आज की सबसे बड़ी समस्या मूर्ख और नादान लोग

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alone-man2 डॉ. दीपक आचार्य

जो लोग समझदार हैं, जिन्हें ईश्वर ने पर्याप्त बुद्धि से नवाजा है उन सभी प्रकार के लोगों में से अधिकांश लोगों के सामने जीवन की कोई और समस्या या पीड़ा हो न हो, मूर्ख और नासमझ लोग उनके लिए पूरी जिन्दगी समस्या बने रहते हैं।

समझदार लोग चाहे कहीं रहें, उनका हर क्षेत्र में ऎसे-ऎसे लोगों से पाला पड़ता रहता है जो नासमझ होते हैं। मूर्खता और नासमझी से भरे हुए लोग आजकल समुदाय और किसी भी क्षेत्र में कहीं पर भी बहुतायत में पाए जाते हैं।

समाज में संस्कारों की कमी का रोना आजकल हर कहीं रोया जा रहा है। इस संस्कारहीनता की वजह से ही आजकल कई समस्याएं पैदा हो गई हैं, कई लोगों को बेवजह परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जो लोग समझदार हैं उन्हें वास्तविकता से अवगत कराने और वस्तुस्थिति बताए जाने पर समझाया जा सकता है लेकिन जिन लोगों में संस्कारों की कमी है उन्हें भगवान भी नहीं समझा सकता।

ये मूर्खता और नासमझी इनके निष्प्राण होने तक ऎसे ही बनी रहती है। फिर इनमें खूब सारे लोग तो ऎसे हैं जिनका ज्ञान या बुद्धि से कोई लेना-देना नहीं है। न ज्यादा पढ़ पाए, न कुछ कर पाने का हुनर है इनमें।

जो लोग संस्कारों से शून्य हुआ करते हैं उन्हें अहंकार और नकारात्मक मानसिकता इस कदर घेर लेती है कि उन्हें अपने आस-पास से लेकर सभी स्थानों पर जो कुछ हो रहा है वह सारा की सारा नकारात्मक ही लगता है। पता नहीं इनके घर वाले कैसे इन्हें बर्दाश्त कर लेते होंगे।

ऎसे लोग जिन्दगी भर गिद्धों, श्वानों और सूअरों की तरह व्यवहार करते हैं और जहाँ जाएंगे वहाँ कुछ न कुछ नकारात्मक ढूँढ़ लेने की हरचंद कोशिश करते रहते हैं और जैसे ही कहीं कोई कुछ मिल जाता है, इन लोगों को स्वर्ग का आनंद पा लेने की अनुभूति हो जाती है। वस्तुतः यही उनके लिए जीवन का वह सबसे बड़ा सुकून होता है जो दूसरे सारे सांसारिक सुखों से बड़ा होता है।

संस्कारहीनता और नकारात्मकता को अंगीकार कर लेने वाले इन लोगों को कभी किसी दिन कहीं पर भी नकारात्मक सोच-विचार नहीं मिल पाता तब ये बड़े ही कुण्ठित और असहाय जैसे दिखने लगते हैं और अपनी कमजोरी को दूर करने के लिए मनगढंत कहानियाँ गढ़ लेते हैं, निन्दा और चुगली करते हुए झूठी बातों का दुष्प्रचार करते हुए लोगों को एक-दूसरे से भिड़ा देते हैं और संघर्ष का अरणी मंथन कर इसी में से कोई नाकारा बात प्रकटा कर आनंद प्राप्त कर लिया करते हैं।

समाज और क्षेत्र भर की गंदगी को अपने दिमाग में संजो कर रखने और प्रचारित करने की आदत पाल लेने वाले ये लोग न अपने घर पर खुश रह सकते हैं, न बाहर। ये लोग जहाँ जाएंगे वहाँ कुछ न कुछ गंदगी सूंघ कर रिकार्ड कर ही लेंगे और फिर इसकी सार्वजनिक अभिव्यक्ति कर अपनी नकारात्मक और घृणित मानसिकता को परिपुष्ट करते हुए आत्ममुग्ध होते रहते हैं।

समाज और क्षेत्र की प्रगति में इसी किस्म के लोग सबसे ज्यादा बाधक और घातक होते हैं जो खुद तो कुछ नहीं कर सकते, मगर औरों के सहज प्रवाह में लगातार बाधक बने हुए सामाजिक, पारिवारिक और क्षेत्रीय समस्याएँ पैदा करते रहते हैं।

इन लोगों के जीवन का एकमात्र ध्येय औरों की कमियाँ ढूँढ़ कर नकारात्मक माहौल पैदा करना और अपनी मलीन सोच को और अधिक व्यापक बनाते हुए अपने वजूद को कायम रखना है, चाहे इसके लिए इन लोगों को नकारात्मकता और आपराधिक मानसिकता भरी कितनी ही हदों को पार क्यों न करना पड़े।

इस किस्म के लोग कालान्तर में आसुरी भाव ग्रहण कर लेते हैं और जीवन के उत्तराद्र्ध में लोग इनसे इस कदर कतराने लगते हैं कि ये मनुष्यों की वाणी और छाया तक नहीं पा सकते। हालांकि ऎसे लोगों के लिए समझदार लोगों के मन में न आदर होता है, न सम्मान। जो कुछ सम्मान का भाव दर्शाया जाता है, वह ऊपर से ही होता है और इसमें किसी भी प्रकार की सच्चाई नहीं होती, बल्कि इनके जाने पर लोग इनके बारे में जिस प्रकार की टिप्पणियां करने लगते हैं, उन्हें बताया जाना भी शोभनीय नहीं होगा।

संस्कारहीनता और नकारात्मक मानसिकता से भरे-पूरे, जीवन के असली आनंद और लक्ष्य से नावाकिफ ऎसे नादान लोग समुदाय और क्षेत्र में मोबाइल कूड़ाघर के रूप में इधर-उधर भटकते रहते हैं। सत्य को स्वीकारने से पूरी तरह हिचक रखने वाले इन लोगों से समुदाय को इतना बड़ा खतरा है जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता है।

ये लोग जिन कामों और लोगों की बेवजह आलोचना करते रहते हैं, उससे समाज के श्रेष्ठ और सज्जन लोगों के मन में कड़वाहट आ जाती है और कितने सारे लोग फालतू की आलोचना की वजह से ही समाज की रचनात्मक धाराओं से पलायन कर जाते हैं। इससे समाज को उस महान रचनात्मक सामथ्र्य से वंचित रहना पड़ता है जो सामाजिक महापरिवर्तन में सक्षम हुआ करता है।

आज ऎसे लोग ही समाज और क्षेत्र की सबसे बड़ी त्रासदी बने हुए हैं जो मूर्ख, नासमझ और संस्कारहीन होकर श्वानों, गिद्धों और सूअरों की तरह नकारात्मता को सूँघने का आनंद पाकर तृप्ति का अहसास करने के लिए जाने किन-किन गलियारों में रोजाना चक्कर काटते हुए अपने आपको स्वयंभू मान बैठे हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि धरती से इस बोझ को उठा ले ताकि सज्जन लोग और क्षेत्र स्वच्छ व स्वस्थ बने रह सकें।

1 COMMENT

  1. अमंत्रं अक्षरों नास्ति ,नास्ति मुलं न औषधं
    अयोग्यः पुरुषो नास्ति ,योजकस्तत्र दुर्लभेः ||
    कोई अयोग्य नहीं होता ,आप योजक तो बनिए या बनने का प्रयास कीजिये |हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान इनको दीजिये ,शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर इनसे {ऐसे लेखकों से }कीजिये

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