईबर अपराध को बढावा मिल रहा है। इंटरनेट का इंद्रजाल इतना अधिक पसर चुका है कि अब इस पर आसानी से नजर नहीं रखी जा सकती है, जिसका फायदा अपराधी आसानी से उठा रहे हैं। आज अपराधी कंप्यूटर लिट्रेट और कंप्यूटर फ्रेंडली हो गए हैं। साईबर अपराध के प्रति भारत क्या किसी भी देश की सरकार संजीदा नहीं है जो कि आश्चर्य और भविष्य में होने वाली घटनाओं के लिए सशंकित होने की बात है। भारत में भी साईबर अपराध को बहुत गभीरता से नहीं लिया जा रहा है।

आज इंटरनेट को सत्तर फीसदीं लोगों ने सेक्स और पोर्न देखने सुनने का जरिया बना लिया है। दुनिया भर के देशों को चाहिए कि अब इंटरनेट पर परोसी जाने वाली अश्लीलता को रोकने कानून बनाएं। जागरूकता अभियान चलाकर इंटरनेट के सही इस्तेमाल के मार्ग प्रशस्त किए जाएं। वर्तमान समय में महती जरूरत इस बात की है कि भटकाव के मार्ग पर अग्रसर इंटरनेट को सही दिशा में कैसे लाया जाए।

-लिमटी खरे

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

2 COMMENTS

  1. भारत सरकार को इस और ध्यान देना होगा की सायबर क्राइम ज्यादा न बढे, इस पर एक अलग से फोरम बनाना चाहिए और इसके लिए अलग से सेल बनाये जाने की जरुरत है

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